सुर संगम - 13 - जल तरंग की उमंग
नमस्कार! सुर-संगम की एक और संगीतमयी कड़ी में सभी श्रोता-पाठकों का हार्दिक अभिनंदन। कैसी रही आप सब की होली? आशा है सब ने खूब धूम मचाई होगी। मैनें भी हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड" के साथी सुजॉय दा के साथ मिलकर जम के होली मनाई। ख़ैर अब होली के बादल छट गए हैं और अपने साथ बहा ले गए हैं शीत एवं बसंत के दिनों को, साथ ही दस्तक दे चुकी हैं गरमियाँ। ऐसे में हम सब का जल का सहारा लेना अपेक्षित ही है। तो हमनें भी सोचा कि क्यों न आप सबकी संगीत-पिपासा को शाँत करने के लिए आज की कड़ी भी ऐसे ही किसी वाद्य पर आधारित हो जिसका संबंध जल से है। आप समझ ही गए होंगे कि मेरा संकेत है हमारे देश के एक असाधारण वाद्य - 'जल तरंग' की ओर।
जल तरंग असाधारण इसलिए है कि यह एक तालवाद्य भी है और घनवाद्य भी। मूलतः इसमें चीनी मिट्टी की बनी कटोरियों में पानी भर उन्हें अवरोही क्रम(descending order) अथवा पंक्ति अथवा किसी भी और सुविधाजनक समाकृति में सजाया जाता है। फिर इन कटोरियों में अलग-अलग परिमाण में जल भर कर इन्हें रागानुसार समस्वरित(tune) किया जाता है। जब इन कटोरियों पर बेंत अथवा लकड़ी के बने छड़ों से मार की जाती है तब इनकी कंपन से एक मधुर झनकार सी ध्वनि उत्पन्न होती है। इसी मधुर तरंग नुमा ध्वनि के कारण इस वाद्य का नाम 'जल तरंग' पड़ा। यूँ तो यह कहना कठिन है कि इस वाद्य की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई थी परंतु इसका सबसे पहला उल्लेख पाया जाता है मध्यकालीन ग्रंथ - 'संगीत पारिजात' में। तानसेन द्वारा रचित ग्रंथ 'संगीत सार' में जल तरंग का उल्लेख है। इस ग्रंथ के अनुसार जल तरंग को तभी पूरा माना गया है जब इसमें २२ कटोरियों क प्रयोग किया जाए। मध्य कालीन जलतरंग में काँसे की बनी कटोरियों का भी प्रयोग किया जाता था। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि मश्हूर सम्राट सिकंदर भारत आते समय मैसिडोनिया से कुछ जल तरंग वादको को अपने साथ ले आये थे। आज साधरणतः जल तरंग में १६ प्यालों का प्रयोग किया जाता है, इनमें बडे़ आकार के प्यालों से निचले सप्तक यानि मंद्र स्वर तथा छोटे आकार के प्यालों से ऊँचे सप्तक यानि तार स्वर उत्पन्न किये जाते हैं। आइये आनंद लेते हैं प्रख्यात जल तरंग वादिका डॉ० रागिनी त्रिवेदी की इस मनमोहक प्रस्तुति का। डॉ० त्रिवेदी भारत की प्रमुख महिला जल तरंग शिल्पियों में से एक हैं तथा इस लुप्त होती वाद्य कला को बचाए रखने में इनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।
भारत में कई प्रख्यात जल तरंग वादक हुए हैं जिनमें रामराव परसत्वर, डॉ० रागिनी त्रिवेदी, श्रीमति रंजना प्रधान, शंकर राव कनहेरे, अनयमपट्टि एस. धन्द्पानि, मिलिन्द तुलंकर, नेमानी सौमयाजुलु, सेजल चोकसी और बलराम दूबे प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त पाकिस्तान के लियाक़त अलि भी खासे प्रसिद्ध जल तरंग शिल्पी हैं। आज के दौर में मिलिन्द तुलंकर एक ऐसा नाम है जिसे भारत के सर्वश्रेष्ठ जल तरंग वादकों में लिया जाता है। मिलिन्द का जन्म तथा लालन-पालन एक "संगीतमय" परिवार में हुआ तथा उन्होंने बहुत ही कम आयु से ही जल-तरंग की विद्या अपने नाना स्वर्गीय पं० शंकरराव कनहेरे से प्राप्त करनी शुरू कर दी थी। पं० शंकरराव कनहेरे स्वयं एक विख्यात जल तरंग वादक थे तथा ऑल इण्डिया रेडियो के 'ए-ग्रेड' यानि प्रथम श्रेणि के कलाकारों में एक थे। उन्होंने देश-विदेश में कई समारोह प्रस्तुत कर जल तरंग को लोकप्रिय बनाया और इस वाद्य पर एक पुस्तक भी लिखी जिसे संगीत कार्यालय(हाथरस) ने प्रकाशित किया था। तो लीजिए पेश है उनकी छत्रछाया में पले-बढ़े मिलिन्द तुलंकर की इस प्रस्तुति का एक विडियो, आनंद लीजिए!
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
सुनिए इस टुकड़े को और पहचानिए कि यह कौन सी लोक-शैली है जो चैत्र के महीनें में गायी जाती है। गायिका आज के दौर के एक सुप्रसिद्ध अभिनेता कि माँ थीं, उन्हें पहचानने पर ५ बोनस अंक!
पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी ने राग को बिलकुल सही पहचाना और ५ अंक अर्जित कर लिए हैं। बधाई!
लीजिए, हम आ पहुँचे हैं 'सुर-संगम' की आज की कड़ी की समाप्ति पर। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामि रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने मित्र सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए, और शाम ६:३० बजे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पधारना न भूलिएगा, आपके प्रिय सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत करेंगे एक नई लघु शृंखला, नमस्कार!
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती
जल तरंग असाधारण इसलिए है कि यह एक तालवाद्य भी है और घनवाद्य भी। मूलतः इसमें चीनी मिट्टी की बनी कटोरियों में पानी भर उन्हें अवरोही क्रम(descending order) अथवा पंक्ति अथवा किसी भी और सुविधाजनक समाकृति में सजाया जाता है। फिर इन कटोरियों में अलग-अलग परिमाण में जल भर कर इन्हें रागानुसार समस्वरित(tune) किया जाता है। जब इन कटोरियों पर बेंत अथवा लकड़ी के बने छड़ों से मार की जाती है तब इनकी कंपन से एक मधुर झनकार सी ध्वनि उत्पन्न होती है।
नमस्कार! सुर-संगम की एक और संगीतमयी कड़ी में सभी श्रोता-पाठकों का हार्दिक अभिनंदन। कैसी रही आप सब की होली? आशा है सब ने खूब धूम मचाई होगी। मैनें भी हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड" के साथी सुजॉय दा के साथ मिलकर जम के होली मनाई। ख़ैर अब होली के बादल छट गए हैं और अपने साथ बहा ले गए हैं शीत एवं बसंत के दिनों को, साथ ही दस्तक दे चुकी हैं गरमियाँ। ऐसे में हम सब का जल का सहारा लेना अपेक्षित ही है। तो हमनें भी सोचा कि क्यों न आप सबकी संगीत-पिपासा को शाँत करने के लिए आज की कड़ी भी ऐसे ही किसी वाद्य पर आधारित हो जिसका संबंध जल से है। आप समझ ही गए होंगे कि मेरा संकेत है हमारे देश के एक असाधारण वाद्य - 'जल तरंग' की ओर।
जल तरंग असाधारण इसलिए है कि यह एक तालवाद्य भी है और घनवाद्य भी। मूलतः इसमें चीनी मिट्टी की बनी कटोरियों में पानी भर उन्हें अवरोही क्रम(descending order) अथवा पंक्ति अथवा किसी भी और सुविधाजनक समाकृति में सजाया जाता है। फिर इन कटोरियों में अलग-अलग परिमाण में जल भर कर इन्हें रागानुसार समस्वरित(tune) किया जाता है। जब इन कटोरियों पर बेंत अथवा लकड़ी के बने छड़ों से मार की जाती है तब इनकी कंपन से एक मधुर झनकार सी ध्वनि उत्पन्न होती है। इसी मधुर तरंग नुमा ध्वनि के कारण इस वाद्य का नाम 'जल तरंग' पड़ा। यूँ तो यह कहना कठिन है कि इस वाद्य की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई थी परंतु इसका सबसे पहला उल्लेख पाया जाता है मध्यकालीन ग्रंथ - 'संगीत पारिजात' में। तानसेन द्वारा रचित ग्रंथ 'संगीत सार' में जल तरंग का उल्लेख है। इस ग्रंथ के अनुसार जल तरंग को तभी पूरा माना गया है जब इसमें २२ कटोरियों क प्रयोग किया जाए। मध्य कालीन जलतरंग में काँसे की बनी कटोरियों का भी प्रयोग किया जाता था। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि मश्हूर सम्राट सिकंदर भारत आते समय मैसिडोनिया से कुछ जल तरंग वादको को अपने साथ ले आये थे। आज साधरणतः जल तरंग में १६ प्यालों का प्रयोग किया जाता है, इनमें बडे़ आकार के प्यालों से निचले सप्तक यानि मंद्र स्वर तथा छोटे आकार के प्यालों से ऊँचे सप्तक यानि तार स्वर उत्पन्न किये जाते हैं। आइये आनंद लेते हैं प्रख्यात जल तरंग वादिका डॉ० रागिनी त्रिवेदी की इस मनमोहक प्रस्तुति का। डॉ० त्रिवेदी भारत की प्रमुख महिला जल तरंग शिल्पियों में से एक हैं तथा इस लुप्त होती वाद्य कला को बचाए रखने में इनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।
भारत में कई प्रख्यात जल तरंग वादक हुए हैं जिनमें रामराव परसत्वर, डॉ० रागिनी त्रिवेदी, श्रीमति रंजना प्रधान, शंकर राव कनहेरे, अनयमपट्टि एस. धन्द्पानि, मिलिन्द तुलंकर, नेमानी सौमयाजुलु, सेजल चोकसी और बलराम दूबे प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त पाकिस्तान के लियाक़त अलि भी खासे प्रसिद्ध जल तरंग शिल्पी हैं। आज के दौर में मिलिन्द तुलंकर एक ऐसा नाम है जिसे भारत के सर्वश्रेष्ठ जल तरंग वादकों में लिया जाता है। मिलिन्द का जन्म तथा लालन-पालन एक "संगीतमय" परिवार में हुआ तथा उन्होंने बहुत ही कम आयु से ही जल-तरंग की विद्या अपने नाना स्वर्गीय पं० शंकरराव कनहेरे से प्राप्त करनी शुरू कर दी थी। पं० शंकरराव कनहेरे स्वयं एक विख्यात जल तरंग वादक थे तथा ऑल इण्डिया रेडियो के 'ए-ग्रेड' यानि प्रथम श्रेणि के कलाकारों में एक थे। उन्होंने देश-विदेश में कई समारोह प्रस्तुत कर जल तरंग को लोकप्रिय बनाया और इस वाद्य पर एक पुस्तक भी लिखी जिसे संगीत कार्यालय(हाथरस) ने प्रकाशित किया था। तो लीजिए पेश है उनकी छत्रछाया में पले-बढ़े मिलिन्द तुलंकर की इस प्रस्तुति का एक विडियो, आनंद लीजिए!
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
सुनिए इस टुकड़े को और पहचानिए कि यह कौन सी लोक-शैली है जो चैत्र के महीनें में गायी जाती है। गायिका आज के दौर के एक सुप्रसिद्ध अभिनेता कि माँ थीं, उन्हें पहचानने पर ५ बोनस अंक!
पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी ने राग को बिलकुल सही पहचाना और ५ अंक अर्जित कर लिए हैं। बधाई!
लीजिए, हम आ पहुँचे हैं 'सुर-संगम' की आज की कड़ी की समाप्ति पर। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामि रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने मित्र सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए, और शाम ६:३० बजे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पधारना न भूलिएगा, आपके प्रिय सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत करेंगे एक नई लघु शृंखला, नमस्कार!
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती
आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.
Comments
गायिका - 'Nazeem urf Nirmala Devi'
Chaiti is sung in the month of Chait that falls in March/April as per the Hindu calendar.
सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका: निर्मला देवी (आहूजा) लोकप्रिय कलाकार गोविंदा की माता जी.
अवध लाल