ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 689/2011/129
श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ| कल के अंक में आपने रईसों और जमींदारों की छोटी-छोटी महफ़िलों में फलती-फूलती ठुमरी शैली की जानकारी प्राप्त की| इस समय तक ठुमरी गायन की तीन प्रकार की उप-शैलियाँ विकसित हो चुकी थी| नृत्य के साथ गायी जाने वाली ठुमरियों में लय और ताल का विशेष महत्त्व होने के कारण ऐसी ठुमरियों को "बन्दिश" या "बोल-बाँट" की ठुमरी कहा जाने लगा| इस प्रकार की ठुमरियाँ छोटे ख़याल से मिलती-जुलती होती हैं, जिसमे शब्द का महत्त्व बढ़ जाता है| ऐसी ठुमरियों को सुनते समय ऐसा लगता है, मानो तराने पर बोल रख दिए गए हों| ठुमरी का दूसरा प्रकार जो विकसित हुआ उसे "बोल-बनाव" की ठुमरी का नाम मिला| ऐसी ठुमरियों में शब्द कम और स्वरों का प्रसार अधिक होता है| गायक या गायिका कुछ शब्दों को चुन कर उसे अलग-अलग अन्दाज़ में प्रस्तुत करते हैं| धीमी लय से आरम्भ होने वाली इस प्रकार की ठुमरी का समापन द्रुत लय में कहरवा की लग्गी से किया जाता है| ठुमरी के यह दोनों प्रकार "पूरब अंग" की ठुमरी कहे जाते हैं| एक अन्य प्रकार की ठुमरी भी प्रचलन में आई, जिसे "पंजाब अंग" की ठुमरी कहा गया| ऐसी ठुमरियों को प्रचलित करने का श्रेय बड़े गुलाम अली खां, उनके भाई बरकत अली खां और नजाकत-सलामत अली खां को दिया जाता है| ऐसी ठुमरियों में "टप्पा" जैसी छोटी- छोटी तानों का काम अधिक होता है|
ठुमरी के साथ हमोनियम की संगति बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही शुरू हो गई थी| पिछली कड़ियों में हमने हारमोनियम पर ठुमरी बजाने में दक्ष कलाकार भैया गणपत राव की चर्चा की थी| आज की कड़ी में हम उस समय के कुछ और हारमोनियम वादकों की चर्चा करेंगे| बनारस के लक्ष्मणदास मुनीम (मुनीम जी), इस पाश्चात्य वाद्य पर गत और तोड़े बेजोड़ बजाते थे| राजा नवाब अली भी हारमोनियम पर रागों कि व्याख्या कुशलता से करते थे| इलाहाबाद के नीलू बाबू भी बहुत अच्छा हारमोनियम बजाते थे| ठुमरी और हारमोनियम का चोली-दामन का साथ रहा है|
आज जो ठुमरी हम आपको सुनवाने जा रहे हैं उसमें हारमोनियम की ही नहीं बल्कि अन्य कई पाश्चात्य वाद्यों की भी संगति की गई है| राज कपूर, माला सिन्हा, मुबारक और लीला चिटनिस द्वारा अभिनीत फिल्म "मैं नशे में हूँ" के एक प्रसंग में संगीतकार शंकर जयकिशन ने ठुमरी अंग में इस गीत का संगीत संयोजन किया है| लता मंगेशकर के गाये इस ठुमरी गीत का मुखड़ा तो एक पारम्परिक ठुमरी -"सजन संग काहे नेहा लगाए..." का है लेकिन दोनों अन्तरे गीतकार हसरत जयपुरी ने फिल्म के नायक के चरित्र के अनुकूल, परम्परागत ठुमरी की शब्दावली में रचे हैं| फिल्म के कथानक और प्रसंग के अनुसार इस ठुमरी के माध्यम से नायक (राज कपूर) और नायिका (माला सिन्हा) के परस्पर विरोधी सोच को दिखाना था| इसीलिए दोनों अन्तरों से पहले तेज लय में पाश्चात्य संगीत के दो अंश डाले गए हैं| शेष पूरा गीत ठहराव लिये हुए बोल- बनाव की ठुमरी की शक्ल में है| गीत में भारतीय और पाश्चात्य संगीत के समानान्तर प्रयोग से दर्शकों- श्रोताओं को बेहतर संगीत चुनने का अवसर देना ही प्रतीत होता है| स्वर-साधिका लता मंगेशकर ने उलाहना भाव से भरी इस ठुमरी में करुण रस का स्पर्श देकर गीत को अविस्मरणीय बना दिया है| राग तिलंग में निबद्ध होने से ठुमरी का भाव और अधिक मुखरित हुआ है| आइए सुनते हैं, रस से भरी इस ठुमरी को-
क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर के पहले पार्श्वगायन का गीत -"पा लागूँ कर जोरी रे.." वास्तव में राग पीलू की ठुमरी है|
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 19
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - पारंपरिक ठुमरी है.
सवाल १ - किस अभिनेत्री पर फिल्मांकित है गीत - ३ अंक
सवाल २ - गायिका कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी ने एकदम ६.३० पर ही जवाब देकर साबित किया है कि अमित और अनजाना जी के अलावा भी हैं योद्धा जो एक मिनट से भी पहले जवाब दे सकते हैं. बधाई. अविनाश जी और हिन्दुस्तानी जी को भी बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ| कल के अंक में आपने रईसों और जमींदारों की छोटी-छोटी महफ़िलों में फलती-फूलती ठुमरी शैली की जानकारी प्राप्त की| इस समय तक ठुमरी गायन की तीन प्रकार की उप-शैलियाँ विकसित हो चुकी थी| नृत्य के साथ गायी जाने वाली ठुमरियों में लय और ताल का विशेष महत्त्व होने के कारण ऐसी ठुमरियों को "बन्दिश" या "बोल-बाँट" की ठुमरी कहा जाने लगा| इस प्रकार की ठुमरियाँ छोटे ख़याल से मिलती-जुलती होती हैं, जिसमे शब्द का महत्त्व बढ़ जाता है| ऐसी ठुमरियों को सुनते समय ऐसा लगता है, मानो तराने पर बोल रख दिए गए हों| ठुमरी का दूसरा प्रकार जो विकसित हुआ उसे "बोल-बनाव" की ठुमरी का नाम मिला| ऐसी ठुमरियों में शब्द कम और स्वरों का प्रसार अधिक होता है| गायक या गायिका कुछ शब्दों को चुन कर उसे अलग-अलग अन्दाज़ में प्रस्तुत करते हैं| धीमी लय से आरम्भ होने वाली इस प्रकार की ठुमरी का समापन द्रुत लय में कहरवा की लग्गी से किया जाता है| ठुमरी के यह दोनों प्रकार "पूरब अंग" की ठुमरी कहे जाते हैं| एक अन्य प्रकार की ठुमरी भी प्रचलन में आई, जिसे "पंजाब अंग" की ठुमरी कहा गया| ऐसी ठुमरियों को प्रचलित करने का श्रेय बड़े गुलाम अली खां, उनके भाई बरकत अली खां और नजाकत-सलामत अली खां को दिया जाता है| ऐसी ठुमरियों में "टप्पा" जैसी छोटी- छोटी तानों का काम अधिक होता है|
ठुमरी के साथ हमोनियम की संगति बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही शुरू हो गई थी| पिछली कड़ियों में हमने हारमोनियम पर ठुमरी बजाने में दक्ष कलाकार भैया गणपत राव की चर्चा की थी| आज की कड़ी में हम उस समय के कुछ और हारमोनियम वादकों की चर्चा करेंगे| बनारस के लक्ष्मणदास मुनीम (मुनीम जी), इस पाश्चात्य वाद्य पर गत और तोड़े बेजोड़ बजाते थे| राजा नवाब अली भी हारमोनियम पर रागों कि व्याख्या कुशलता से करते थे| इलाहाबाद के नीलू बाबू भी बहुत अच्छा हारमोनियम बजाते थे| ठुमरी और हारमोनियम का चोली-दामन का साथ रहा है|
आज जो ठुमरी हम आपको सुनवाने जा रहे हैं उसमें हारमोनियम की ही नहीं बल्कि अन्य कई पाश्चात्य वाद्यों की भी संगति की गई है| राज कपूर, माला सिन्हा, मुबारक और लीला चिटनिस द्वारा अभिनीत फिल्म "मैं नशे में हूँ" के एक प्रसंग में संगीतकार शंकर जयकिशन ने ठुमरी अंग में इस गीत का संगीत संयोजन किया है| लता मंगेशकर के गाये इस ठुमरी गीत का मुखड़ा तो एक पारम्परिक ठुमरी -"सजन संग काहे नेहा लगाए..." का है लेकिन दोनों अन्तरे गीतकार हसरत जयपुरी ने फिल्म के नायक के चरित्र के अनुकूल, परम्परागत ठुमरी की शब्दावली में रचे हैं| फिल्म के कथानक और प्रसंग के अनुसार इस ठुमरी के माध्यम से नायक (राज कपूर) और नायिका (माला सिन्हा) के परस्पर विरोधी सोच को दिखाना था| इसीलिए दोनों अन्तरों से पहले तेज लय में पाश्चात्य संगीत के दो अंश डाले गए हैं| शेष पूरा गीत ठहराव लिये हुए बोल- बनाव की ठुमरी की शक्ल में है| गीत में भारतीय और पाश्चात्य संगीत के समानान्तर प्रयोग से दर्शकों- श्रोताओं को बेहतर संगीत चुनने का अवसर देना ही प्रतीत होता है| स्वर-साधिका लता मंगेशकर ने उलाहना भाव से भरी इस ठुमरी में करुण रस का स्पर्श देकर गीत को अविस्मरणीय बना दिया है| राग तिलंग में निबद्ध होने से ठुमरी का भाव और अधिक मुखरित हुआ है| आइए सुनते हैं, रस से भरी इस ठुमरी को-
क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर के पहले पार्श्वगायन का गीत -"पा लागूँ कर जोरी रे.." वास्तव में राग पीलू की ठुमरी है|
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 19
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - पारंपरिक ठुमरी है.
सवाल १ - किस अभिनेत्री पर फिल्मांकित है गीत - ३ अंक
सवाल २ - गायिका कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी ने एकदम ६.३० पर ही जवाब देकर साबित किया है कि अमित और अनजाना जी के अलावा भी हैं योद्धा जो एक मिनट से भी पहले जवाब दे सकते हैं. बधाई. अविनाश जी और हिन्दुस्तानी जी को भी बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
Prateek je 2 no ka sawal kyon attempt kara aaj?
Sabhi logon ko badhai.
Sharad ji , Awadh ji kuch to apne vichar vyakt kar diya kijiye.
3 no. ke chakkar me 2 no. bhi chale jaate .. :)
आज की महफ़िल में ज़रा देर से पहुंचा.
(सहगल साहेब का अंदाज़ उधार लिया है)
भाई लोगो, कतिपय कारणों से मैं तो थोडा देर ही से आ पाता हूँ. और अक्सर आप लोगों से बातचीत करने की कोशिश भी करता हूँ.
अब आप लोग ही ध्यान न दें तो बंदा क्या करे?
मिश्र जी, आप तो गवाह हैं, मिसाल के तौर पर मेरी कल ही की टिप्पणी ले लें.
और अगर आप लोग गौर करें तो प्रायः मेरी टिप्पणी ९.३० के बाद ही आ पाती है.
और तब तक आप सब पहेली का जवाब दे कर या दिग्गजों के दिए उत्तर देख कर वापस जा चुके होते हैं.
तो गुस्ताखी माफ़, बंदा बेक़सूर है.
अवध लाल