Skip to main content

एक मीठी सी चुभन...सहमे सहमे प्यार के स्वर लता के, संगीत से सँवारे जयदेव ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 313/2010/13

'स्वरांजली' में आज हम उस संगीतकार को श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं जिनका ज़िक्र हमने इसी शृंखला की पहली कड़ी में किया था। जी हाँ, जयदेव जी। उनका स्वरबद्ध गीत यशुदास जी के जन्मदिन पर आप ने सुना था। जयदेव जी का देहावसान हुआ था ६ जनवरी के दिन। आज १३ जनवरी हम दे रहे हैं उन्हे अपनी श्रद्धांजली। जयदेव जी के बारे मे क्या कहें, इतने सुरीले थे वो कि उनका हर गीत उत्कृष्ट हुआ करता था। उनका कोई भी गीत ऐसा नहीं जो कर्णप्रिय ना हो। जयदेव जी की धुनों के लिए उत्कृष्टता से बढ़कर कोई शब्द नहीं है, ऐसा विविध भारती के यूनुस ख़ान ने भी कहा था जयदेव जी पर 'आज के फ़नकार' कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए। चाहे शास्त्रीय संगीत हो या लोक संगीत, जयदेव के गीतों में कुछ भी अनावश्यक नहीं लगता। गीत के अनुरूप धुन की पूर्णता का अहसास कराता है उनका संगीत, ना कुछ कम ना कुछ ज़्यादा। विविध भारती के ही एक अन्य कार्यक्रम में वरिष्ठ उद्‍घोषक कमल शर्मा ने कहा था कि "धुन रचने से पहले जयदेव गीतकार की रचना को सुनते थे, उसकी वज़न को परखते थे। उनका विचार था कि शब्द पहले आने चाहिए, गीत का अर्थ गड़बड़ाना नहीं चाहिए। फिर उसके बाद वो अपने असरदार संगीत से गीत को पूर्णता तक पहुँचाते थे।" जयदेव जी अपने गीतों में स्थान, काल और पात्र का पूरा पूरा ख़याल रखते थे। तभी तो राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' के संगीत में उन्होने राजस्थान का रंग भरा। मांड और ख़ास राजस्थानी लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत का ऐसा ब्लेंडिंग् किया कि इस फ़िल्म के गानें अमरत्व को प्राप्त हो गए। ख़ास कर लता जी के गाए दो गानें, जिनमें से एक ("तू चंदा मैं चांदनी") हम आपको 'दस राग दस रंग' शृंखला के अन्तर्गत सुनवा चुके हैं। और दूसरा गीत है "एक मीठी सी चुभन, एक हल्की सी अगन मैं आज पवन में पाऊँ", जिसे आज हम लेकर आए हैं।

'रेशमा और शेरा' १९७१ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था सुनिल दत्त ने। सुनिल दत्त साहब ने फ़िल्म का ना केवल निर्माण किया बल्कि फ़िल्म को निर्देशित भी किया और पर्दे पर 'शेरा' की भूमिका में छा भी गए। 'रेशमा' की भूमिका मे थीं वहीदा रहमान। यह एक मल्टि-स्टारर फ़िल्म थी, और अन्य महत्वपूर्ण किरदारों में शामिल थे राखी, विनोद खन्ना, और अमिताभ बच्चन। इस फ़िल्म में संजु बाबा, यानी कि हमारे संजय दत्त साहब बतौर बाल कलाकार एक क़व्वाली में नज़र आए थे। जैसा कि फ़िल्म के शीर्षक से प्रतीत होता है कि यह रेशमा और शेरा की प्रेम कहानी है, लेकिन दोनों के परिवारों में ज़बरदस्त दुश्मनी है, जिसे अंग्रेज़ी में feudal conflict कह सकते हैं। ऐसे में कई क्रूर हादसों से गुज़रती हुई एस. अली. रज़ा की कहानी आगे बढ़ती है। इस फ़िल्म ने समीक्षकों की बहुत तारीफ़ें बटोरी और कई पुरस्कारों से फ़िल्म को सम्मानित भी किया गया। १९७२ में बर्लिन फ़िल्म महोत्सव में इस फ़िल्म का नामांकन हुआ 'गोल्डन बर्लिन बीयर' पुरस्कार के लिए। इस फ़िल्म के मधुर संगीत के लिए जयदेव जी को राष्ट्रीय पुरस्कार (सिल्वर लोटस) से सम्मानित किया गया। फ़िल्म में गानें लिखे कवि नीरज, बालकवि बैरागी, राजेन्द्र कृष्ण और उद्धव कुमार ने। आज का गीत उद्धव कुमार का लिखा हुआ है। ये बड़े ही कमचर्चित गीतकार रहे, जिन्होने इस फ़िल्म के अलावा संगीतकार रोशन के लिए 'हमलोग' और 'शीशम' जैसी फ़िल्मों में गीत लिखे हैं। दोस्तो, विविध भारती के 'संगीत सरिता' में जब अनिल बिस्वास जी तशरीफ़ लाए थे, उन्होने कई संगीतकारों की रचनाओं का ज़िक्र किया था जो उनके दिल के बेहद क़रीब थे। जयदेव जी के जिन तीन गीतों का उन्होने उल्लेख किया था वे थे फ़िल्म 'गमन' के दो गीत "सीने में जलन" और "आपकी याद आती रही रात भर", तथा तीसरा गीत था "एक मीठी सी चुभन"। इस गीत को बजाते हुए उन्होने इस तरह से कहा था कि "मैं जयदेव का वही चीज़ सुनाना चाहता हूँ जिसने मेरे दिल में एक चुभन डाल दिया है, समझ गए ना?" चलिए, जयदेव जी की इस मीठी चुभन का अनुभव हम भी करते हैं लता जी की आवाज़ में।



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

वो परी थी आसमानी कोई,
जिसके होने सा था चमन गुलज़ार,
अब तो बस फिजा में गूंजती है कोई याद,
उजड़ी महफ़िलों को क्यों रोये दिले नाशाद...

अतिरिक्त सूत्र - १४ जनवरी १९९१ में इस संगीतकार ने अंतिम सांसे ली थी

पिछली पहेली का परिणाम-
अरे आप गलत कैसे हो सकती हैं इंदु जी, बिलकुल सही जवाब और इस बार मिलते हैं २ अंक भी बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

indu puri said…
जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वसले यार की
indu puri said…
फिल्म ऊंचे लोग( 1965फ़िरोज़ खां ,अशोक कुमार
सिंगर रफ़ी जी
जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वसले यार की,
बसी हुई ज़ुल्फ़ में आई है सबा प्यार की .........
एक परी कोई शाद सी नाशाद सी
बैठी हुई शबनम में तेरी याद की
भीग रही होगी कहीं कली सी गुलज़ार की .....
यही नही इस फिल्म के सभी गाने बड़े प्यारे हैं
१ आजा रे मेरे प्यार के राही रह निहारूं बड़ी देर से
२ हाय रे तेरे चंचल नैनवा कुछ बात करे ,रुक जाये
AVADH said…
बधाई इन्दुजी,
सचमुच "ऊंचे लोग" का संगीत बहुत ही मधुर था.खास तौर से इस गीत का तो जवाब ही नहीं. मेरा भी पसंदीदा गीत है.लेकिन आपने संगीतकार का उल्लेख तो किया ही नहीं. अगर मुझे सही याद आ रहा है तो शायद चित्रगुप्त जी थे.
अवध लाल
AVADH said…
अरे फिल्म के कलाकारों के नाम बताते समय एक खास नाम तो गोल हो गया. जी हाँ राज कुमार जी ने एक पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभाई थी जो अपने कर्त्तव्य के निर्वाह हेतु अपने सगे भाई को भी सजा दिलाने के लिए कटिबद्ध था चाहे उसे अपने फौजी पिता के विरुद्ध भी क्यों न क़दम उठाना पड़े.
अवध लाल
प्रस्तुत गीत जिस भी राग में बनाया है, जयदेव जी के पसंदीदा रागों में से अग्रणी है. धन्यवाद इस गीत को सुनवाने के लिये..
वाह लाजवाब प्रस्तुति धन्यवाद्

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट