ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 253
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पहेली प्रतियोगिता के तीसरे विजेयता पूर्वी जी के अनुरोध पर एक के बाद एक कुल पाँच गानें। आज है उनके चुने हुए तीसरे गीत की बारी। कल का गीत था ख़ुशरंग, आज उसके ठीक विपरित, यानी कि एक ग़मज़दा नग़मा। है तो ग़मज़दा लेकिन उतना ही मक़बूल और मशहूर जितना कि कोई भी दूसरा ख़ुशनुमा हिट गीत। आज हम सुनने जा रहे हैं तलत महमूद की मख़मली आवाज़ में फ़िल्म 'जहाँ आरा' का गीत "फिर वही शाम वही ग़म वही तन्हाई है, दिल को समझाने तेरी याद चली आई है"। तलत साहब के गाए सब से ज़्यादा हिट गीतों की फ़ेहरिस्त में शुमार होता है इस गीत का। राजेन्द्र कृष्ण के असरदार बोल और मदन मोहन का अमर संगीत। यह अफ़सोस की ही बात है दोस्तों कि मदन मोहन के संगीत वाली फ़िल्में बॉक्स ऒफ़िस पर ज़्यादा कामयाब नहीं हुआ करती थी। लेकिन उन फ़िल्मों का संगीत कुछ ऐसा रूहानी होता था कि ये फ़िल्में केवल अपने गीत संगीत की वजह से ही लोगों के दिलों में हमेशा के लिए बस जाती थी। 'जहाँ आरा' भी एक ऐसी ही फ़िल्म थी। मैने यह कहीं पढ़ा है, पता नहीं सच है या ग़लत, कि 'जहाँ आरा' फ़िल्म कुछ इस क़दर फ़्लॊप हुई कि बहुत से सिनेमाघरों से इस फ़िल्म को उसी दिन उतार दिया गया जिस दिन यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी। यानी कि यह फ़िल्म एक डिसास्टर रही निर्माता के लिए। लेकिन संगीत रसिकों के लिए यह एक यादगार फ़िल्म है जिसकी मिठास दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है।
'जहाँ आरा' फ़िल्म बनी थी सन् १९६४ में। और १९६४ में ही आई थी मदन मोहन के संगीत में सुपरहिट फ़िल्म 'वो कौन थी'। अब इन दो फ़िल्मों में एक समानता देखिए। 'जहाँ आरा' में लता-तलत का गाया युगल गीत "ऐ सनम आज ये क़सम खाएँ" की धुन 'वो कौन थी' में लता-महेन्द्र के गाए युगल गीत "छोड़ कर तेरे प्यार का दामन" से कहीं कहीं बहुत मिलता जुलता है। ख़ैर, 'जहाँ आरा' के निर्देशक थे विनोद कुमार। मुग़ल पृष्ठभूमी पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि मिर्ज़ा युसूफ़ चंगेज़ी और जहाँ आरा बचपन के साथी थे। जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। जहाँ आरा के वालिद और कोई नहीं बल्कि बादशाह शाहजहाँ थे, जिन्होने जहाँ का किसी भी ग़ैर पुरुष से मिलने जुलने पर पाबंदी लगा रखी थी। लेकिन जहाँ और मिर्ज़ा छुप छुप कर मिलते रहे और एक दूसरे से शादी करने का इरादा भी कर बैठे। बदक़िस्मती से जब मुमताज़ महल की मौत हो गई तो शाहजहाँ ने उनकी याद में ताजमहल बनाने की क़सम खाई। मृत्यु शय्या पर मुमताज़ महल ने अपनी बेटी जहाँ आरा से यह वचन लिया था कि उनके बाद वो अपने वालिद का ख़याल रखेगी। ऐसे में जहाँ और मिर्ज़ा का मिलन असंभव था। क्या हुआ फिर दोनो के प्यार का, क्या वो एक दूजे से मिल पाए, यह थी 'जहाँ आरा' फ़िल्म की कहानी। शाहजहाँ के किरदार में पृथ्वीराज कपूर, जहाँ आरा के किरदार में माला सिन्हा और मिर्ज़ा युसूफ़ चंगेज़ी की भूमिका में थे भारत भूषण। जाहिर सी बात है आज यह प्रस्तुत गीत फ़िल्म की कहानी के उस मोड़ पर फ़िल्माया गया होगा जब मिर्ज़ा और जहाँ का एक दूसरे से मिलना जुलना बंद हो गया था। तभी तो शाम की तन्हाइयों ने मिर्ज़ा को घेर लिया था। राजेन्द्र कृष्ण साहब ने क्या ख़ूब लिखा है कि "दिल को समझाने तेरी याद चली आई है"। "याद चली आई है", "याद आ रही है", "याद तेरी आएगी" जैसे बोल तो बार बार लिखे जा चुके हैं, लेकिन "दिल को समझाने तेरी याद चली आई है" में कुछ और ही बात है! तो चलिए सुनते हैं।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राग पहाडी पर आधारित है ये गीत.
२. शकील बदायुनीं है गीतकार.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"सितारे".
पिछली पहेली का परिणाम -
कमाल है इतने सूत्र देने के बाद भी कोई इस नायाब गीत की गुत्थी नहीं सुलझा पाया.....चलिए आज के लिए सबको शुभकामनाएँ
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पहेली प्रतियोगिता के तीसरे विजेयता पूर्वी जी के अनुरोध पर एक के बाद एक कुल पाँच गानें। आज है उनके चुने हुए तीसरे गीत की बारी। कल का गीत था ख़ुशरंग, आज उसके ठीक विपरित, यानी कि एक ग़मज़दा नग़मा। है तो ग़मज़दा लेकिन उतना ही मक़बूल और मशहूर जितना कि कोई भी दूसरा ख़ुशनुमा हिट गीत। आज हम सुनने जा रहे हैं तलत महमूद की मख़मली आवाज़ में फ़िल्म 'जहाँ आरा' का गीत "फिर वही शाम वही ग़म वही तन्हाई है, दिल को समझाने तेरी याद चली आई है"। तलत साहब के गाए सब से ज़्यादा हिट गीतों की फ़ेहरिस्त में शुमार होता है इस गीत का। राजेन्द्र कृष्ण के असरदार बोल और मदन मोहन का अमर संगीत। यह अफ़सोस की ही बात है दोस्तों कि मदन मोहन के संगीत वाली फ़िल्में बॉक्स ऒफ़िस पर ज़्यादा कामयाब नहीं हुआ करती थी। लेकिन उन फ़िल्मों का संगीत कुछ ऐसा रूहानी होता था कि ये फ़िल्में केवल अपने गीत संगीत की वजह से ही लोगों के दिलों में हमेशा के लिए बस जाती थी। 'जहाँ आरा' भी एक ऐसी ही फ़िल्म थी। मैने यह कहीं पढ़ा है, पता नहीं सच है या ग़लत, कि 'जहाँ आरा' फ़िल्म कुछ इस क़दर फ़्लॊप हुई कि बहुत से सिनेमाघरों से इस फ़िल्म को उसी दिन उतार दिया गया जिस दिन यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी। यानी कि यह फ़िल्म एक डिसास्टर रही निर्माता के लिए। लेकिन संगीत रसिकों के लिए यह एक यादगार फ़िल्म है जिसकी मिठास दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है।
'जहाँ आरा' फ़िल्म बनी थी सन् १९६४ में। और १९६४ में ही आई थी मदन मोहन के संगीत में सुपरहिट फ़िल्म 'वो कौन थी'। अब इन दो फ़िल्मों में एक समानता देखिए। 'जहाँ आरा' में लता-तलत का गाया युगल गीत "ऐ सनम आज ये क़सम खाएँ" की धुन 'वो कौन थी' में लता-महेन्द्र के गाए युगल गीत "छोड़ कर तेरे प्यार का दामन" से कहीं कहीं बहुत मिलता जुलता है। ख़ैर, 'जहाँ आरा' के निर्देशक थे विनोद कुमार। मुग़ल पृष्ठभूमी पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि मिर्ज़ा युसूफ़ चंगेज़ी और जहाँ आरा बचपन के साथी थे। जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। जहाँ आरा के वालिद और कोई नहीं बल्कि बादशाह शाहजहाँ थे, जिन्होने जहाँ का किसी भी ग़ैर पुरुष से मिलने जुलने पर पाबंदी लगा रखी थी। लेकिन जहाँ और मिर्ज़ा छुप छुप कर मिलते रहे और एक दूसरे से शादी करने का इरादा भी कर बैठे। बदक़िस्मती से जब मुमताज़ महल की मौत हो गई तो शाहजहाँ ने उनकी याद में ताजमहल बनाने की क़सम खाई। मृत्यु शय्या पर मुमताज़ महल ने अपनी बेटी जहाँ आरा से यह वचन लिया था कि उनके बाद वो अपने वालिद का ख़याल रखेगी। ऐसे में जहाँ और मिर्ज़ा का मिलन असंभव था। क्या हुआ फिर दोनो के प्यार का, क्या वो एक दूजे से मिल पाए, यह थी 'जहाँ आरा' फ़िल्म की कहानी। शाहजहाँ के किरदार में पृथ्वीराज कपूर, जहाँ आरा के किरदार में माला सिन्हा और मिर्ज़ा युसूफ़ चंगेज़ी की भूमिका में थे भारत भूषण। जाहिर सी बात है आज यह प्रस्तुत गीत फ़िल्म की कहानी के उस मोड़ पर फ़िल्माया गया होगा जब मिर्ज़ा और जहाँ का एक दूसरे से मिलना जुलना बंद हो गया था। तभी तो शाम की तन्हाइयों ने मिर्ज़ा को घेर लिया था। राजेन्द्र कृष्ण साहब ने क्या ख़ूब लिखा है कि "दिल को समझाने तेरी याद चली आई है"। "याद चली आई है", "याद आ रही है", "याद तेरी आएगी" जैसे बोल तो बार बार लिखे जा चुके हैं, लेकिन "दिल को समझाने तेरी याद चली आई है" में कुछ और ही बात है! तो चलिए सुनते हैं।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राग पहाडी पर आधारित है ये गीत.
२. शकील बदायुनीं है गीतकार.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"सितारे".
पिछली पहेली का परिणाम -
कमाल है इतने सूत्र देने के बाद भी कोई इस नायाब गीत की गुत्थी नहीं सुलझा पाया.....चलिए आज के लिए सबको शुभकामनाएँ
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
फिर भी एक तुका लगाते हैं...
सुहानी रात ढल गई..
ना जाने तुम कब आओगे,,,,?
मनु जी,
कभी कभी तुक्का भी तीर का काम कर जाता है. बधाई.