ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 673/2011/113
'एक था गुल और एक थी बुलबुल' - कहानी भरे गीतों की इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। कुंदनलाल सहगल और शांता आप्टे के बाद आज कहानी सुनाने की बारी है सुरैया की। ३० के दशक से एक छलांग मार कर आज हम पहुँच गये हैं ५० के दशक में। साल १९५४ में एक फ़िल्म आयी थी 'वारिस', जिसका "राही मतवाले" गीत आप सब को याद ही होगा। इसी फ़िल्म में सुरैया की एकल आवाज़ में एक गीत है "तारों की नगरी से चंदा ने एक दिन धरती पे आने की ठानी"। कहिये प्लॉट कैसा है कहानी का? उतावले हो रहे होंगे न आप आगे की कहानी जानने के लिये। बस थोड़ा सा इंतज़ार कीजिये, अभी हम आते हैं कहानी पर, लेकिन उससे पहले इस गीत से जुड़ी कुछ बातें कहना चाहेंगे। "राही मतवाले" गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ था कि इस फ़िल्म के दूसरे गीतों की तरफ़ लोगों का ध्यान ज़रा कम ही गया है। आज का प्रस्तुत गीत तो बहुत लोगों नें सुना भी नहीं होगा। सुरैया पर ही फ़िल्माये गये इस गीत में पर्दे पर उसे और उसके बेटे को दिखाया जाता है। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की है कि एक रेल दुर्घटना में सुरैया अपने पति से बिछड़ जाती हैं। उस वक़्त वो गर्भवती थीं। बच्चे के जन्म के बाद वो अपने बच्चे को पालती-पोसती है, और इस तरह से कहानी में एक सिचुएशन रखा जाता है कि वो अपने बच्चे को सुलाने के लिये लोरी गा रही है, जिसके ज़रिये वो अपनी ही दुखभरी दास्तान कहती है।
क़मर जलालाबादी के लिखे इस गीत को चाहे आप लोरी कह लीजिये या कोई कहानी, बेहद ख़ूबसूरत गीत है। सुरैया इस गीत में अपने बच्चे को सुलाने के लिये लोरी गाती है, लेकिन गीत ख़त्म होते होते वह अपनी ही जीवन की दर्दीली कहानी सुना चुकी होती है। मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है, अपने पति के लिये "चांद" का इस्तमाल करती हैं। और अनिल बिस्वास नें भी अपने दूसरे सभी गीतों की तरह ही क्या मधुर संगीत दिया है इस गीत में भी। हमें पूरी उम्मीद है कि आप में से जिन श्रोताओं नें इस गीत को पहले नहीं सुना है, उनको आज पहली बार यह गीत सुनकर उतना ही आनंद आयेगा। गीत सुनने से पहले यह रही कहानी इस गीत की।
तारों की नगरी से चंदा ने एक दिन,
धरती पे आने की ठानी,
सुन मेरे मुन्ना कहानी।
चंदा नें पहने शबनम के गहने,
लहरों पे आयी रवानी।
कब से खड़ी थी व्याकुल चकोरी,
नैना बिछाये हुए!
धरती पे उतरा राजा गगन का,
चुपके से किरणों के रथ में।
आये पिया प्यारे, प्यासे के द्वारे,
फिर भी चकोरी ना जाने।
कहती थी दुनिया हो न सकेगा चंदा चकोरी का मेल,
पल भर में देखो रूठेगी निंदिया टूटेगा सपनों का खेल।
इतने में चंदा बढ़ कर यूं बोला,
मैं राजा तू मेरी रानी।
लेकिन ये दुनिया प्रेमी की बैरन हाये लगा दी नज़रिया,
आये थे जैसे वैसे ही एक दिन सजनी से बिछड़े सांवरिया।
अब तक खड़ी है पथ पर चकोरी, लेकर पिया की निशानी,
जब तक न वापस आयेगा चंदा, पूरी न होगी कहानी।
क्या आप जानते हैं...
कि अनिल बिस्वास स्वरबद्ध फ़िल्म 'राही' की मीना कपूर की गायी लोरी "चांद सो गया तारे सो गये" मेघालय राज्य के खासी जनजाती की एक लोकधुन पर आधारित है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 4/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - किस सरोद वादक ने इस गीत में अपना योगदान दिया है - ३ अंक
सवाल २ - किस राग पर आधारित है ये गीत - २ अंक
सवाल ३ - गीतकार बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी बढ़िया खेल रहे हैं, अविनाश जी बीच बीच में चूक जाते हैं. अमित जी हमें थोडा समय दीजिए पिछली पहेली के संशय को दूर करने का
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'एक था गुल और एक थी बुलबुल' - कहानी भरे गीतों की इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। कुंदनलाल सहगल और शांता आप्टे के बाद आज कहानी सुनाने की बारी है सुरैया की। ३० के दशक से एक छलांग मार कर आज हम पहुँच गये हैं ५० के दशक में। साल १९५४ में एक फ़िल्म आयी थी 'वारिस', जिसका "राही मतवाले" गीत आप सब को याद ही होगा। इसी फ़िल्म में सुरैया की एकल आवाज़ में एक गीत है "तारों की नगरी से चंदा ने एक दिन धरती पे आने की ठानी"। कहिये प्लॉट कैसा है कहानी का? उतावले हो रहे होंगे न आप आगे की कहानी जानने के लिये। बस थोड़ा सा इंतज़ार कीजिये, अभी हम आते हैं कहानी पर, लेकिन उससे पहले इस गीत से जुड़ी कुछ बातें कहना चाहेंगे। "राही मतवाले" गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ था कि इस फ़िल्म के दूसरे गीतों की तरफ़ लोगों का ध्यान ज़रा कम ही गया है। आज का प्रस्तुत गीत तो बहुत लोगों नें सुना भी नहीं होगा। सुरैया पर ही फ़िल्माये गये इस गीत में पर्दे पर उसे और उसके बेटे को दिखाया जाता है। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की है कि एक रेल दुर्घटना में सुरैया अपने पति से बिछड़ जाती हैं। उस वक़्त वो गर्भवती थीं। बच्चे के जन्म के बाद वो अपने बच्चे को पालती-पोसती है, और इस तरह से कहानी में एक सिचुएशन रखा जाता है कि वो अपने बच्चे को सुलाने के लिये लोरी गा रही है, जिसके ज़रिये वो अपनी ही दुखभरी दास्तान कहती है।
क़मर जलालाबादी के लिखे इस गीत को चाहे आप लोरी कह लीजिये या कोई कहानी, बेहद ख़ूबसूरत गीत है। सुरैया इस गीत में अपने बच्चे को सुलाने के लिये लोरी गाती है, लेकिन गीत ख़त्म होते होते वह अपनी ही जीवन की दर्दीली कहानी सुना चुकी होती है। मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है, अपने पति के लिये "चांद" का इस्तमाल करती हैं। और अनिल बिस्वास नें भी अपने दूसरे सभी गीतों की तरह ही क्या मधुर संगीत दिया है इस गीत में भी। हमें पूरी उम्मीद है कि आप में से जिन श्रोताओं नें इस गीत को पहले नहीं सुना है, उनको आज पहली बार यह गीत सुनकर उतना ही आनंद आयेगा। गीत सुनने से पहले यह रही कहानी इस गीत की।
तारों की नगरी से चंदा ने एक दिन,
धरती पे आने की ठानी,
सुन मेरे मुन्ना कहानी।
चंदा नें पहने शबनम के गहने,
लहरों पे आयी रवानी।
कब से खड़ी थी व्याकुल चकोरी,
नैना बिछाये हुए!
धरती पे उतरा राजा गगन का,
चुपके से किरणों के रथ में।
आये पिया प्यारे, प्यासे के द्वारे,
फिर भी चकोरी ना जाने।
कहती थी दुनिया हो न सकेगा चंदा चकोरी का मेल,
पल भर में देखो रूठेगी निंदिया टूटेगा सपनों का खेल।
इतने में चंदा बढ़ कर यूं बोला,
मैं राजा तू मेरी रानी।
लेकिन ये दुनिया प्रेमी की बैरन हाये लगा दी नज़रिया,
आये थे जैसे वैसे ही एक दिन सजनी से बिछड़े सांवरिया।
अब तक खड़ी है पथ पर चकोरी, लेकर पिया की निशानी,
जब तक न वापस आयेगा चंदा, पूरी न होगी कहानी।
क्या आप जानते हैं...
कि अनिल बिस्वास स्वरबद्ध फ़िल्म 'राही' की मीना कपूर की गायी लोरी "चांद सो गया तारे सो गये" मेघालय राज्य के खासी जनजाती की एक लोकधुन पर आधारित है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 4/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - किस सरोद वादक ने इस गीत में अपना योगदान दिया है - ३ अंक
सवाल २ - किस राग पर आधारित है ये गीत - २ अंक
सवाल ३ - गीतकार बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी बढ़िया खेल रहे हैं, अविनाश जी बीच बीच में चूक जाते हैं. अमित जी हमें थोडा समय दीजिए पिछली पहेली के संशय को दूर करने का
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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