स्वरगोष्ठी – ६४ में आज
आप सभी पाठकों-श्रोताओं को रामनवमी के पावन पर्व पर शत-शत बधाई। मित्रों, पिछले दो अंकों में आप चैती गीतों के विविध प्रयोग और प्रकार पर की गई चर्चा के सहभागी थे। पिछले अंक में मैंने यह उल्लेख किया था कि इस ऋतु-प्रधान गीतों के तीन प्रकार- चैती, चैता और घाटो, गाये जाते हैं। आज के अंक में हम आपसे चैता और घाटो पर चर्चा करेंगे।
‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी चैत्र मास के संगीत की हमारी श्रृंखला का यह तीसरा भाग है। अपने सभी पाठकों और श्रोताओं का आज रामनवमी के पावन पर्व के दिन आयोजित इस गोष्ठी में कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक स्वागत है। पिछले दो अंकों में हमने चैत्र मास में गायी जाने वाली संगीत विधा पर आपसे चर्चा की थी। चैती लोक संगीत की विधा होते हुए ठुमरी अंग में भी बेहद प्रचलित है। चैती के दो और भी प्रकार हैं, जिन्हें चैता और घाटो कहा जाता है। चैती गीतों का उपशास्त्रीय रूपान्तरण अत्यन्त आकर्षक होता है। परन्तु चैता और घाटो अपने मूल लोक-स्वरूप में ही लुभाते हैं। आज हम पहले आपको एक पारम्परिक चैता सुनवाएँगे। चैता और घाटो प्रायः समूह में और पुरुष-स्वर में प्रस्तुत किया जाता है, किन्तु पहले हम आपको युवा लोक-गायक मोहन राठौड़ के एकल स्वरों में चैता सुनवा रहे हैं।
चैत्र मास में गाये जाने वाले चैती, चैता और घाटो गीतों के बारे में अवधी लोकगीतों के विद्वान राधाबल्लभ चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में लिखा है- ‘यह गीत विशेषतया चैत्र मास में गाया जाता है। प्रायः ठुमरी गायक भी इसे गाते हैं। इस गीत की शुरुआत चाँचर ताल में होती है और बाद में कहरवा ताल में दौड़ होती है। कुछ आवर्तन के बाद पुनः चाँचर ताल में आ जाते हैं। यही क्रम चलता रहता है।’ चैता और घाटो गीतों की विशेषता का उल्लेख करते हुए लोक-गीतो के विद्वान डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय ने अपने ग्रन्थ ‘भोजपुरी लोक-गीत’ के पहले भाग में लिखा है- ‘ऋतु परिवर्तन के बाद चैती, चैता और घाटो गीतों का गायन चित्त को आह्लादित कर देता है। इन गीतों के गाने का ढंग भी बिलकुल निराला होता है इसके आरम्भ में “रामा” और अन्त में “हो रामा” शब्द का प्रयोग किया जाता है। भोजपुरी गीतों में चैता अपनी मधुरिमा और कोमलता का सानी नहीं रखता।’ आइए, अब हम आपको एक चैता गीत का गायन समूह में सुनवाते हैं। इसे उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल में स्थित सांस्कृतिक संगम, सलेमपुर के सदस्यों ने किया है। इस चैता गीत में लोक साहित्य का मोहक प्रयोग किया गया है। गीत के आरम्भिक पंक्तियों का भाव है- ‘चैत्र के सुहाने मौसम में अन्धकार में ही अँजोर अर्थात भोर के उजाले का भ्रम हो रहा है।’
चैती, चैता और घाटो गीतों के विषय मुख्यतः भक्ति और श्रृंगार रस-प्रधान होते हैं। भारतीय पञ्चांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (पहली तिथि) से नया वर्ष शुरू होता है। नई फसल के घर आने का भी यही समय होता है जिसका उल्लास इन गीतों में प्रकट होता है। मुख्य उत्सव चैत्र नवरात्र प्रतिपदा के दिन से शुरू होता है और नवमी के दिन राम-जन्मोत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है। इन गीतों में राम-जन्म का प्रसंग भी लौकिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसके अलावा नायिका की विरह-व्यथा का चित्रण भी इन गीतों में होता है। कुछ गीतों का साहित्य पक्ष इतना सबल होता है कि श्रोता संगीत और साहित्य के सम्मोहन में बँध कर रह जाता है। पटना की लोक-संगीत-विदुषी विंध्यवासिनी देवी रचित एक गीत में अलंकारों का प्रयोग देखें- 'चाँदनी चितवा चुरावे हो रामा, चैत के रतिया ....'। इस गीत की अगली पंक्ति का श्रृंगार पक्ष तो अनूठा है- 'मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले, मधुर पवन अलसावे हो रामा...'। आइए, अब थोड़ी चर्चा घाटो गीत की हो जाए।
घाटो के विषय में लोक-गीत-विद राधाबल्लभ चतुर्वेदी ने ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में लिखा है- ‘घाटो ध्रुवपद संगीत के समान है। इसमें ध्रुवपद सा गाम्भीर्य होता है। इसका तीनों सप्तकों- मन्द्र, मध्य और तार, में विस्तार किया जाता है। जब शत-शत स्त्री-पुरुष मिल कर घाटो गाते हैं तो इसका रस-माधुर्य और भी बढ़ जाता है। यह पहले चाँचर और फिर कहरवा ताल में गाया जाता है।’ अब हम आपके लिए भोजपुरी का एक घाटो समूह स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। इस गीत में विरह-व्यथा से व्याकुल नायिका का चित्रण है।
चैत्र मास के गीतों की तीन अंकों की इस श्रृंखला का समापन हम एक फिल्मी चैती गीत से करेंगे। हमारे कई पाठकों ने इस गीत की फरमाइश की है। दरअसल इस गीत का प्रयोग भोजपुरी फिल्म ‘बिदेशिया’ में किया गया था, जिसके गीतकार राममूर्ति चतुर्वेदी और संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी थे। फिल्म 'बिदेशिया' में इस चैती गीत का प्रयोग एक नए ढंग से किया गया था। फिल्म में यह लोक-नाट्य नौटंकी के रूप में प्रयोग हुआ है। आप चैती का यह अनूठा प्रयोग सुनिए और हमें आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।अगले रविवार को प्रातः एक नए विषय के साथ हम आपकी गोष्ठी में पुनः उपस्थित होंगे।
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, 1966 की एक फिल्म ‘मेरा साया’ से लिये गए गीत का अंश। संगीत के इस अंश को सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ७०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी दूसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – इस गीत के संगीतकार कौन हैं? संगीतकार का नाम बताइए।
२ – यह गीत किस राग पर आधारित है? राग का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ६६वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के ६२वें अंक में हमने आपको १९६३ में प्रदर्शित हिन्दी फिल्म ‘गोदान’ का एक चैती गीत सुनवा कर आपसे संगीतकार का नाम और राग का नाम पूछा था, जिस पर यह गीत आधारित है। दोनों प्रश्नों के क्रमशः सही उत्तर हैं- संगीतकार पण्डित रविशंकर और राग तिलक कामोद। दोनों प्रश्न का सही उत्तर इन्दौर की क्षिति तिवारी और बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर हार्दिक बधाई। इनके साथ ही उन सभी संगीत-प्रेमियों का हम आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होने ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक को पसन्द किया।
‘स्वरगोष्ठी’ का आगामी अंक भारतीय संगीत के एक ऐसे साधक के व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति समर्पित होगा जिन्हें अपने प्रयोगधर्मी कार्यों से देश-विदेश में अपार ख्याति मिली थी। इस अनूठे कलासाधक को हम कुमार गन्धर्व के नाम से जानते हैं। हमारा अगला अंक ८ अप्रैल को उनकी जयन्ती के अवसर पर प्रस्तुत होगा। आप सभी संगीत-प्रेमी सादर आमंत्रित हैं।
कृष्णमोहन मिश्र
‘हे रामा असरा में भीजे आँखी के कजरवा...’
आप सभी पाठकों-श्रोताओं को रामनवमी के पावन पर्व पर शत-शत बधाई। मित्रों, पिछले दो अंकों में आप चैती गीतों के विविध प्रयोग और प्रकार पर की गई चर्चा के सहभागी थे। पिछले अंक में मैंने यह उल्लेख किया था कि इस ऋतु-प्रधान गीतों के तीन प्रकार- चैती, चैता और घाटो, गाये जाते हैं। आज के अंक में हम आपसे चैता और घाटो पर चर्चा करेंगे।
एकल चैता : ‘हे रामा असरा में भीजे आँखी के कजरवा...’ : स्वर – मोहन राठौड़
चैत्र मास में गाये जाने वाले चैती, चैता और घाटो गीतों के बारे में अवधी लोकगीतों के विद्वान राधाबल्लभ चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में लिखा है- ‘यह गीत विशेषतया चैत्र मास में गाया जाता है। प्रायः ठुमरी गायक भी इसे गाते हैं। इस गीत की शुरुआत चाँचर ताल में होती है और बाद में कहरवा ताल में दौड़ होती है। कुछ आवर्तन के बाद पुनः चाँचर ताल में आ जाते हैं। यही क्रम चलता रहता है।’ चैता और घाटो गीतों की विशेषता का उल्लेख करते हुए लोक-गीतो के विद्वान डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय ने अपने ग्रन्थ ‘भोजपुरी लोक-गीत’ के पहले भाग में लिखा है- ‘ऋतु परिवर्तन के बाद चैती, चैता और घाटो गीतों का गायन चित्त को आह्लादित कर देता है। इन गीतों के गाने का ढंग भी बिलकुल निराला होता है इसके आरम्भ में “रामा” और अन्त में “हो रामा” शब्द का प्रयोग किया जाता है। भोजपुरी गीतों में चैता अपनी मधुरिमा और कोमलता का सानी नहीं रखता।’ आइए, अब हम आपको एक चैता गीत का गायन समूह में सुनवाते हैं। इसे उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल में स्थित सांस्कृतिक संगम, सलेमपुर के सदस्यों ने किया है। इस चैता गीत में लोक साहित्य का मोहक प्रयोग किया गया है। गीत के आरम्भिक पंक्तियों का भाव है- ‘चैत्र के सुहाने मौसम में अन्धकार में ही अँजोर अर्थात भोर के उजाले का भ्रम हो रहा है।’
चैता गीत : ‘चुवत अँधेरवें अँज़ोर हो रामा चैत महिनवाँ...’ : समूह स्वर
चैती, चैता और घाटो गीतों के विषय मुख्यतः भक्ति और श्रृंगार रस-प्रधान होते हैं। भारतीय पञ्चांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (पहली तिथि) से नया वर्ष शुरू होता है। नई फसल के घर आने का भी यही समय होता है जिसका उल्लास इन गीतों में प्रकट होता है। मुख्य उत्सव चैत्र नवरात्र प्रतिपदा के दिन से शुरू होता है और नवमी के दिन राम-जन्मोत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है। इन गीतों में राम-जन्म का प्रसंग भी लौकिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसके अलावा नायिका की विरह-व्यथा का चित्रण भी इन गीतों में होता है। कुछ गीतों का साहित्य पक्ष इतना सबल होता है कि श्रोता संगीत और साहित्य के सम्मोहन में बँध कर रह जाता है। पटना की लोक-संगीत-विदुषी विंध्यवासिनी देवी रचित एक गीत में अलंकारों का प्रयोग देखें- 'चाँदनी चितवा चुरावे हो रामा, चैत के रतिया ....'। इस गीत की अगली पंक्ति का श्रृंगार पक्ष तो अनूठा है- 'मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले, मधुर पवन अलसावे हो रामा...'। आइए, अब थोड़ी चर्चा घाटो गीत की हो जाए।
घाटो के विषय में लोक-गीत-विद राधाबल्लभ चतुर्वेदी ने ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में लिखा है- ‘घाटो ध्रुवपद संगीत के समान है। इसमें ध्रुवपद सा गाम्भीर्य होता है। इसका तीनों सप्तकों- मन्द्र, मध्य और तार, में विस्तार किया जाता है। जब शत-शत स्त्री-पुरुष मिल कर घाटो गाते हैं तो इसका रस-माधुर्य और भी बढ़ जाता है। यह पहले चाँचर और फिर कहरवा ताल में गाया जाता है।’ अब हम आपके लिए भोजपुरी का एक घाटो समूह स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। इस गीत में विरह-व्यथा से व्याकुल नायिका का चित्रण है।
घाटो गीत : 'नाहिं मिले पिया की खबरिया हे रामा...' : समूह स्वर
चैत्र मास के गीतों की तीन अंकों की इस श्रृंखला का समापन हम एक फिल्मी चैती गीत से करेंगे। हमारे कई पाठकों ने इस गीत की फरमाइश की है। दरअसल इस गीत का प्रयोग भोजपुरी फिल्म ‘बिदेशिया’ में किया गया था, जिसके गीतकार राममूर्ति चतुर्वेदी और संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी थे। फिल्म 'बिदेशिया' में इस चैती गीत का प्रयोग एक नए ढंग से किया गया था। फिल्म में यह लोक-नाट्य नौटंकी के रूप में प्रयोग हुआ है। आप चैती का यह अनूठा प्रयोग सुनिए और हमें आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।अगले रविवार को प्रातः एक नए विषय के साथ हम आपकी गोष्ठी में पुनः उपस्थित होंगे।
फिल्म – बिदेशिया : 'बनि जईहों बन के जोगिनियाँ हो रामा...' : स्वर – सुमन कल्याणपुर
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, 1966 की एक फिल्म ‘मेरा साया’ से लिये गए गीत का अंश। संगीत के इस अंश को सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ७०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी दूसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – इस गीत के संगीतकार कौन हैं? संगीतकार का नाम बताइए।
२ – यह गीत किस राग पर आधारित है? राग का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ६६वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ६२वें अंक में हमने आपको १९६३ में प्रदर्शित हिन्दी फिल्म ‘गोदान’ का एक चैती गीत सुनवा कर आपसे संगीतकार का नाम और राग का नाम पूछा था, जिस पर यह गीत आधारित है। दोनों प्रश्नों के क्रमशः सही उत्तर हैं- संगीतकार पण्डित रविशंकर और राग तिलक कामोद। दोनों प्रश्न का सही उत्तर इन्दौर की क्षिति तिवारी और बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर हार्दिक बधाई। इनके साथ ही उन सभी संगीत-प्रेमियों का हम आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होने ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक को पसन्द किया।
झरोखा अगले अंक का
‘स्वरगोष्ठी’ का आगामी अंक भारतीय संगीत के एक ऐसे साधक के व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति समर्पित होगा जिन्हें अपने प्रयोगधर्मी कार्यों से देश-विदेश में अपार ख्याति मिली थी। इस अनूठे कलासाधक को हम कुमार गन्धर्व के नाम से जानते हैं। हमारा अगला अंक ८ अप्रैल को उनकी जयन्ती के अवसर पर प्रस्तुत होगा। आप सभी संगीत-प्रेमी सादर आमंत्रित हैं।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
१ – इस गीत के संगीतकार कौन हैं? संगीतकार का नाम बताइए। Madan MOhan.
२ – यह गीत किस राग पर आधारित है? राग का नाम बताइए। Raga Kalyan.
Archana Tandon
Patana