Skip to main content

रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ बच्चन की पसंद के गीत (२०)

आज से ठीक ४० साल पहले एक फिल्म प्रर्दशित हुई थी जिसक नाम था -"सात हिन्दुस्तानी". बेशक ये फिल्म व्यवसायिक मापदंडों पर विफल रही थी, पर इसे आज भी याद किया जाता है और शायद हमेशा याद किया जायेगा सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म के रूप में. अमिताभ ने इस फिल्म में एक मुस्लिम शायर की भूमिका निभाई थी. फिल्म का निर्देशन किया विख्यात ख्वाजा अहमद अब्बास ने (इनके बारे फिर कभी विस्तार से), संगीत जे पी कौशिक का था, जो लीक से हट कर बनने वाली फिल्मों में संगीत देने के लिए जाने जाते हैं. शशि कपूर की जूनून में भी इन्हीं का संगीत था, गीत लिखे कैफी आज़मी ने जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का राष्ट्रीय सम्मान भी हासिल हुआ, गीत था महेंद्र कपूर का गाया "आंधी आये कि तूफ़ान कोई....". अमिताभ ने भी इस फिल्म के के लिए "सर्वश्रेष्ठ युवा (पहली फिल्म) का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि आज भी बच्चन साहब ने (जो अब तक शायद सैकडों सम्मान प्राप्त कर चुके होंगें) इस सम्मान को बेहद सहेज कर रखा होगा....इस फिल्म "सात हिन्दुस्तानी" के बारे में कुछ और बातें करेंगे अगले रविवार... फिलहाल आपके कानों को सुपुर्द करते हैं एक बार फिर दीपाली जी के हाथों में, जो आपको महानायक के 7 पसंदीदा गीतों के सफ़र पर उन्हीं के अनुभवों को आपके साथ बाँट रही हैं. आज सुनिए 4 गीत, बाकी 3 अगले रविवार....


सदी का महानायक कहें या शहंशाह, एंथानी गोन्सालविस या फिर बिग बी कुछ भी कहिये, लेकिन एक ही चेहरा और एक ही आवाज दिखाई-सुनाई देती है और वो नाम है अमिताभ बच्चन का. कहते है कि कोइ-कोइ विरले ही होते है जो इतना मान तथा सम्मान पाते हैं, अमिताभ बच्चन उन्हीं विरलों में से एक हैं जिन्होंने हिन्दी सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपना नाम अंकित किया है. प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ ने अपने नाम को सही मायनों में चरित्रार्थ किया है. अमिताभ ने फिल्म जगत में जब कदम रखा था तो कभी सोचा भी न होगा कि उनका ये सफर इतना लम्बा, यादगार तथा कभी खत्म ना होने वाला सफर होगा. आज हम आपके लिये उनके इस यादगार सफर के कुछ जाने-अनजाने पहलू लेकर आये है उम्मींद है आपको ये लम्हे पसंद आयेंगे. तो चलिये हम ले चलते है आपको अमिताभ बच्चन के साथ यादों के सफर पर ...........बकौल अमिताभ

नीला आसमां सो गया-दिल्ली

यश जी को यह गाना मैने ही सुझाया था.उन्हे फिल्म के लिये एक साफ्ट और मेलोडियस गाना चाहिये था. मैं आपको इस गाने से जुडी बात बताता हूँ. मैने शम्मी कपूर जी के साथ कई फिल्में की इसलिये वो मेरे करीबी हैं. उन्हें संगीत का बहुत शौक है मैं जब भी उनके घर जाता तो वो अक्सर एक पहाडी धुन गुनगुनाते थे. बाद में उस धुन को इस गाने का रूप दिया था. मैने इस गाने को यश जी को बताया तो वो राजी हो गये. हमने इस गाने के लिये शम्मी जी की इजाजत ली. संगीतकार हरिजी व शिवजी को ये गाना पसंद आया. उन्होंने मुझसे गाने को कहा लेकिन मैं कोइ गायक नही था फिर भी मैने इस गीत को गाया. मेरे परिवार तथा दोस्तों ने मुझसे कहा कि मैं फिर कभी दुबारा न गाऊँ. फिल्म की ज्यादातर शूटिंग दिल्ली और कश्मीर में की गयी. यह गाना रात में दिल्ली के एक फार्म हाउस में शूट किया गया.



कभी-कभी मेरे दिल में-श्रीनगर

हम यश जी और पूरी स्टार टीम के साथ एक महीना श्रीनगर में रुके थे. जब मन किया तो शूट किया और जब मन किया तो बोटिंग और पिकनिक की. सभी स्टारकास्ट अपनी फैमिली के साथ आयी थी. हर दिन किसी ना किसी परिवार का सदस्य कोइ ना कोइ खाना बनाता. हमने पूरी फिल्म एक पारिवारिक माहौल में शूट की जो कि फिल्म में भी दिखाई देता है. गाने के बोल शाहिर लुधियानवी जी ने लिखे थे. मुझे और यश जी को शक था कि फिल्म लोगों द्वारा स्वीकार की जायेगी भी या नहीं. उन्हीं दिनों मैंने दीवार.शोले और जंजीर जैसी फिल्मों में एन्ग्रीयंगमैन की भूमिकायें निभायी थी. जनता भी ताज्जुब में थी कि एन्ग्रीयंगमैन ने रोमांटिक किरदार कैसे निभाया. लेकिन यशजी फिल्म में और मारधाड़ नहीं चाहते थे, उन्हें केवल रोमांस चाहिये था. उनका विश्वास सही निकला सभी ने फिल्म को पसंद किया.



ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे-रामनगरम.

फिल्म का ज्यादातर भाग बैंगलौर के निकट रामनगरम में फिल्माया गया है. यह गीत बाइक और साइड कार में फिल्माया गया है. बाइक के साथ साइड कार में यह दृश्य फिल्माना कठिन था.रमेश सिप्पी जी एक सीन में चाहते थे कि धर्मेंद्र मेरे कंधे पर बैठे और साइड कार को अलग करके बाद में दुबारा बाइक से मिलाना था. कैमरा कार में लोड किया गया और उसी के साथ घूमते हुए हमें बाइक चलानी थी. यह भी आइडिया नहीं था कि हम कैसे निश्चित जगह पर एक साथ मिलेगे. हम नहीं जानते थे कि ये कैसे होगा लेकिन हमने ये एक ही टेक में किया.



सारा जमाना.....याराना-कोलकाता

फिल्म के प्रड्यूसर हबीब नाडियावाला को इस गाने का आइडिया मैने दिया. मैने पहले भी कोलकाता में कई फिल्में जैसे- 'दो अन्जाने' की थी. मुझे लगा कि अगर हम कोलकाता में शूट करेंगे तो बहुत लोग शूटिंग देखने आयेंगे. इस तरह नेचुरल भीड़ का इन्तजाम हो जायेगा. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्टेडियम तभी बना था और फिल्म के गाने के लिये वो जगह अच्छी थी. इसी बीच मुझे राबर्ट रेडफोर्ड की फिल्म का पोस्टर देखने को मिला जिसमें वो एक चमकीला आउटफिट पहनकर घोड़े पर राइड कर रहे थे. तब मैने सोचा क्यों ना एक ऐसी ड्रेस पहनी जाये जिसमें बल्ब लगे हों. हमने ये काम मेरे कपड़े सिलने वाले अकबर मियां को बताया और उन्होंने इस गीत के किये यह ड्रेस तैयार की. उन दिनों बैटरी का सिस्टम नही था. टेलर ने कपडो में ही इलेक्ट्रिक वायर फिट करके ड्रेस तैयार की. जब मैने उसे ऐसे ही चलाना शुरु किया तो वायर में कुछ प्राब्लम हो गयी और मुझे करंट लग गया.

इसके अलावा दूसरा चेलेंज जनता को कंट्रोल करना था. पुलिस आयी मारपीट हुए जिस वजह से हमें सब कुछ लपेटना पड़ा.हमने बाकी का पार्ट रात में शूट करने का फैसला किया. लोगों को दिखाने के बजाय किसी को रात में १२०००-१३००० मोमबत्ती जलाने को कहा गया. फिर हमने शाम की फ्लाइट पकड़ी और गाने को पूरा किया.



कहते हैं की परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही होती है. अमिताभ जी ने जिन बातों को हमें बताया उससे हमें परदे के पीछे की कई दिलचस्प बातों का पता चलता है. ये बातें एक तरफ हमें नई चीजों से रुबरु कराती हैं वहीं घटनाओं की सच्चाई रोंगटे भी खड़े कर देती है. खैर बातचीत का ये सफर हम अपने अगले अंक में भी जारी रखेंगे. तब तक के लिये दीजिये इजाजत.

साभार -टाईम्स ऑफ़ इंडिया
दीपाली तिवारी "दिशा"


"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट