ताजा सुर ताल - दूर पहाडों से आती कोई सदा, कोई खुशबू जैसे...मोहित चौहान के नए एल्बम "फितूर" में है ताजगी
ताजा सुर ताल TST (34)
दोस्तो, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर से १४ दिसम्बर तक, यानी TST के ४० वें एपिसोड तक. जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर"
TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक-
पिछले एपिसोड में सीमा जी ३२ अंकों के साथ लगभग ऐसी लीड ले चुकी है जिसे पार पाना अब अन्य प्रतिभागियों के लिए असंभव प्रतीत हो रहा है. सीमा जी बधाई
सजीव - सुजॉय, 'ताज़ा सुर ताल' के बदले हुए रूप में पिछले सोमवार को हमने 'अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी' के संवाद लेखक आर. डी. तैलंग से एक मुलाक़ात अपने पाठकों तक पहुंचाई थी और साथ ही इस फ़िल्म के कुछ गानें भी सुनवाए जो आज कल काफ़ी चर्चा में हैं। तो इस हफ़्ते, यानी आज क्यों ना ग़ैर-फ़िल्मी जगत से कुछ सुर तालों को पेश किया जाए।
सुजॉय - बहुत अच्छा विचार है। फ़िल्म संगीत के साथ साथ क़दम मिलाकर चलने की कोशिश करता है ग़ैर-फ़िल्मी संगीत। फ़िल्मी गीतों का एक निर्दिष्ट स्वरूप होता है, लेकिन ग़ैर फ़िल्म संगीत का कोई दायरा नहीं होता, इसलिए संगीतकार, गीतकार और गायक इसमें अलग अलग तरीके के प्रयोग कर सकते हैं और विविधता ला सकते हैं।
सजीव - ठीक कहा तुमने, लेकिन ग़ैर फ़िल्म संगीत एक विशाल क्षेत्र है, जिसमें सुगम संगीत से लेकर पॉप संगीत और सुफ़ीयाना अंदाज़ के गानें भी शामिल हैं। बहुत ही व्यापक है यह जगत। अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो ग़ैर फ़िल्म संगीत का इतिहास भी लगभग उतना ही पुराना है जितना कि फ़िल्म संगीत का। यानी कि ३० के दशक से ही बनने लगे थे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं के ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स, जिनमें भजन, ग़ज़ल, सुगम संगीत, क़व्वालियाँ आदि हुआ करती थीं।
सुजॉय - बिल्कुल सही कहा। उन दिनों जो कलाकार फ़िल्म संगीत से जुड़े हुए थे, वही लोग नॉन-फ़िल्म म्युज़िक में भी अपना योगदान दिया। आगे चलकर ७० के दशक के आख़िर के समय से ग़ैर-फ़िल्म संगीत ने अपनी एक अलग पहचान जिसे कह सकते हैं वह बनाई। यह वह दौर था जब ग़ज़लें बहुत लोकप्रिय हुआ करती थीं, कई बड़े बड़े गायक आए इस क्षेत्र में और बहुत सारे ऐल्बम्स बनें।
सजीव - अच्छा सुजॉय, यह बता सकते हो कि सही मायने में पहला पॉप ऐल्बम किस कलाकार का आया था ?
सुजॉय - मैं १००% यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन हाल ही में विविध भारती पर एक मुलाक़ात में गायिका शारदा ने कहा था कि उन्होने ही पहला पॉप ऐल्बम लौंच किया था। ८० के दशक में कई पॉप सिंगर्स उभरे जैसे कि नाज़िया हसन, ज़ोहेब हसन, शरण प्रभाकर, अलिशा चिनॊय, उत्तरा केलकर, हसन जहांगीर, बाबा सहगल आदि।
सजीव - इसी तरह से ९० के दशक में आए जोजो, कमाल ख़ान, फाल्गुनी पाठक, देवांग पटेल, अनामिका, रागेश्वरी, अल्ताफ़ राजा, और इनके साथ साथ फ़िल्मी गायक गायिकाएँ भी अपने अपने प्राइवेट ऐल्बम निकालने में जुट गए। और आज के दौर में इस क्षेत्र में जो प्रमुख नाम हैं वो हैं कैलाश खेर, पलाश सेन, आतिफ़ अस्लम, अभिजीत सावंत, मोहित चौहान आदि।
सुजॉय - मोहित चौहान से याद आया सजीव कि उनका एक तरो ताज़ा ऐल्बम आया है 'फ़ितूर' शीर्षक से। आज क्यों ना इस ऐल्बम की बातें की जाए और इस ऐल्बम के कुछ गीत अपने श्रोताओं को सुनवाया जाए। क्या ख़याल है?
सजीव - बहुत अच्छा ख़याल है। कहते हैं ना कि आदमी अपने आप को अपनी जड़ों से कभी अलग नहीं कर सकता, अब देखो ना, मोहित चौहन ने शुरुआत की थी ग़ैर फ़िल्म जगत से ही। वो मशहूर बैंड 'सिल्क रूट' के 'लीड वोकलिस्ट' हुआ करते थे। इस बैंड का 'बूँदें' ऐल्बम का "डूबा डूबा रहता है आँखों में तेरी" इस क़दर हिट हुआ था कि आज भी लोग इसे याद करते हैं। इस बैंड का दूसरा अल्बम आया था 'पहचान', जिसे उतनी कामयाबी नहीं मिली। और दुर्भाग्यवश इसके बाद यह बैंड भी टूट गया।
सुजॉय - फिर मोहित का पदार्पण हुआ फ़िल्म जगत में और काफ़ी जद्दोजहद के बाद इन दिनों मोहित कामयाबी की चोटी पर विराजमान हैं। "मसक्कली", "ना है यह पाना ना खोना ही है", "पहली बार मोहब्बत की है", "कहीं ना लागे मन", "कुछ ख़ास है", तथा "ये दूरियाँ" जैसे सुपरहिट गीतों के बाद अब वो एक बार फिर से लौटे हैं अपनी उस पुराने जनून की तरफ़, मेरा मतलब है पॉप म्युज़िक की तरफ़।
सजीव - तकरीबन ८ साल के इस फ़ासले के बाद वो लेकर आए हैं अपना सोलो ऐल्बम 'फ़ितूर'। इस ऐल्बम में कुल १० गानें हैं जिन्हे ख़ुद मोहित ने ही लिखे हैं, उन्होने ही संगीतबद्ध किए हैं और आवाज़ तो उनकी है ही। 'फ़ितूर' में भी आप 'सिल्क रूट' वाले फ़्लेवर का आनंद उठा सकते हैं।
सुजॉय - तो चलिए, बहुत सी बातें हो गई, पहले एक गीत सुन लिया जाए, फिर इन गीतों की चर्चा को हम आगे बढ़ाएँगे।
गीत - फ़ितूर
सजीव - 'फ़ितूर' का शीर्षक गीत हमने सुना, जो इस ऐल्बम का पहला गीत भी है। बतौर गीतकार मोहित ने बहुत ही सराहनीय काम किया है। आज के दौर के किसी भी गीतकार से कम नहीं लगे उनके लिखे बोल इस गीत में।
सुजॉय - सही बात है! "देर से आए, देर से जाए, छाए बन के सुरूर", यह गीत का सुरूर भी धीरे धीरे छाने लगता है जो काफ़ी देर तक ज़हन में रहता है सुनने के बाद। अच्छा सजीव, 'फ़ितूर' शब्द का अर्थ क्या है आपको पता है?
सजीव - 'फ़ितूर' का मतलब है कोई विकार या दोष या फिर रोग...या फिर बेकार का कोई जूनून....
सुजॉय - इस गीत में आपने इलेक्ट्रोनिक और ऐकोस्टिक, दोनों तरह के साज़ों का संगम अनुभव किय होंगे! गीत का रीदम भी धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ती है। कुल मिलाकर यह गीत तो मुझे कर्णप्रिय लगा। और अब दूसरे गीत की बारी।
सजीव - हाँ, अब जो गीत हम सुनेंगे उसे सुनते हुए हम पहुँच जाएँगे सुदूर किसी पहाड़ियों पर। पहले गीत का मज़ा लेते हैं, फिर आगे बात करेंगे। सुनते हैं "सजना शाम हुई"।
गीत - सजना
सुजॉय - आपने बिल्कुल सही कहा था, इस गीत में पहाड़ी संगीत का प्रभाव साफ़ महसूस किया जा सकता है। हालाँकि रीदम पाश्चात्य है, लेकिन बीच बीच में बांसुरी की तानें हमें ले जाती हैं पहाड़ों की शांत वादियों में।
सजीव - सिर्फ़ बांसुरी की तानें ही क्यों, पूरे गीत का संगीत और बोल कुछ ऐसे हैं कि जो एक अजीब सी शांति और सुकून का एहसास कराती है। संयोजन भी बहुत नर्म और सुकूनदायी है। मोहित चौहान ख़ुद भी पहाड़ों के ही रहने वाले हैं, इसलिए उनसे बेहतर पहड़ों के संगीत को और कौन भला ज़्यादा अच्छे तरीके से पेश कर सकता है!
सुजॉय - अब इस गीत के बाद एक और गीत जिसमें है पहाड़ों का ज़िक्र, "माई नि मेरिये", यहाँ पे हम सुनेंगे। इअ गीत की खासियत यही है कि गीत सुनते हुए ऐसा लगता है कि जैसे कोई बातचीत चल रही हो! मोहित चौहान जिस प्रदेश से ताल्लुख़ रखते हैं वह है हिमाचल प्रदेश। और इस गीत में हिमाचल के तमाम पर्वतीय स्थलों का उल्लेख है।
सजीव - "माई नि मेरिये शिमले दी राहें चंबा कितनी दूर"। जहाँ तक मुझे समझ में आया है इस गीत में शिमला और कसौली वासियों से चंबा जाने की गुज़ारिश की जा रही है। गीत के बोल हिमाचली लोक भाषा में है और सगीत तो है ही हिमाचल का। बहुत ही सुकून दायक होता है पहाड़ों का संगीत।
गीत - माई नि मेरिये
सुजॉय - सचमुच बहुत अच्छा गीत था! सजीव, पिछले साल मैं हिमाचल के कुछ पर्वतीय स्थानों की सैर पर गया था जैसे कि शिमला, कसौली, कुल्लू और मनाली। इस गीत ने मेरी वो सारी यादें एक बार फिर से ताज़ा कर दिए। लेकिन उससे भी ज़्यादा इस गीत को सुनने के बाद दिल में इच्छा जाग उठी है चंबा जाने की। हिमाचल को देवभूमी भी कहा गया है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो वही जान सकता है जिसने हिमाचल में क़दम रखा हो। एक दैवीय वातावरण छाया रहता है पहाड़ों पर। अच्छा सजीव, अब किस गीत की तरफ़ बढ़ने का इरादा है?
सजीव - इस ऐल्बम में एक गीत है "बाबाजी"। इसमें जहाँ एक तरफ़ लोक संगीत का अंग है, वहीं अंग्रेज़ी शब्द भी हैं, पाश्चात्य संगीत भी है, एक तरह से एक अच्छा फ़्युज़न सुनने को मिलता है इस गीत में।
सुजॉय - माउथ ऒर्गैन की ध्वनियों का अच्छा इस्तेमाल हुआ है। तो सजीव, कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि 'फ़ितूर' एक बहुत ही अलग किस्म का, जिसे कि हम कह सकते हैं बहुत दिनों के बाद एक रिफ़्रेशिंग् ऐल्बम आया है, जिसे लोग ख़ूब पसंद करेंगे, जैसा कि हमने किया है।
सजीव - ऐसा ही कुछ उम्मीद कर सकते हैं। तो आओ इस गीत को सुनते हैं और मोहित चौहान को शुभकामनाएँ देते हैं कि वो और ज़्यादा तरक्की करें, और इसी तरह से अच्छा संगीत अपने चाहनेवालों को हमेशा देते रहें।
गीत - बाबाजी
और अब मोहित चौहान से जुड़े तीन सवाल!
TST ट्रिविया #26 हिमाचल की पहाड़ियों से उतरकर और मायानगरी मुंबई पहुँचने से पहले मोहित चौहान १० साल तक भारत के किस शहर में रहे?
TST ट्रिविया #27 मनोज बाजपयी और मोहित चौहान को आप किस गीत के ज़रिए आपस में जोड़ सकते हैं?
TST ट्रिविया #28 मोहित चौहान का गाया वह कौन सा गीत है जिसके शुरुआती बोलों से मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त का गाया एक बहुत ही मशहूर गीत शुरु होता है?
फितूर अल्बम को आवाज़ रेटिंग ****
आवाज़ की टीम ने इन गीतों को दी है अपनी रेटिंग. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसे लगे? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीतों को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
शुभकामनाएँ....
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.
दोस्तो, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर से १४ दिसम्बर तक, यानी TST के ४० वें एपिसोड तक. जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर"
TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक-
पिछले एपिसोड में सीमा जी ३२ अंकों के साथ लगभग ऐसी लीड ले चुकी है जिसे पार पाना अब अन्य प्रतिभागियों के लिए असंभव प्रतीत हो रहा है. सीमा जी बधाई
सजीव - सुजॉय, 'ताज़ा सुर ताल' के बदले हुए रूप में पिछले सोमवार को हमने 'अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी' के संवाद लेखक आर. डी. तैलंग से एक मुलाक़ात अपने पाठकों तक पहुंचाई थी और साथ ही इस फ़िल्म के कुछ गानें भी सुनवाए जो आज कल काफ़ी चर्चा में हैं। तो इस हफ़्ते, यानी आज क्यों ना ग़ैर-फ़िल्मी जगत से कुछ सुर तालों को पेश किया जाए।
सुजॉय - बहुत अच्छा विचार है। फ़िल्म संगीत के साथ साथ क़दम मिलाकर चलने की कोशिश करता है ग़ैर-फ़िल्मी संगीत। फ़िल्मी गीतों का एक निर्दिष्ट स्वरूप होता है, लेकिन ग़ैर फ़िल्म संगीत का कोई दायरा नहीं होता, इसलिए संगीतकार, गीतकार और गायक इसमें अलग अलग तरीके के प्रयोग कर सकते हैं और विविधता ला सकते हैं।
सजीव - ठीक कहा तुमने, लेकिन ग़ैर फ़िल्म संगीत एक विशाल क्षेत्र है, जिसमें सुगम संगीत से लेकर पॉप संगीत और सुफ़ीयाना अंदाज़ के गानें भी शामिल हैं। बहुत ही व्यापक है यह जगत। अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो ग़ैर फ़िल्म संगीत का इतिहास भी लगभग उतना ही पुराना है जितना कि फ़िल्म संगीत का। यानी कि ३० के दशक से ही बनने लगे थे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं के ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स, जिनमें भजन, ग़ज़ल, सुगम संगीत, क़व्वालियाँ आदि हुआ करती थीं।
सुजॉय - बिल्कुल सही कहा। उन दिनों जो कलाकार फ़िल्म संगीत से जुड़े हुए थे, वही लोग नॉन-फ़िल्म म्युज़िक में भी अपना योगदान दिया। आगे चलकर ७० के दशक के आख़िर के समय से ग़ैर-फ़िल्म संगीत ने अपनी एक अलग पहचान जिसे कह सकते हैं वह बनाई। यह वह दौर था जब ग़ज़लें बहुत लोकप्रिय हुआ करती थीं, कई बड़े बड़े गायक आए इस क्षेत्र में और बहुत सारे ऐल्बम्स बनें।
सजीव - अच्छा सुजॉय, यह बता सकते हो कि सही मायने में पहला पॉप ऐल्बम किस कलाकार का आया था ?
सुजॉय - मैं १००% यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन हाल ही में विविध भारती पर एक मुलाक़ात में गायिका शारदा ने कहा था कि उन्होने ही पहला पॉप ऐल्बम लौंच किया था। ८० के दशक में कई पॉप सिंगर्स उभरे जैसे कि नाज़िया हसन, ज़ोहेब हसन, शरण प्रभाकर, अलिशा चिनॊय, उत्तरा केलकर, हसन जहांगीर, बाबा सहगल आदि।
सजीव - इसी तरह से ९० के दशक में आए जोजो, कमाल ख़ान, फाल्गुनी पाठक, देवांग पटेल, अनामिका, रागेश्वरी, अल्ताफ़ राजा, और इनके साथ साथ फ़िल्मी गायक गायिकाएँ भी अपने अपने प्राइवेट ऐल्बम निकालने में जुट गए। और आज के दौर में इस क्षेत्र में जो प्रमुख नाम हैं वो हैं कैलाश खेर, पलाश सेन, आतिफ़ अस्लम, अभिजीत सावंत, मोहित चौहान आदि।
सुजॉय - मोहित चौहान से याद आया सजीव कि उनका एक तरो ताज़ा ऐल्बम आया है 'फ़ितूर' शीर्षक से। आज क्यों ना इस ऐल्बम की बातें की जाए और इस ऐल्बम के कुछ गीत अपने श्रोताओं को सुनवाया जाए। क्या ख़याल है?
सजीव - बहुत अच्छा ख़याल है। कहते हैं ना कि आदमी अपने आप को अपनी जड़ों से कभी अलग नहीं कर सकता, अब देखो ना, मोहित चौहन ने शुरुआत की थी ग़ैर फ़िल्म जगत से ही। वो मशहूर बैंड 'सिल्क रूट' के 'लीड वोकलिस्ट' हुआ करते थे। इस बैंड का 'बूँदें' ऐल्बम का "डूबा डूबा रहता है आँखों में तेरी" इस क़दर हिट हुआ था कि आज भी लोग इसे याद करते हैं। इस बैंड का दूसरा अल्बम आया था 'पहचान', जिसे उतनी कामयाबी नहीं मिली। और दुर्भाग्यवश इसके बाद यह बैंड भी टूट गया।
सुजॉय - फिर मोहित का पदार्पण हुआ फ़िल्म जगत में और काफ़ी जद्दोजहद के बाद इन दिनों मोहित कामयाबी की चोटी पर विराजमान हैं। "मसक्कली", "ना है यह पाना ना खोना ही है", "पहली बार मोहब्बत की है", "कहीं ना लागे मन", "कुछ ख़ास है", तथा "ये दूरियाँ" जैसे सुपरहिट गीतों के बाद अब वो एक बार फिर से लौटे हैं अपनी उस पुराने जनून की तरफ़, मेरा मतलब है पॉप म्युज़िक की तरफ़।
सजीव - तकरीबन ८ साल के इस फ़ासले के बाद वो लेकर आए हैं अपना सोलो ऐल्बम 'फ़ितूर'। इस ऐल्बम में कुल १० गानें हैं जिन्हे ख़ुद मोहित ने ही लिखे हैं, उन्होने ही संगीतबद्ध किए हैं और आवाज़ तो उनकी है ही। 'फ़ितूर' में भी आप 'सिल्क रूट' वाले फ़्लेवर का आनंद उठा सकते हैं।
सुजॉय - तो चलिए, बहुत सी बातें हो गई, पहले एक गीत सुन लिया जाए, फिर इन गीतों की चर्चा को हम आगे बढ़ाएँगे।
गीत - फ़ितूर
सजीव - 'फ़ितूर' का शीर्षक गीत हमने सुना, जो इस ऐल्बम का पहला गीत भी है। बतौर गीतकार मोहित ने बहुत ही सराहनीय काम किया है। आज के दौर के किसी भी गीतकार से कम नहीं लगे उनके लिखे बोल इस गीत में।
सुजॉय - सही बात है! "देर से आए, देर से जाए, छाए बन के सुरूर", यह गीत का सुरूर भी धीरे धीरे छाने लगता है जो काफ़ी देर तक ज़हन में रहता है सुनने के बाद। अच्छा सजीव, 'फ़ितूर' शब्द का अर्थ क्या है आपको पता है?
सजीव - 'फ़ितूर' का मतलब है कोई विकार या दोष या फिर रोग...या फिर बेकार का कोई जूनून....
सुजॉय - इस गीत में आपने इलेक्ट्रोनिक और ऐकोस्टिक, दोनों तरह के साज़ों का संगम अनुभव किय होंगे! गीत का रीदम भी धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ती है। कुल मिलाकर यह गीत तो मुझे कर्णप्रिय लगा। और अब दूसरे गीत की बारी।
सजीव - हाँ, अब जो गीत हम सुनेंगे उसे सुनते हुए हम पहुँच जाएँगे सुदूर किसी पहाड़ियों पर। पहले गीत का मज़ा लेते हैं, फिर आगे बात करेंगे। सुनते हैं "सजना शाम हुई"।
गीत - सजना
सुजॉय - आपने बिल्कुल सही कहा था, इस गीत में पहाड़ी संगीत का प्रभाव साफ़ महसूस किया जा सकता है। हालाँकि रीदम पाश्चात्य है, लेकिन बीच बीच में बांसुरी की तानें हमें ले जाती हैं पहाड़ों की शांत वादियों में।
सजीव - सिर्फ़ बांसुरी की तानें ही क्यों, पूरे गीत का संगीत और बोल कुछ ऐसे हैं कि जो एक अजीब सी शांति और सुकून का एहसास कराती है। संयोजन भी बहुत नर्म और सुकूनदायी है। मोहित चौहान ख़ुद भी पहाड़ों के ही रहने वाले हैं, इसलिए उनसे बेहतर पहड़ों के संगीत को और कौन भला ज़्यादा अच्छे तरीके से पेश कर सकता है!
सुजॉय - अब इस गीत के बाद एक और गीत जिसमें है पहाड़ों का ज़िक्र, "माई नि मेरिये", यहाँ पे हम सुनेंगे। इअ गीत की खासियत यही है कि गीत सुनते हुए ऐसा लगता है कि जैसे कोई बातचीत चल रही हो! मोहित चौहान जिस प्रदेश से ताल्लुख़ रखते हैं वह है हिमाचल प्रदेश। और इस गीत में हिमाचल के तमाम पर्वतीय स्थलों का उल्लेख है।
सजीव - "माई नि मेरिये शिमले दी राहें चंबा कितनी दूर"। जहाँ तक मुझे समझ में आया है इस गीत में शिमला और कसौली वासियों से चंबा जाने की गुज़ारिश की जा रही है। गीत के बोल हिमाचली लोक भाषा में है और सगीत तो है ही हिमाचल का। बहुत ही सुकून दायक होता है पहाड़ों का संगीत।
गीत - माई नि मेरिये
सुजॉय - सचमुच बहुत अच्छा गीत था! सजीव, पिछले साल मैं हिमाचल के कुछ पर्वतीय स्थानों की सैर पर गया था जैसे कि शिमला, कसौली, कुल्लू और मनाली। इस गीत ने मेरी वो सारी यादें एक बार फिर से ताज़ा कर दिए। लेकिन उससे भी ज़्यादा इस गीत को सुनने के बाद दिल में इच्छा जाग उठी है चंबा जाने की। हिमाचल को देवभूमी भी कहा गया है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो वही जान सकता है जिसने हिमाचल में क़दम रखा हो। एक दैवीय वातावरण छाया रहता है पहाड़ों पर। अच्छा सजीव, अब किस गीत की तरफ़ बढ़ने का इरादा है?
सजीव - इस ऐल्बम में एक गीत है "बाबाजी"। इसमें जहाँ एक तरफ़ लोक संगीत का अंग है, वहीं अंग्रेज़ी शब्द भी हैं, पाश्चात्य संगीत भी है, एक तरह से एक अच्छा फ़्युज़न सुनने को मिलता है इस गीत में।
सुजॉय - माउथ ऒर्गैन की ध्वनियों का अच्छा इस्तेमाल हुआ है। तो सजीव, कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि 'फ़ितूर' एक बहुत ही अलग किस्म का, जिसे कि हम कह सकते हैं बहुत दिनों के बाद एक रिफ़्रेशिंग् ऐल्बम आया है, जिसे लोग ख़ूब पसंद करेंगे, जैसा कि हमने किया है।
सजीव - ऐसा ही कुछ उम्मीद कर सकते हैं। तो आओ इस गीत को सुनते हैं और मोहित चौहान को शुभकामनाएँ देते हैं कि वो और ज़्यादा तरक्की करें, और इसी तरह से अच्छा संगीत अपने चाहनेवालों को हमेशा देते रहें।
गीत - बाबाजी
और अब मोहित चौहान से जुड़े तीन सवाल!
TST ट्रिविया #26 हिमाचल की पहाड़ियों से उतरकर और मायानगरी मुंबई पहुँचने से पहले मोहित चौहान १० साल तक भारत के किस शहर में रहे?
TST ट्रिविया #27 मनोज बाजपयी और मोहित चौहान को आप किस गीत के ज़रिए आपस में जोड़ सकते हैं?
TST ट्रिविया #28 मोहित चौहान का गाया वह कौन सा गीत है जिसके शुरुआती बोलों से मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त का गाया एक बहुत ही मशहूर गीत शुरु होता है?
फितूर अल्बम को आवाज़ रेटिंग ****
आवाज़ की टीम ने इन गीतों को दी है अपनी रेटिंग. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसे लगे? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीतों को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
शुभकामनाएँ....
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.
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regards
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