Skip to main content

लाईफ बहुत सिंपल है....वाकई अमोल गुप्ते और हितेश सोनी के रचे इन गीतों सुनकर आपको भी यकीन हो जायेगा

Taaza Sur Taal (TST) - 16/2011 - STANLEY KA DABBA

दोस्तों मुझे यकीन है कि "तारे ज़मीन पर" आपकी पसंदीदा फिल्मों में से एक होगी. अगर हाँ तो आप ये भी जानते होंगें कि इस फिल्म के निर्देशक पहले अमोल गुप्ते नियुक्त हुए थे, बाद में कुछ कारणों के चलते अमोल, अमीर से अलग हो गए और अमीर ने खुद फिल्म का निर्देशन किया. पर ये भी सच है कि उस फिल्म में अमोल का योगदान एक लेखक से बहुत कुछ अधिक था, जाहिर है जब उस अमोल की खुद निर्देशित फिल्म आये और उसमें भी बच्चों की ही प्रमुख भूमिकाएं हो तो उम्मीदें बेहद बढ़ जाती है. "तारे ज़मीन पर" में संगीत था शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी का और कुछ गीत तो फिल्म के ऐसे थे कि आने वाले कई दशकों तक श्रोताओं को याद रहेंगें. मगर अमोल ने अपनी फिल्म "स्टेनली का डब्बा" के लिए चुना संगीतकार हितेश सोनिक को, और गीतकार की भूमिका खुद उठाने की सोची. हितेश अब तक पार्श्व संगीत के लिए जाने जाते थे और अनुराग कश्यप विशाल भारद्वाज जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम कर चुके है. बतौर स्वतंत्र संगीतकार ये उनकी पहली फिल्म है.

बहरहाल हम आते हैं इस अल्बम के गीतों पर. दरअसल पहला गीत ही ऐसा है जो आपको गहरे तक छूने की कुव्वत रखता है. शान की मधुर आवाज़ और अमोल गुप्ते के अलग "हट के" बोलों में जैसे जादू है. "लाईफ बहुत सिंपल है..." जीवन को सरल और सहज होकर देखने की सीख देती है, हितेश ने संगीत संयोजन बेहद सरल रखा है. और धुन भी मन को छूने में सक्षम है. यक़ीनन आप इस गीत को ड्राईव करते हुए गुनगुनाना चाहेंगें.

सुखविंदर ने सहज होकर गाया है अगला गीत "डब्बा", जिसे सुनकर आपको याद आ जायेगा माँ के हाथों बनाया हुआ टिफिन का डब्बा जिसे स्कूल ले जाते समय ताकीद मिलती थी कि कुछ भी बाकी नहीं छूटना चाहिए, और वो स्कूल रिसेस जिसमें योजना बनती थी इस डिब्बे को कैसे खाली किया जाए. दाल, चावल, पनीर, मशरूम, गोभी....सब कुछ है इस मसाला मिक्स गीत में. सुखविंदर यहाँ आपको एक नए अंदाज़ में दिखेंगें. वो एक ऐसे गायक हैं कि जो गाते हैं उसमें अपना दिल उंडेल देते है, अमोल के गैर पारंपरिक शब्द इस सरल सहज गीत की जान हैं.

शंकर महादेवन की आवाज़ में है अगला गीत "नन्ही सी जान". कहानीनुमा ये गीत अल्बम के अन्य गीतों से अलग कुछ रोक् शैली का है. ये फिल्म की सिचुएशन के अनुरूप होना चाहिए, जो शायद परदे पर अधिक सटीक लगे. विशाल ददलानी आते है अगला गीत लेकर "तेरे अंदर भी कहीं...", ये सोफ्ट रोक् गीत उनकी आवाज़ में खूब जचता है. इस गीत का एक संस्करण आदित्य चक्रवर्ती की किशोर आवाज़ में भी है. अमोल लिखते हैं –"किरणों में नहाके ताज़ा तरीन, खुशियों के निवाले हो ज्यादा महीन, भोला सा दिल करे सबपे यकीन, भेड़ों की भीड़ में भूल आया क्या तू...." वाह

तमाम पुरुष गायकों की भीड़ में एक गीत है जिसमें महिला स्वर सुनाई देता है. इसे गीत को खुद अमोल के स्वरबद्ध किया है. ये गीत एक लोरी है, पता नहीं कितने दिनों बाद फिल्मों में एक अच्छी लोरी सुनने को मिली है, पार्श्व वाध्य के रूप में सिर्फ बांसुरी के स्वर हैं, और हंसिका अय्यर की सुरीली आवाज़ में बहुत प्यारा बन पड़ा है ये गीत – झूला झूल...., अवश्य सुनियेगा. व्यक्तिगत तौर पर मैं इस अल्बम की सिफारिश अवश्य करूँगा, बाकी सुनकर आप भी बताएं कि ये धीमा, सुरीला संगीत अपनी सहजता में आपको किस हद तक भाया है.

आवाज़ रेटिंग - 8/10

एक और बात: इस एलबम के सारे गाने आप यहाँ पर सुन सकते हैं।




अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।

Comments

Popular posts from this blog

खमाज थाट के राग : SWARGOSHTHI – 216 : KHAMAJ THAAT

स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट   ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

आसावरी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 221 : ASAVARI THAAT

स्वरगोष्ठी – 221 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 8 : आसावरी थाट राग आसावरी में ‘सजन घर लागे...’  और  अड़ाना में ‘झनक झनक पायल बाजे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया ...