भारतीय सिनेमा के सौ साल – 40
कारवाँ सिने-संगीत का
होली के हजारों रंग भरने वाले गीतकार शकील बदायूनी के सुपुत्र जावेद बदायूनी से बातचीत
‘लाई है हज़ारों रंग होली...’
भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित
विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का
रस-रंग के उल्लासपूर्ण परिवेश में हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा
गुरुवार है और इस दिन हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की
प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख
करते हैं। परन्तु आज होली पर्व के विशेष अवसर के कारण हम दो वर्ष पूर्व
सुजॉय चटर्जी द्वारा सुप्रसिद्ध गीतकार शकील बदायूनी के बेटे जावेद बदायूनी
से की गई बातचीत का पुनर्प्रकाशन कर रहे हैं। आप जानते ही हैं कि शकील
बदायूनी ने फिल्मों में कई लोकप्रिय होली गीत रचे थे, जो आज भी
गाये-गुनगुनाए जाते हैं।
होली है!!! 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को रंगीन पर्व होली पर हमारी ढेर सारी शुभकामनाएँ। तो कैसा रहा होली का दिन? ख़ूब मस्ती की न? हमनें भी की। हमारी टोली दिन भर रंग उड़ेलते हुए, मौज-मस्ती करते हुए, लोगों को शुभकामनाएँ देते हुए, अब दिन ढलने पर आ पहुँचे हैं एक मशहूर शायर व गीतकार के बेटे के दर पर। ये उस अज़ीम शायर के बेटे हैं, जिस शायर नें अदबी शायरी के साथ-साथ फिल्म-संगीत में भी अपना अमूल्य योगदान दिया। हम आये हैं, शक़ील बदायूनी के साहबज़ादे जावेद बदायूनी के पास, उनके पिता के बारे में थोड़ा और क़रीब से जानने के लिए। इस बातचीत के साथ ही हम शक़ील साहब के लिखे कुछ बेमिसाल होली गीत भी आपको सुनवायेंगे।
सुजॊय- जावेद बदायूनी साहब, नमस्कार, और 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' परिवार की तरफ़ से आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जावेद- बहुत-बहुत शुक्रिया, और आपको भी होली की शुभकामनाएँ।
सुजॊय- आज का दिन बड़ा ही रंगीन है और हमें बेहद ख़ुशी है कि आज के दिन आप हमारे पाठकों से रू-ब-रू हो रहे हैं।
जावेद- मुझे भी बेहद खुशी है, अपने पिता के बारे में कुछ बताने का मौका पाकर।
सुजॊय- जावेद साहब, इससे पहले कि मैं आप से शक़ील साहब के बारे में कुछ पूछूँ, मैं यह बताना चाहूँगा कि उन्होंने कुछ शानदार होली गीत लिखे हैं, जिनका शुमार सर्वश्रेष्ठ होली गीतों में होता है। ऐसा ही एक होली गीत है फ़िल्म 'मदर इण्डिया' का, "होली आई रे कन्हाई, रंग छलके, सुना दे जरा बाँसुरी...”। आइए, शमशाद बेगम की आवाज़ में इस गीत को पहले सुनते हैं, फिर बातचीत को आगे बढ़ाते हैं।
जावेद- जरूर साहब, सुनवाइए।
फिल्म मदर इण्डिया : ‘होली आई रे कन्हाई रंग बरसे...' : शमशाद बेगम और साथी
सुजॊय- जावेद साहब, यह बताइए कि जब आप छोटे थे, तब पिता के रूप में शक़ील साहब का बरताव कैसा हुआ करता था? घर-परिवार का माहौल कैसा था?
जावेद- एक पिता के रूप में उनका व्यवहार दोस्ताना हुआ करता था और सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, अपने सभी बच्चों को बहुत प्यार करते थे और सबसे हँस-खेल कर बातें करते थे। यानी कि घर का माहौल बड़ा ही ख़ुशनुमा हुआ करता था।
सुजॊय- जावेद जी, घर पर शायरों का आना जाना लगा रहता होगा?
जावेद- जी हाँ, बिलकुल। शक़ील साहब के दोस्त लोगों का आना-जाना लगा ही रहता था, जिनमें बहुत से शायर भी होते थे। घर पर ही शेर-ओ-शायरी की बैठकें हुआ करती थीं।
सुजॊय- जावेद साहब, शक़ील साहब के अपने एक पुराने इंटरव्यु में ऐसा कहा था कि उनके करीयर को चार पड़ावों में विभाजित किया जा सकता है। पहले भाग में 1916 से 1936 का समय जब वे बदायूँ में रहा करते थे। फिर 1936 से 1942 का समय अलीगढ़ का और फिर 1942 से 1946 तक दिल्ली का उनका समय। और अन्त में 1946 के बाद बम्बई का सफ़र। हमें उनकी फ़िल्मी करीयर, यानी कि बम्बई के जीवन के बारे में तो फिर भी पता है, क्या आप पहले तीन के बारे में कुछ बता सकते हैं?
जावेद- बदायूँ में जन्म और बचपन की दहलीज़ पार करने के बाद शकील साहब ने अलीगढ़ से अपनी ग्रैजुएशन पूरी की और दिल्ली चले गये, और वहाँ पर एक सरकारी नौकरी कर ली। साथ ही साथ अपने अंदर शेर-ओ-शायरी के जज्बे को कायम रखा और मुशायरों में भाग लेते रहे। ऐसे ही किसी एक मुशायरे में नौशाद साहब और ए.आर. कारदार साहब भी गए थे। उन्होने शकील साहब को नज़्म पढ़ते हुए सुना। उन पर शक़ील साहब की शायरी का इतना असर हुआ कि उसी वक़्त उन्हें फ़िल्म 'दर्द' के सभी गानें लिखने का ऒफ़र दे दिया।
सुजॊय- 'दर्द' का कौन सा गीत सबसे पहले उन्होंने लिखा होगा, इसके बारे में कुछ बता सकते हैं?
जावेद- उनका लिखा ‘हम दर्द का फसाना...’ पहला गीत था, और दूसरा गाना था ‘अफसाना लिख रही हूँ...’, उमा देवी का गाया हुआ।
सुजॊय- इस दूसरे गीत को हम अपने श्रोताओं को सुनवा चुके हैं। क्योंकि आज होली का अवसर है, आइए यहाँ पर शक़ील साहब का लिखा हुआ एक और शानदार होली गीत सुनते हैं। फ़िल्म 'कोहिनूर' से जिसका संगीत नौशाद साहब ने तैयार किया था।
जावेद- ज़रूर सुनवाइए।
फिल्म कोहिनूर : ‘तन रंग लो जी आज मन रंग लो...’ : मोहम्मद रफी और साथी
सुजॊय- जावेद साहब, क्या शक़ील साहब कभी आप भाई-बहनों को प्रोत्साहित किया करते थे लिखने के लिए?
जावेद- जी हाँ, वो प्रोत्साहित भी करते थे और जब हम कुछ लिख कर उन्हें दिखाते तो वो ग़लतियों को सुधार भी दिया करते थे।
सुजॊय- शक़ील बदायूनी और नौशाद अली, जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू थे। ये दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त भी थे। क्या शक़ील साहब आप सब को नौशाद साहब और उस दोस्ती के बारे में बताया करते थे? या फिर इन दोनों से जुड़ी कोई यादगार घटना या वाकया याद है आपको?
जावेद- यह हक़ीक़त है कि शकील साहब और नौशाद साहब ग्रेटेस्ट फ्रेंड थे। शक़ील साहब, नौशाद साहब के साथ अपने परिवार से भी ज़्यादा वक़्त बिताया करते थे। दोनों के आपस की ट्युनिंग् ग़ज़ब की थी और यह ट्युनिंग इनके गीतों से साफ़ झलकती है। शक़ील साहब के गुज़र जाने के बाद भी नौशाद साहब हमारे घर आते रहते थे और हमारा हौसला-अफ़ज़ाई करते थे। यहाँ तक कि नौशाद साहब हमें बताते थे कि ग़ज़ल और नज़्म किस तरह से पढ़ी जाती है और मैं जो कुछ भी लिखता था, वो उन्हें सुधार दिया करते थे।
सुजॊय - यानी कि शक़ील साहब एक पिता के रूप में जिस तरह से आपको गाइड करते थे, उनके जाने के बाद वही किरदार नौशाद साहब ने निभाया और आपको पिता के समान स्नेह दिया।
जावेद- इसमें कोई शक नहीं।
सुजॊय- जावेद साहब, बचपन की कई यादें ऐसी होती हैं जो हमारे मन-मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ जाती हैं। शक़ील साहब से जुड़ी आप के मन में भी कई स्मृतियाँ होंगी। उन स्मृतियों में से कुछ आप हमारे साथ बाँटना चाहेंगे?
जावेद- शकील साहब के हम सब प्रायः रेकार्डिंग पर जाया करते थे और कभी-कभी तो वो हमें शूटिंग् पर भी ले जाते। फ़िल्म 'राम और श्याम' के लिए वो हमें मद्रास ले गये थे। 'दो बदन', 'नूरजहाँ' और कुछ और फ़िल्मों की शूटिंग् पर हम सब गये थे। वो सब यादें अब भी हमारे मन में ताज़ा हैं जो बहुत याद आते हैं।
सुजॊय- अब मैं आपसे जानना चाहूँगा कि शक़ील साहब के लिखे कौन कौन से गीत आपको व्यक्तिगत तौर पे सब से ज़्यादा पसंद हैं?
जावेद- उनके लिखे सभी गीत अपने आप में मासटरपीस हैं, चाहे किसी भी संगीतकार के लिए लिखे गये हों।
सुजॊय- निस्सन्देह।
जावेद- यह बता पाना नामुमकिन है कि कौन सा गीत सर्वोत्तम है। मैं कुछ फ़िल्मों के नाम ज़रूर ले सकता हूँ, जैसे कि 'मदर इण्डिया', 'गंगा जमुना', 'बैजु बावरा', 'चौदहवीं का चांद', 'साहब बीवी और ग़ुलाम', और ‘मुगल-ए-आजम’।
सुजॊय- वाह! आपने फिल्म मुगल-ए-आजम का ज़िक्र किया, और आज हम आप से शक़ील साहब के बारे में बातचीत करते हुए उनके लिखे कुछ होली गीत सुन ही रहे हैं, तो मुझे एकदम से याद आया कि इस फ़िल्म में भी एक ऐसा गीत है जिसे हम पूर्णतः होली गीत तो नहीं कह सकते, लेकिन क्योंकि उसमें राधा और कृष्ण के छेदछाड़ का वर्णन है इसलिए इसे यहाँ पर बजाया जा सकता है। मूलतः यह गीत लखनऊ कथक घराने के संस्थापक बिंदादीन महाराज की एक ठुमरी रचना है, जिसे फिल्म के नृत्य निर्देशक लच्छू महाराज और संगीत निर्देशक नौशाद ने शकील साहब से फिल्म के लिए पुनर्लेखन कराया था।
जावेद- जी बिलकुल ठीक फरमाया आपने। सुनने वालों को यह होली गीत जरूर सुनवाइये।
फिल्म मुगल-ए-आजम : ‘मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे...’ : लता मंगेशकर और साथी
सुजॊय- अच्छा जावेद साहब, हम शक़ील साहब के लिखे गीतों को हर रोज़ ही कहीं न कहीं से सुनते हैं, लेकिन उनके लिखे गैर-फिल्मी नज़मों और गज़लों को कम ही सुना जाता है। इसलिए मैं आप से उनकी लिखी अदबी शायरी और प्रकाशनों के बारे में जानना चाहूँगा।
जावेद- मैं आपको बताऊँ कि भले ही वो फ़िल्मी गीतकार के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं, लेकिन हक़ीक़त में पहले वो एक लिटररी फ़िगर थे और बाद में फ़िल्मी गीतकार। फ़िल्मों में गीत लेखन वो अपने परिवार को चलाने के लिये किया करते थे। जहाँ तक ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का सवाल है, उन्होंने ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों के पाँच दीवान लिखे हैं, जिनका अब ‘कुलयात-ए- शकील’ के नाम से संकलन प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने जीवन काल में 500 से ज़्यादा ग़ज़लें और नज़्में लिखे होंगे जिन्हें आज भारत, पाक़िस्तान और दुनिया भर के देशों के गायक गाते हैं।
सुजॊय- आपने आँकड़ा बताया तो मुझे याद आया कि हमनें आप से शक़ील साहब के लिखे फ़िल्मी गीतों की संख्या नहीं पूछी। कोई अंदाज़ा है आपको कि शक़ील साहब ने कुल कितने फ़िल्मी गीत लिखे होंगे?
जावेद- उन्होने 108 फिल्मों में लगभग 800 गीत लिखे थे। इनमें से 5 फिल्में अनरिलीज़्ड भी हैं।
सुजॊय- वाह! जावेद साहब, यहाँ पर हम शक़ील साहब का लिखा एक और बेहतरीन होली गीत सुनना और सुनवाना चाहेंगे। नौशाद साहब के अलावा जिन संगीतकारों के साथ उन्होंने काम किया, उनमें एक महत्वपूर्ण नाम है रवि साहब का। अभी कुछ देर पहले आपने 'दो बदन' और 'चौदहवीं का चाँद' फ़िल्मों का नाम लिया जिनमें रवि का संगीत था। तो रवि साहब के ही संगीत में शक़ील साहब नें फ़िल्म 'फूल और पत्थर' के भी गीत लिखे जिनमें एक होली गीत था- ‘लाई है हज़ारों रंग होली, कोई तन के लिये, कोई मन के लिए...’ आइए सुनते हैं इस गीत को।
फिल्म फूल और पत्थर : ‘लाई है हज़ारों रंग होली...’ : आशा भोसले और साथी
सुजॊय- अच्छा जावेद साहब, अब एक आख़िरी सवाल आप से। शक़ील साहब नें जो मशाल जलाई है, क्या उस मशाल को आप या परिवार का कोई और सदस्य उसे आगे बढ़ाने में इच्छुक हैं?
जावेद- मेरी बड़ी बहन रज़ीज़ को पिता जी के गुण मिले हैं और वो बहुत खूबसूरत शायरी करती हैं।
सुजॊय- बहुत-बहुत शुक्रिया जावेद साहब। होली के इस रंगीन पर्व को आप ने शक़ील साहब की यादों से और भी रंगीन किया, और साथ ही उनके लिखे होली गीतों को सुन कर मन ख़ुश हो गया। भविष्य में हम आपसे शक़ील साहब की शख्सियत के कुछ अनछुये पहलुओं पर चर्चा करना चाहेंगे। आपको एक बार फिर होली की हार्दिक शुभकामना देते हुए अब विदा लेते हैं, नमस्कार।
जावेद- आपको और सभी पाठकों / श्रोताओं का बहुत-बहुत शुक्रिया और होली की मुबारकबाद अदा करता हूँ।
तो दोस्तों, होली पर ये थी 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की ख़ास प्रस्तुति
जिसमें हमनें शक़ील बदायूनी के लिखे होली गीत सुनने के साथ-साथ थोड़ी
बातचीत की, उन्हीं के बेटे जावेद बदायूनी से। आपको आपको हमारी यह
प्रस्तुति कैसी लगी, हमें अवश्य लिखिएगा। आपकी प्रतिक्रिया, सुझाव और
समालोचना से हम इस स्तम्भ को और भी सुरुचिपूर्ण रूप प्रदान कर सकते हैं।
सुजॉय चटर्जी की पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ प्राप्त करने के लिए तथा
अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव हमें भेजने के लिए radioplaybackindia@live.com पर अपना सन्देश भेजें। आप सभी को एक बार फिर होली की हार्दिक शुभकामनाएँ, नमस्कार!
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