Skip to main content

हाँ दीवाना हूँ मैं...माना था मुकेश ने सरदार मलिक के निर्देशन में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 256

ल्ड इज़ गोल्ड' में जहाँ एक तरफ़ मशहूर और लोकप्रिय संगीतकारों की रचनाएँ हम सुनवाते रहते हैं, समय समय पर हम ऐसे फ़नकारों को भी याद करते रहते हैं जिन्होने बहुत लम्बी पारी तो नहीं खेली लेकिन सृजनशीलता और रचनात्मक्ता में ये कमचर्चित फ़नकार किसी से कम नहीं थे। आज हम एक ऐसे ही संगीतकार को पहली बार 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में याद कर रहे हैं। और ये सुरीले मौसीकार हैं सरदार मलिक साहब। इनका नाम याद आते ही एकाएक जिस फ़िल्म का ध्यान आता है, उस फ़िल्म का नाम है 'सारंगा'। युं तो सरदार मलिक का पहला हिट गीत फ़िल्म 'ठोकर' का था, जिसके बोल थे "ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ", पर उनको सही मायने में कामयाबी और शोहरत हासिल हुई फ़िल्म 'सारंगा' के गीतों के लिए। बदक़िस्मती से 'सारंगा' बॊक्स ऒफ़िस पर नाकामयाब रही, पर इसके गानें बेहद लोकप्रिय हुए और लोगों के ज़ुबान पर ऐसे चढ़े कि आज भी लोग इन्हे गुनगुनाते रहते हैं। आज सुनिए इस फ़िल्म से मुकेश की आवाज़ में "हाँ दीवाना हूँ मैं, ग़म का मारा हुआ एक बेगाना हूँ मैं"। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस तरह के गीतों के लिए मुकेश की आवाज़ का कोई सानी नहीं था। भरत व्यास की गीत रचना है, और सरदार साहब ने इस गीत में अरबी संगीत का नमूना पेश किया है, जो सुनने में कुछ कुछ सज्जाद हुसैन साहब के संगीत से मिलता जुलता प्रतीत होता है। इस गीत को सुनकर आप समझ जाएँगे कि मेरे कहने का क्या आशय है। 'सारंगा' सन् १९६० में बनी थी, जिसका निर्माण व निर्देशन किया था धीरूभाई देसाई ने तथा इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सूदेश कुमार व जयश्री गडकर।

विविध भारती के 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में फ़ौजी भा‍इयों से मुख़ातिब सरदार मलिक साहब ने इस गीत के संबंध में ये कहा था - "मेरा जनम कपूरथला में हुआ था। उदय शंकर कल्चरल सेन्टर में मुझे भेजा गया डान्स सीखने के लिए। उदय शंकर जैसा डान्सर हमारे देश में आज तक फिर पैदा नहीं हुआ है। वहीं पर मैं महान कवि सुमित्रानंदन पंत से मिला। अल्लाउद्दिन ख़ान साहब, जो पंडित रविशंकर के गुरु हैं, उन्होने मुझसे कहा कि तुम डान्स बहुत अच्छा करते हो, पर मेरा ख़याल है कि थोड़ा समय अगर म्युज़िक में भी दो तो एक अच्छा कॊम्पोज़र बन सकते हो। उनकी नज़र वहाँ तक थी। मुझे डान्स सीखने से संगीत में काफ़ी मदद मिली। फ़िल्म 'सारंगा' का गीत "हाँ दीवाना हूँ मैं", इसमें मैने चार रीदम्स एक ही साथ में इस्तेमाल किया है और ऐसा मैं कर सका हूँ अपनी डान्स की शिक्षा की वजह से।" सरदार मलिक साहब से जुड़ी और भी बहुत सी बातें हैं जो उन्होने उसी कार्यक्रम में कहे थे, जिन पर से हम पर्दा उठाएँगे धीरे धीरे, जैसे जैसे मलिक साहब के गानें 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बजते जाएँगे। तो लीजिए अब वक़्त हो चला है गीत सुनने का। मुकेश की दर्दभरी आवाज़ में बह जाइए कुछ देर के लिए।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. ये पहला युगल गीत होगा लता किशोर की आवाज़ में जो ओल्ड इस गोल्ड पर.
२. संगीत अनिल बिस्वास का है.
३. मुखड़े में शब्द है -"बस्ती".

पिछली पहेली का परिणाम -

शरद जी बधाई...३६ अंक हुए आपके....मनु जी हैट्रिक से चूक गए. दिलीप जी आपकी बात ध्यान में रख ली गयी है...

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Aa muhobat ki basti basaaenge ham -
film fareb

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...