Skip to main content

1 मार्च - आज का गाना


गाना: तेरी आँखें भूल भुलैया


चित्रपट:भूल भुलैया
संगीतकार:प्रीतम चक्रवर्ती
गीतकार:समीर
गायक: 
नीरज श्रीधर





तेरी आँखें भूल भुलैया
बातें हैं भूल भुलैया
तेरे सपनों की गलियों में
आई कीप लुकिंग फोर यू बेबी..

तेरी आँखें भूल भुलैया
बातें हैं भूल भुलैया
तेरे सपनों की गलियों में
यू कीप ड्राविंग मी सो क्रेजी...

दिल में तू रेहती है...
बेताबी केहती है...
आई कीप प्रेइन आल डे .. ऑल डे ऑल नाइट लाँग

हरे राम हरे राम हरे कृष्ण हरे राम (4)

तू मेरी खामोशी है
तू मेरी मदहोशी है
तू मेरा है अफसाना

तू है आवारा धड़कन ...
तू है इस रातों कि तड़पन ...
तू है मेरी दिल जाना

तेरी ज़ुल्फों के नीचे मेरे ख़्वाबों कि जन्नत
तेरी बाहों में एक बेचैनी को मिलती राहत
माई ओन्ली विश इस इफ आई एवर एवर कुड मेक यू माइन
एवरी वन इस प्रेइन विद मी नाऊ ऑल डे ऑल नाइट लाँग

हरे राम हरे कृष्ण हरे राम (4)

तेरे वादे पे जीना तेरी कसमों पे मरना बाकी अब कुछ ना करना
चाहे जागा या सोया दीवानापन में खोया
दुनिया से अब क्या डरना
तेरे एहसासों की गहराई में डूबा रहता
तू मेरि जान बन जाये हर लम्हा रब से केहता हूँ

एव्रीवन इस टॉल्किंग अबाउट अस लाइक एवर आइ डू
माई लव इस रॉकिंग बेबी कमॉन नाउ कमॉन

हरे राम हरे राम हरे कृष्ण हरे राम

तेरी आँखें भूल भुलैया
बातें हैं भू भुलैया
तेरे सपनों की गलियों में
आई कीप लुकिंग फॉर यू बेबी

तेरी आँखें भूल भुलैया
बातें हैं भूल भुलैया
तेरे सपनों की गलियों में
यू कीप ड्राविंग मी सो क्रेजी...

दिल में तू ही रहती है
बेताबी कहती है
आई कीप प्रेइन आल डे... ऑल डे ऑल नाइट लाँग

हरे राम हरे राम हरे कृष्ण हरे राम (4)





Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट