Skip to main content

तुम सा मीत मिला दिल का फूल खिला...गीता -तलत का गाया एक दुर्लभ गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 134

ज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' बहुत बहुत ख़ास है दोस्तों। आज मैं आप के लिए एक ऐसा गीत खोज लाया हूँ जिसे आप में से अधिकतर श्रोता आज पहली बार सुन रहे होंगे, क्यूंकि यह गीत न किसी रेडियो चैनल पर आज सुनाई देता है और ना ही टी.वी के परदे पर। आप ने गायक सुबीर सेन का तो नाम सुना ही होगा, जी हाँ, वही सुबीर सेन जिन्होने 'कठपुतली' में "मंज़िल वही है प्यार की राही बदल गये", और फिर 'आस का पंछी' में "दिल मेरा एक आस का पंछी", और 'छोटी बहन' में लता जी के साथ "मैं रंगीला प्यार का राही दूर मेरी मंज़िल" जैसे हिट गीत गाये थे। उनकी आवाज़ हेमन्त कुमार से बहुत मिलती जुलती थी और उनका रेंज कम होने की वजह से उन्हे बहुत ज़्यादा तरह के गीत गाने को नहीं मिले, लेकिन जितने भी गानें उन्होने गाये वो सभी बहुत पसंद किये गये। तो दोस्तों, जो मैं कह रहा था कि गायक सुबीर सेन का नाम तो आप ने सुना ही है, लेकिन क्या आप को यह भी पता है कि उन्होने एक फ़िल्म में संगीत भी दिया था! जी हाँ, १९७२ में इंगलैंड में एक हिंदी फ़िल्म बनी थी 'मिडनाइट', जिसमें उनका संगीत था। इस फ़िल्म का प्रदर्शन भी वहीं पर हुआ था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए इसी दुर्लभ फ़िल्म का एक दुर्लभ दोगाना लेकर हम हाज़िर हुए हैं। गीता दत्त और तलत महमूद के गाये इस गीत को सुनकर आप ख़ुशी से झूम उठेंगे, इसमे कोई शक़ नहीं है।

सुबीर सेन ने 'मिडनाइट' फ़िल्म में तलत महमूद और गीता दत्त के अलावा मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले से भी गानें लिए और इनके साथ साथ ख़ुद भी अपनी आवाज़ मिलायी थी। प्रस्तुत युगल गीत इस वजह से बहुत ख़ास हो जाता है कि यह तलत महमूद और गीता दत्त, दोनो के कैरीयर के अंतिम गीतों में से हैं। हालाँकि तलत साहब ने इसके बाद ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों का सिलसिला जारी रखा, लेकिन फ़िल्मों में उनके गानें आने कम हो गये थे। और जहाँ तक गीता जी का सवाल है, 'मिडनाइट' उनके अंतिम फ़िल्मों में से एक है; इसी साल, यानी कि १९७२ में २० जुलाई के दिन वो इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए छोड़ गयीं थीं। इस गीत का रंग बड़ा ही निराला है। है तो यह गीत बड़ा ही मधुर और सुरीला, लेकिन गाने के संगीत संयोजन में पाश्चात्य प्रभाव साफ़ झलकता है। ७० के दशक के गीतों की शैली में ही बनाया गया है इस गीत को, लेकिन क्यूंकि तलत साहब और गीता जी, दोनों ही ५० और ६० के दशक के गायक रहे हैं, तो उनकी आवाज़ों में इस तरह का संगीत संयोजन बड़ा ही अनोखा बन पड़ा है। गीता दत्त की आवाज़ तो बहुत ही अलग सी जान पड़ती है इस गाने में। प्यार और मिलन के रंगों में डूबे इस गीत को सुनकर कौन कह सकता है कि वो अपने जीवन की किन दुखद पलों से उस वक़्त गुज़र रही थीं! "तुम सा मीत मिला, दिल का फूल खिला, चलता रहे युंही सनम ख़ुशियों का कारवाँ", अपने गीतों के ज़रिये दूसरों को ख़ुशियाँ देनेवाले इन कलाकारों को अपनी निजी ज़िंदगी में कितने दुख झेलने पड़े हैं, यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। लीजिये, सुबीर सेन, तलत महमूद और गीता दत्त की याद में आज का यह गीत सुनिये। अगर आप को इस फ़िल्म से संबंधित और भी कोई जानकारी मालूम हो तो हमारे साथ ज़रूर बाँटियेगा, जैसे कि फ़िल्म के मुख्य कलाकार, निर्देशक, गीतकार, वगैरह।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. कल से मदन मोहन विशेष शुरू हो रहा है तो पहला सूत्र तो मदन साहब ही हैं.
2. राजेंद्र कृष्ण हैं गीतकार यहाँ.
3. मुखड़े में शब्द है -"नींद".

पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न जी, पहेली मुश्किल थी पर भी कहाँ कम थी...एकदम सही जवाब. आप ३० अंकों के साथ शरद को कडा मुकाबला दे रही हैं अब. बधाई. दिशा जी थोडा चूक गयी, कोई बात नहीं....मनु जी आपने सही कहा, पराग जी ठहरे गीता दत्त विशेषज्ञ. शरद जी हो सकता है कि आपने ये गाना न सुना हो अब से पहले, आज सुनिए और बताईये कैसा लगा.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Parag said…
Meri aankhon se koi neend liye jaata hai.
'अदा' said…
जा रे जा, जा निंदिया जा, जा निंदिया जा
न आ अखियों में, आज न आ
bairan neend na aaye mohe
film : chacha zindabad
manu said…
जवाब पता नहीं..
क्योंकि गीतकार का कन्फ्यूजन है पर लगया है के इस बार अदा जी गलत हैं....
बाकी दोनों में से कोई एक जवाब सही लग रहा है..
बल्कि शरद जी का,,,,
'अदा' said…
Sharad ji,
aapka jawaab bilkul shai hai, badhai...
ye bahut bahut hi khoosurat geet hai...
main sun rahi hun..
मेरे हिसाब से ’मेरी आँखों से कोई नींद लिए जाता है’ (पूजा के फूल) तथा ’बैरन नींद न आए’(चाचा ज़िन्दाबाद) दोनों ही गीत पहेली की शर्तों को पूरा करते हैं ।
Parag said…
मेरी आँखोंसे कोई नींद लिए जाता है फिल्म पूजा के फूल का गीत है. वैसे बैरन नींद ना आये भी राजिंदर साहब का ही लिखा है. मुझे तो दोनों भी जवाब सही लग रहे हैं.

पराग
'अदा' said…
aisi baat hai, tab to Parag ji ko bahut bahut badhai...
Shamikh Faraz said…
मनु जी तरह मुझे भी जवाब नहीं पता और यह भी अंदाज़ नहीं कि किसका जवाब सही है.
Parag said…
शरद जी, बड़े दिनोंके बाद आज सुबह नींद खुली इसलिए पहेली तक पन्हूंच पाया. मेरे ख्याल से आप का और मेरा , दोनोका जवाब सही लग रहा है.
स्वप्न मंजूषा जी आप को ३० अन्कोके लिए बहुत शुभकामनाएं.

पराग
Manju Gupta said…
बेरन नींद न आये.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...