Skip to main content

26/11 की दर्दनाक यादो को मधुर और भावपूर्ण संगीत का मरहम

प्लेबैक वाणी -36 - संगीत समीक्षा - The Attacks of 26/11


राम गोपाल वर्मा की फिल्मों का अपने दर्शकों के साथ धूप छांव का रिश्ता रहा है, या तो उनकी फ़िल्में ताबड तोड़ व्यवसाय करेंगीं या फिर बॉक्स ऑफिस पर औधें मुँह गिर पड़ेंगीं. पर मज़े की बात ये है कि कोई भी कभी भी RGV को सस्ते में लेने की जुर्रत नहीं कर सकता. ‘नॉट अ लव स्टोरी’ से अपनी फॉर्म में वापस आये RGV अब लाये हैं एक ऐसी फिल्म जिस पर मुझे यकीन है हर किसी की नज़र रहेगी, क्योंकि ये फिल्म एक ऐसे कुख्यात आतंकी हमले का बयान है जिसने देश के हर बाशिंदे को हिलाकर रख दिया था और जिससे हर भारतीय की भावनाएं बेहद गहरे रूप में जुडी हुई है. यूँ तो RGV की फिल्मों में गीतों की बहुत अधिक गुन्जायिश नहीं रहती और अमूमन RGV उन्हें एक व्यावसायिक मजबूरी समझ कर ही अपने स्क्रिप्ट का हिस्सा बनाते हैं, पर चूँकि ये फिल्म एक महत्वपूर्ण फिल्म है इसके संगीत की चर्चा भी लाजमी हो जाती है, तो चलिए आज आपसे बांटे कि कैसा है THE ATTACKS OF 26/11 का संगीत.

एल्बम की शुरुआत एक नौ मिनट लंबी ग़ज़ल के साथ होता है – हमें रंजों गम से फुर्सत न कभी थी न है न होगी. मधुश्री की सुरीली आवाज़ में आरंभिक आलाप पर नाना पाटेकर की सशक्त मगर भावपूर्ण आवाज़ का असर जादूई है और ये जादू अगले नौ मिनट तक बरकरार रहता है. हर मिसरे को पहले नाना की आवाज़ का आधार मिलता है जिसके बाद मधुश्री उसे अपने अंदाज़ में दोहराती है. ग़ज़लों का वापस फिल्मों में आना एक सुखद संकेत है. शब्द संगीत और अदायगी हर बात खूबसूरत है इस नगमें की. इसे लूप में लगाकर आप बार बार सुने बिना आप नहीं रह पायेंगें.

अगला गीत तेज बेस गिटार से खुलता है. मौला मौला देवा देवा फिल्म में तेज रफ़्तार एक्शन को सशक्त पार्श्व प्रदान करेगा. सुखविंदर की दमदार आवाज़ और कोरस का सुन्दर इस्तेमाल गीत को एक तांडव गीत में तब्दील कर देते हैं. रोशन दलाल का संगीत संयोजन जबरदस्त है, और कलगी टक्कर के शब्द सटीक.

जसप्रीत जैज की आवाज़ में ‘आतंकी आये’ आज के दौर का गीत है. हर दौर के संगीत में उस दौर की झलक हम देख सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ए मेरे वतन के लोगों में आप भारत चीन युद्ध के कड़वाहट को महसूस कर पायेंगें, आतंकी आये में आप आज के दौर का खौफ जी पायेंगें. अभी हाल में प्रकाशित एल्बम ‘बीट ऑफ इंडियन यूथ’ में भी एक गीत है मानव बम्ब जो इसी गीत की तरह इस दौर की घातक सच्चाईयों का बयान है, याद रहे जब ऐसे गीत रचे जाते हैं तो रचेताओं के आगे कोई पूर्व सन्दर्भ नहीं होता, जाहिर है नई ज़मीन खोदने के ये प्रयास सराहनीय हैं.

अगला गीत ‘खून खराबा तबाही’ में सूरज जगन की आवाज़ है. सूरज जगन के अब तक के अधिकतर गीत हार्ड रोक्क् किस्म के रहें हैं, पर ये कुछ अलग है. उस खूंखार आतंकी हमले के परिणामों पर कुछ स्वाभाविक सवाल हैं गीत में. पूछ रहा है वो खुदा क्या सच में है ये इंसान....इस एक पंक्ति में गीत का सार है.


रघुपति राघव राजाराम का जिक्र आते ही आपके जेहन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चेहरा उभर कर आता है और गांधी जी के जिक्र के साथ आता है अहिंसा का सिद्धांत. पर ये आतंकी इन सिद्धांतों से कोसों दूर नज़र आते हैं. इस भजन को बहुत ही सुन्दर रूप में इस्तेमाल किया है संगीतकार विशाल और सुशील खोसला ने. भजन का एक और संस्करण भी है जो उतना ही दमदार है.

फिल्म के साउंड ट्रेक को सुनकर इसे देखने की ललक और बढ़ जाती है. एल्बम में हमें रंजों गम से जैसी खूबसूरत ग़ज़ल है तो मौला मौला, आतंकी आये और रघुपति राघव जैसे कुछ अच्छे प्रयोग भी है. रेडियो प्लेबैक दे रहा है इस एल्बम को ३.९ की रेटिंग.     

यदि आप इस समीक्षा को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...