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दूल्हा मिल गया...शाहरुख़ के कधों पर ललित पंडित के गीतों की डोली...

ताज़ा सुर ताल ०१/ २०१०

सजीव - गुड्‍ मॊर्निंग् सुजॊय! और बताओ न्यू ईयर कैसा रहा? ख़ूब जम के मस्ती की होगी तुमने?

सुजॊय - गुड्‍ मॊर्निंग् सजीव! न्यू ईयर तो अच्छा रहा और इन दिनों कड़ाके की ठंड जो पड़ रही है उत्तर भारत में, तो मैं भी उसी की चपेट में हूँ, इसलिए घर में ही रहा और रेडियो व टेलीविज़न के तमाम कार्यक्रमों, जिनमें २००९ के फ़िल्मों और उनके संगीत की समीक्षात्मक तरीके से प्रस्तुतिकरण हुआ, उन्ही का मज़ा ले रहा था।

सजीव - ठीक कहा, पिछले कुछ दिनों में हमने २००९ की काफ़ी आलोचना, समालोचना कर ली, अब आओ कमर कस लें २०१० के फ़िल्म संगीत को सुनने और उनके बारे में चर्चा करने के लिए।

सुजॊय - मैं समझ रहा हूँ सजीव कि आपका इशारा किस तरफ़ है। 'ताज़ा सुर ताल', यानी कि TST की आज इस साल की पहली कड़ी है, और इस साल के शुरु से ही हम इस सीरीज़ में इस साल रिलीज़ होने वाले संगीत को रप्त करते जाएँगे।

सजीव - हाँ, और हमारी अपने पाठकों और श्रोताओं से यह ख़ास ग़ुज़ारिश है कि अब की बार आप इसमें सक्रीय भूमिका निभाएँ। केवल यह कहकर नए संगीत से मुंह ना मोड़ लें कि आपको नया संगीत पसंद नहीं। बल्कि एक विश्लेषणात्मक रवैया अपनाएँ और इस मंच पर हमें बताएँ कि कौन सा गीत आपको अच्छा लगा और कौन सा नहीं लगा, और क्यों। ठीक कहा ना मैंने सुजॊय?

सुजॊय - १०० फ़ीसदी सही कहा आपने! और भई सीमा जी को टक्कर देने वाले भी तो चाहिए, वरना वो बिना गोलकीपर के गोल पोस्ट पर एक के बाद एक गोल करती चली जाएँगी, हा हा हा!

सजीव - आज तुम्हारा मूड कुछ हल्का फुल्का सा लग रहा है सुजॊय!

सुजॊय - जी बिल्कुल! नए साल में अभी तक ज़िंदगी ने रफ़्तार नहीं पकड़ी है न, इसलिए बिल्कुल फ़्रेश हूँ। और हमारे फ़िल्म जगत में भी साल का पहला महीना कुछ हद तक ढीला ढाला सा ही रहता है।

सजीव - ठीक कहा। तो चलो तुम्हारे इसी मूड को बरक़रार रखते हुए आज हम सुनते हैं और चर्चा करते हैं फ़िल्म 'दुल्हा मिल गया' के संगीत का। वैसे भी साल की शुरुआत 'लाइटर नोट' पे ही होनी चाहिए। बातें बहुत सारी हो गई, चलो जल्दी से इस फ़िल्म का शीर्षक गीत पहले सुन लेते हैं, फिर उसके बाद इस फ़िल्म की चर्चा शुरु करेंगे।

गीत: दुल्हा मिल गया...dulha mil gaya (title)


सुजॊय - यह तो दलेर मेहन्दी की आवाज़ थी ना?

सजीव - हाँ, कई दिनों के बाद किसी फ़िल्म में उनका गाया हुआ गाना आया है, और वो भी शाहरुख़ ख़ान पर फ़िल्माया गया है। शाहरुख़ ने इस फ़िल्म में अतिथि कलाकार के रूप में इस गीत में नज़र आएँगे। वैसे शाहरुख़ ने कई फ़िल्मों में इस तरह से एक गीत में नज़र आए हैं। कोई ऐसा गीत याद आता है तुम्हे?

सुजॊय - क्यों नहीं, फ़िल्म 'काल' के शीर्षक गीत "काल धमाल" में नज़र आए थे। अच्छा 'दुल्हा मिल गया' के इस गीत के अगर बात करें तो मेरा ख़याल है कि यह एक पेप्पी और कैची नंबर है जो शुरु से लेकर अंत तक अपने जोश और उत्साह को बनाए रखती है। पंजाबी रंग का गाना और उस पर दलेर साहब की गायकी, इसका असर तो होना ही था। और शाहरुख़ जो भी काम करते हैं उसमें पूरी जान लगा देते हैं।

सजीव - फ़िल्म 'दुल्हा मिल गया' में कुल १२ गानें हैं।

सुजॊय - १२ गानें? 'व्हाट्स योर राशी' में १३ गानें थे, क्या कोई होड़ सी चल पड़ी है? मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि ९० के दशक के उस टी-सीरीज़ का दौर वापस आने वाला है। याद है ना आपको कि जब हर फ़िल्म में ८-१० गानें होते थे, जिनमें गायिका होती थीं अनुराधा पौडवाल और अलग अलग गीतों में अलग अलग गायकों की आवाज़ें होती थीं?

सजीव - बिल्कुल याद है। लेकिन इस ऐल्बम की अच्छी बात यह है कि भले ही १२ गानें हैं लेकिन हर गाना अलग अलग क़िस्म का है। अब जो गाना हम सुनेंगे उसे गाया है अदनान सामी और अनुश्का मनचंदा ने। यह है "अकेला दिल", आजकल जो ट्रेंड चली है अंग्रेज़ी के बोलों को सुपरिम्पोज़ करने की, इस गीत में यह काम सौंपा गया है अनुश्का को। यह भी एक थिरकता गाना है, पहले गाने के मुक़ाबले थोड़ा स्लो। गाना ठीक ठाक है, बहुत कोई ख़ास बात भी नहीं है, चलो आगे इस गीत के बारे में राय श्रोताओं पर ही छोड़ते हैं।

सुजॊय - यह गाना कुछ कुछ वेस्ट इंडीज़ के कैरिबीयन के कैलीप्सो संगीत से प्रभावित लगता है, जिस तरह से अदनान सामी का ही एक मशहूर गाना था फ़िल्म 'ऐतराज़' में, "गेला गेला गेला दिल गेला गेला"। सुनिए यह गीत और दोनों गीतों के बीच समानता को महसूस कीजिए।

गीत: अकेला दिल..akela dil (dulha mil gaya)


सुजॊय - अब इस फ़िल्म से जुड़े लोगों की ज़रा बातें हो जाए? 'दुल्हा मिल गया' के प्रोड्युसर हैं विवेक वास्वानी। फ़िल्म का निर्देशन किया है मुदस्सर अज़ीज़ ने और ख़ास बात, उन्होने ही फ़िल्म के गानें भी लिखे हैं। यह उनकी पहली निर्देशित फ़िल्म है। वैसे वो चर्चा में रहे हैं सुश्मिता सेन के बॊय फ़्रेंड होने की वजह से।

सजीव - मुदस्सर अज़ीज़ के ज़िक्र से मुझे फ़िल्मकार किदार शर्मा की याद आ गई। वो भी फ़िल्म निर्माण व निर्देशन के साथ साथ गीतकारी भी करते थे न?

सुजॊय - बिल्कुल ठीक। गुलज़ार साहब और कमाल अमरोही साहब भी इसी संदर्भ में याद किए जा सकते हैं। अच्छा, तो मैं 'दुल्हा मिल गया' के कास्ट से परिचय करवा रहा था। फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाए हैं फ़रदीन ख़ान और सुश्मिता सेन ने, तथा शाहरुख़ ख़ान का ज़िक्र तो हम कर ही चुके हैं। फ़िल्म में संगीत है ललित पंडित का। वही ललित पंडित जो कभी जतीन-ललित की जोड़ी के रूप में एक से एक सुपरहिट गानें दिया करते थे। 'फ़ना' इस जोड़ी की अंतिम फ़िल्म थी।

सजीव - और एक बात सुजॊय कि जतीन-ललित ने शाहरुख़ ख़ान के कितने सारे फ़िल्मों में सुपर डुपर हिट गानें दिए, जैसे कि 'येस बॊस', 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे', 'कुछ कुछ होता है', 'मोहब्बतें', और 'कभी ख़ुशी कभी ग़म'। और जब से ये दोनों एक दूसरे से अलग हुए हैं, किसी भी फ़िल्म में इन्हे सफलता अभी तक नहीं मिली है। ख़ैर, वापस आते हैं 'दुल्हा मिल गया' पर और तीसरा गाना जो हम अब बजाएँगे वह है "आजा आजा मेरे रांझना वे आजा आजा"।

सुजॊय - बोल सुन कर तो लग रहा है कि फ़िल्म में किसी शादी के सिचुयशन के लिए बना होगा यह गाना। गाने में मुख्य स्वर है नई आवाज़ सुनंदा का, और बाद में अनुश्का उनका साथ देती हैं। अनुश्का मनचंदा इन दिनों तेज़ी से कामयाबी के पायदान चढ़ रही हैं। सुनिधि और श्रेया के बाद अब तक कोई गायिका उस मुक़ाम तक नहीं पहुँच पायी हैं। हो सकता है वह मुक़ाम अनुश्का के इंतज़ार में है।

सजीव - इस गीत में वैसे कोई नई बात नहीं है, बल्कि 'कभी ख़ुशी कभी ग़म' के "बोले चूड़ियाँ बोले कंगना" का ही एक एक्स्टेन्शन जैसा लगता है। सिर्फ़ मुखड़ा ही नहीं, अंतरे में भी जब "साथिया हाथ दे, अब मेरा साथ दे" गाया जाता है, उसमें भी "बोले चूड़ियाँ" का अंतरा याद आ ही जाता है।

गीत: आजा आजा रांझना वे...aaja aaja ranjhna ve (dulha mil gaya)


सुजॊय - अब एक बेहद नर्मोनाज़ुक गीत हो जाए इस फ़िल्म से। सजीव, इस दौर की जो सब से अग्रणी गायिकाएँ है, यानी कि श्रेय घोषाल और सुनिधि चौहान, मैंने एक पत्रिका में एक बार पढ़ा था कि श्रेया को लता घराने का माना जाता है और सुनिधि को आशा घराने का। है न मज़ेदार ऒब्ज़र्वेशन?

सजीव - हाँ, कुछ हद तक सही भी है। श्रेया ज़्यादातर नर्मोनाज़ुक गानें गाती हैं और सुनिधि किसी भी तरह के गीत गानें से नहीं कतरातीं।

सुजॊय - तो चलिए अब एक ख़ास श्रेया वाले अंदाज़ का गाना हो जाए, यह गीत है "रंग दिया दिल"। लोक रंग में रंगा हुआ गाना है, जो उपर के तीन गीतों से बिल्कुल अलग हट के है।

सजीव - कैरीबीयन से हम सीधे अपनी धरती हिंदुस्तान में उतर आते हैं और इस गीत को सुनते हुए जैसे हम पंजाब के किसी गाँव में पहुँच जाते हैं जहाँ पीली सरसों के खेत में नायिका अपने प्यार के इंतज़ार में यह गीत गा रही होती है।

गीत: रंग दिया दिल...rang diya dil (dulha mil gaya)


सुजॊय - और अब पाँचवे और अंतिम गीत की बारी। और शायद यह फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत साबित होने वाला है। अजी गीत क्या, यह तो एक क़व्वाली है, "दिलरुबाओं के जलवे तौबा"।

सजीव - पहला गाना शाहरुख़ ख़ान पर फ़िल्माया हुआ था और यह क़व्वाली भी उन्ही पर और उनके साथ सुश्मिता सेन पर फ़िल्माया गया है। पिक्चराइज़ेशन भी ज़बरदस्त हुई है इस क़व्वाली का। इस क़व्वाली की तैयारी में हर किसी ने जी जान लगाई होगी, क्योंकि शाहरुख़ ख़ान इससे पहले फ़िल्म 'मैं हूँ ना' में एक मशहूर क़व्वाली "तुम से मिल के दिल का है जो हाल क्या कहें" कर चुके हैं जिसे अपार सफलता मिली थी। तो ज़ाहिर है कि लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।

सुजॊय - और शायद पहली बार गायक अमित कुमार शाहरुख़ ख़ान का प्लेबैक कर रहे हैं इस क़व्वाली में। 'अपना सपना मनी मनी' में "दिल में बजी गीटार" के बाद अमित कुमार की आवाज़ फिर से गूँज उठी है इस क़व्वाली में। वैसे सजीव, क्या आपको अमित कुमार की आवाज़ मे कोई और क़व्वाली याद आती है?

सजीव - नहीं भई मुझे तो कोई ऐसी क़व्वाली याद नहीं आ रही है।

सुजॊय - कोई बात नहीं, यह सवाल आज हम अपने ट्रिविया में पूछ लेंगे। "दिलरुबाओं के जलवे" में अमित कुमार के साथ आवाज़ मिलाई है मोनाली ठाकुर ने जिन्होने फ़िल्म 'रेस' का वह हिट गीत गाया था "ज़रा ज़रा टच मी टच मी"। रीयलिटी शोज़ के वजह से कई गायक गायिकाएँ सामने आ रहे हैं। लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि इन्हे फ़िल्मों में चांस देने में संगीतकारों और फ़िल्मकारों की भूमिका। अनुश्का और मोनाली ऐसी ही रीयलिटी शोज़ से उभरी हैं। इस फ़िल्म में एक और गीत है जिसमें तुलसी की आवाज़ है, वो भी यही से आईं हैं। और फिर श्रेया सुनिधि भी तो रीयलिटी शो की ही उपज हैं!

सजीव - और एक मज़ेदार बात नोटिस की है तुमने इस क़व्वाली में?

सुजॊय - कौन सी?

सजीव - यही कि क़व्वाली के अंत के जो बोल हैं उनमें शाहरुख़ ख़ान और सुश्मिता सेन के कई फ़िल्मों और गीतों का ज़िक्र आता है जैसे कि शाहरुख़ की फ़िल्में बादशाह, कुछ कुछ होता है, दीवाना, कुछ कुछ होता है, बाज़ीगर, डर, अंजाम, देवदास, दिल तो पागल है, मैं हूँ ना। सुश्मिता की दस्तक, सिर्फ़ तुम और बेवफ़ा जैसी फ़िल्मों और "दिलबर" तथा "मस्त माहौल" जैसे गीतों का उल्लेख भी आता है क़व्वाली के अंतिम चरण में। मुदस्सर अज़ीज़ ने बतौर गीतकार भी अच्छा काम दिखाया है इस फ़िल्म में। अब उनकी क़िस्मत के सितारे कितने बुलंद हैं, वह तो फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद ही पता लगेगी!

सुजॊय - तो चलिए, हम सब मिलकर इस क़व्वाली का लुत्फ़ उठाते हैं। हमने १२ में से कुल ५ गानें यहाँ पे शामिल किए जो अलग अलग रंग-ओ-अंदाज़ के हैं। उम्मीद है आप सभी को पसंद आएँगे। नीचे पूछे गए सवालों के जवाब देने की कोशिश कीजिएगा लेकिन इन गीतों के बारे में अपनी राय टिप्पणी में लिखना हर श्रोता व पाठक के लिए अनिवार्य है। :-)

गीत: दिलरुबाओं के जलवे तौबा...dilrubaaon ke jalve (dulha mil gaya)


एल्बम "दूल्हा मिल गया" को आवाज़ रेटिंग **१/२
फिल्म में हालाँकि शाहरुख़ खान अतिथि भूमिका में हैं पर प्रचार प्रसार में उन्हीं का सहारा लिया जा रहा है. जैसा कि हमने उपर जिक्र किया, लगभग सभी गीत औसत ही हैं, "अकेला दिल" अदनान सामी के गायन अंदाज़ और अच्छे बोलों के कारण चर्चित हो सकता है. कुछ नयी आवाजों में संभावना नज़र आती है पर इन्हें और बेहतर गीत भी मिलने चाहिए, नए पन के अभाव में इस अल्बम को ढाई तारे की रेटिंग ही दी जा सकती है
.

और अब बारी है ताज़ा सुर ताल (TST) ट्रिविया की, जनवरी के पहले सोमवार से लेकर दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक हर सप्ताह हम आपसे पूछेंगें ३ सवाल. हर सही जवाब के होंगें ३ अंक. इसके अलावा जो श्रोता प्रस्तुत गीतों को सुनकर अपनी रेटिंग देगा (५ में से ) वो भी १ अंक पाने का हक रखेगा, तो खेलिए हमारे संग, नए गीतों पर आपनी राय रखिये और सवालों का जवाब तलाश कर अपना संगीत ज्ञान भी बढ़ायिये...

प्रस्तुत है आज के ३ सवाल

सवाल # १. अमित कुमार ने गायिका हेमलता के साथ १९८८ की एक फ़िल्म में एक क़व्वाली गाया था। आनंद बक्शी की रचना, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत, फ़िल्म के मुख्य किरदार थे गोविन्दा और सोनम। बताइए इस क़व्वाले के बोल और फ़िल्म का नाम।

सवाल # २. क्योंकि आज ज़िक्र है संगीतकार ललित पंडित का, तो बताइए कि जतीन-ललित की जोड़ी ने अपना पहला फ़िल्मी ऐल्बम 'यारा दिलदारा' से पहले जिस ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम की रचना की थी, उस ऐल्बम का क्या शीर्षक था?

सवाल # ३. मुदस्सर अज़ीज़ ने 'दुल्हा मिल गया' में पहली बार अपने निर्देशन के जल्वे दिखाए हैं। गानें भी उन्होने ही लिखे हैं लेकिन बतौर गीतकार यह उनकी पहली फ़िल्म नहीं है। तो आप ही बता दीजिए कि इससे पहले उन्होने किस फ़िल्म में गीत लिख चुके हैं?



अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.

Comments

seema gupta said…
1) Sachai Ki Taqat
Wahan Tu Hai Yahan Main Hoon

regards
seema gupta said…
3) Zindaggi Rocks (2006)
regards
सजीव जी/सुजाय जी,
क्या आपको यह पता है कि "दिलरूबाओं के जलवे" पूरी की पूरी चोरी करके बनाई हुई कव्वाली है।

ये देखिए
It was recently reported on www.itwofs.com and Mumbai Mirror that Lalit Pandit (of Jatin-Lalit duo) has lifted the tune of Pakistani singer Fakhr-e-Alam’s song Husnwaalon se poocho, that was part of his 2001 album Falam Connection. Husanwaalon becomes dilrubaoon ke jalwe in Dulha Mil Gaya.

और ये रहा लिंक जहाँ दोनों हीं गाने हैं। सौ फीसदी टीप लेना किसे कहते हैं, यह कोई ललित पंडित से सीखे।

http://moifightclub.wordpress.com/2010/01/09/lalit-pandit-lifts-tune-of-pakistani-singer-fakhr-e-alam/

-विश्व दीपक

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