गोलियों की बरसात उसे छू भी नहीं पाती, उसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, वो भेष बदल कर किसी को भी चकमा दे देता है, देश और दुनिया को बचाने के लिए वो जान पर भी खेल जाता है. ये हैं फ़िल्मी जासूस. जासूसी फिल्मों का ये जोनर हमारी हिंदी फिल्मों में बेहद कंजूसी से इस्तेमाल हुआ है जबकि होलीवुड में इनकी भरमार है जहाँ बोंड, होक और हिच्कोक दर्शकों को सालों से मनोरजन दे रहे हैं. कुछ दिनों पहले प्रदर्शित एजेंट विनोद ने नए सिरे से हमारे लिए इस जोनर को परिभाषित किया, चलिए जरा गुजरे ज़माने में झाके और देखें की किन किन जासूसो ने इससे पहले हमारे दिलों पर राज़ किया है.
स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’ और बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...
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बस एक छोटी सी गुज़ारिश - ब्लॉग बुलेटिन