ताज़ा सुर ताल ०३/ २०१०
सुजॊय - सजीव, यह इस साल के पहले महीने जनवरी का तीसरा 'ताज़ा सुर ताल' है। हमने अब तक इस महीने 'दुल्हा मिल गया', और वीर फ़िल्मों के संगीत की चर्चा की है। इनमें से 'दुल्हा मिल गया' रिलीज़ हो चुकी है, लेकिन फ़िल्म अब तक रफ़्तार नहीं पकड़ पाई है शाहरुख़ ख़ान के होने के बावजूद।
सजीव - और सुजॊय, इसी महीने 'प्यार इम्पॊसिबल' और 'चांस पे डांस' भी प्रदर्शित हो चुकी है, लेकिन बहुत ज़्यादा उम्मीदें इनमें भी नज़र नहीं आ रही। बता सकते हो क्या कारण हो सकता है?
सुजॊय - मुझे तो यही लगता है कि 'अवतार' और '३ इडियट्स' का नशा अभी तक लोगों के ज़हन से उतरा नहीं है। क्या होता है न कि हब कोई फ़िल्म बहुत ज़्यादा हिट हो जाती है, तो उसके ठीक बाद रिलीज़ होने वाली फ़िल्में कुछ हद तक उसकी चपेट में आ ही जाते हैं। अच्छा सजीव, इससे पहले कि हम आज के फ़िल्म की बातें शुरु करें, क्यों न आप जल्दी जल्दी 'प्यार इम्पॊसिबल' और 'चांस पे डांस' के म्युज़िक के बारे में हमारे पाठकों को एक हल्का सा आभास करा दें!
सजीव - ज़रूर! देखो सुजॊय, जहाँ तक 'चांस पे डांस' के म्युज़िक का सवाल है, करीब करीब सभी गानें वेस्टर्ण डांस और फ़्युज़न डांस को आधार बनाकर ही तैयार किए गए हैं। बहुत ज़्यादा फ़ूट टैपरिंग् नंबर्स हैं जो डिस्कोज़ में काफ़ी कामयाब रहेंगे। "ढैन टे नैन" के बाद अब बारी है "पें पें पेपें" के साथ झूमने की। लेकिन इस बार विशाल भारद्वाज नहीं, बल्कि प्रीतम हैं संगीतकार। इस गीत को लोग पसंद कर रहे हैं, शहनाई और पाश्चात्य संगीत का अच्छा फ़्युज़न है इस गीत में।
सुजॊय - सजीव, मेरे पास उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान साहब के शहनाई का एक कैसेट था किसी ज़माने में, उसमें यह धुन थी, और यह कैसेट उस ज़माने में शादियों के रिसेप्शन में अक्सर बजते रहते थे। अच्छा, 'प्यार इम्पॊसिबल' में "टेन ऒन टेन" और "प्यार इम्पॊसिबल" गीतों के अलावा तो कोई गीत सुनने को ही नहीं मिला कहीं पर। मेरा ख़याल है कि इस फ़िल्म के संगीत में चर्चा करने लायक कोई भी ख़ास बात नहीं है। उदय चोपड़ा और प्रियंका चोपड़ा की जोड़ी को भी लोग पचा नहीं पाए।
सजीव - ख़ैर, आओ अब आते हैं आज की फ़िल्म पर जिसके गानें हम सुनेंगे भी और चर्चा भी करेंगे। पहला गाना पहले सुनों और बताओ कि आज किस फ़िल्म के संगीत को लेकर मैं हाज़िर हुआ हूँ।
गीत: दिल तो बच्चा है...Dil to bachha hai (ishqiya)
सुजॊय - वाह वाह, आज आप 'इश्किया' लेकर आए हैं। मैं भी कल सोच ही रहा था कि कब हम इस फ़िल्म को शामिल करेंगे। बेहद ख़ास फ़िल्म होने वाली है यह। और जहाँ तक इस गीत का सवाल है, राहत फ़तेह अली ख़ान का गाया हुआ, एक अलग ही अंदाज़ का और लीग से हट कर गाना है। और हम इस मंच पर ख़ास तौर पे उन फ़िल्मों को ही शामिल करते हैं जिनके संगीत में कुछ अहम बात दिखाई दे, क्यों सजीव?
सजीव - बिल्कुल सही कहा। और पता है इस फ़िल्म के गानें क्यों लीग से हट के है? क्यों कि इन्हे लिखा है गुलज़ार साहब ने। उनके ग़ैर पारम्परिक लेखनी जारी है और "दिल तो बच्चा है जी" में भी उन्होने उसी अंदाज़ का परिचय दिया है।
सुजॊय - 'माचिस', 'ओमकारा', और 'कमीने' जैसी कामयाब फ़िल्मों के बाद गुलज़ार साहब और विशाल भारद्वाज एक बार फिर से गीतकार संगीतकार जोड़ी के रूप में इस फ़िल्म में सामने आए हैं। अच्छा अभी हाल के कुछ सालों में राहत फ़तेह अली ख़ान ने कई लोकप्रिय गानें गाए हैं, ख़ास कर प्रीतम और साजिद वाजिद जैसे संगीतकारों के लिए। अब देखिए इस फ़िल्म में विशाल ने भी उनसे गाना लिया और क्या ख़ूब सुफ़ीयाना अंदाज़ का प्रदर्शन किया है राहत साहब ने!
सजीव - इस गीत में जो गीटार का इस्तेमाल हुआ सुनाई देता है, उसमें एक स्पनिश फ़ील सी आई है, और विशाल साहब तो भली भांति जानते हैं कि किस तरह से भारतीय और वेस्टर्ण म्युज़िक को मिक्स किया जाता है। कुल मिलाकर एक बेहद फ़्रेश गीत सुना हमने। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि यह गीत लोगों की जुबान से जल्द हटने वाला नहीं। हर कोई अपने दिल को बच्चा करार देने पर लगा है। चलो अब बारी है दूसरे गीत की। तो सुन लेते हैं यह गीत।
गीत: इब्न-ए-बतूता बगल में जूता...ibn-e-batuta (ishqkiya)
सुजॊय - फ़ुर्र्र्रर्र् चुर्र्र्रर्र् फ़ुर्र्र्रर्र् चुर्र्र्रर्र्
सजीव - अरे अरे अरे ये क्या कर रहे हो?
सुजॊय - ओ हो सॊरी, गाना ख़तम हो गया? मैं तो बस गीत का मज़ा ले रहा था! बहुत दिनों के बाद कुछ अलग हट के गानें सुनने को मिले हैं ना तो इसलिए मैं उनमें बह सा गया था। जैसा संगीत भी मज़ेदार है, बोल तो और भी लाजवाब! गुलज़ार साहब अगैन ऐट हिज़ बेस्ट!
सजीव - बिल्कुल, और सुखविंदर सिंह और मिका की मस्ती भरी आवाज़ों ने और फ़ूट टैपरिंग् रीदम ने गाने को एक पेप्पी फ़ीलिंग् दी है। यह गीत ना हमें केवल किसी गाँव के खेतों की हरियाली में खींच ले जाते हैं, बल्कि एक हास्य रस का आभास भी कराते है। "थोड़ा आगे गतिरोधक है" जैसे बोल गुलज़ार साहब के कलम से ही निकलते रहे हैं।
सुजॊय - अब इससे पहले की अगले गीत की तरफ़ हम बढ़ें, आइए कुछ जानकारी हम अपने श्रोताओं व पाठकों को दे दें इस फ़िल्म के बारे में। विशाल भारद्वाज की फ़िल्म है और निर्देशक हैं अभिशेक चौबे। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं नसीरुद्दिन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन प्रमुख। गीतकार संगीतकार तो बता ही चुके हैं। दरसल 'इश्किया' बॊलीवुड की कोई फ़ॊर्मुला फ़िल्म नहीं है। इस बात का अंदाज़ा तो कोई भी इस बात से लगा ही सकता है कि फ़िल्म में नसीरुद्दिन शाह मुख्य भूमिका में हैं। यह फ़िल्म है दो गैंग्स्टर्स (हूलीगन्स) और एक आकर्षक गाँव की लड़की की। अब इस फ़िल्म की कहानी के बारे में पहले से ही बताने की ग़ुस्ताख़ी मैं नहीं करूँगा, वरना अगली बार से पाठक हमें पढ़ना ही बंद कर देंगे।
सजीव- हाँ, और फ़िल्मों का मज़ा तो थियटर में जाकर ख़ुद देखने में ही है। चलो अब तीसरा गाना सुनते हैं रेखा भारद्वाज की आवाज़ में। और इसमें है गुलज़ार साहब की शायरी। इस ग़ज़ालनुमा गीत में रेखा जी ने एक बार फिर से साबित किया है कि आज की दौर में उनकी गायकी एक बहुत ही ख़ास मुक़ाम रखती है।
सुजॊय - यह गीत टूटे सपनों के बारे में है, जीवन के प्यास के बारे में है, क़रार के बारे में है। अब और ज़्यादा कहने की ज़रूरत नहीं, सीधे सुनते हैं इस गीत को।
गीत: अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ...Ab mujhe koi intezaar (ishiqiya)
सजीव- वाह! मज़ा आ गया है! और अब रेखा जी की ही आवाज़ में एक और गीत जो मेरा इस ऐल्बम का सब से फ़ेवरीट गीत है। "बड़ी धीरे जली रैना, धुआँ धुआँ नैना"। फ़िल्म 'वीर' में "कान्हा" गाने के बाद एक बार फिर से कुछ शास्त्रीय अंदाज़ में रेखा की आवाज़ इस गीत को एक अलग ही मुक़म तक लेके गई हैं। गीत तो वैसे फ़्युज़न ही है, बीट्स वेस्टर्ण है, लेकिन कुल मिलाकर यह गीत बिल्कुल इस मिट्टी से जुड़ा हुआ है। पर्क्युशन का सही इस्तेमाल किया है विशाल ने।
सुजॊय - एक और ख़ास बात क्या है इन सभी गीतों में पता है? ये गानें अपने आप में इतने सशक्त हैं कि इन्हे सुनते हुए हम इस बात को अपने दिमाग़ में भी लाए कि ये गानें किन कलाकारों पर फ़िल्माए गए होंगे! ये ख़ुद ही अपनी पहचान रखते हैं और ये किसी तरह के फ़िल्मांकन की मोहताज नहीं बनेंगे, ऐसा मेरा ख़याल है। अब लग रहा है कि २०१० के दशक में फ़िल्म संगीत में क्रांति की नई लहर आएगी और एक अलग ही सुरीला दौर एक बार फिर से जी उठेगा। चलिए सुनते हैं यह गीत।
गीत: बड़ी धीरे जली रैना...badi dhiire jali (ishiqiya)
"इश्किया" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****१/२
इस जोड़ी से हमेशा ही उम्मीद रहती है, दिल तो बच्चा है के बोल बेहद मजेदार हैं, और धुन में राज कपूर एरा का रेट्रो अंदाज़ खूब जमता है, इब्ने-बतूता एकदम तरोताज़ा है और जिस अंदाज़ से "फुर्र्र" बोला जाता है देर तक कानों में गूंजता रह जाता है, रेखा के गाये दोनों ही गीत गुलज़ार की चिर परिचित ग्लूमी अंदाज़ के हैं, बड़ी धीरे जली में लाइव वाध्यों का सुन्दर इस्तेमाल हुआ है, अन्तरो के बीच बजते संगीत में गजब का आकर्षण है, इन्हें सुनते हुए आप पूरा दिन बिता सकते हैं फिर भी ऊब नहीं पायेगें...इस वर्ष की बहुत अच्छी संगीतमयी शुरुआत हुई है इशिकिया और कुछ हद तक वीर के संगीत के चलते...इश्किया को आवाज़ ने दिए साढ़े चार तारों की रेटिंग...
अब पेश है आज के तीन सवाल-
TST ट्रिविया # 07-सन् १९६२ में सम्पूरण सिंह एक मशहूर फ़िम निर्माता-निर्देशक के सहायक बने थे। बताइए उस निर्माता-निर्देशक का नाम।
TST ट्रिविया # 08-"दिल में ऐसे संभलते हैं ग़म जैसे कोई ज़ेवर संभालता है। टूट गए, नाराज़ हो गए, अंगूठी उतारी, वापस कर दिए। कंगन उतारे, सात फेरों के साथ वापस कर दिए। पर बाक़ी ज़ेवर जो दिल में रख लिए उनका क्या होगा?" ये अल्फ़ाज़ कहे थे गुलज़ार साहब ने विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में। इन अल्फ़ाज़ों को पढ़कर आपको क्या लगता है कि गुलज़ार साहब ने इसके बाद कौन सा अपना गाना बजाया होगा?
TST ट्रिविया # 09-'जुर्म और सज़ा' तथा 'ज़िंदगी और तूफ़ान' जैसी फ़िल्मों को आप विशाल भारद्वाज के साथ कैसे जोड़ सकते हैं?
TST ट्रिविया में अब तक -
सीमा जी एक बार आगे बड़ी चली जा रही हैं ३ में से २ सही जवाब देकर आपने कमाए ४ और अंक, बधाई...
सुजॊय - सजीव, यह इस साल के पहले महीने जनवरी का तीसरा 'ताज़ा सुर ताल' है। हमने अब तक इस महीने 'दुल्हा मिल गया', और वीर फ़िल्मों के संगीत की चर्चा की है। इनमें से 'दुल्हा मिल गया' रिलीज़ हो चुकी है, लेकिन फ़िल्म अब तक रफ़्तार नहीं पकड़ पाई है शाहरुख़ ख़ान के होने के बावजूद।
सजीव - और सुजॊय, इसी महीने 'प्यार इम्पॊसिबल' और 'चांस पे डांस' भी प्रदर्शित हो चुकी है, लेकिन बहुत ज़्यादा उम्मीदें इनमें भी नज़र नहीं आ रही। बता सकते हो क्या कारण हो सकता है?
सुजॊय - मुझे तो यही लगता है कि 'अवतार' और '३ इडियट्स' का नशा अभी तक लोगों के ज़हन से उतरा नहीं है। क्या होता है न कि हब कोई फ़िल्म बहुत ज़्यादा हिट हो जाती है, तो उसके ठीक बाद रिलीज़ होने वाली फ़िल्में कुछ हद तक उसकी चपेट में आ ही जाते हैं। अच्छा सजीव, इससे पहले कि हम आज के फ़िल्म की बातें शुरु करें, क्यों न आप जल्दी जल्दी 'प्यार इम्पॊसिबल' और 'चांस पे डांस' के म्युज़िक के बारे में हमारे पाठकों को एक हल्का सा आभास करा दें!
सजीव - ज़रूर! देखो सुजॊय, जहाँ तक 'चांस पे डांस' के म्युज़िक का सवाल है, करीब करीब सभी गानें वेस्टर्ण डांस और फ़्युज़न डांस को आधार बनाकर ही तैयार किए गए हैं। बहुत ज़्यादा फ़ूट टैपरिंग् नंबर्स हैं जो डिस्कोज़ में काफ़ी कामयाब रहेंगे। "ढैन टे नैन" के बाद अब बारी है "पें पें पेपें" के साथ झूमने की। लेकिन इस बार विशाल भारद्वाज नहीं, बल्कि प्रीतम हैं संगीतकार। इस गीत को लोग पसंद कर रहे हैं, शहनाई और पाश्चात्य संगीत का अच्छा फ़्युज़न है इस गीत में।
सुजॊय - सजीव, मेरे पास उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान साहब के शहनाई का एक कैसेट था किसी ज़माने में, उसमें यह धुन थी, और यह कैसेट उस ज़माने में शादियों के रिसेप्शन में अक्सर बजते रहते थे। अच्छा, 'प्यार इम्पॊसिबल' में "टेन ऒन टेन" और "प्यार इम्पॊसिबल" गीतों के अलावा तो कोई गीत सुनने को ही नहीं मिला कहीं पर। मेरा ख़याल है कि इस फ़िल्म के संगीत में चर्चा करने लायक कोई भी ख़ास बात नहीं है। उदय चोपड़ा और प्रियंका चोपड़ा की जोड़ी को भी लोग पचा नहीं पाए।
सजीव - ख़ैर, आओ अब आते हैं आज की फ़िल्म पर जिसके गानें हम सुनेंगे भी और चर्चा भी करेंगे। पहला गाना पहले सुनों और बताओ कि आज किस फ़िल्म के संगीत को लेकर मैं हाज़िर हुआ हूँ।
गीत: दिल तो बच्चा है...Dil to bachha hai (ishqiya)
सुजॊय - वाह वाह, आज आप 'इश्किया' लेकर आए हैं। मैं भी कल सोच ही रहा था कि कब हम इस फ़िल्म को शामिल करेंगे। बेहद ख़ास फ़िल्म होने वाली है यह। और जहाँ तक इस गीत का सवाल है, राहत फ़तेह अली ख़ान का गाया हुआ, एक अलग ही अंदाज़ का और लीग से हट कर गाना है। और हम इस मंच पर ख़ास तौर पे उन फ़िल्मों को ही शामिल करते हैं जिनके संगीत में कुछ अहम बात दिखाई दे, क्यों सजीव?
सजीव - बिल्कुल सही कहा। और पता है इस फ़िल्म के गानें क्यों लीग से हट के है? क्यों कि इन्हे लिखा है गुलज़ार साहब ने। उनके ग़ैर पारम्परिक लेखनी जारी है और "दिल तो बच्चा है जी" में भी उन्होने उसी अंदाज़ का परिचय दिया है।
सुजॊय - 'माचिस', 'ओमकारा', और 'कमीने' जैसी कामयाब फ़िल्मों के बाद गुलज़ार साहब और विशाल भारद्वाज एक बार फिर से गीतकार संगीतकार जोड़ी के रूप में इस फ़िल्म में सामने आए हैं। अच्छा अभी हाल के कुछ सालों में राहत फ़तेह अली ख़ान ने कई लोकप्रिय गानें गाए हैं, ख़ास कर प्रीतम और साजिद वाजिद जैसे संगीतकारों के लिए। अब देखिए इस फ़िल्म में विशाल ने भी उनसे गाना लिया और क्या ख़ूब सुफ़ीयाना अंदाज़ का प्रदर्शन किया है राहत साहब ने!
सजीव - इस गीत में जो गीटार का इस्तेमाल हुआ सुनाई देता है, उसमें एक स्पनिश फ़ील सी आई है, और विशाल साहब तो भली भांति जानते हैं कि किस तरह से भारतीय और वेस्टर्ण म्युज़िक को मिक्स किया जाता है। कुल मिलाकर एक बेहद फ़्रेश गीत सुना हमने। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि यह गीत लोगों की जुबान से जल्द हटने वाला नहीं। हर कोई अपने दिल को बच्चा करार देने पर लगा है। चलो अब बारी है दूसरे गीत की। तो सुन लेते हैं यह गीत।
गीत: इब्न-ए-बतूता बगल में जूता...ibn-e-batuta (ishqkiya)
सुजॊय - फ़ुर्र्र्रर्र् चुर्र्र्रर्र् फ़ुर्र्र्रर्र् चुर्र्र्रर्र्
सजीव - अरे अरे अरे ये क्या कर रहे हो?
सुजॊय - ओ हो सॊरी, गाना ख़तम हो गया? मैं तो बस गीत का मज़ा ले रहा था! बहुत दिनों के बाद कुछ अलग हट के गानें सुनने को मिले हैं ना तो इसलिए मैं उनमें बह सा गया था। जैसा संगीत भी मज़ेदार है, बोल तो और भी लाजवाब! गुलज़ार साहब अगैन ऐट हिज़ बेस्ट!
सजीव - बिल्कुल, और सुखविंदर सिंह और मिका की मस्ती भरी आवाज़ों ने और फ़ूट टैपरिंग् रीदम ने गाने को एक पेप्पी फ़ीलिंग् दी है। यह गीत ना हमें केवल किसी गाँव के खेतों की हरियाली में खींच ले जाते हैं, बल्कि एक हास्य रस का आभास भी कराते है। "थोड़ा आगे गतिरोधक है" जैसे बोल गुलज़ार साहब के कलम से ही निकलते रहे हैं।
सुजॊय - अब इससे पहले की अगले गीत की तरफ़ हम बढ़ें, आइए कुछ जानकारी हम अपने श्रोताओं व पाठकों को दे दें इस फ़िल्म के बारे में। विशाल भारद्वाज की फ़िल्म है और निर्देशक हैं अभिशेक चौबे। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं नसीरुद्दिन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन प्रमुख। गीतकार संगीतकार तो बता ही चुके हैं। दरसल 'इश्किया' बॊलीवुड की कोई फ़ॊर्मुला फ़िल्म नहीं है। इस बात का अंदाज़ा तो कोई भी इस बात से लगा ही सकता है कि फ़िल्म में नसीरुद्दिन शाह मुख्य भूमिका में हैं। यह फ़िल्म है दो गैंग्स्टर्स (हूलीगन्स) और एक आकर्षक गाँव की लड़की की। अब इस फ़िल्म की कहानी के बारे में पहले से ही बताने की ग़ुस्ताख़ी मैं नहीं करूँगा, वरना अगली बार से पाठक हमें पढ़ना ही बंद कर देंगे।
सजीव- हाँ, और फ़िल्मों का मज़ा तो थियटर में जाकर ख़ुद देखने में ही है। चलो अब तीसरा गाना सुनते हैं रेखा भारद्वाज की आवाज़ में। और इसमें है गुलज़ार साहब की शायरी। इस ग़ज़ालनुमा गीत में रेखा जी ने एक बार फिर से साबित किया है कि आज की दौर में उनकी गायकी एक बहुत ही ख़ास मुक़ाम रखती है।
सुजॊय - यह गीत टूटे सपनों के बारे में है, जीवन के प्यास के बारे में है, क़रार के बारे में है। अब और ज़्यादा कहने की ज़रूरत नहीं, सीधे सुनते हैं इस गीत को।
गीत: अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ...Ab mujhe koi intezaar (ishiqiya)
सजीव- वाह! मज़ा आ गया है! और अब रेखा जी की ही आवाज़ में एक और गीत जो मेरा इस ऐल्बम का सब से फ़ेवरीट गीत है। "बड़ी धीरे जली रैना, धुआँ धुआँ नैना"। फ़िल्म 'वीर' में "कान्हा" गाने के बाद एक बार फिर से कुछ शास्त्रीय अंदाज़ में रेखा की आवाज़ इस गीत को एक अलग ही मुक़म तक लेके गई हैं। गीत तो वैसे फ़्युज़न ही है, बीट्स वेस्टर्ण है, लेकिन कुल मिलाकर यह गीत बिल्कुल इस मिट्टी से जुड़ा हुआ है। पर्क्युशन का सही इस्तेमाल किया है विशाल ने।
सुजॊय - एक और ख़ास बात क्या है इन सभी गीतों में पता है? ये गानें अपने आप में इतने सशक्त हैं कि इन्हे सुनते हुए हम इस बात को अपने दिमाग़ में भी लाए कि ये गानें किन कलाकारों पर फ़िल्माए गए होंगे! ये ख़ुद ही अपनी पहचान रखते हैं और ये किसी तरह के फ़िल्मांकन की मोहताज नहीं बनेंगे, ऐसा मेरा ख़याल है। अब लग रहा है कि २०१० के दशक में फ़िल्म संगीत में क्रांति की नई लहर आएगी और एक अलग ही सुरीला दौर एक बार फिर से जी उठेगा। चलिए सुनते हैं यह गीत।
गीत: बड़ी धीरे जली रैना...badi dhiire jali (ishiqiya)
"इश्किया" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****१/२
इस जोड़ी से हमेशा ही उम्मीद रहती है, दिल तो बच्चा है के बोल बेहद मजेदार हैं, और धुन में राज कपूर एरा का रेट्रो अंदाज़ खूब जमता है, इब्ने-बतूता एकदम तरोताज़ा है और जिस अंदाज़ से "फुर्र्र" बोला जाता है देर तक कानों में गूंजता रह जाता है, रेखा के गाये दोनों ही गीत गुलज़ार की चिर परिचित ग्लूमी अंदाज़ के हैं, बड़ी धीरे जली में लाइव वाध्यों का सुन्दर इस्तेमाल हुआ है, अन्तरो के बीच बजते संगीत में गजब का आकर्षण है, इन्हें सुनते हुए आप पूरा दिन बिता सकते हैं फिर भी ऊब नहीं पायेगें...इस वर्ष की बहुत अच्छी संगीतमयी शुरुआत हुई है इशिकिया और कुछ हद तक वीर के संगीत के चलते...इश्किया को आवाज़ ने दिए साढ़े चार तारों की रेटिंग...
अब पेश है आज के तीन सवाल-
TST ट्रिविया # 07-सन् १९६२ में सम्पूरण सिंह एक मशहूर फ़िम निर्माता-निर्देशक के सहायक बने थे। बताइए उस निर्माता-निर्देशक का नाम।
TST ट्रिविया # 08-"दिल में ऐसे संभलते हैं ग़म जैसे कोई ज़ेवर संभालता है। टूट गए, नाराज़ हो गए, अंगूठी उतारी, वापस कर दिए। कंगन उतारे, सात फेरों के साथ वापस कर दिए। पर बाक़ी ज़ेवर जो दिल में रख लिए उनका क्या होगा?" ये अल्फ़ाज़ कहे थे गुलज़ार साहब ने विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में। इन अल्फ़ाज़ों को पढ़कर आपको क्या लगता है कि गुलज़ार साहब ने इसके बाद कौन सा अपना गाना बजाया होगा?
TST ट्रिविया # 09-'जुर्म और सज़ा' तथा 'ज़िंदगी और तूफ़ान' जैसी फ़िल्मों को आप विशाल भारद्वाज के साथ कैसे जोड़ सकते हैं?
TST ट्रिविया में अब तक -
सीमा जी एक बार आगे बड़ी चली जा रही हैं ३ में से २ सही जवाब देकर आपने कमाए ४ और अंक, बधाई...
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regards
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