Skip to main content

आ मोहब्बत की बस्ती बसाएँगे हम....पहली बार ओल्ड इस गोल्ड पर लता किशोर एक साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 257

दोस्तों, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की २५७ वी कड़ी है। पता नहीं आपने कभी ग़ौर किया होगा या नहीं कि अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक भी लता-किशोर डुएट नहीं बजा है जब कि युगल गीतों के इतिहास में लता-किशोर की जोड़ी एक बहुत ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय जोड़ी रही है। अगर ऒल-टाइम एवरग्रीन डुएट्स के जोड़ियों का ज़िक्र छेड़ा जाए तो यकीनन लता-किशोर की जोड़ी का नाम प्रथम पाँच में ज़रूर होगी। हमने कई कई बार ऐसे फ़िल्मों के गानें बजाए हैं जिनमें लता-किशोर के युगल गीत रहे हैं, लेकिन हर बार हम उन फ़िल्मो के किसी और ही गीत को बजा बैठे हैं। जैसे कि 'जुवेल थीफ़', 'मिस्टर एक्स इन बॊम्बे', 'गैम्बलर', 'चाचा ज़िंदाबाद', 'हरे रामा हरे कॄष्णा', 'आराधना', 'प्रेम पुजारी', 'जुली', और 'शर्मिली'। इन सभी फ़िल्मों में लोकप्रिय लता-किशोर डुएट्स मौजूद हैं। दरसल सब से ज़्यादा हिट युगल गीत इस जोड़ी की रही है ६० के दशक आख़िर से लेकर ८० के दशक के शुरुआती सालों तक। लेकिन आज हम सुनने जा रहे हैं लता जी और किशोर दा का गाया एक बहुत ही पुराना युगल गीत जो आई थी फ़िल्म 'फ़रेब' में सन् १९५३ में। 'फ़रेब' फ़िल्मकार शाहीद लतीफ़ और उनकी लेखिका पत्नी इस्मत चुग्तई की फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार और शकुंतला। फ़िल्म में संगीत दिया अनिल बिस्वास ने और गीत लिखे मजरूह सुल्तानपुरी ने। इससे पहले मजरूह साहब ने अनिल दा के साथ १९५० की फ़िल्म 'आरज़ू' में काम कर चुके थे। १९५३ के आसपास का दौर वह दौर था जब मजरूह साहब तेज़ी से लोकप्रियता के पायदान पर क्रमशः उपर की तरफ़ बढ़ते चले जा रहे थे। 'फ़रेब' से पहले और अनिल बिस्वास के अलावा उन्होने नौशाद साहब के साथ 'शाहजहाँ' ('४६) और 'अंदाज़' ('४९), ग़ुलाम मोहम्मद के साथ 'हँसते आँसू' ('५०) और बुलो सी. रानी के साथ 'प्यार की बातें' ('५१) जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके थे। फ़िल्म 'फ़रेब' का लता मंगेशकर और किशोर कुमार का गाया प्रस्तुत युगल गीत "आ मोहब्बत की बस्ती बसाएँगे हम, इस ज़मीं से अलग आसमानों से दूर" बहुत मशहूर हुआ था। यह मजरूह साहब का लिखा हुआ पहला लता-किशोर डुएट था। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पहली बार लता जी और किशोर दा ने एक साथ जो युगल गीत गाया था वह थी १९४८ की फ़िल्म 'ज़िद्दी' में संगीतकार खेमचंद प्रकाश के लिए, और गीत के बोल थे "ये कौन आया रे करके सोलह सिंगार"। फ़िल्म 'ज़िद्दी' किशोर दा की पहली फ़िल्म भी थी बतौर एकल पार्श्व गायक।

लता जी और किशोर दा के गाए ७० के दशक के जिस तरह के युगल गीत हम अक्सर सुनते हैं, उन सब से बहुत ही अलग है यह गीत। इसमें ४० के दशक की ख़ुशबू साफ़ महसूस की जा सकती है। किशोर दा ने भले ही सहगल साहब को अपनी आवाज़ से अलग कर दिया था लेकिन उनकी ख़ुद की स्टाइल में भी उसी ज़माने का असर था, और लता जी की आवाज़ भी उन दिनों बेहद पतली हुआ करती थी। अमीन सायानी अपने हिट रेडियो प्रोग्राम 'संगीत के सितारों की महफ़िल' में अनिल बिस्वास पर कार्यक्रम पेश करते हुए इस गीत को बजाते हुए कहा था - "कितनी सुरीली थी वो मोहब्बत की बस्ती, मीठे मधुर गीतों से गूंजती हुई, उल्झनों से परे, झुंझलाहटों से दूर! वो मोहब्बत की बस्ती जो फ़िल्म संगीत जगत के भीष्म पितामह संगीतकार अनिल बिस्वास ने बसाई थी। बड़े भाग्यवान थे वो सभी गायक और गायिकाएँ, वो सभी संगीत प्रेमी, जिनकी जवानियों में अनिल बिस्वास के संगीत ने प्रेम का प्रकाश फैलाया।" तो दोस्तों, आइए हम भी आज उसी मोहब्बत की बस्ती की सैर करें फ़िल्म जगत के पहले लता-किशोर डुएट के ज़रिए, आइये सुनते हैं।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. रवि चोपडा के निर्देशन में बनी थी ये फिल्म.
२. संगीतकार हैं राजेश रोशन.
३. इस युगल गीत के मुखड़े में शब्द है -"चिट्टी".

पिछली पहेली का परिणाम -

शरद जी आप दूसरी बार विजेता बनने की डगर पे हैं, ३८ अंकों तक पहुँचने की बधाई

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

ये न होगा नहीं, होगा होगा कैसे ?
मानो अगर तुम मेरा कहना
हम तुम दोनों मिल के ,कागज़ पे दिल के
चिट्ठी लिखेंगे जवाब आएगा ।
आशा एवं मुकेश/ फ़िल्म : तुम्हारी कसम
manu said…
चिठ्ठी 'लीखैंगे' जवाब आयेगा....

प्यारा गीत

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...