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चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक...प्रेम धवन ने लिखा इस फ़साने को, स्वर दिया लता ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 676/2011/116

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! आज रविवार की शाम इस स्तंभ में एक नई सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं। आजकल इसमें जो शृंखला चल रही है, उसमें हम आपको केवल गीत ही नहीं, बल्कि कहानियाँ भी सुनवा रहे हैं। 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' शृंखला आधारित है उन गीतों पर जिनमें कही गई है किस्से-कहानियाँ। पाँच कहानियाँ हम पिछले हफ़्ते सुन चुके हैं, और आज से अगले पाँच अंकों में हम सुनने जा रहे हैं पाँच और दिलचस्प कहानियाँ। किदार शर्मा, मुंशी अज़ीज़, कमर जलालाबादी, हसरत जयपुरी और मजरूह सुल्तानपुरी के बाद आज बारी है प्रेम धवन साहब की। धवन साहब नें आज के गीत के रूप में जो कहानी लिखी है, उसमें एक राजा है, एक रानी है, एक घोड़ा है, और एक डायन जादूगरनी भी है। किसी फ़िल्म की ही तरह यह कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। इस कहानी को आगे हम बताने वाले हैं, लेकिन उससे पहले आपको यह बता दें कि इस कहानी के सभी किरदारों को फ़िल्म की नायिका मीना कुमारी ही अभिनय के द्वारा दर्शाती है। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, मीना जी भी अपनी बॉडी-लैंगुएज से, अपने एक्स्प्रेशन से, अपने बालों से, और तमाम चीज़ों से हर किरदार को जीवन्त कर देती हैं। और कहानी जैसे जी उठती है। बाल-कलाकार के रूप में बेहद मशहूर हनी ईरानी इस फ़िल्म में मीना कुमारी के बेटे का रोल निभाती है, और इस गीत में कहानी भी उसी को सुनाया जा रहा है। गीत के उस हिस्से में जब मीना कुमारी अपने पति की रक्षा हेतु ईश्वर से प्रार्थना करती है, हनी भी भक्ति-भावना से आगे-पीछे डोल डोल कर ईश्वर से प्रार्थना करती है। बहुत ही क्युट लगती है, और मीना कुमारी भी उसे देख हँस देती हैं।

उधर लता जी नें भी इस गीत में जान फूंकी हैं। कहानी के हर किरदार के लिये अलग एक्स्प्रेशन लाकर विविधता से भर दिया है गीत को। संगीतकार रवि के संगीत का भी जवाब नहीं। १९५५ में बच्चों वाली ही एक फ़िल्म 'वचन' में उन्होंने "चंदा मामा दूर के" गीत रच कर प्रसिद्धी हासिल की थी। अरे अरे अरे, देखिये, इन सब बातों के बीच मैं यह कहना तो भूल ही गया कि आज हम गीत कौन सा सुनने जा रहे हैं। आज हम लाये हैं १९५९ की फ़िल्म 'चिराग कहाँ रोशनी कहाँ' से "चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक"। इस गीत में शामिल कहानी यह रही -

बहुत दिनों की बात है,
एक था राजा एक थी रानी,
राजा-रानी के घर में था राजकुमार एक प्यारा,
एक के दिल का टुकड़ा था वो,
एक की आँख का तारा।

एक दिन राजा का मन चाहा,
चल कर करें शिकार,
निकल पड़ा वो होकर
एक नन्हे घोड़े पे सवार।

और मालूम है वो क्या कहता जा रहा था?
चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक,
रुकने का तू नाम न लेना,
चलना तेरा काम।

चलते चलते उसके आगे आया एक पहाड़,
राजा मन ही मन घबराया,
कैसे होगा पार।
इतने में एक पंछी बोला
अपने पंख उतार,
पंख बने हैं ये हिम्मत के,
ले और होजा पार।
पंख लगा कर घोड़े को राजा ने एड़ लगायी,
देने लगी हवाओं में फिर ये आवाज़ सुनाई,
चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक।

ले कर राजा को एक बन में,
आया नीला घोड़ा,
देख के एक चंचल हिरणी को,
उसके पीछे दौड़ा।
लेकिन पास जो पहुँचा तो
देखो क़िस्मत की करनी,
रूप में उस चंचल हिरणी के
निकली जादूगरनी।
पलट के जादूगरनी ने
जादू का तीर जो छोड़ा,
तोता बन कर रह गया राजा
पत्थर बन कर घोड़ा।
फिर राजा कैसे कहता,
चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक।

इधर महल में राह देखते
व्याकुल हो गई रानी,
राजकुमार के कोमल मुख पर
भी छायी वीरानी।
तब ईश्वर से दोनों ने
रो रो कर करी पुकार,
दे दे हमें हमारा राजा
जग के पालनहार रे,
ओ जग के पालनहार रे।

सुन कर उनकी बिनती
दूर गगन में ज्वाला भड़की,
जादूगरनी के सर पर एक ज़ोर की बिजली कड़की।
तोते से फिर निकला राजा,
और पत्थर से घोड़ा,
राजमहल की ओर वो पूरा ज़ोर लगाकर दौड़ा।
और बोला
चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक।

देख के राजा को आते
रानी फूली न समायी,
राजमहल के द्वार पे झटपट
दौड़ी दौड़ी आयी।
राजा आया राजा आया
बोला राजकुमार,
अपने हाथों से रानी ने जाकर खोला द्वार।




क्या आप जानते हैं...
कि देवेन्द्र गोयल नें रवि को 'वचन' में पहला मौका दिया था, और इस पचास के दशक में गोयल साहब की कई फ़िल्मों में रवि का संगीत था, जैसे कि 'अलबेली', 'एक साल', 'चिराग कहाँ रोशनी कहाँ', और 'नई राहें'।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 7/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान .
सवाल १ - किस बच्चे ने प्रमुख गायक का साथ दिया है - ३ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी टिपण्णी बहुत कुछ कह गयी है, बहरहाल हमने आवाज़ पर अब तक न किसी खास फनकार का फेवर किया है न किसी खास श्रोता का. ये एक परंपरा है जिसे मैंने खुद और मेरे सभी साथियों ने हमेशा संभाला है. शायद यही वजह है कि आवाज़ आज इस हद तक लोकप्रिय है. दरअसल जब ओल्ड इस गोल्ड शुरू किया था तो इसका समय ६ से ७ के बीच रखा गया था, ताकि सुविधा अनुसार पोस्ट हो सके. बाद में जब पहेली के लिए प्रतियोगिता बढ़ गयी तो समय ठीक ६.३० का कर दिया गया, शरद जी जो सबसे पुराने श्रोता हैं इस तथ्य से वाकिफ हैं. अमित जी ने जब हमसे गुजारिश कि तो हमने उनको भी यही सलाह दी कि वो इसे सबके सामने रखे यदि किसी को आपत्ति न हो तो हम इसे ६-७ के बीच कभी प्रसारित कर सकते हैं. खैर...हमें लगता है कि आपत्ति है जिसे शायद खुल कर अभिव्यक्त नहीं किया गया. इसलिए आज से हम समय वापस ६.३० का ही कर रहे हैं. अनजाना जी पिछली कड़ी में समय के बदलाव के लिए हम माफ़ी चाहते हैं, पर कुछ निर्णय हमने लिए हैं -
कड़ी २ की पहेली विवादस्पद थी, मगर हमने पहली को जिन विश्वसनीय सूत्रों पर रख कर परखा है हमें लगता है कि हमें उसी पर अपने परिणाम भी मापने होंगें, लिहाजा इस पहेली के परिणाम को हम यथावत रखते हुए अनजाना जी के ३ अंक बरकरार रखेंगें.
पहली ६ में समय का बदलाव हुआ था पर हमने यही विश्वास किया था कि अनजाना जी इससे वाकिफ हो गए होंगें, लिहाजा अमित जी जिनका जवाब सबसे पहले आया ३ अंकों के हकदार हैं.
इस शृंखला में मुकाबला इन्हीं दो धुरंधरों का है हम बता दें कि अनजाना जी १२ और अमित जी १० अंकों पर हैं.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

avinash said…
ravi
Avinash Raj said…
please discard my first answer. internet thoda slow hai.Type karte karte rah jaata hoon
Avinash Raj said…
Geetkar: Anand Bakshi
Hindustani said…
Mr. Natwarlal
सुजॉय जी, सजीव जी मैं आप लोगों से पूरी तरह से सहमत हूँ. अच्छा नहीं लगता कि इस तरह से श्रोताओं में मतभेद हो.

आप लोगों ने सही निर्णय लिया है. आप लोगों का उत्तर मापने का अपना पैमाना है और आप लोगों को पूरा अधिकार है उसे इस्तेमाल करने का.

अंजाना जी नाराजगी छोड़ दीजीये. अवध जी आपको पूरा हक है कि आप सीधे सीधे अपनी नाराजगी व्यक्त कर सकें.

इस मंच के जरिये हम सब लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.
Avinash Raj said…
Dear friends please take it as a healthy competition. I am always happy if I am able to answer any of the question. No shikayat no shikava please.

Hats off to entire awaaz team for giving us such a good article every day
बहुत खूब गाया है, सुन्दर रचना और सुन्दर संगीत संयोजन.
AVADH said…
जब बात संगीतकार रवि जी की हो रही है, तो ज्ञातव्य है कि उनकी पहली फिल्म देवेन्द्र गोयल जी की 'वचन' में उनके साथी संगीतकार थे चंद्रा.यद्यपि रवि जी बाद में बहुत मशहूर हुए, पर चंद्रा जी के बारे में कुछ अधिक जानकारी नहीं मिलती. मुझे लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि केवल रवि जी का संगीत हो और चंद्रा जी का नाम किसी कारणवश दे दिया गया हो?
अवध लाल
AVADH said…
प्रिय मित्रों,
हालाँकि मैंने अपनी ओर से पहले ही स्पष्ट किया था पर लगता है कि आप लोगों ने मेरी बात का विश्वास नहीं किया और यह समझा कि मुझे शिकायत है. मैंने पुनः अपने कमेंट को पढ़ा. मैं फिर भी समझ नहीं पाया कि ऐसा क्यों लगा कि मैं पक्षपात का आरोप लगा रहा हूँ.मुझे इस बात का वाकई खेद है.
हालाँकि मुझे कोई सफाई देने की ज़रूरत नहीं है पर सुजॉय, सजीव, अमित, अनजाना, अविनाश आदि को मैं फिर से यह जताना चाहता हूँ कि सचमुच मुझे कोई आपत्ति न पहले थी और न अब है. जैसा कि सुजॉय-सजीव द्वय ने कहा है कि ब्लॉग पोस्ट का समय सायं ६.०० - ७.०० के बीच सुविधानुसार हो सकता है और यदि कुछ मित्रों के लिए ६.००बजे का समय अधिक अनुकूल है तो इसे मानने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
न ही मुझे किसी से कोई द्वेष है और न ही ईर्ष्या. अमित और अनजाना तो सबसे आगे चल ही रहे हैं और उनके संगीत ज्ञान का मैं तो लोहा (ऐसा वैसा नहीं बिलकुल स्टेनलेस स्टील वाला) मानता हूँ. यह दोनों जीत के असली दावेदार हैं. पर क्या पता कल कोई ऐसा ही और धुरंधर हमारे बीच आ जाये और मुकाबला और दिलचस्प हो जाये. ऐसे ही धीरे धीरे हमारी मित्र-मंडली और बड़ी हो जायेगी, इसी विश्वास के साथ,
अवध लाल

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