ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 252
पूर्वी जी के अनुरोध पर कल हमने सुने थे संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद की एक बेहतरीन संगीत रचना। आज जो गीत हम सुनने जा रहे हैं वह भी एक कमचर्चित संगीतकार की रचना है। ये हैं दत्ताराम जी। इनके संगीत में हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुने हैं मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'परवरिश' का गीत "आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें"। और आज सुनिए पूर्वी जी के अनुरोध पर फ़िल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' का एक बच्चों वाला गीत "चुन चुन करती आई चिड़िया"। 'अब दिल्ली दूर नही' दत्ताराम की पहली संगीतबद्ध फ़िल्म थी, जो प्रदर्शित हुई सन् १९५७ में। दोस्तों, राज कपूर के फ़िल्मों का संगीत शंकर जयकिशन ही दिया करते थे। दत्ताराम उनके सहायक हुआ करते थे। तो फिर राज साहब ने कैसे और क्यों दत्ताराम को बतौर संगीतकार नियुक्त किया, इसके बारे में विस्तार से दत्ताराम जी ने अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम 'संगीत के सितारों की महफ़िल' में बताया था, आप भी जानिए - "देखिए ऐसा है कि शंकर जयकिशन जहाँ भी जाते थे, हमेशा मैं साथ रहता था। लेकिन एक मौका ऐसा आया कि राज कपूर ने शंकर जयकिशन को बुलाया, और वो उनके वहाँ चले गए। कुछ देर तक मैं उनके साथ नहीं था। वो गए, उनका कॊटेज था, कॊटेज में उनके साथ बातचित चली। तो चलते चलते राज साहब ने कहा कि देखो, एक पिक्चर बन रही है आर.के. फ़िल्म्स की, जिसमें मैं काम नहीं कर रहा हूँ, डिरेक्शन मैं नहीं कर रहा हूँ, पैसा हमारा लगेगा। बैनर हमारा है लेकिन हम उसमें काम नहीं कर रहे हैं, और बच्चों की पिक्चर है। छोटे छोटे बच्चे हैं, उनकी पिक्चर है, साथ में याकूब साहब हैं। तो बताओ क्या करना है? तो शंकर जयकिशन कहने लगे कि जब आप काम नहीं कर रहे, डिरेक्शन नहीं कर रहे, सब कुछ बाहर के हैं, बच्चों की पिक्चर है, आप नहीं कर रहे हैं तो मज़ा नहीं आ रहा है, कुछ ठीक नहीं लग रहा है, तो हम लोग भी म्युज़िक नहीं देंगे। तो फिर राज साहब ने पूछा कि क्या करना है म्युज़िक का। तो जयकिशन ने फ़ौरन बोला कि "दत्तु को चांस दीजिए"।" तो दोस्तों, इस तरह से दत्तु, यानी कि दत्ताराम के लिए खुल गया स्वतंत्र संगीत निर्देशन का मार्ग।
दोस्तों, अभी उपर आपने पढ़ा कि किस तरह से दत्ताराम को राज साहब की फ़िल्म में ब्रेक मिला। और अब आज के प्रस्तुत गीत के बारे में भी तो विस्तार से जानिए ख़ुद दत्ताराम की ही ज़ुबाँ से! "राज साहब ने मुझसे कहा कि एक सिचुयशन है और वो सिचुयशन ऐसी है कि याकूब साहब जो हैं वो बच्चे को लेकर रोड पे चल रहे हैं, और कंधे पे बिठाके उसका एंटर्टेनमेन्ट कर रहे हैं। बच्चे को हँसा रहे हैं, कुछ कर रहे हैं, और वैसा करते करते दिल्ली ले जाते हैं बच्चे को। तो जाते वक़्त क्या करेंगे, तो उसमें एक गाना है। यह फ़्री-लान्सर गाना है, इसमें कोई सिचुयशन नहीं है, लेकिन मुझे ऐसी ट्युन चाहिए जो हिट हो जाए। कोशिश करो, मेहनत करो, लेकिन गाना मुझे हिट चाहिए। तो कोशिश करते करते, कुछ जम नहीं रहा था। एक दिन, मैं बान्द्रा में कार्टर रोड पे रहता था तो समुंदर के किनारे रात को १२ बजे मैं बैठा था। अकेले मैं बैठा हूँ और समुंदर मेरे सामने है, तो सोचते सोचते मुझे कुछ ऐसा सूझा और मैं गाने लगा "चुन चुन करती आई चिड़िया"। यह गाना मैने सोचा और सोचते सोचते दूसरे दिन हसरत साहब को घर पर मैने बुलाया। कहा कि देखिए, यह तर्ज़ मैने बनाई है, इस पर आप ज़रा कुछ लिख दीजिए। मैने उनको पूरा तर्ज़ सुनाया और उन्होने लिख डाला कि "चुन चुन करती आई चिड़िया, दाल का दाना लाई चिड़िया, मोर भी आया, कौवा भी आया, चूहा भी आया, बंदर भी आया"। यह गीत बनाकर हम राज साहब के पास गए। मैने थोड़ा सा ही गाना गाया था कि राज साहब ने मुझे बीच में ही रोक दिया, और कहा कि बहुत हिट गाना है! राज साहब को म्युज़िक का कितना नॊलेज है कि थोड़ा सा सुनकर ही कहने लग गए कि हिट गाना है। तो ऐसे रिकार्ड हो गया वो गाना।" तो दोस्तों, अब बारी है यह गीत सुनने की। आप भी बच्चे बन जाइए आज के लिए और सुनिए यह गुदगुदाता हुआ गीत रफ़ी साहब की आवाज़ में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राजेंद्र कृष्ण हैं गीतकार यहाँ.
२. इस फिल्म के निर्देशक थे विनोद कुमार.
३. मुखड़े की अंतिम पंक्ति में शब्द है -"याद".
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी बधाई...आखिर आपने सही जवाब लपक ही लिया....४ अंक हुए आपके....:)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
पूर्वी जी के अनुरोध पर कल हमने सुने थे संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद की एक बेहतरीन संगीत रचना। आज जो गीत हम सुनने जा रहे हैं वह भी एक कमचर्चित संगीतकार की रचना है। ये हैं दत्ताराम जी। इनके संगीत में हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुने हैं मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'परवरिश' का गीत "आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें"। और आज सुनिए पूर्वी जी के अनुरोध पर फ़िल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' का एक बच्चों वाला गीत "चुन चुन करती आई चिड़िया"। 'अब दिल्ली दूर नही' दत्ताराम की पहली संगीतबद्ध फ़िल्म थी, जो प्रदर्शित हुई सन् १९५७ में। दोस्तों, राज कपूर के फ़िल्मों का संगीत शंकर जयकिशन ही दिया करते थे। दत्ताराम उनके सहायक हुआ करते थे। तो फिर राज साहब ने कैसे और क्यों दत्ताराम को बतौर संगीतकार नियुक्त किया, इसके बारे में विस्तार से दत्ताराम जी ने अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम 'संगीत के सितारों की महफ़िल' में बताया था, आप भी जानिए - "देखिए ऐसा है कि शंकर जयकिशन जहाँ भी जाते थे, हमेशा मैं साथ रहता था। लेकिन एक मौका ऐसा आया कि राज कपूर ने शंकर जयकिशन को बुलाया, और वो उनके वहाँ चले गए। कुछ देर तक मैं उनके साथ नहीं था। वो गए, उनका कॊटेज था, कॊटेज में उनके साथ बातचित चली। तो चलते चलते राज साहब ने कहा कि देखो, एक पिक्चर बन रही है आर.के. फ़िल्म्स की, जिसमें मैं काम नहीं कर रहा हूँ, डिरेक्शन मैं नहीं कर रहा हूँ, पैसा हमारा लगेगा। बैनर हमारा है लेकिन हम उसमें काम नहीं कर रहे हैं, और बच्चों की पिक्चर है। छोटे छोटे बच्चे हैं, उनकी पिक्चर है, साथ में याकूब साहब हैं। तो बताओ क्या करना है? तो शंकर जयकिशन कहने लगे कि जब आप काम नहीं कर रहे, डिरेक्शन नहीं कर रहे, सब कुछ बाहर के हैं, बच्चों की पिक्चर है, आप नहीं कर रहे हैं तो मज़ा नहीं आ रहा है, कुछ ठीक नहीं लग रहा है, तो हम लोग भी म्युज़िक नहीं देंगे। तो फिर राज साहब ने पूछा कि क्या करना है म्युज़िक का। तो जयकिशन ने फ़ौरन बोला कि "दत्तु को चांस दीजिए"।" तो दोस्तों, इस तरह से दत्तु, यानी कि दत्ताराम के लिए खुल गया स्वतंत्र संगीत निर्देशन का मार्ग।
दोस्तों, अभी उपर आपने पढ़ा कि किस तरह से दत्ताराम को राज साहब की फ़िल्म में ब्रेक मिला। और अब आज के प्रस्तुत गीत के बारे में भी तो विस्तार से जानिए ख़ुद दत्ताराम की ही ज़ुबाँ से! "राज साहब ने मुझसे कहा कि एक सिचुयशन है और वो सिचुयशन ऐसी है कि याकूब साहब जो हैं वो बच्चे को लेकर रोड पे चल रहे हैं, और कंधे पे बिठाके उसका एंटर्टेनमेन्ट कर रहे हैं। बच्चे को हँसा रहे हैं, कुछ कर रहे हैं, और वैसा करते करते दिल्ली ले जाते हैं बच्चे को। तो जाते वक़्त क्या करेंगे, तो उसमें एक गाना है। यह फ़्री-लान्सर गाना है, इसमें कोई सिचुयशन नहीं है, लेकिन मुझे ऐसी ट्युन चाहिए जो हिट हो जाए। कोशिश करो, मेहनत करो, लेकिन गाना मुझे हिट चाहिए। तो कोशिश करते करते, कुछ जम नहीं रहा था। एक दिन, मैं बान्द्रा में कार्टर रोड पे रहता था तो समुंदर के किनारे रात को १२ बजे मैं बैठा था। अकेले मैं बैठा हूँ और समुंदर मेरे सामने है, तो सोचते सोचते मुझे कुछ ऐसा सूझा और मैं गाने लगा "चुन चुन करती आई चिड़िया"। यह गाना मैने सोचा और सोचते सोचते दूसरे दिन हसरत साहब को घर पर मैने बुलाया। कहा कि देखिए, यह तर्ज़ मैने बनाई है, इस पर आप ज़रा कुछ लिख दीजिए। मैने उनको पूरा तर्ज़ सुनाया और उन्होने लिख डाला कि "चुन चुन करती आई चिड़िया, दाल का दाना लाई चिड़िया, मोर भी आया, कौवा भी आया, चूहा भी आया, बंदर भी आया"। यह गीत बनाकर हम राज साहब के पास गए। मैने थोड़ा सा ही गाना गाया था कि राज साहब ने मुझे बीच में ही रोक दिया, और कहा कि बहुत हिट गाना है! राज साहब को म्युज़िक का कितना नॊलेज है कि थोड़ा सा सुनकर ही कहने लग गए कि हिट गाना है। तो ऐसे रिकार्ड हो गया वो गाना।" तो दोस्तों, अब बारी है यह गीत सुनने की। आप भी बच्चे बन जाइए आज के लिए और सुनिए यह गुदगुदाता हुआ गीत रफ़ी साहब की आवाज़ में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राजेंद्र कृष्ण हैं गीतकार यहाँ.
२. इस फिल्म के निर्देशक थे विनोद कुमार.
३. मुखड़े की अंतिम पंक्ति में शब्द है -"याद".
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी बधाई...आखिर आपने सही जवाब लपक ही लिया....४ अंक हुए आपके....:)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अपने बचपन में यह फिल्म देखी थी और तब से यह गाना मेरी जिन्दगी का हिस्सा बन गया .
कारण आज भी नन्हें मुन्ने बच्चे जब भी मिल जाते हैं ,यही गाना सुना कर उनके साथ खेलता हूँ, और अक्सर उनका 'हाथी ' भी बन जाता हूँ .अपने बच्चों के साथ भी खूब खेला हूँ इस गाने के साथ.आप समझ सकते हैं की सभी को कितना आनंद आता होगा . कुछ तो आज बड़े हो गए हैं और आज भी मेरे साथ खेले गए 'चुन चुन करती आयी चिडिया .....' याद करते हैं .मेरे और 'उनके ' आनंद को आप समझ सकते हैं .अक्सर बच्चे तुतलाहट भरी बोली में कोरस में भी शामिल हो जाते हैं .
मैं सभी से निवेदन करूंगा की इसे लोड कर लें, याद कर लें, और बच्चों के साथ इसे मेरी ही तरह 'एन्जॉय ' करें . जो सुख मिलेगा उसे बता पाना मुश्किल है .
एक बार फिर से ......' आवाज़ ' को धन्यवाद !!
सादर
रचना