"वो मेरे खासमखास सलीम आरिफ के चाचा थे, दरअसल फिल्मों में मेरे सबसे शुरूआती कामों में से एक उनकी लिखी हुई स्क्रिप्ट्स के लिए संवाद लिखने का ही था. हम दोनों ने उन दिनों काफी समय साथ गुजरा था, वे उम्र भर गुरु दत्त से ही जुड़े रहे, गुरु दत्त और उनके भाई आत्मा राम के आलावा शायद ही किसी के लिए उन्होंने लेखन किया हो, मैं जानकी कुटीर में बसे उनके घर के आस पास से जब भी गुजरता था, रुक कर उन्हें सलाम करने अवश्य जाता था, इंडस्ट्री का एक और स्तम्भ गिर गया है"- ये कहना है गुलज़ार साहब का, और वो बात कर रहे थे इंडस्ट्री के जाने माने स्क्रीन लेखक अबरार अल्वी के बारे में, जिनका पिछले सप्ताह ८२ साल की उम्र में देहांत हो गया. वाकई फिल्म जगत का एक और सितारा डूब गया.
वैसे अबरार साहब का अधिकतम काम गुरु दत्त के साथ ही रहा, और गुरु दत्त ने ही उन पर "साहब बीबी और गुलाम" का निर्देशन सौंपा. इस लम्बी जुगलबंदी की शुरुआत "जाल" के सेट पर हुई, जब गुरु दत्त किसी दृश्य के फिल्म्कांकन को लेकर असमंजस में थे और अबरार ने उन्हें रास्ता दिखाया, गुरु उनसे इतने प्रभवित हुए की अगली फिल्म "आर पार" के लेखन के लिए उन्हें अनुबंधित कर लिया. तब से अबरार, गुरु के होकर रह गए. "कागज़ के फूल" की तबाह करने वाली असफलता ने गुरु दत्त को तोड़ कर रख दिया था, शायद उन्हें अपने नाम पर भी भरोसा नहीं रहा था, तब उन्होंने "साहब बीबी और गुलाम" के निर्देशन की बागडोर दी अबरार के हाथों में, अबरार ने अपनी इस फिल्म में सब कुछ झोंक दिया, आज भी ये एक फिल्म काफी है, अबरार का नाम इंडस्ट्री में कायम रखने के लिए. अपनी इस क्लासिक फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला. फिल्म को राष्ट्रपति का रजत सम्मान तो मिला ही, १९६३ में बर्लिन फिल्म समारोह में स्क्रीनिंग और ओस्कार के लिए भारतीय फिल्म के रूप में प्रविष्ठित होने का गौरव भी. पर चूँकि फिल्म गुरु दत्त फिल्म्स के बैनर पर बनी थी, विवाद उठा कि कहीं वास्तव में इस फिल्म का निर्देशन कहीं गुरुदत्त ने तो नहीं किया था, हालाँकि गुरुदत्त ने कभी ऐसा कोई दावा नहीं किया, पर अबरार ने खुद एक बार ये स्वीकार किया कि फिल्म के गीत गुरुदत्त ने फिल्माए थे.
अबरार ने गुरुदत्त से अलग भी लेखन में कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्में की जैसे संघर्ष, सूरज, छोटी सी मुलाकात, मनोरंजन, शिकार और साथी, पर उनका नाम आते ही जिक्र आता है गुरु दत्त का, और ख़याल आता है, प्यासा, कागज़ के फूल, चौदहवीं का चाँद और साहिब बीबी और गुलाम जैसी क्लासिक फिल्मों का. शाहरुख़ खान अभिनीत विफल फिल्म "गुड्डू" संभवता उनकी अंतिम फिल्म रही...उनकी ३ बेटियां और २ बेटे हैं...उनकी पत्नी और उनके परिवार को ही नहीं वरन पूरी फिल्म इंडस्ट्री को आज इस अनुभवी और गहरी चोट करने वाले स्क्रीन के कलम योद्धा के जाने का गम है. अबरार साहब को तमाम युग्म परिवार की भाव भीनी श्रद्धाजंली.
वैसे अबरार साहब का अधिकतम काम गुरु दत्त के साथ ही रहा, और गुरु दत्त ने ही उन पर "साहब बीबी और गुलाम" का निर्देशन सौंपा. इस लम्बी जुगलबंदी की शुरुआत "जाल" के सेट पर हुई, जब गुरु दत्त किसी दृश्य के फिल्म्कांकन को लेकर असमंजस में थे और अबरार ने उन्हें रास्ता दिखाया, गुरु उनसे इतने प्रभवित हुए की अगली फिल्म "आर पार" के लेखन के लिए उन्हें अनुबंधित कर लिया. तब से अबरार, गुरु के होकर रह गए. "कागज़ के फूल" की तबाह करने वाली असफलता ने गुरु दत्त को तोड़ कर रख दिया था, शायद उन्हें अपने नाम पर भी भरोसा नहीं रहा था, तब उन्होंने "साहब बीबी और गुलाम" के निर्देशन की बागडोर दी अबरार के हाथों में, अबरार ने अपनी इस फिल्म में सब कुछ झोंक दिया, आज भी ये एक फिल्म काफी है, अबरार का नाम इंडस्ट्री में कायम रखने के लिए. अपनी इस क्लासिक फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला. फिल्म को राष्ट्रपति का रजत सम्मान तो मिला ही, १९६३ में बर्लिन फिल्म समारोह में स्क्रीनिंग और ओस्कार के लिए भारतीय फिल्म के रूप में प्रविष्ठित होने का गौरव भी. पर चूँकि फिल्म गुरु दत्त फिल्म्स के बैनर पर बनी थी, विवाद उठा कि कहीं वास्तव में इस फिल्म का निर्देशन कहीं गुरुदत्त ने तो नहीं किया था, हालाँकि गुरुदत्त ने कभी ऐसा कोई दावा नहीं किया, पर अबरार ने खुद एक बार ये स्वीकार किया कि फिल्म के गीत गुरुदत्त ने फिल्माए थे.
अबरार ने गुरुदत्त से अलग भी लेखन में कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्में की जैसे संघर्ष, सूरज, छोटी सी मुलाकात, मनोरंजन, शिकार और साथी, पर उनका नाम आते ही जिक्र आता है गुरु दत्त का, और ख़याल आता है, प्यासा, कागज़ के फूल, चौदहवीं का चाँद और साहिब बीबी और गुलाम जैसी क्लासिक फिल्मों का. शाहरुख़ खान अभिनीत विफल फिल्म "गुड्डू" संभवता उनकी अंतिम फिल्म रही...उनकी ३ बेटियां और २ बेटे हैं...उनकी पत्नी और उनके परिवार को ही नहीं वरन पूरी फिल्म इंडस्ट्री को आज इस अनुभवी और गहरी चोट करने वाले स्क्रीन के कलम योद्धा के जाने का गम है. अबरार साहब को तमाम युग्म परिवार की भाव भीनी श्रद्धाजंली.
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