ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 611/2010/311
"हाये अबला तेरी यही है कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी"; किसी भारतीय नारी के लिए ये शब्द प्राचीन काल से चले आ रहे हैं और कुछ हद तक आज के समाज में भी यही नज़ारा देखने को मिलता है। लेकिन यह भी तो सच है कि आज ज़माना बदल रहा है। आज की महिलाएँ भी पुरुषों के साथ क़दम से क़दम मिला कर हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रही हैं, और इतना ही नहीं, बहुत जगहों पर पुरुषों को पीछे भी छोड़ रही हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीली महफ़िल में। पिछ्ले ८ मार्च को समूचे विश्व ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया और हर साल यह दिन इसी रूप में मनाया जाता है। हमनें भी ८ मार्च को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम को सलाम किया था, याद है न? लेकिन हमें लगा कि सिर्फ़ इतना काफ़ी नहीं है। क्योंकि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' हिंदी फ़िल्मों पर आधारित स्तंभ है, इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि फ़िल्म जगत की उन महिला कलाकारों को विशेष रूप से याद किया जाये, जिन्होंने विपरीत परिस्थितिओं में रहकर भी न केवल अपने लिए इस क्षेत्र में सम्माननीय जगह बनाई और विशिष्ट छाप छोड़ा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पथ प्रशस्त किया। फ़िल्म जगत की कुछ ऐसी ही महिला कलाकारों को लेकर प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'कोमल है कमज़ोर नहीं'। हम सभी कलाकारों को तो इन दस अंकों में शामिल नहीं कर सकते, लेकिन फ़िल्म निर्माण के अलग अलग विभागों से चुन कर हम कुछ स्तंभ कलाकारों को इसमें शामिल करेंगे, और ये प्रतिनिधित्व करेंगे अपने विभाग के सभी महिला कलाकारों का।
'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की पहली कड़ी में स्मरण एक ऐसी महिला का जिन्होंने एक नहीं बल्कि फ़िल्म निर्माण के कई कई विभागों में 'पायनीयर' का काम किया और इन विभागों में महिलाओं के प्रवेश का मार्ग आसान कर दिया। हम बात कर रहे हैं जद्दनबाई की। जद्दनबाई का जन्म सन् १८९२ में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। एक सूत्र के हिसाब से उनका जन्म १९०८ में हुआ था, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है। जद्दनबाई न केवल उन शुरुआती महिला गायिकाओं में से थीं जिनके ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड्स बनें, बल्कि वो सर्वप्रथम महिला संगीतकार भी थीं। साथ ही अभिनय और फ़िल्म निर्माण का पक्ष भी सम्भाला हिंदी फ़िल्मों के उस शुरुआती दौर में ही। आज की पीढ़ी के नौजवानों ने अगर जद्दनबाई का नाम नहीं सुन रखा है, तो उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि वो अभिनेत्री नरगिस की माँ और अभिनेता संजय दत्त की नानी थीं। अलाहाबाद में जद्दनबाई की परवरिश हुई। कहा जाता है कि जब जद्दनबाई छोटी थीं, तब कोठेवालिओं के एक मेले से वो उठा ली गईं और उन्हें एक तवाइफ़ के रूप में तैयार किया जाने लगा। जन्म से भले हिंदु हों, लेकिन वो आजीवन एक मुस्लिम बन कर रहीं। प्रसिद्ध ठुमरी गायक उस्ताद मोइजुद्दिन ख़ान की वो शिष्या बनीं, और उसके बाद उस्ताद बरक़त अली ख़ान और उस्ताद उमराव ख़ान से भी संगीत सीखा। उस्ताद उमराव ख़ान दिल्ली घराना के उस्ताद तनरस ख़ान के पुत्र थे। संगीत के प्रति लगाव और तमाम विपरीत परिस्थितिओं से लड़ने की क्षमता और धैर्य ने जद्दनबाई को एक 'सिंगिंग् स्टार' बना दिया। फ़िल्मकार महबूब ख़ान उनके अच्छे दोस्त रहे। जद्दनबाई के तीन संतान हुए तीन अलग अलग पुरुषों से। उत्तमचंद मोहनचंद से फ़ातिमा राशिद का जन्म हुआ, जिसने फ़िल्मों में उतरते वक़्त अपना नाम नरगिस रख लिया। जद्दनबाई की दूसरी संतान अख़्तर एक निर्देशक और अभिनेता बने, लेकिन फ़िल्मों को उतनी गम्भीरता से नहीं लिया। जद्दनबाई का तीसरा संतान, अनवर हुसैन, एक फ़िल्म अभिनेता बने पाये थे। १९३५ में जद्दनबाई ने 'तलाश-ए-हक़' फ़िल्म में संगीत देकर पहली महिला संगीत निर्देशिका बन गईं। १९३६ में उन्होंने स्थापना की 'संगीत फ़िल्म्स' की, जिसके तले उन्होंने कुछ फ़िल्मों का निर्माण किया और अपनी बेटी नरगिस को बतौर बाल कलाकार लौंच किया। बदक़िस्मती से जद्दनबाई को अपनी बेटी नरगिस को केवल १४ वर्ष की आयु से ही बतौर अभिनेत्री मैदान पर उतारना पड़ा, और नरगिस ने परिवार के भरण-पोषण की बागडोर सम्भाल ली। जद्दनबाई निर्मित कुछ फ़िल्मों के नाम हैं 'मैडम फ़ैशन' (१९३६), 'हृदय मंथन' (१९३६), 'मोती का हार' (१९३७), और 'जीवन स्वप्न' (१९३७)। इन फ़िल्मों के गानें रेकॊर्ड पर उतारे नहीं गये थे, शायद इसी वजह से आज ये गानें कहीं नहीं मिलते। इसलिए आइए आज जद्दनबाई को समर्पित करें उन्हीं की गायी हुई एक मशहूर ग़ैर फ़िल्मी ठुमरी "रूप जोबन गुन धरो रहत है"। इसे सुनवाने से पहले उनकी गायी कुछ और मशहूर रचनाओं का उल्लेख करना चाहेंगे, जैसे कि "तोड़ लायी राजा जामौनवा की डार", "लगत करेजवा में चोट", "ख़ान-ए-दिल से नुमाया है" आदि। तो लीजिए सुनते हैं ठुमरी "रूप जोबन..."। 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की पहली कड़ी आज समर्पित है जद्दनबाई और उनकी पुत्री नरगिस के नाम।
क्या आप जानते हैं...
कि एक समय था जब यह अफ़वाह ख़ूब उड़ी थी कि जद्दनबाई दरअसल मोतीलाल नेहरु और प्रसिद्ध वेश्या दलीपाबाई की नाजायज़ संतान हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 02/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक भजन है ये.
सवाल १ - किसकी आवाज़ है - २ अंक
सवाल २ - किस नारी को समर्पित है ये गीत, जो उस फिल्म का है जिसकी कहानी उन्हीं पर आधारित है- ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजाना जी की शुरूआत इस बार खराब रही, अमित जी सदाबहार साबित हुए है...हिन्दुस्तानी जी और विजय जी इस बार कुछ कर दिखाईये...अवध जी उम्मीद है आपकी फरमाईश पूरी हो गयी होगी :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
"हाये अबला तेरी यही है कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी"; किसी भारतीय नारी के लिए ये शब्द प्राचीन काल से चले आ रहे हैं और कुछ हद तक आज के समाज में भी यही नज़ारा देखने को मिलता है। लेकिन यह भी तो सच है कि आज ज़माना बदल रहा है। आज की महिलाएँ भी पुरुषों के साथ क़दम से क़दम मिला कर हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रही हैं, और इतना ही नहीं, बहुत जगहों पर पुरुषों को पीछे भी छोड़ रही हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीली महफ़िल में। पिछ्ले ८ मार्च को समूचे विश्व ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया और हर साल यह दिन इसी रूप में मनाया जाता है। हमनें भी ८ मार्च को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम को सलाम किया था, याद है न? लेकिन हमें लगा कि सिर्फ़ इतना काफ़ी नहीं है। क्योंकि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' हिंदी फ़िल्मों पर आधारित स्तंभ है, इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि फ़िल्म जगत की उन महिला कलाकारों को विशेष रूप से याद किया जाये, जिन्होंने विपरीत परिस्थितिओं में रहकर भी न केवल अपने लिए इस क्षेत्र में सम्माननीय जगह बनाई और विशिष्ट छाप छोड़ा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पथ प्रशस्त किया। फ़िल्म जगत की कुछ ऐसी ही महिला कलाकारों को लेकर प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'कोमल है कमज़ोर नहीं'। हम सभी कलाकारों को तो इन दस अंकों में शामिल नहीं कर सकते, लेकिन फ़िल्म निर्माण के अलग अलग विभागों से चुन कर हम कुछ स्तंभ कलाकारों को इसमें शामिल करेंगे, और ये प्रतिनिधित्व करेंगे अपने विभाग के सभी महिला कलाकारों का।
'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की पहली कड़ी में स्मरण एक ऐसी महिला का जिन्होंने एक नहीं बल्कि फ़िल्म निर्माण के कई कई विभागों में 'पायनीयर' का काम किया और इन विभागों में महिलाओं के प्रवेश का मार्ग आसान कर दिया। हम बात कर रहे हैं जद्दनबाई की। जद्दनबाई का जन्म सन् १८९२ में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। एक सूत्र के हिसाब से उनका जन्म १९०८ में हुआ था, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है। जद्दनबाई न केवल उन शुरुआती महिला गायिकाओं में से थीं जिनके ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड्स बनें, बल्कि वो सर्वप्रथम महिला संगीतकार भी थीं। साथ ही अभिनय और फ़िल्म निर्माण का पक्ष भी सम्भाला हिंदी फ़िल्मों के उस शुरुआती दौर में ही। आज की पीढ़ी के नौजवानों ने अगर जद्दनबाई का नाम नहीं सुन रखा है, तो उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि वो अभिनेत्री नरगिस की माँ और अभिनेता संजय दत्त की नानी थीं। अलाहाबाद में जद्दनबाई की परवरिश हुई। कहा जाता है कि जब जद्दनबाई छोटी थीं, तब कोठेवालिओं के एक मेले से वो उठा ली गईं और उन्हें एक तवाइफ़ के रूप में तैयार किया जाने लगा। जन्म से भले हिंदु हों, लेकिन वो आजीवन एक मुस्लिम बन कर रहीं। प्रसिद्ध ठुमरी गायक उस्ताद मोइजुद्दिन ख़ान की वो शिष्या बनीं, और उसके बाद उस्ताद बरक़त अली ख़ान और उस्ताद उमराव ख़ान से भी संगीत सीखा। उस्ताद उमराव ख़ान दिल्ली घराना के उस्ताद तनरस ख़ान के पुत्र थे। संगीत के प्रति लगाव और तमाम विपरीत परिस्थितिओं से लड़ने की क्षमता और धैर्य ने जद्दनबाई को एक 'सिंगिंग् स्टार' बना दिया। फ़िल्मकार महबूब ख़ान उनके अच्छे दोस्त रहे। जद्दनबाई के तीन संतान हुए तीन अलग अलग पुरुषों से। उत्तमचंद मोहनचंद से फ़ातिमा राशिद का जन्म हुआ, जिसने फ़िल्मों में उतरते वक़्त अपना नाम नरगिस रख लिया। जद्दनबाई की दूसरी संतान अख़्तर एक निर्देशक और अभिनेता बने, लेकिन फ़िल्मों को उतनी गम्भीरता से नहीं लिया। जद्दनबाई का तीसरा संतान, अनवर हुसैन, एक फ़िल्म अभिनेता बने पाये थे। १९३५ में जद्दनबाई ने 'तलाश-ए-हक़' फ़िल्म में संगीत देकर पहली महिला संगीत निर्देशिका बन गईं। १९३६ में उन्होंने स्थापना की 'संगीत फ़िल्म्स' की, जिसके तले उन्होंने कुछ फ़िल्मों का निर्माण किया और अपनी बेटी नरगिस को बतौर बाल कलाकार लौंच किया। बदक़िस्मती से जद्दनबाई को अपनी बेटी नरगिस को केवल १४ वर्ष की आयु से ही बतौर अभिनेत्री मैदान पर उतारना पड़ा, और नरगिस ने परिवार के भरण-पोषण की बागडोर सम्भाल ली। जद्दनबाई निर्मित कुछ फ़िल्मों के नाम हैं 'मैडम फ़ैशन' (१९३६), 'हृदय मंथन' (१९३६), 'मोती का हार' (१९३७), और 'जीवन स्वप्न' (१९३७)। इन फ़िल्मों के गानें रेकॊर्ड पर उतारे नहीं गये थे, शायद इसी वजह से आज ये गानें कहीं नहीं मिलते। इसलिए आइए आज जद्दनबाई को समर्पित करें उन्हीं की गायी हुई एक मशहूर ग़ैर फ़िल्मी ठुमरी "रूप जोबन गुन धरो रहत है"। इसे सुनवाने से पहले उनकी गायी कुछ और मशहूर रचनाओं का उल्लेख करना चाहेंगे, जैसे कि "तोड़ लायी राजा जामौनवा की डार", "लगत करेजवा में चोट", "ख़ान-ए-दिल से नुमाया है" आदि। तो लीजिए सुनते हैं ठुमरी "रूप जोबन..."। 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की पहली कड़ी आज समर्पित है जद्दनबाई और उनकी पुत्री नरगिस के नाम।
क्या आप जानते हैं...
कि एक समय था जब यह अफ़वाह ख़ूब उड़ी थी कि जद्दनबाई दरअसल मोतीलाल नेहरु और प्रसिद्ध वेश्या दलीपाबाई की नाजायज़ संतान हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 02/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक भजन है ये.
सवाल १ - किसकी आवाज़ है - २ अंक
सवाल २ - किस नारी को समर्पित है ये गीत, जो उस फिल्म का है जिसकी कहानी उन्हीं पर आधारित है- ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजाना जी की शुरूआत इस बार खराब रही, अमित जी सदाबहार साबित हुए है...हिन्दुस्तानी जी और विजय जी इस बार कुछ कर दिखाईये...अवध जी उम्मीद है आपकी फरमाईश पूरी हो गयी होगी :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
सवाल में ये नहीं पूछा गया है कि किस नारी रूप को समर्पित है ये गीत.
तो नारी अभिनेत्री , उसका निभाया पात्र या फिर पात्र का नाम सभी उत्तर सही हैं.
मेरे हिसाब से तो आप और अमित जी दोनों को अंक मिलने चाहिए. किसी एक का अंक काटना नाइंसाफी होगी.
इतनी अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद..
प्रतियोगिता में भाग कभी और लूँगा :)