Skip to main content

Raagmaala 2 उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ के जन्मदिवस पर विशेष



स्वरगोष्ठी – 112 में आज


रागों के रंग रागमाला गीत के संग - 2

फिल्म 'गूँज उठी शहनाई 'के रागमाला गीत में दो उस्तादों की अनूठी जुगलबन्दी


आज ‘स्वरगोष्ठी’ के एक ताज़ा अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में एक और रागमाला गीत लेकर उपस्थित हुआ हूँ। आज का यह रागमाला गीत हमने 1959 में प्रदर्शित संगीत-प्रधान फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ से लिया है। यह गीत दो कारणों से आज के अंक को विशेष बनाता है। पहली विशेषता यह है कि इसे भारतीय संगीत-जगत के दो दिग्गज उस्तादों- उस्ताद अमीर खाँ और उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने जुगलबन्दी के रूप में प्रस्तुत किया है। दूसरी विशेषता यह है कि आगामी गुरुवार, 21 मार्च को शहनाई-वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की 98वीं जयन्ती है। रागमाला का यह गीत आज हम उन्हीं उस्ताद शहनाईनवाज़ को स्वरांजलि-स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं।


बसन्त देसाई
र्ष 1959 में प्रदर्शित संगीत-प्रधान फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ का कथानक एक प्रेम त्रिकोण पर आधारित है, परन्तु फिल्म का नायक किशन (राजेन्द्र कुमार) सांगीतिक प्रतिभा से सम्पन्न कुशल शहनाईवादक भी है। फिल्म में किशन की बाल्यावस्था में संगीत के प्रति ललक और संगीत-गुरु रघुनाथ महाराज (अभिनेता उल्हास) के मार्गदर्शन से एक कुशल शहनाईवादक बनने की दास्तान है। फिल्म के संगीतकार बसन्त देसाई ने इस फिल्म में एक से बढ़ कर एक राग आधारित गीतों का संयोजन किया था। चूँकि फिल्म का कथानक एक शहनाईवादक के चरित्र पर केन्द्रित है इसलिए बसन्त देसाई ने अपने समय के दिग्गज शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और वाराणसी के ही युवा शहनाईवादक रामलाल को भी फिल्म से सम्बद्ध किया गया था। यही नहीं, संगीत के इन्दौर घराने के संस्थापक और वाहक उस्ताद अमीर खाँ को फिल्म में गायन के लिए राजी कर लिया गया। संगीतकार बसन्त देसाई स्वयं भी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अत्यन्त कुशल थे और जब उनके साथ जब इन दिग्गज कलाकारों का साथ मिला तब फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ के लिए कई अविस्मरणीय और कालजयी गीतों की रचना हुई। इन्हीं गीतों में से एक रागमाला गीत भी है, जिसकी चर्चा आज हम आपसे कर रहे हैं।

फिल्म में इस रागमाला गीत का उपयोग उस प्रसंग में किया गया है, जब एक अनाथ बालक किशन, मन्दिर के एक कोने में छिप कर, देव-प्रतिमा के सम्मुख साधनारत संगीत के प्रकाण्ड पण्डित रघुनाथ महाराज के स्वरों का अपनी शहनाई पर अनुकरण करने का प्रयत्न करता है। किशन की शहनाई के स्वर कानों में पड़ते ही पण्डित रघुनाथ महाराज अपने उस एकलव्य जैसे शिष्य की प्रतिभा को पहचान लेते हैं और उसे अपना शिष्य बना कर विधिवत संगीत की शिक्षा देने लगते हैं। आज का रागमाला गीत इसी प्रसंग से जुड़ा है। यह गीत, गायन और शहनाईवादन की जुगलबन्दी के रूप में है। गुरु रघुनाथ महाराज गायन के लिए उस्ताद अमीर खाँ ने कण्ठस्वर दिया है, जब कि शिष्य किशन के लिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई बजाई है। गीत में क्रमशः भटियार, रामकली, देशी, शुद्ध सारंग, मुल्तानी, यमन, बागेश्री और चन्द्रकौंस रागों का प्रयोग किया गया है। रागों के समय सिद्धान्त के अनुसार ही यह क्रम रखा गया है। पहला राग भटियार सूर्योदय का राग है। समय के अनुसार ही क्रमशः आगे बढ़ते हुए मध्यरात्रि के राग चन्द्रकौंस से गीत को विराम दिया गया है।

उस्ताद अमीर खाँ
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ
इस रागमाला गीत का आरम्भ मन्दिर के दृश्य से होता है, जहाँ देव-प्रतिमा के सम्मुख गुरु रघुनाथ महाराज संगीत-साधना के अन्तर्गत प्रातःकाल के राग भटियार की एक रचना- ‘निसदिन न बिसरत मूरत तिहारी...’ का गायन कर रहे हैं। वहीं मन्दिर के दूसरे कोने में बालक किशन शहनाई पर रघुनाथ महाराज के स्वरों की अनुकृति करने का प्रयास करता है। महाराज के कानों में अचानक शहनाई का मधुर स्वर पड़ता है और वे किशन के पास जाकर उसकी प्रतिभा की सराहना करते हैं और उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार कर लेते हैं। अगला राग रामकली है, जिसे महाराज के घर के अभ्यास कक्ष में फिल्माया गया है। इस प्रसंग में महाराज पहले राग रामकली में एक पंक्ति गाते हैं और फिर किशन उन्हीं स्वरों को शहनाई पर बजाता है। अचानक गुरु महाराज राग देशी की सरगम गुनगुनाते है। देशी के बाद राग शुद्ध सारंग के स्वरों में आलाप और शहनाईवादन साथ-साथ होता है। इसके बाद महाराज राग मुल्तानी की एक बन्दिश- ‘बलमा तुम संग लागली प्रीत...’ गाते हैं। मुल्तानी के बाद राग यमन की बारी आती है। इस राग की एक प्रचलित बन्दिश ‘अवगुण न कीजिए गुणी संग...’ के साथ महाराज किशन से कुछ सरल तानों का अभ्यास कराते हैं। अचानक गुरु महाराज राग बागेश्री का सरगम आरम्भ कर देते हैं। रागमाला गीत के इस भाग में उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने कुछ जटिल ताने बजाई हैं। अन्त में राग चन्द्रकौंस का तराना प्रस्तुत किया जाता है और गीत के इसी भाग में किशन एक परिपक्व युवक (अभिनेता राजेन्द्र कुमार) और शहनाईवादक के रूप में परिलक्षित होता है। आइए, अब हम आपको फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ का आठ रागों में गुथा हुआ यह रागमाला गीत सुनवाते हैं। इस गीत में उस्ताद अमीर खाँ के कण्ठस्वर और उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई की जुगलबन्दी की गई है।


रागमाला गीत : भटियार, रामकली, देशी, शुद्ध सारंग, मुल्तानी, यमन, बागेश्री और चन्द्रकौंस : उस्ताद अमीर खाँ और उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ



आज की पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 112वें अंक की पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली के 120वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?

2 – यह गीत किस ताल में निबद्ध किया गया है?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 114वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से या swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता 


‘स्वरगोष्ठी’ के 110वें अंक में हमने आपको 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ के रागमाला में पिरोए एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग बहार और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- फिल्म संगीत सम्राट तानसेन। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने दिया है। बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने केवल दूसरे प्रश्न का ही सही उत्तर दिया है, अतः इन्हें एक अंक ही मिलते हैं। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।

इसी अंक की पहेली के साथ वर्ष 2013 की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) भी पूर्ण हुई है। इस श्रृंखला में सर्वाधिक 16.5 अंक प्राप्त कर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने प्रथम स्थान, 16 अंक पाकर जबलपुर की क्षिति तिवारी ने द्वितीय स्थान और 15.5 अंक पाकर बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने तृतीय स्थान प्राप्त किया है। तीनों विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


झरोखा अगले अंक का 


मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ पर पिछले अंक से हमने आपके अनुरोध पर ‘रागमाला’ शीर्षक से लघु श्रृंखला आरम्भ की है। परन्तु अगला अंक रंग और उल्लास के पर्व, होली से ठीक पहले पड़ने वाले रविवार को प्रकाशित होगा, इसलिए ‘स्वरगोष्ठी’ का अगला अंक रस-रंग से भरपूर होली पर केन्द्रित होगा। भारतीय संगीत की विभिन्न शैलियों में होली का चित्रण जिस प्रकार हुआ है, अगले अंक में हम ऐसे ही कुछ उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। रविवार, 24 मार्च को हम इस विशेष अंक के साथ उपस्थित होंगे। प्रत्येक रविवार को प्रातः साढ़े नौ बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ उपस्थित होते हैं। आप सब संगीत-प्रेमियों से अनुरोध है कि इस सांगीतिक अनुष्ठान में आप भी हमारे सहभागी बनें। आपके सुझाव और सहयोग से हम इस स्तम्भ को और अधिक उपयोगी स्वरूप प्रदान कर सकते हैं।

प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र


Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट