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बोलती कहानियाँ - मेले का ऊँट - बालमुकुन्द गुप्त

 'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने रीतेश खरे "सब्र जबलपुरी" की आवाज़ में निर्मल वर्मा की डायरी ' धुंध से उठती धुंध ' का अंश "क्या वे उन्हें भूल सकती हैं का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं बालमुकुन्द गुप्त का व्यंग्य "मेले का ऊँट, जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने।

इस प्रसारण का कुल समय 7 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।

समझ इस बात को नादां जो तुम में कुछ भी गैरत हो,
न कर उस काम को हरगिज कि जिसमें तुझको जिल्लत हो।
 ~  "बालमुकुन्द गुप्त" (1865 - 1907)

हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी

न जाने आप घर से खाकर गये थे या नहीं ...
(बालमुकुन्द गुप्त की "मेले का ऊँट" से एक अंश)

नीचे के प्लेयर से सुनें.

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3

 #Twelfth Story, Mele Ka Oont: Baba Bal Mukund Gupta/Hindi Audio Book/2012/12. Voice: Archana Chaoji

Comments

कथा से पहले कथाकार का संक्षिप्त परिचय अच्छी परम्परा है।
Archana Chaoji said…
शुक्रिया!
Smart Indian said…
बढिया वाचन. गुप्त जी के बारे में पहली बार जानने को मिला. आभार!
Manisha Goswami said…
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक समीक्षा सर
Anonymous said…
जितना भी ये लिखना कहना सुनना है, इसके पीछे का क्या कारण है, जीवन में इसका क्या लाभ, वो तो इन भोटिक दर्शनों और मत से नहीं समझा जा सकता, क्योंकि केवल कोरी भावुकता ही काफी नहीं, अध्यात्म के गुह्य विषयों का ज्ञान भी अवश्यक है, जिसका केवल व्यंग मात्रा ही ना किया जाए, क्योंकि व्यंग नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है, बदला नहीं लाता। दूसरों की कृतियों में आलोचना करने से पहले, हमें स्वयं को सुधारना चाहिए, क्योंकि जो दृष्टि दूसरो में कम दिखती है, वो कितनी गंदी होती होगी, क्योंकि इस आलोचना से आसान कार्य और कुछ भी नहीं है... मैं इस परंपरा पर थूकता हूं

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