Skip to main content

गुनगुनाते लम्हे- गीतों भरी कहानीः एक नये कार्यक्रम की शुरूआत

गुनगुनाते लम्हे- 1


जब जमाना रेडियो का था तो रेडियो ने फिल्मी गीतों से सजा-धजाकर कई तरह के प्रयोग किये। इसी में एक प्रयोग था 'गीतों भरी कहानी' का, जिसमें कहानी को फिल्मी गीतों के माध्यम से शुरूआत से अंजाम तक पहुँचाया जाता था। आवाज़ वेब रेडियो के माध्यम से रेडियो का वो दौर इंटरनेट पर लाना चाहता है। हिन्द-युग्म आज से अपने 'आवाज़' मंच पर एक नये कार्यक्रम की शुरूआत कर रहा है, जिसे नाम दिया है 'गुनगुनाते लम्हे'। इसकी होस्ट हैं मखमली आवाज़ की मल्लिका 'रश्मि प्रभा'। हमारे श्रोता रश्मि प्रभा से पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के माध्यम से परिचित हैं। 'गुनगुनाते लम्हे' महीने में दो बार पहले मंगलवार और तीसरे मंगलवार को सुबह 9 से 9:30 बजे के मध्य प्रसारित होगा। तो इंतज़ार किस बात का, आइए शुरू करते हैं आज का कार्यक्रम॰॰॰

बड़ा जोर है सात सुरों में, बहते आंसू जाते हैं थम ' -तो आंसुओं को थामकर हम लाये हैं कुछ गुनगुनाते लम्हें! हमारा बचपन शुरू होता है कहानियों की धरती पर, इसीलिए शुरू है हमारी कहानी और साथ में सात सुरों के रंग....
जी हाँ, हम आपकी थकान दूर करेंगे गुनगुनाती कहानियों से और बरबस खींच लायेंगे उस उम्र को जो यादें बन हमारे मौन को आवाजें देती हैं।
वक़्त की रफ़्तार रुकेगी नहीं, परिवर्तन होता रहेगा ऐसे में कुछ जादू हो, यही प्रयास है इन नन्हें गुनगुनाते लम्हों का........



आप भी चाहें तो भेज सकते हैं कहानी लिखकर गीतों के साथ, जिसे दूंगी मैं अपनी आवाज़! जिस कहानी पर मिलेगी शाबाशी (टिप्पणी) सबसे ज्यादा उनको मिलेगा पुरस्कार हर माह के अंत में 500 / नगद राशि।

हाँ यदि आप चाहें खुद अपनी आवाज़ में कहानी सुनाना तो आपका स्वागत है....


1) कहानी मौलिक हो।
2) कहानी के साथ अपना फोटो भी ईमेल करें।
3) कहानी के शब्द और गीत जोड़कर समय 35-40 मिनट से अधिक न हो, गीतों की संख्या 7 से अधिक न हो।।
4) आप गीतों की सूची और साथ में उनका mp3 भी भेजें।
5) ऊपर्युक्त सामग्री podcast.hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें।

'गुनगुनाते लम्हे' टीम
आवाज़/एंकरिंगतकनीक
Rashmi PrabhaKhushboo
रश्मि प्रभाखुश्बू

Comments

Murari Pareek said…
swagat hai gungunaate lamhon ka!! rashmi ji ko badhaai!!!
"गुनगुनाते लम्हे" बड़ी ही खूबसूरती से रश्मि जी संचालन में खुशबू की तकनीति पर सवार होकर चले हैं.......
ईश्वर करे ये लम्हे लम्बी दूरी तय करें, और हमें यूँ ही आनंदित करें........
rashmi ji,
badi hi mukammal shuruaat ki hai aapne..... Dua karta hoo ki awaaz ki yah nayi mehfil baaki mehfilon ki tarah (ya kahiye usse bhi jyada) suni aur saraahi jaaye.

Dhanyawaad,
Vishwa Deepak
बहुत ही बढिया और सफ़ल प्रयोग!!

आवाज़ की टीम को , रश्मिजी और खुशबू जी को बधाईयां!!
indu said…
mast aankhon me sharart ' hmesha ' 'aisi hi thi ...
aapne kaise jana?
aapne bhi bs....thahre hue pani me kankar marne ki thaan hi li hai , par .....aage kuchhh aa kyo nhi raha ? gana bhi pura nhi sun pai aur bnd ho gaya .
kya krun?
ρяєєтii said…
सच कहा रश्मि जी ने - बड़ा जोर है सात सुरों में….
खट्टे मीठे सुर, चंचल उमड़ते सुर ने तो एसी शरारत कर दी आज की गौरी पनिया भरण पहुच गई. जहा रुठते मनाते हुए कल्पनाओ की उदान भर झीलों के शहर में घूमा लाई … और दिल चुपके चुपके कहने लगा – यह क्या हुआ चुपके से ? अरे प्यार हुआ चुपके से.... नन्हे नन्हे लम्हे गुनगुनाने लगे की ... " किस्मत से तुम हमको मिले हो "...Ilu...!

सुमधुर शुरुआत - बचपन से जवानी तक का सगीतमय सफ़र बेहतरीन रहा...!
Disha said…
अच्छा प्रयास है.
बधाई हो नये सोपान के लिये
गुनगुनाते लम्हे- गीतों भरी कहानी को वेब पेज पर देख अन्यायास ही एक सुखद अनुभूति हुई ...आपने एक क्षण में ही रेडियो के उस सुनहरे दौर की यादें ताजा कर दी ....! बहुत बहुत धन्यवाद ! गुनगुनाते लम्हे निश्चय ही एक सुमधुर एवं सार्थक शुरुआत है और इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं !

हालाँकि अभी तो फ़िलहाल ये छाया-गीत कार्यक्रम का वेब संस्करण ही लग रहा है परंतु ...भविष्य में आपसे - इसे एक विशुद्ध गीतों भरी कहानी के रूप में प्रस्तुत करने की पूरी आशा है ! अगर संभव हो सके तो कहानियों की नाट्य प्रस्तुति भी का जा सकती है ....बहरहाल कुल मिलाकर यह एक बेहतर आयोजन है !

इसकी सफलता के लिए मेरी ओर से शुभकामनाएं स्वीकार करें !

< सागर >
एक बहुत ही बढ़िया शुरूआत। रश्मि जी को बधाई।

लेकिन फिलहाल सागर जी से सहमत हुआ जा सकता है। आवाज़ टीम को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की