ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 679/2011/119
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर किस्से-कहानियों का सिलसिला जारी है लघु शृंखला 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' के तहत। आज हम जिस गीतकार का लिखा कहानीनुमा गीत सुनने जा रहे हैं वो हैं रवीन्द्र रावल। पिछले दो अंकों में क्रम से हमनें १९७९ और १९८० के दो गीत सुनें। आज एक साल और आगे बढ़ते हैं। १९८१ में एक्स्ट्रा-मैरिटल अफ़ेअर पर बनी एक फ़िल्म आयी थी 'बेज़ुबान', जिसमें मुख्य कलाकार थे रीना रॉय, नसीरुद्दिन शाह और शत्रुघ्न सिंहा। इस फ़िल्म का जो शीर्षक गीत है, या युं कहिये कि जो फ़िल्म का थीम सॉंग् है, उसमें नायिका अपनी ही ज़िंदगी की दास्तान सुनाती है, लेकिन एक कहानी के माध्यम से। यह कहानी बताती है कि किस तरह से उसके पाँव फ़िसल जाते हैं, किस तरह से पती और बच्चे के होते हुए वो एक और संबंध रखती है, और उसे किस तरह का अनुताप होता है। बहुत ही सुंदर लिखा है रावल साहब नें और फ़िल्म में संगीत है राम-लक्ष्मण का। राम-लक्ष्मण नये दौर के उन संगीतकारों में से हैं जिनके साथ लता जी गाती आईं हैं। 'मैंने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' लता जी के साथ राम-लक्ष्मण की सब से सफल दो फ़िल्में हैं। वैसे ८० के दशक के शुरु से ही राम-लक्ष्मण के कई फ़िल्मों में लता जी नें गीत गाये हैं, और उनमें से हिट गीतों में आज के प्रस्तुत गीत का शुमार होता है।
राम-लक्ष्मण नें ८० के दशक की शुरुआत सुरीले ढंग से ही किया था। 'बेज़ुबान' के अलावा ८० के दशक के पहले कुछ सालों में उनके संगीत से सजी जो फ़िल्में आईं और जिनका संगीत चला, उनमें शामिल हैं 'हमसे बढ़कर कौन', 'उस्तादी उस्ताद से', 'जीयो तो ऐसे जीयो', 'तुम्हारे बिना', 'सुन सजना', 'सुन मेरी लैला' आदि फ़िल्मों का संगीत। तो आइए अब 'बेज़ुबान' फ़िल्म का गीत सुना जाये, पर उससे पहले ये रहे गीत में कही गई कहानी:
हर एक जीवन है एक कहानी,
पर ये सच्चाई सब ने न जानी।
जो पाना है, वो खोना है,
इस पल हँसना, कल रोना है।
एक निर्धन की एक बिटिया थी,
उनकी छोटी सी दुनिया थी,
दिल बीत चले बीता बचपन,
उस गुड़िया पे आया यौवन,
यौवन की मस्ती ने
उसको राह भुला दी,
पग फ़िसल गया, वो चीख पड़ी,
ऊँचाई से खाई में गिरी,
मुर्झा गयी वो फूलों की रानी,
पर ये सच्चाई सब ने न जानी।
एक शहज़ादा आ पहुँचा वहाँ,
तब जाके बची लड़की की जाँ,
उसे बाहों में ले प्यार दिया,
सिंगार दिया, घर-बार दिया,
सपनों की बगिया में,
प्यारा फूल खिला था,
फिर पल भर में बदली छायी,
बरखा बिजुरी आंधी लाई,
पल पल दुआयें माँगे बेगानी,
पर ये सच्चाई सब ने न जानी।
जग के मालिक मेरी है ख़ता,
मेरे अपने क्यों पाये सज़ा,
मेरे राम से मैं कहूँ कैसे बता,
झूठा हूँ बेर मैं शबरी का,
मुझको तो अब कोई,
ऐसी राह दिखा दे,
मेरी ममता पे इलज़ाम न हो,
सिंदूर मेरा बदनाम न हो,
समझे कोई मेरी बेज़ुबानी......
क्या आप जानते हैं...
कि उत्तम सिंह स्वतंत्र संगीतकार बनने से पहले राम-लक्ष्मण के अरेंजर हुआ करते थे, और कहा जाता है कि 'हम आपके हैं कौन' के संगीत की सफलता के पीछे उनका भी बहुत बड़ा योगदान था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल २ - जिस गायिका की आवाज़ में ये गीत है उनका गाया कोई और गीत बताएं- ३ अंक
सवाल ३ - गीतकार का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर किस्से-कहानियों का सिलसिला जारी है लघु शृंखला 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' के तहत। आज हम जिस गीतकार का लिखा कहानीनुमा गीत सुनने जा रहे हैं वो हैं रवीन्द्र रावल। पिछले दो अंकों में क्रम से हमनें १९७९ और १९८० के दो गीत सुनें। आज एक साल और आगे बढ़ते हैं। १९८१ में एक्स्ट्रा-मैरिटल अफ़ेअर पर बनी एक फ़िल्म आयी थी 'बेज़ुबान', जिसमें मुख्य कलाकार थे रीना रॉय, नसीरुद्दिन शाह और शत्रुघ्न सिंहा। इस फ़िल्म का जो शीर्षक गीत है, या युं कहिये कि जो फ़िल्म का थीम सॉंग् है, उसमें नायिका अपनी ही ज़िंदगी की दास्तान सुनाती है, लेकिन एक कहानी के माध्यम से। यह कहानी बताती है कि किस तरह से उसके पाँव फ़िसल जाते हैं, किस तरह से पती और बच्चे के होते हुए वो एक और संबंध रखती है, और उसे किस तरह का अनुताप होता है। बहुत ही सुंदर लिखा है रावल साहब नें और फ़िल्म में संगीत है राम-लक्ष्मण का। राम-लक्ष्मण नये दौर के उन संगीतकारों में से हैं जिनके साथ लता जी गाती आईं हैं। 'मैंने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' लता जी के साथ राम-लक्ष्मण की सब से सफल दो फ़िल्में हैं। वैसे ८० के दशक के शुरु से ही राम-लक्ष्मण के कई फ़िल्मों में लता जी नें गीत गाये हैं, और उनमें से हिट गीतों में आज के प्रस्तुत गीत का शुमार होता है।
राम-लक्ष्मण नें ८० के दशक की शुरुआत सुरीले ढंग से ही किया था। 'बेज़ुबान' के अलावा ८० के दशक के पहले कुछ सालों में उनके संगीत से सजी जो फ़िल्में आईं और जिनका संगीत चला, उनमें शामिल हैं 'हमसे बढ़कर कौन', 'उस्तादी उस्ताद से', 'जीयो तो ऐसे जीयो', 'तुम्हारे बिना', 'सुन सजना', 'सुन मेरी लैला' आदि फ़िल्मों का संगीत। तो आइए अब 'बेज़ुबान' फ़िल्म का गीत सुना जाये, पर उससे पहले ये रहे गीत में कही गई कहानी:
हर एक जीवन है एक कहानी,
पर ये सच्चाई सब ने न जानी।
जो पाना है, वो खोना है,
इस पल हँसना, कल रोना है।
एक निर्धन की एक बिटिया थी,
उनकी छोटी सी दुनिया थी,
दिल बीत चले बीता बचपन,
उस गुड़िया पे आया यौवन,
यौवन की मस्ती ने
उसको राह भुला दी,
पग फ़िसल गया, वो चीख पड़ी,
ऊँचाई से खाई में गिरी,
मुर्झा गयी वो फूलों की रानी,
पर ये सच्चाई सब ने न जानी।
एक शहज़ादा आ पहुँचा वहाँ,
तब जाके बची लड़की की जाँ,
उसे बाहों में ले प्यार दिया,
सिंगार दिया, घर-बार दिया,
सपनों की बगिया में,
प्यारा फूल खिला था,
फिर पल भर में बदली छायी,
बरखा बिजुरी आंधी लाई,
पल पल दुआयें माँगे बेगानी,
पर ये सच्चाई सब ने न जानी।
जग के मालिक मेरी है ख़ता,
मेरे अपने क्यों पाये सज़ा,
मेरे राम से मैं कहूँ कैसे बता,
झूठा हूँ बेर मैं शबरी का,
मुझको तो अब कोई,
ऐसी राह दिखा दे,
मेरी ममता पे इलज़ाम न हो,
सिंदूर मेरा बदनाम न हो,
समझे कोई मेरी बेज़ुबानी......
क्या आप जानते हैं...
कि उत्तम सिंह स्वतंत्र संगीतकार बनने से पहले राम-लक्ष्मण के अरेंजर हुआ करते थे, और कहा जाता है कि 'हम आपके हैं कौन' के संगीत की सफलता के पीछे उनका भी बहुत बड़ा योगदान था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल २ - जिस गायिका की आवाज़ में ये गीत है उनका गाया कोई और गीत बताएं- ३ अंक
सवाल ३ - गीतकार का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
मुझे लगा था कि शायद यह फिल्म 'सदमा' का वह गीत है जिसमें नायक कमल हासन नायिका श्रीदेवी को एक गीदड़ (रंगा सियार)की कहानी सुनाते हैं.
अवध लाल