Skip to main content

महबूबा महबूबा....याद कीजिये पंचम का वो मदमस्त अंदाज़ जिस पर थिरका था कभी पूरा देश

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 310/2010/10

दोस्तों, 'पंचम के दस रंग' लघु शृंखला को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं दसवीं कड़ी, यानी इस शृंखला की अंतिम कड़ी पर। आज का रंग है 'आइटम सॊंग्‍'। आइटम सॊंग्स की परम्परा नई नहीं है। बहुत पहले से ही हमारी फ़िल्मों में आइटम सॊंग्स बनते आए हैं। हाँ, इतना ज़रूर बदलाव आया है कि पहले ऐसे गानें फ़िल्म की कहानी से जुड़े हुए लगते थे, शालीनता भी हुआ करती थी, लेकिन आज के दौर के आइटम सॊंग्स केवल सस्ती पब्लिसिटी और अंग प्रदर्शन के लिए ही इस्तेमाल में लाए जाते हैं। साहब, आइटम सॊंग किसे कहते हैं पंचम दा ने दुनिया को दिखाया था १९७५ की ब्लॊकबस्टर फ़िल्म 'शोले' में "महबूबा महबूबा" गीत को बना कर और ख़ुद उसे गा कर। जलाल आग़ा और हेलेन पर फ़िल्माया हुआ यह गीत उतना ही अमर है जितना कि फ़िल्म 'शोले'। आज के इस अंतिम कड़ी के लिए पंचम दा की आवाज़ में इस गीत से बेहतर भला और कौन सा गीत हो सकता था! फ़िल्म 'शोले' की हम और क्या बातें करें, इसके हर पहलु तो बच्चा बच्चा वाक़िफ़ है, इसलिए आइए आज इस गीत की थोड़ी चर्चा की जाए।

"महबूबा महबूबा" मध्य एशिया के अरबी संगीत पर आधारित है। इस गीत में जो एक ख़ास साज़ आपको सुनाई देता है, क्या आपको पता है वह कौन सा साज़ है? यह है इरानीयन संतूर। जी हाँ, पंडित शिव कुमार शर्मा, हमारे देश के सुविख्यात संतूर वादक ने ही इस गानें में इरानीयन संतूर बजाया था। पंडित जी पंचम के गहरे दोस्तों में से थे। आइए उन्ही की ज़ुबानी सुनें पंचम और उनके इस अनोखे गीत के बारे में। ये बातें पंडित जी ने विविध भारती के 'संगीत सरिता' कार्यक्रम के अन्तर्गत 'मेरी संगीत यात्रा' शृंखला के दौरान कहे थे। "गहरी दोस्ती थी हमारी, अभी पंचम का जब ज़िक्र कर रहे हैं हम लोग, तो जैसा कहते हैं ना बहुत जिद्दत की बात सोचते रहते थे। कुछ ऐसी बात कि इस बात में से नया क्या निकाले? तो उसी की मैं आपको एक मिसाल बताउँगा कि फ़िल्म बन रही थी 'शोले'। शोले फ़िल्म इंडस्ट्री की एक 'ऒल टाइम ग्रेट फ़िल्म' है। तो उसमें म्युज़िक उन्होने दिया था। और एक, जैसा मैंने कहा, जिद्दत कुछ ना कुछ करते रहते थे} तो अपने गाने में भी कुछ आवाज़ ऐसी बनाते थे कि अलग अंदाज़ का एक गाने का स्टाइल क्रीएट किया। तो 'शोले' का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था, "महबूबा महबूबा"। वो पंचम ने ख़ुद गाया भी था} उसमें उन्होने इरानीयन संतूर इस्तेमाल किया। इरानीयन संतूर हमारे संतूर से टोनल क्वालिटी में अलग है, शेप भी अलग है, सिस्टेम तो वही है, और ये मेरे पास कैसे आया कि १९६९ में मैं इरान गया था शिराज़ फ़ेस्टिवल में बजाने के लिए। इंटर्नैशनल फ़ेस्टिवल हुआ था तो वहाँ की सरकार ने मुझे एक गिफ़्ट दिया था। तो पंचम ने क्या किया कि इरानीयन संतूर को, अब सोचिए कि ये इलेक्ट्रॊनिक म्युज़िक तो आज हुआ है, 'शोले' कभी आई थी, राजकमल स्टुडियो में उन्होने अपनी तरह से एक एक्स्पेरिमेंट करके उसकी टोन में कुछ बदलाव किया और एक अलग अंदाज़ का टोन बनाया, जो उस गाने की मूड को सूट करे। पंचम की आवाज़ और साथ में इरानीयन संतूर।" और दोस्तों, हम भी बेशक़ आप को सुनवाना चाहेंगे यह गीत। आशा है पंचम पर केन्द्रित इस लघु शृंखला का आप सभी ने भरपूर आनंद उठाया होगा और पंचम की ये बातें जो शम्मी कपूर, आशा भोसले, गुलज़ार और पंडित शिव कुमार शर्मा ने कहे, आपको अच्छे लगे होंगे! अपनी राय ज़रूर लिख भेजिएगा। कल से एक नई शृंखला के साथ हम फिर हाज़िर होंगे, तब तक के लिए दीजिए सुजॊय को इजाज़त और अब मैं पहेली प्रतियोगिता के संचालन के लिए बागडोर हस्तांतरित करता हूँ सजीव जी को। नमस्ते!



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

सुबह सुबह की बेला में ही,
कैसी की रुत ने ठिठोली,
अंग अंग भीग गयो रे मोरा,
खेल गए बादल यूं होली,

पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी एक और अंक जुड़ा आपके खाते में, ३ अंकों पर पहुंचा आपका स्कोर, रही बात महबूबा गीत के गोल्ड होने या न होने के सवाल पर, तो हम ये फैसला अपने सुधि श्रोताओं पर ही छोड़ते हैं, चलिए आज इसी पर सब अपनी अपनी राय रखिये...

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

indu puri said…
rut piya milan ki aai
indu puri said…
फिजा में रंग है दिल के संग ,
उमंगे खेल रही है होली हो होली
किसी ने एक नजर में भर दी
हमारे अरमानों की झोली हो झोली
रुत पिया मिलन की आई
indu puri said…
फिजा में रंग है दिल के संग ,
उमंगे खेल रही है होली हो होली
किसी ने एक नजर में भर दी
हमारे अरमानों की झोली हो झोली
रुत पिया मिलन की आई
इसमें तो मात्र दो ही शब्द आये इंदु जी, तीसरा शब्द और एक गुम शुदा शब्द भी खोजिये और सही गीत पहचानिये, एक अतरिक्त सूत्र देता हूँ. इसे गाया है दक्षिण के बड़े गायक ने जिसने हिंदी संगीत को भी अपनी आवाज़ से बहुत समृद्ध किया है...
indu puri said…
sajivji,is gane ko maine pura nhi likha ...aur bhi pnktiyan hai jisme 'ang' shbd bhi aaya hai ,aap ek baar dekhiye
indu puri said…
nasha sa ang ang me dole ho dole
kisi ko paake tamnna bole
indu puri said…
chaliye teeno shbdo se mil kar bna ek geet aurये चाँद अकेला जाये सखीरी
अंग अंग में होली दहके
मन में बेला चमेली बहके
ये रुत क्या कहलाये री
हाँ इसमें चौथा शब्द भी आया है, मिला क्या ? अग्रिम बधाई :)

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...