Skip to main content

एक था राजा एक थी रानी.....सुनिए शांता बाई से आगे की कहानी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 672/2011/112

'एक था गुल और एक थी बुलबुल' - कल से हमनें इस लघु शृंखला की शुरुआत की है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर, जिसके तहत हम १० ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें कही गयी है कोई कहानी, या सुनाया गया है कोई क़िस्सा। जैसा कि कल हमनें वादा किया था १९३७ वर्ष के दो कहानी-पूर्ण गीत एक के बाद एक सुनवाएँगे, पहला गीत सहगल साहब की आवाज़ में फ़िल्म 'प्रेसिडेण्ट' का कल आपनें सुना होगा, आज प्रस्तुत है शांता आप्टे की आवाज़ में फ़िल्म 'दुनिया न माने' से "एक था राजा, एक थी रानी, दोनों पे छायी थी जवानी"। कल हमनें बचपन में बच्चों के कहानी सुनने में दिलचस्पी का ज़िक्र किया था। बच्चे हमेशा, हर युग में, बड़ों से कहानी सुनने की ज़िद करते हैं, जैसे कि यह उनका हक़ है। फ़िल्मों में भी कई बार ऐसे सिचुएशन आये हैं कि जिसमें बच्चे अपने अभिभावक या टीचर से कहानी की माँग करते हैं। और आज का प्रस्तुत गीत भी इन्हीं में से एक है। 'दुनिया न माने' व्ही. शान्ताराम की फ़िल्म थी। उनके विचारों की ही तरह फ़िल्म के गीत भी अपने समय से बहुत आगे थे। इसी फ़िल्म में पहली बार अंग्रेज़ी के शब्दों वाले गीत को रखा गया था, और आज के प्रस्तुत गीत में भी कहानी कहने की जो शैली अपनायी गयी है, वह उस ज़माने में एक नवीन प्रयोग था। गीत के फ़िल्मांकन में स्कूली छात्र अपने सुंदर टीचर (शांता आप्टे) से कहानी की माँग कर रहे हैं।

शांता आप्टे नें जिस अदा से कहानी को पेश किया है, वह लाजवाब है। गीत के आख़िर में बच्चे उनकी बाहों में झूलने लग पड़ते हैं और वो उनमें से कईओं को उठा भी लेती हैं। बच्चों के साथ उनकी जो केमिस्ट्री दिखायी गई है इस गीत में, वह ग़ज़ब की है। सभी के सभी इस तरह से घुलमिल गये हैं कहानी रूपी इस गीत में कि दृश्य बड़ा ही सजीव हो उठा है। और क्यों न हो, जब व्ही. शान्ताराम जैसे फ़िल्मकार की फ़िल्म है, तो ऐसा होना अधिक आश्चर्य की बात नहीं! मुंशी अज़ीज़ के लिखे इस गीत को संगीतबद्ध किया था 'प्रभात स्टुडिओज़' के संगीतकार मास्टर केशवराव भोले नें। आइए इस गीत को सुनने से पहले आपको बतायें इसमें शामिल कहानी।

एक था राजा, एक थी रानी,
दोनों पर छायी थी जवानी।
प्रीत में दोनों दीवाने थे,
सुख-सागर में बहते थे।
प्रेम नगर के एक मंदिर में,
दोनों हिल-मिल रहते थे।
रानी कहती थी मन मेरा मोती,
राजा कहे मैं मन का चोर।
रानी कहती चन्द्रिका हूँ मैं,
राजा कहता मैं हूँ चकोर।
प्रेम-चांदनी चारों ओर,
वो हँस हँस के करते थे शोर।
जैसे कूकें मोरनी-मोर,
वो हँस हँस के करते थे शोर।
हाँ हाँ हाँ, हँस हँस के करते थे शोर।
हाँ हाँ हाँ, हँस हँस के करते थे शोर।




क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार मास्टर केशवराव भोले नें अपनी मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर संगीत और फ़िल्म जगत में आ गये थे।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 3/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - सुरैया है गायिका.
सवाल १ - गीतकार बताएं - ३ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - इस नाम की एक फिल्म आगे चल कर भी आई जिसमें स्मिता पाटिल ने अभिनय किया, फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
जो जवाब अनजाना जी ने दिया है हमारे हिसाब से तो वही गीतकार है प्रस्तुत गीत के, पर अमित जी और अविनाश जी इससे सहमत नहीं हैं, तो फिलहाल के लिए हम अंक अनजाना जी के खाते में डाल देते हैं, और वादा करते हैं कि एक बार और कन्फर्म करेंगें अपने सूत्रों से. प्रतीक जी को २ अंक और हिन्दुस्तानी जी को एक अंक जरूर मिलेंगें.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Anjaana said…
Lyrics : Qamar Jalalabadi
Prateek Aggarwal said…
Anil Biswas
Avinash Raj said…
Waaris
Kshiti said…
This post has been removed by the author.
हम तो चूक ही गए.हमेशा लेट हो जाती हूँ .क्या करू ?ऐसीच हूँ मैं तो हा हा हा लेटलतीफ
में आई कम इन सर! अब पूछ लेती हूँ.प्रजेंस सर!
हाजरी लगा दी न्? ओके. मुर्गा बना देते हैं ये सर लोग जरा सा क्लास में लेट पहुँचो तो ये बात अलग है खुद 'आवाज; देर से देते हैं. घंटी समय पर बजवाया करिये सर.टाइम चेंज कर दिया है क्या?हा हा
अरे मेहरबान -सुनील दत्त जी और नूतन जी की-में ऐसा ही एक गाना था,सुनियेगा. भाग रही हूँ यानी बंक.
क्लास से बंक मारने का अपना मजा है सच्ची.
अर्र्रे! क्या ये वही 'दुनिया न् माने' फिल्म है जिसमे घंटे की टन टन का बड़ा सुन्दर और मार्मिक चित्रण किया गया था?

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...