विशेष अंक : भाग 4
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में फिल्म संगीत की भूमिका
'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! मित्रों, इन दिनों हर शनिवार को आप हमारी विशेष श्रृंखला 'भारत के स्वाधीनता संग्राम में फ़िल्म-संगीत की भूमिका' पढ़ रहे हैं। पिछले सप्ताह हमने इस विशेष श्रृंखला का तीसरा भाग प्रस्तुत किया था। आज प्रस्तुत है, इस श्रृंखला का चौथा व अन्तिम भाग।
अब तक आपने पढ़ा -
पहला भाग
द्रितीय भाग
तृतीय भाग
गतांक से आगे...
फ़िल्म जगत के संगीतकारों में एक उल्लेखनीय नाम चित्रगुप्त
का भी रहा है। उनका संगीतकार बनने का सपना तब पूरा हुआ जब ‘न्यू दीपक पिक्चर्स’ के रमणीक वैद्य ने 1946 की दो स्टण्ट
फ़िल्मों में उन्हें संगीत देने का निमन्त्रण दिया। ये फ़िल्में थीं ‘लेडी रॉबिनहुड’ और ‘तूफ़ान क्वीन’। इन दो फ़िल्मों के गीतकार थे क्रम से ए. करीम और श्याम
हिन्दी। दोनों फ़िल्मों के मुख्य कलाकार लगभग एक ही थे – नाडिया,
प्रकाश, शान्ता पटेल, अनन्त
प्रभु प्रमुख। ‘लेडी रॉबिनहुड’ में एक देशभक्ति
गीत था “भारत की नारी जाग उठी, अब होगा
देशोद्धार”। ‘कमल पिक्चर्स, बम्बई’ की ऐतिहासिक फ़िल्म ‘मगधराज’
में मोहनतारा और हमीदा बानो के गाए गीतों के अलावा फ़िरोज़ दस्तूर का गाया
एक देशभक्ति गीत था “जननी जन्म भूमि माता, तेरा नाता, गोद में तेरी खेलने वाले”। फ़िल्म के गीतकार थे पंडित इन्द्र और संगीतकार थे बुलो सी. रानी। ‘के. अब्दुल्ला प्रोडक्शन्स’ के
बैनर तले निर्मित फ़िल्म ‘हमजोली’ में हफ़ीज़
ख़ान का संगीत था और अंजुम पीलीभीती के गीत थे। नूरजहाँ, जयराज
और गुलाम मोहम्मद अभिनीत इस फ़िल्म में नूरजहाँ के गाये अन्य गीतों के अलावा एक
देशभक्ति गीत भी था “ये देश हमारा प्यारा हिन्दुस्तान जहान से
न्यारा, हिन्दुस्तान के हम हैं प्यारे, हिन्दुस्तान हमारा प्यारा”। इस गीत ने
स्वाधीनता संग्राम के उस अंतिम चरण में लोगों के दिल को छूआ ज़रूर होगा, पर उस समय
यह गीत नूरजहाँ के लिए एक उपहास सिद्ध हुआ क्योंकि अगले ही वर्ष स्वाधीनता
के बाद उन्हें हिन्दुस्तान छोड़ पाक़िस्तान जा बसना पड़ा। नूरजहाँ और सुरैया उस ज़माने
की सबसे मशहूर अभिनेत्री-गायिकाएँ थीं। इन दोनों ने साथ में 1946 की मशहूर फ़िल्म ‘अनमोल
घड़ी’ में काम किया था। इसके अलावा एकल रूप से सुरैया इस वर्ष नज़र आईं ‘उमर ख़य्याम’,
‘जग बीती’, ‘भटकती मैना’, ‘उर्वशी’ और ‘1957’ जैसी फ़िल्मों में। ‘1857’ एक ऐतिहासिक/ देशभक्ति फ़िल्म थी जिसका निर्माण ‘मुरारी पिक्चर्स’
के बैनर तले हुआ था। सज्जाद हुसैन के संगीत में फ़िल्म के गीत लिखे
मोहन सिंह, शेवन रिज़वी, पंडित अंकुर और अंजुम पीलीभीती ने। फ़िल्म में एक समूह गीत
था “दिल्ली तेरे क़िले पर होंगे निशां हमारे”। और इसके अगले ही साथ दिल्ली के लाल
क़िले की प्राचीर पर पंडित नेहरू ने तिरंगा फहराया।
1943 में ‘राजकमल कलामन्दिर’
की पहली कामयाब फ़िल्म ‘शकुन्तला’ के बाद 1946 में व्ही. शान्ताराम लेकर आए ‘डॉ. कोटनिस की अमर कहानी’, जिसने
उनकी प्रतिभा का एक बार फिर से लोहा मनवाया। वसन्त देसाई के संगीत में जयश्री का गाया
एक देशभक्ति गीत था “चल आ, चल आ,
ग़ुलामी और नहीं तू जोश में आ, ये देश है तेरा”,
जिसके बोल और धुन मशहूर चीनी रण-गीत ‘चिलाई’ पर आधारित था। ‘राजकमल’
की 1946 की एक और मशहूर फ़िल्म थी ‘जीवन यात्रा’
जिसके मुख्य कलाकार थे नयन तारा, याकूब,
बाबूराव पेण्ढारकर, प्रतिमा देवी प्रमुख। मास्टर
विनायक फ़िल्म के निर्देशक थे। आज़ादी के द्वार पर देश आ पहुँचा था। इसलिए फ़िल्मों में
भी आज़ादी की ख़ुशी के गीत बनने शुरु होने लगे थे। मनमोहन कृष्ण और साथियों का गाया इस
फ़िल्म का एक ऐसा ही गीत था “आओ आज़ादी के गीत गाते चलें,
इक सुनहरा संदेसा सुनाते चलें”। और फिर आया 15
अगस्त 1947 का वह ऐतिहासिक दिन जो भारत के इतिहास का एक सुनहरा दिन बन गया। एक तरफ़
आया ‘Freedom at Midnight’ और दूसरी तरफ़ प्रदर्शित हुई ‘फ़िल्मिस्तान’ की
महत्वाकांक्षी फ़िल्म ‘शहनाई’। यह फ़िल्म बम्बई के नोवेल्टी थिएटर में प्रदर्शित हुई
थी जब पूरा देश आज़ादी की ख़ुशियाँ मना रहा था। ‘शहनाई’
की मंगलध्वनियाँ गली-गली गूंज उठीं अमीरबाई और
शमशाद बेगम की आवाज़ों के साथ फ़िल्म के शीर्षक गीत “हमारे अंगना
हो हमारे अंगना, आज बाजे, बाजे शहनाई”
के रूप में।
ब्रिटिश राज के समाप्त होते ही 1948 में जैसे फ़िल्मों में
देशभक्ति और सर चढ़ कर बोलने लगा। ‘हुआ सवेरा’ शीर्षक से एक फ़िल्म आई, जिसका शीर्षक
ही सब कुछ कह देता है। इस फ़िल्म में संगीतकार ज्ञान दत्त के संगीत में दो विजय गीत
बने – “क़दम-क़दम पे क़ौम ने जो ज़िल्लतें सहीं.... हिन्दोस्ताँ आज़ाद” और “झण्डा हमारा
ये सदा ऊँचा ही रहेगा”। ‘आज़ादी की राह पर’ फ़िल्म
के लगभग सभी गीत देशभक्ति के थे
जैसे कि “जाग उठा है हिन्दुस्तान” (समूह गीत), “मेरे चरखे में जीवन का राग सखि”
(कविता, साथी), “दिल फ़िदा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं” (जी. एम. दुर्रानी), “बदल
रही है ज़िंदगी” (बी. एस. नानजी), “भारत जननी तेरी जय हो, विजय हो” (नानजी,
गान्धारी, साथी) और “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा” (बी. एस.
नानजी, साथी)। साहिर लुधियानवी, राम प्रसाद बिस्मिल और श्याम लाल गुप्त की ये
रचनाएँ थीं। ‘रोशन पिक्चर्स’ ने दो फ़िल्में बनाईं –‘आज़ाद हिन्दुस्तान’ और ‘देश
सेवा’। दोनों के गीत पंडित अनुज ने लिखे और दोनों में संगीत था ए. आर. कुरेशी का। ‘आज़ाद
हिन्दुस्तान’ में संदेश साम्प्रदायिक सदभाव की तरफ़ घूम गया और फ़िल्म में कुछ गीत
थे “हे भारत के नर-नारी, कैसी बिगड़ी दशा तुम्हारी”, “आपस के झगड़े दूर करो, इन्सान
बनो, इन्सान बनो”, “तुम गौर करो, गौर करो, हिन्दू-मुसलमान...”। ‘देश सेवा’ क गीतों
में शामिल थे “जाग उठा है देश हमारा” और “आज़ाद हो गया है हिन्दुस्तान हमारा”। 1934
में ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ संत एकनाथ पर फ़िल्म बनाना चाहते थे ‘महात्मा’ शीर्षक से।
पर महात्मा गांधी से इस शीर्षक की समानता की वजह से ब्रिटिश राज की सम्भावित
आपत्ति को ध्यान में रखते हुए सेन्सर
बोर्ड ने इस शीर्षक की अनुमति नहीं दी,
और अंत में फ़िल्म का नाम रखा गया
‘धर्मात्मा’। पर देश आज़ाद
होते ही 1948 में गांधी जी पर कम से कम दो फ़िल्में बनीं। एक ती ‘पटेल इण्डिया
लिमिटेड, बम्बई’ की वृत्तचित्र ‘गांधीजी और दूसरी थी ‘डॉकुमेण्टरी फ़िल्म लिमिटेड,
मद्रास’ की वृत्तचित्र ‘महात्मा गांधी’। इस फ़िल्म के गीतकार थे बी. राजरतनम, कु.
प्रेमा और यशवंत भट्ट। ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘मजबूर’ में लता मंगेशकर और मुकेश
का गाया नाज़िम पानीपती का लिखा व ग़ुलाम हैदर द्वारा स्वरबद्ध गीत था “अब डरने की
बात नहीं अंग्रेज़ी छोरा चला गया”। इस गीत की कल्पना इसके बनने के एक साल पहले भी
नहीं की जा सकती थी। मास्टर विनायक द्वारा निर्देशित अंतिम फ़िल्म ‘मंदिर’ में भी
दो देश भक्ति गीत थे – “Quit India चले जाओ, हिन्द महासागर की लहरें...” और “जगमग
भारत माँ का मंदिर”। इस फ़िल्म में लता मंगेशकर ने अभिनय किया था। क्या इन दो गीतों
में उनकी आवाज़ शामिल थी, इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है। और इसी साल आई
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के जीवन पर आधारित पहली फ़िल्म ‘शहीद’। ‘फ़िल्मिस्तान’ निर्मित
इस फ़िल्म में दिलीप कुमार बने भगत सिंह। ग़ुलाम हैदर के संगीत में राजा मेहंदी अली
ख़ान का लिखा मोहम्मद रफ़ी, ख़ान मस्ताना और साथियों का गाया देश भक्ति गीत “वतन की
राह में वतन के नौजवान शहीद हों” पूरे देश में आग की तरह फैल गया।
50 और 60
के दशकों में बहुत सी देशभक्ति फ़िल्में बनीं और बहुत से फ़िल्मी देशभक्ति गीत बने,
जिन्हें बेहद कामयाबी और लोकप्रियता हासिल हुई, जो आज तक राष्ट्रीय पर्वों पर बजाये
जाते हैं। अफ़सोस की बात है कि स्वाधीनता संग्राम के दौरान बनने वाले फ़िल्मी
देशभक्ति गीतों को आज हम लगभग भुला चुके हैं और कहीं भी ये सुनाई नहीं देते, जबकि
सच्चाई यह है कि इन्हीं गीतों ने स्वाधीनता संग्राम में देशवासियों में राष्ट्रीय
एकता की उर्जा पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक तरफ़ जनसाधारण में
राष्ट्रीयता के विचार जगाने का दायित्व और दूसरी तरफ़ ब्रिटिश शासन द्वारा प्रतिबंध
का डर। इस कठिन स्थिति में उस दौर के फ़िल्मकारों ने जो सराहनीय योगदान दिया है, इस
लेख के माध्यम से उन्हें हम झुक कर प्रणाम करते हैं। हमारे स्वाधीनता संग्राम के
इतिहास में इन फ़िल्मी कलाकारों के योगदान को भी सम्माननीय स्थान मिलना ही चाहिए।
समाप्त
आपको हमारा यह विशेष अंक कैसा लगा, हमे अवश्य लिखिए। आपका प्रिय साप्ताहिक स्तम्भ ‘सिने-पहेली’ बहुत जल्द नई साज-धज के साथ पुनः आरम्भ होगा। आज के इस विशेष अंक के बारे में आप अपने विचार हमे radioplaybackindia@live.com के पते पर अवश्य अवगत कराएँ।
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
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