ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 245
१९५४ की फ़िल्म 'आर पार' की कहानी टैक्सी ड्राइवर कालू (देव आनंद) की थी। फ़िल्म में दो नायिकाएँ हैं, जिनमें से एक के पिता अंडरवर्ल्ड से जुड़ा हुआ है और वो चाहता है कि कालू भी उसके साथ मिल जाए ताकि वो जल्दी अमीर बन जाए। कालू भी ख़ुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है, लेकिन सही रास्तों पर चलकर या ग़लत राह पकड़कर? यही थी 'आर पार' की मूल कहनी। गुरु दत्त साहब ने अपनी प्रतिभा से इस साधारण कहानी को एक असाधारण फ़िल्म में परिवर्तित कर चारों ओर धूम मचा दी। और इसी कामयाबी से प्रेरित होकर आनंद भाइयों ने इसी साल १९५४ में अपने 'नवकेतन' के बैनर तले इसी भाव को आगे बढ़ाते हुए एक और फ़िल्म के निर्माण का निश्चय किया। और इस बार फ़िल्म का शीर्षक भी रखा गया 'टैक्सी ड्राइवर'। चेतन आनंद ने फ़िल्म का निर्देशन किया, विजय आनंद ने कहानी लिखी, और देव साहब नज़र आए टैक्सी ड्राइवर मंगल के किरदार में। नायिका बनीं कल्पना कार्तिक। गीतकार साहिर लुधियानवी और संगीतकार सचिन देव बर्मन की जोड़ी ने एक बार फिर से अपना जादू दिखाया और इस फ़िल्म के लिए बने कुछ यादगार सदाबहार नग़में। आज 'जिन पर नाज़ है हिंद को' शृंखला में हम इसी फ़िल्म का एक सुपरहिट गीत लेकर आए हैं तलत महमूद की मखमली आवाज़ में। जी हाँ, "जाएँ तो जाएँ कहाँ"। इस गीत के दो वर्जन हैं, दूसरा वर्ज़न लता जी की आवाज़ में है। लेकिन तलत साहब वाले गीत को ही ज़्यादा बजाया और सुना जाता है। राग जौनपुरी पर आधारित यह गीत बड़ा ही कर्णप्रिय है। बांसुरी की मधुर तानें गीत के इंटर्ल्युड में हमें एक और ही जगत में ले जाती है। साहिर साहब एक बार फिर से अपने उसी दर्दीले अंदाज़ में नज़र आते हैं। "उनका भी ग़म है, अपना भी ग़म है, अब दिल के बचने की उम्मीद कम है, एक कश्ती सौ तूफ़ान, जाएँ तो जाएँ कहाँ"। और सब से बड़ी बात यह कि इस गीत के लिए सचिन देव बर्मन को उस साल के सर्वर्श्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। और यह उनका पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी था।
'टैक्सी ड्राइवर' का साउंड ट्रैक बहुत ही विविध है। इस फ़िल्म में साहिर साहब ने कुछ आशावादी गीत भी लिखे हैं, जैसे कि लता जी की आवाज़ में "दिल जले तो जले, ग़म पले तो पले" और "ऐ मेरी ज़िंदगी, आज रात झूम ले आसमान चूम ले"। इन दोनों गीतों को दादा ने पाश्चात्य शैली में स्वरबद्ध किया था। किशोर दा का गाया "चाहे कोई ख़ुश हो चाहे गालियाँ हज़ार दे" में जितना साहिर और बर्मन दादा का योगदान है, उससे कहीं ज़्यादा इसमें किशोर दा का अनोखा अंदाज़ सुनाई देता है। इस फ़िल्म के संगीत की एक और ख़ास बात यह है कि इसी फ़िल्म में आशा भोसले ने अपना पहला गीत गाया था बर्मन दादा के निर्देशन मे और वह भी एक कैबरे नंबर "जीने दो और जियो"। आशा और जगमोहन बक्शी का गाया इस फ़िल्म का एक युगलगीत "देखो माने नहीं रूठी हसीना" भी हम आपको सुनवा चुके हैं। इस साल, यानी कि १९५४ में साहिर और सचिन दा की जोड़ी एक बार फिर नज़र आई नासिर ख़ान और नरगिस अभिनीत फ़िल्म 'अंगारे' में, जिसमें भी तलत महमूद ने एक ख़ूबसूरत गीत गाया था "डूब गए आकाश के तारे जाके ना तुम आए, तकते तकते नैना हारे जाके ना तुम आये", लेकिन इस गीत को वह प्रसिद्धि नहीं मिली जितनी "जाएँ तो जाएँ कहाँ" को मिली। इसी फ़िल्म में साहिर साहब ने एक अनोखा गीत लिखा था जिसे लता और तलत ने गाया था। गीत के बोल कुछ इस तरह से थे कि तलत साहब गाते हैं "तेरे साथ चल रहे हैं ये ज़मीं चाँद तारे", और लता जवाब देती है "ये ज़मीं चाँद तारे तेरी एक नज़र पे वारे"। इन दो पंक्तियों में ध्यान दीजिए कि किस तरह से पहली पंक्ति समाप्त होती है "ये ज़मीं चाँद तारे" पे और दूसरी पंक्ति शुरु होती है इसी "ये ज़मीं चाँद तारे" से। तो दोस्तों, हमने 'टैक्सी ड्राइवर' के साथ साथ 'अंगारे' फ़िल्म का भी ज़िक्र किया आज की इस कड़ी में। चलिए अब आनंद उठाया जाए तलत साहब की मख़मली आवाज़ में साहिर साहब व सचिन दा की एक उत्कृष्ट गीत रचना फ़िल्म 'टैक्सी ड्राइवर' से।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. लोक संगीत पर आधारित इस गीत को लिखा साहिर ने.
२. इस युगल गीत की धुन बनायीं सचिनदा ने.
३. मुखड़े में शब्द है -"अकेली".
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी मात्र २ मिनट के अंतर से आपने २ अंक चुरा ही लिए शरद जी से, बधाई अब आप ४८ अंकों पर हैं. पूर्वी जी आपने अपने अनुभव हमसे बांटे अच्छा लगा, दिलीप जी बहुत दिनों बाद आपकी आमद हुई है. कहाँ थे ? राज जी आप बस गीतों का आनंद लीजिये, और रचना जी उदास तो मत रहा कीजिये....:)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
१९५४ की फ़िल्म 'आर पार' की कहानी टैक्सी ड्राइवर कालू (देव आनंद) की थी। फ़िल्म में दो नायिकाएँ हैं, जिनमें से एक के पिता अंडरवर्ल्ड से जुड़ा हुआ है और वो चाहता है कि कालू भी उसके साथ मिल जाए ताकि वो जल्दी अमीर बन जाए। कालू भी ख़ुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है, लेकिन सही रास्तों पर चलकर या ग़लत राह पकड़कर? यही थी 'आर पार' की मूल कहनी। गुरु दत्त साहब ने अपनी प्रतिभा से इस साधारण कहानी को एक असाधारण फ़िल्म में परिवर्तित कर चारों ओर धूम मचा दी। और इसी कामयाबी से प्रेरित होकर आनंद भाइयों ने इसी साल १९५४ में अपने 'नवकेतन' के बैनर तले इसी भाव को आगे बढ़ाते हुए एक और फ़िल्म के निर्माण का निश्चय किया। और इस बार फ़िल्म का शीर्षक भी रखा गया 'टैक्सी ड्राइवर'। चेतन आनंद ने फ़िल्म का निर्देशन किया, विजय आनंद ने कहानी लिखी, और देव साहब नज़र आए टैक्सी ड्राइवर मंगल के किरदार में। नायिका बनीं कल्पना कार्तिक। गीतकार साहिर लुधियानवी और संगीतकार सचिन देव बर्मन की जोड़ी ने एक बार फिर से अपना जादू दिखाया और इस फ़िल्म के लिए बने कुछ यादगार सदाबहार नग़में। आज 'जिन पर नाज़ है हिंद को' शृंखला में हम इसी फ़िल्म का एक सुपरहिट गीत लेकर आए हैं तलत महमूद की मखमली आवाज़ में। जी हाँ, "जाएँ तो जाएँ कहाँ"। इस गीत के दो वर्जन हैं, दूसरा वर्ज़न लता जी की आवाज़ में है। लेकिन तलत साहब वाले गीत को ही ज़्यादा बजाया और सुना जाता है। राग जौनपुरी पर आधारित यह गीत बड़ा ही कर्णप्रिय है। बांसुरी की मधुर तानें गीत के इंटर्ल्युड में हमें एक और ही जगत में ले जाती है। साहिर साहब एक बार फिर से अपने उसी दर्दीले अंदाज़ में नज़र आते हैं। "उनका भी ग़म है, अपना भी ग़म है, अब दिल के बचने की उम्मीद कम है, एक कश्ती सौ तूफ़ान, जाएँ तो जाएँ कहाँ"। और सब से बड़ी बात यह कि इस गीत के लिए सचिन देव बर्मन को उस साल के सर्वर्श्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। और यह उनका पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी था।
'टैक्सी ड्राइवर' का साउंड ट्रैक बहुत ही विविध है। इस फ़िल्म में साहिर साहब ने कुछ आशावादी गीत भी लिखे हैं, जैसे कि लता जी की आवाज़ में "दिल जले तो जले, ग़म पले तो पले" और "ऐ मेरी ज़िंदगी, आज रात झूम ले आसमान चूम ले"। इन दोनों गीतों को दादा ने पाश्चात्य शैली में स्वरबद्ध किया था। किशोर दा का गाया "चाहे कोई ख़ुश हो चाहे गालियाँ हज़ार दे" में जितना साहिर और बर्मन दादा का योगदान है, उससे कहीं ज़्यादा इसमें किशोर दा का अनोखा अंदाज़ सुनाई देता है। इस फ़िल्म के संगीत की एक और ख़ास बात यह है कि इसी फ़िल्म में आशा भोसले ने अपना पहला गीत गाया था बर्मन दादा के निर्देशन मे और वह भी एक कैबरे नंबर "जीने दो और जियो"। आशा और जगमोहन बक्शी का गाया इस फ़िल्म का एक युगलगीत "देखो माने नहीं रूठी हसीना" भी हम आपको सुनवा चुके हैं। इस साल, यानी कि १९५४ में साहिर और सचिन दा की जोड़ी एक बार फिर नज़र आई नासिर ख़ान और नरगिस अभिनीत फ़िल्म 'अंगारे' में, जिसमें भी तलत महमूद ने एक ख़ूबसूरत गीत गाया था "डूब गए आकाश के तारे जाके ना तुम आए, तकते तकते नैना हारे जाके ना तुम आये", लेकिन इस गीत को वह प्रसिद्धि नहीं मिली जितनी "जाएँ तो जाएँ कहाँ" को मिली। इसी फ़िल्म में साहिर साहब ने एक अनोखा गीत लिखा था जिसे लता और तलत ने गाया था। गीत के बोल कुछ इस तरह से थे कि तलत साहब गाते हैं "तेरे साथ चल रहे हैं ये ज़मीं चाँद तारे", और लता जवाब देती है "ये ज़मीं चाँद तारे तेरी एक नज़र पे वारे"। इन दो पंक्तियों में ध्यान दीजिए कि किस तरह से पहली पंक्ति समाप्त होती है "ये ज़मीं चाँद तारे" पे और दूसरी पंक्ति शुरु होती है इसी "ये ज़मीं चाँद तारे" से। तो दोस्तों, हमने 'टैक्सी ड्राइवर' के साथ साथ 'अंगारे' फ़िल्म का भी ज़िक्र किया आज की इस कड़ी में। चलिए अब आनंद उठाया जाए तलत साहब की मख़मली आवाज़ में साहिर साहब व सचिन दा की एक उत्कृष्ट गीत रचना फ़िल्म 'टैक्सी ड्राइवर' से।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. लोक संगीत पर आधारित इस गीत को लिखा साहिर ने.
२. इस युगल गीत की धुन बनायीं सचिनदा ने.
३. मुखड़े में शब्द है -"अकेली".
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी मात्र २ मिनट के अंतर से आपने २ अंक चुरा ही लिए शरद जी से, बधाई अब आप ४८ अंकों पर हैं. पूर्वी जी आपने अपने अनुभव हमसे बांटे अच्छा लगा, दिलीप जी बहुत दिनों बाद आपकी आमद हुई है. कहाँ थे ? राज जी आप बस गीतों का आनंद लीजिये, और रचना जी उदास तो मत रहा कीजिये....:)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
काम के सिलसिले में अक्सर बाहर जाने के कारण इस रोचक और दिल के करीब ब्लोग पर आ नहीं पाता हूं.
आपकी बात अभी तक याद है और पेंडिंग है.
kaafi din baad aa sake hain ham..
hame is geet kaa koi andaajaa nahi thaa..
ROHIT RAJPUT