Skip to main content

रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ की पसंद के गीत (२१)

अभी हाल ही ही में अमिताभ बच्चन की नयी फिल्म "पा" का ट्रेलर जारी हुआ, और जिसने भी देखा वो दंग रह गया...जानते हैं इस फिल्म में उनका जो मेक अप है उसे पहनने में अमिताभ को चार घंटे का समय लगता था और उतारने में दो घंटे, और प्रतिदिन ४ घंटे का शूट होता था क्योंकि इससे अधिक समय तक उस मेक अप को पहना नहीं जा सकता था. इस उम्र में भी अपने काम के प्रति इतनी तन्मयता अद्भुत ही है. आज से ठीक ४० साल पहले प्रर्दशित "सात हिन्दुस्तानी" जिसमें अमिताभ सबसे पहले परदे पर नज़र आये थे, उसका जिक्र हमने पिछले रविवार को किया था....चलिए अब इसी सफ़र को आगे बढाते हैं एक बार फिर दीपाली जी के साथ, सदी के सबसे बड़े महानायक की पसंद के ३ और गीत और उनके बनने से जुडी उनकी यादों को लेकर....


दोस्तों हमने आपसे वादा किया था कि अगले अंक में भी हम अपना सफर जारी रखेंगे. तो लीजिये हम हाजिर हैं फिर से अपना यादों का काफिला लेकर जिसके मुखिया अमिताभ बच्चन सफर को यादगार बनाने के लिये कुछ अनोखे पल बयाँ कर रहे हैं. आइये इन यादों में से हम भी अपने लिये कुछ पल चुरा लें.

नदिया किनारे....(अभिमान)बेलगाम

यह फ़िल्म मेरे और जया के लिये बहुत खास है क्योंकि हमने इसे प्रोड्यूस किया था. ह्रिशीदा हमारे गाडफादर थे. इस फिल्म में एस.डी. बर्मन ने संगीत दिया और इस संगीत की महफिलों के दौरान हमने जो समय उनके साथ बिताया वो कभी भूलने वाला नहीं है. जिस तरह से वह गाते थे उस तरह का प्रयास हमारी गायिकी में नहीं आ पाता था. मुझे हमेशा लगता थी कि कहीं कुछ कमी है. वो बहुत ही सुन्दरता से गाते थे. यह गाना बेलगाम के पास एक गाँव में फिल्माया गया था. ह्रिशीदा एक ऐसे गाँव का माहौल चाहते थे जिसमें एक छोटा सा मंदिर, नदी और एक छोटा सा तालाब हो जो दो प्रेमियों के लिये प्यार का वातावरण तैयार करे. हमें ऐसा ही तालाब मिला. तब तक मेरी और जया के शादी नहीं हुई थी और यह समय हम दोनों के लियी ही स्पेशल था. उस समय जया के लम्बे बाल थे.



देखा ना हाय रे...(बाम्बे टू गोआ), मद्रास

मुझे याद है कि इस गाने पर बहुत मेहनत के गयी थी और यह गाना बस के अन्दर फिल्माया गया था. पी. एल. राजमास्टर हमारे कोरियोग्राफर थे और बड़े ही कड़क थे. अगर आप अपने स्टेप्स सही से नही करते तो वह बहुत डाँटते और मारते भी थे. हमें एक बस को मुम्बई से गोआ ले जाना था और गाने को बीच में ही शूट करना था. पर जैसे ही हम अंधेरी पहुँचे बस खराब हो गयी. तब मद्रास में हमने नागी रेड्डी स्टूडियो में सेट लगाया और गाना शूट किया. क्योंकि मैं इन्डस्ट्री में नया था इसलिये महमूद भाईजान के साथ समय बिताता था जो शूटिंग के समय "कमाआन टाईगर, यू कैन डू इट" कहकर बहुत ही ज्यादा प्रोत्साहित करते थे. चालीस मेम्बरों की पूरी स्टार कास्ट बस के बाहर खड़ी रहती और मुझे प्रोत्साहित करती थी. प्रत्येक शाट के बाद महमूद भाई मेरे लिये जूस बनाते और कहते जाओ नाचो.



माई नेम इज एन्थनी....(अमर अकबर एन्थनी), मुम्बई

मनमोहन देसाई अजब गाने और अजब सिचुएसन सोचते थे. जब वह गाने को बताते थे तब हमारा पहला रियेक्शन उस पर हँसना होता था. वे पहले गाने को सोचते थे फिर उसके चारों और के सीन पर काम करते थे. किसी को भी उन पर विश्वास नहीं था. हम सोचते थे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक आदमी सोला टोपी पहने अंडे से निकले और गाये कि "माई नेम इस एन्थनी गान्साल्वेस".यह गाना जुहू के ’होलीडे इन लोबी’ में फिल्माया गया था. इस गाने की रिकार्डिंग के लिये वो चाहते थे कि मैं कुछ "अगड़म बगड़म" जैसे शब्द डाँलू. मैने सोचा कि जब हम पागल हो ही गये हैं तो क्यों ना इसमें कुछ पागलपन डाला जाये. जब मैं रिकार्डिंग में था तो लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जी ने मुझसे पूछा कि मैं क्या गाने वाला हूँ. मैने कहा कि मुझे याद नहीं है कुछ कर लेंगे. यह गाना फेमस स्टूडियो ’तारादेव’ में रिकार्ड किया गया जहाँ सभी बड़े-बड़े संगीतकार आये थे. जब मैं इन्डस्ट्री में नया था तब मुझे कहा गया था कि यहाँ हर दिन गाने रिकार्ड होते है और मुझे किसी बड़े आदमी से मिलने की कोशिश करनी चाहिये. मैं सड़क पर रफीसाहब, लताजी और दूसरे लोगों का अन्दर जाने के लिये इंतजार करता था लेकिन मेरी कभी भी उन तक पहुँचने की हिम्मत नही हुई. खैर गाना एक ही बार में रिकार्ड हो गया. अगर कोइ भी एक गलती करता तो पूरा गाना दुबारा से गाना पड़ता. मुझे बड़े-बड़े गायकों के बीच में बैठना था मैने किसी तरह गाने को एक टेक में किया और सोचा कि ’बच गये’.



उम्मींद है कि आपको इस यादों के सफर में आनंद आया होगा. तो दोस्तों देखा आपने जो दिखता है जरूरी नहीं कि सच्चाई भी वही हो. परदे के पीछे बहुत कुछ अलग होता है. किसी काम को सफल बनाने व पूरा करने में तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन कहते हैं कि ’अंत भला तो सब भला’. हमारा अमिताभ जी के साथ यहीं तक का सफर था. तो चलिए आपसे और अमिताभ जी से अब हम विदा लेते है. अगली मुलाकात तक खुश रहिये, स्वस्थ रहिये और हाँ हिन्दयुग्म पर हमसे मिलते रहिये.

साभार -टाईम्स ऑफ़ इंडिया
प्रस्तुति-दीपाली तिवारी "दिशा"


"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट