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तेरा करम ही तेरी विजय है....यही तो सार है गीता का और यही है मन्त्र जीवन के हर खेल का भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 610/2010/310

खेलकूद और ख़ास कर क्रिकेट की चर्चा करते हुए आज हम आ पहुँचे हैं लघु शृंखला 'खेल खेल में' की दसवीं और अंतिम कड़ी पर। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और हार्दिक स्वागत है इस सप्ताह की आख़िरी नियमित कड़ी में। विश्वकप क्रिकेट में आपने 'प्रुडेन्शियल कप ट्रॊफ़ी' की बात ज़रूर सुनी होगी। आख़िर क्या है प्रुडेन्शियल कप, आइए आज इसी बारे में कुछ बातें करते हैं। जैसा कि आप जानते हैं पहला विश्वकप १९७५ में खेला गया था। इसकी शुरुआत ७ जून १९७५ को हुई थी। इसके बाद दूसरा और तीसरा विश्वकप भी इंगलैण्ड में ही आयोजित हुआ था और इन तीनों प्रतियोगिताओं को प्रुडेन्शियल कप का नाम दिया गया, इनके प्रायोजक प्रुडेन्शियल कंपनी के नाम पर। इन मैचों में हर टीम को ६० ओवर मिलते बल्लेबाज़ी के लिए, खेल दिन के वक़्त होता था, और खिलाड़ी सफ़ेद कपड़े पहनते और गेंद लाल रंग के हुआ करते थे। जिन आठ देशों ने पहला विश्वकप खेला था, उनके बारे में हम बता ही चुके हैं, आज इतना ज़रूर कहना चाहेंगे कि दक्षिण अफ़्रीका को खेल से बाहर रखा गया था 'अपारथेड' (वर्ण-विद्वेष) की वजह से। पहला विश्वकप वेस्ट इंडीज़ ने जीता था ऒस्ट्रेलिया को १७ रनों से हराकर। १९७९ के विश्वकप से ICC ट्रॊफ़ी लागू हुई और टेस्ट नहीं खेलने वाले देशों को भी विश्वकप में भाग लेने की अनुमति हो गई। श्रीलंका और कनाडा दो ऐसे देश थे। वेस्ट इंडीज़ दूसरी बार के लिए विश्वकप जीता, इस बार इंगलैण्ड को फ़ाइनल में ९२ रनों से हराकर। और इस विश्वकप के तुरंत बाद इस प्रतियोगिता को चार सालों में एक बार आयोजित करने का भी निर्णय ले लिया गया। १९८३ का विश्वकप भी इंगलैण्ड में ही खेला गया, और ज़िमबाबवे इस बार से विश्वकप में दाख़िल हो गया। इस विश्वकप से 'फ़ील्डिंग् सर्कल' का नियम लागू हुआ, जो स्टम्प्स से ३० यार्ड, यानी २७ मीटर की दूरी पर होता है। इस सर्कल के भीतर चार फ़ील्डर रह सकते हैं। कपिल देव की टीम ने वेस्ट इंडीज़ को फ़ाइनल में हराकर इतिहास कायम कर दिया था। तो दोस्तों, ये थी कुछ बातें प्रुडेन्शियल कप की, यानी पहले तीन विश्वकप क्रिकेट शृंखलाओं की।

'खेल खेल में' शृंखला की पहली कड़ी में हमने जो गीत सुनवाया था, उससे हमें यही संदेश मिला था कि दूसरों पर विजय प्राप्त करने से पहले हमें अपने आप पर जीत हासिल करना आवश्यक है। फिर उसके बाद अगले आठ अंकों में हमने अलग अलग तरह के गानें सुनवाए, जिनमें प्रतियोगिता की बातें थीं, किसी को चुनौती देने की बात थी, कहीं किसी को सीधा टक्कर दिया जा रहा था तो कभी ज़िंदगी में पास-फ़ेल की बातें भी हो रही थीं। और एक आध गीतों से तो ओवर-कॊन्फ़िडेन्स की बू भी आ रही थी। लेकिन आज हम फिर एक बार कुछ कुछ अपने पहले अंक के गीत के भाव की तरफ़ वापस जा रहे हैं, और एक ऐसा गाना आपको सुनवाने जा रहे हैं, जिसमें वही उपदेश दिया गया है जो सैंकड़ों साल पहले महाभारत की युद्ध भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था - "कर्मण्येवाधिकारस्ते माफलेषु कदाचन"। जी हाँ, बस कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो। इसी का एक आधुनिक संस्करण अभी हाल ही में आमिर ख़ान ने दिया था '३ इडियट्स' फ़िल्म में - "कामयाब नहीं काबिल होने के लिए पढ़ो, कामयाबी झक मार के पीछे आयेगी"। आज हम आपको सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'विजय' से "दुनिया बनी है जब से, गीता बोले तब से, तेरा करम ही तेरी विजय है"। आनंद बक्शी के बोल और शिव हरि का संगीत। इस गीत के दो संस्करण है, एक आशा भोसले की आवाज़ में और एक महेन्द्र कपूर का गाया हुआ। जहाँ आशा जी वाला वर्ज़न थोड़ा धीमा है, महेन्द्र कपूर वाले वर्ज़न में ज़्यादा जोश है और एक देशभक्ति गीत वाला रंग है, ठीक वैसा ही जैसा कि महेन्द्र कपूर साहब देश भक्ति रचनाएँ गाते आये हैं। और इसी के साथ 'खेल खेल में' शृंखला को समाप्त करने की हमें इजाज़त दीजिए। २०११ विश्वकप क्रिकेट के सभी खिलाड़ियों को, और आप सभी क्रिकेट प्रेमियों को हम शुभकामनाएँ देते हैं, और आख़िर में यही कहते हैं कि "May the best team win!!!" नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि गायक महेन्द्र कपूर ने १९५६ की फ़िल्म 'दीवाली की रात' में अपना पहला गीत गाया था "तेरे दर की भीख माँगी है दाता", जिसे मधुकर राजस्थानी ने लिखा तथा स्नेहल भाटकर ने स्वरबद्ध किया था। वैसे १९५५ की फ़िल्म 'मधुर मिलन' के गीत "जोरु ने निकाला है दीवाला" मेम रफ़ी साहब व अन्य गायकों के साथ महेन्द्र कपूर की भी आवाज़ शामिल थी।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 01/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - ये एक गैर फ़िल्मी ठुमरी है.

सवाल १ - किसकी आवाज़ है, पहचानिये - १ अंक
सवाल २ - ये गायिका किस मशहूर अभिनेत्री की माँ थी - ३ अंक
सवाल ३ - इस पहली महिला संगीतकारा ने एक फिल्म निर्माण कंपनी की स्थापना की, क्या था उनकी इस कंपनी का नाम - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी अब ५ श्रृंखलाओं में विजयी होकर श्याम कान्त जी से आगे निकल आये हैं जो ४ सीरिस में विजेता रहे थे, वैसे श्याम कान्त जी इन दिनों कहाँ गायब हैं, पता नहीं, अगर वो होते तो मुकाबल और रोचक होता, श्याम जी नयी शृंखला शुरू हो रही है, आईये फिर से सक्रिय हो जाईये....वैसे अंजाना जी और विजय जी भी अमित जी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं इसमें कोई शक नहीं....नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाये

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Anjaana said…
Bombay Talkies ?
नर्गिस की माँ
This post has been removed by the author.
विजय said…
Jaddanbai
हिन्दुस्तानी said…
Company Name: Sangeet Films
AVADH said…
पहेली की तीनों शर्तों को पूरा करने के लिए गायिका का नाम जद्दनबाई ही हो सकता है.
१. जद्दनबाई की पुत्री थीं नर्गिस (मूल नाम फातिमा रशीद).
२. उन्होंने एक फिल्म कंपनी 'संगीत फिल्म्स' की स्थापना की थी.
३. उन्होंने वर्ष १९३५ में फिल्म 'तलाशे हक' में संगीत दिया था और उन्हें इस तरह से भारत की पहली महिला संगीतकार किया जा सकता है.
वैसे अधिकतर लोग मानते हैं कि पहिली संगीतकारा थीं खुर्शीद मंचेर्शेर मिनोचर-होमजी जिन्हें हिमांशु राय ने सरस्वती देवी का नाम दिया था क्योंकि उन्होंने भी वर्ष १९३५ में (शायद जद्दनबाई की फिल्म से कुछ ही दिन पहले) फिल्म 'जवानी की हवा' में संगीत दिया था.
लेकिन प्रश्न १ और २ उन पर सटीक नहीं बैठते.
इसलिए सही उत्तर जद्दनबाई ही है.
अवध लाल
AVADH said…
भाई मैं तो शनिवार को उस गीत को सुनने की उम्मीद रखता हूँ जिसके बारे में मुझे यकीन था कि वह इस श्रृंखला में ज़रूर बजेगा - देव आनंद और माला सिन्हा अभिनीत 'लव मैरिज' का: "शी ने खेला ही से आज क्रिकेट मैच/ एक नज़र में दिल बेचारा हो गया एल बी डब्लू...
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अवध लाल

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