Skip to main content

संगीत समीक्षा - सतरंगी पैराशूट - बच्चों की इस फिल्म के संगीत के लिए एकजुट हुए चार दौर के फनकार, देने एक सुरीला सरप्रायिस

Taaza Sur Taal (TST) - 06/2011 - SATRANGEE PARACHUTE

'आवाज़' के दोस्तों नमस्कार! मैं, सुजॊय चटर्जी, साप्ताहिक स्तंभ 'ताज़ा सुर ताल' के साथ हाज़िर हूँ। साल २०११ के फ़िल्मों की अगर हम बात करें तो 'ताज़ा सुर ताल' में इस साल हमनें जिन फ़िल्मों की चर्चा की है, वो हैं 'नो वन किल्ड जेसिका', 'यमला पगला दीवाना', 'धोबी घाट', 'दिल तो बच्चा है जी', 'ये साली ज़िंदगी', 'सात ख़ून माफ़' और 'तनु वेड्स मनु'। एक और महत्वपूर्ण फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी वर्ल्ड कप क्रिकेट शुरु होने से ठीक पहले, पटियाला हाउस, जिसका केन्द्रबिंदु भी क्रिकेट ही था। अक्षय कुमार, ऋषी कपूर, डिम्पल कपाडिया अभिनीत यह फ़िल्म अच्छी बनी, लेकिन इसके संगीत नें कोई छाप नहीं छोड़ी। और २०११ की अब तक की कुछ और प्रदर्शित फ़िल्में जो कब आईं और कब गईं पता भी नहीं चला, और न ही पता चला उनके संगीत का, ऐसी फ़िल्मों में कुछ नाम हैं - 'विकल्प', 'मुंबई मस्त कलंदर', 'होस्टल', 'यूनाइटेड सिक्स', 'ऐंजेल', 'तुम ही तो हो' वगेरह। क्रिकेट विश्वकप भी एक वजह है कि इन दिनों बड़े बैनर की फ़िल्में प्रदर्शित नहीं हो रही हैं। २०११ के कलेण्डर में अगर नज़र डालें तो मार्च के महीने के लिए केवल दो फ़िल्मों के रिलीज़ डेट्स दिये गये हैं - ४ मार्च को 'ये फ़ासले' और २५ मार्च को 'हैप्पी हस्बैण्ड्स'।

आज 'ताज़ा सुर ताल' में हम जिस फ़िल्म की चर्चा करने जा रहे हैं वह एक बच्चों की फ़िल्म है। एक ज़माना था जब बच्चों के लिए फ़िल्में बनती थीं जिनका बच्चे और बड़े, सभी आनंद लिया करते थे और वो फ़िल्में सफल भी होती थीं। लेकिन आज बच्चों के लिए फ़िल्मों का निर्माण लगभग बंद हो चुका है। और जो गिनी-चुनी फ़िल्में बनती हैं, उनका न तो कोई प्रचार होता है, और न ही किसी का इनकी तरफ़ ध्यान जाता है। आप ही बताइए 'सतरंगी पैराशूट' नाम से जो फ़िल्म आई है, इसके बारे में आप में से कितनों को पता है? फ़िल्म के शीर्षक से भी ज़्यादा कुछ अनुमान लगाना मुश्किल है और फ़िल्म में नये संगीतकार कौशिक दत्ता और गीतकार राजीव बरनवाल के होने से इस ऐल्बम से किस तरह की उम्मीद की जाये, ये भी विचारणीय है। इसलिए हमनें सोचा कि क्यों न हम ही इसके गीतों को सुन कर आपको इसकी समीक्षा दें! 'सतरंगी पैराशूट' विनीत खेत्रपाल निर्मित व निर्देशित फ़िल्म है, जिसमें मुख्य किरदारों में तो कुछ दिलचस्प बच्चे ही हैं, और साथ में हैं जैकी श्रॊफ़, के. के. मेनन, संजय मिश्रा और ज़ाकिर हुसैन। पप्पु की भूमिका में जिस बच्चे ने अभिनय किया है, उनका नाम है सिद्धार्थ संघानी। कहानी कुछ इस तरह की है कि पप्पु अपने अंधी दोस्त कुहू के लिए एक पैराशूट ढूंढने निकल पड़ता है। वो अपने दोस्तों के साथ इस तलाश में निकल पड़ता है और नैनिताल से पहुँच जाता है मायानगरी मुंबई। लेकिन उन्हें क्या पता मुंबई के असली रूप का! पप्पु और उसके दोस्त उग्रपंथियों के साथ जाने अंजाने में भिड़ जाता है, जो मुंबई में आतंक फैलाने के लिए पैराशूटों का इस्तेमाल करने वाले हैं।

'सतरंगी पैराशूट' ऐल्बम का पहला ट्रैक है "ज़िंदगी की राह में मुस्कुराता चल", जिसे कैलाश खेर नें गाया है। कैलाश खेर वैसे भी दार्शनिक गीत गाने के लिए जाने जाते हैं, और यह गीत भी उसी जौनर का है। गीत के शब्दों में कोई नई बात तो नहीं, लेकिन गीत का रिदम हमें गीत में बनाये रखता है, और सुनने में अच्छा लगता है। ऒर्केस्ट्रेशन भी "सुरीला" है और इस गीत को सुनते हुए दिल में एक चाह सी जगती है ऐल्बम के दूसरे गीत को सुनने की। ये सोचकर कि जिस तरह से इस गीत का संगीत कुछ अलग सा सुनाई दे रहा है, क्या दूसरे गीत में भी कोई ख़ास बात होगी?

ऐल्बम का दूसरा गीत है एक लोरी। दोस्तों, एक समय था जब किसी फ़िल्म के अलग अलग गीत अलग अलग सिचुएशन्स पर हुआ करते थे, और लोरी, भजन, क़व्वाली, देश भक्ति गीत, ग़ज़ल, तथा हर तरह के गीत बारी बारी से फ़िल्मों में आते रहते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से तो फ़िल्मों में बस तीन ही तरह के गीत रह गये हैं - हप्पी सॊंग्, सैड सॊंग् और डान्स नंबर्स। ऐसे में 'सतरंगी पैरशूट' में श्रेया घोषाल की गाई लोरी की सराहना करनी ही पड़ेगी। "मेरे बच्चे तेरी माँ ये रोज़ कहानी सुनाये, चंदा मामा परियों वाली चैन से तू सो जाये, सपनें में फिर आये वह गिलहरी, बगिया में जो है कूदती रहती, तुम उसके पीछे भागते रहते, और मैं तुमको बस देखती रहती"। राजीव बरनवाल द्वारे बुनें इन प्यारे प्यारे बोलों पर श्रेया की सुरीली आवाज़ और नर्म अंदाज़ नें लोरी के मूड को बरक़रार रखा है, और लोरी जौनर के गीतों में बहुत दिनों के बाद एक इजाफ़ा हो गया है। कौशिक दत्ता नें इस गीत के ऒर्केस्ट्रेशन के साथ भी पूरा पूरा न्याय किया है। हमारी तरफ़ से तो इस गीत को भी "थम्प्स-अप"!!!

'सतरंगी पैराशूट' ऐल्बम का तीसरा गीत है शान की आवाज़ में। इस यात्रा-गीत के बोल हैं "चल पड़े हम क्या ठिकाना सोचा नहीं, मंज़िल पता है रस्ता कहाँ पता नहीं, बस चल दिये..."। जी हाँ, मुझे भी इस गीत को सुनते हुए शान का ही गाया प्रसिद्ध ग़ैर फ़िल्मी गीत "आँखों में सपने लिये घर से हम चल तो दिये" की याद आ गई थी। श्रेया की गाई लोरी की ही तरह इस गीत में भी गीतकार नें जो कहना चाहा है, संगीतकार नें धुन और ऒर्केस्ट्रेशन से उनका पूरा पूरा साथ निभाया है, जिस वजह से ऐल्बम में दिलचस्पी बनी रहती है, ठीक वैसे ही जैसे कि इस गीत में ज़िंदगी में बने रहने की सबक दी गई है।

और अब एक महत्वपूर्ण गीत। महत्वपूर्ण इसलिए कि इसे गाया है लता मंगेशकर नें। यह चमत्कार ही है कि ८३ वर्षीय लता जी नें २४ वर्षीय फ़िल्मकार की इस फ़िल्म के इस गीत में एक ८ वर्षीय बच्चे का पार्श्वगायन किया है। "तेरे हँसने से मुझको आती है हँसी, तेरी सारी बातें चुपचाप मैं सुनती" में लता जी की गायन के साथ साथ उनकी वह ख़ास हँसी भी सुनने को मिलती है जो हँसी उनके गाये बहुत से गीतों में हमनें समय समय पर सुना है। कुछ की याद दिलायें? 'प्रेम रोग' में "भँवरे ने खिलाया है फूल", 'सन्यासी' में "सुन बाल ब्रह्मचारी मैं हूँ कन्याकुमारी", 'एक दूजे के लिए' में "हम बने तुम बने", 'सितारा' में "थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमान" वगेरह। आपको बता दूँ कि 'सतरंगी पैराशूट' के इस गीत को स्वरबद्ध कौशिक दत्ता ने नहीं बल्कि शमीर टंडन नें किया है। वही शमीर टंडन जिन्होंने लता जी को 'पेज-३' और 'जेल' में गवाया है। शमीर आज के दौर के उन गिनेचुने संगीतकारों में से हैं जिनके साथ लता जी काम करती हैं। हमनें शमीर जी से सम्पर्क किया कि लता जी के साथ उनके ऐसोसिएशन के बारे में हमें कुछ विस्तार से बतायें, तो शमीर जी नें हमसे वादा किया है कि जल्द ही हमें इंटरव्यु देंगे, लेकिन व्यस्तता की वजह से यह संभव नहीं हो सका है। हमारी कोशिशें जारी हैं कि जल्द से जल्द हम उनसे बातचीत कर आप तक पहँचायें। ख़ैर, "तेरे हँसने से" गीत इस ऐल्बम रूपी अंगूठी का नगीना है, और यही सिर्फ़ काफ़ी है कि इसे लता जी नें गाया है। १९४२ में उन्होंने अपना पहला गीत रेकॊर्ड किया था और यह है साल २०११, यानी कि इस गीत के साथ लता जी के करीयर के ७० साल पूरे हो रहे हैं। आश्चर्य, आश्चर्य, आश्चर्य!!!

साधारणत: लोरियों पर माँ दादी नानी का एकतरफ़ा हक़ रहा है और फ़िल्मों की कहानियों में भी लोरी गीत इन्हीं किरदारों पर फ़िल्माये जाते रहे हैं। लेकिन कभी कभार गायकों नें भी लोरियाँ गाये हैं, जैसे कि सहगल साहब नें फ़िल्म 'ज़िंदगी' में "सो जा राजकुमारी सो जा", 'प्रेसिडेण्ट' फ़िल्म में "एक राज्य का बेटा लेकर उड़ने वाला घोड़ा", चितलकर नें 'आज़ाद' में "धीरे से आजा री अखियन में निंदिया", मुकेश नें फ़िल्म 'मिलन' में "राम करे ऐसा हो जाये", रफ़ी साहब नें 'ब्रह्मचारी' में "मैं गाऊँ तुम सो जाओ", और किशोर कुमार नें महमूद की फ़िल्म 'कुंवारा बाप' में "आ री आजा निंदिया तू ले चल कहीं" जैसी लोरियाँ न केवल गाये बल्कि ये लोरियाँ बहुत बहुत मशहूर भी हुईं। लेकिन उस गीत को आप क्या नाम देंगे जो वैसे तो लोरी नहीं है, पर बच्चा बड़ा होनें के बाद अपने बचपन में अपनी माँ से सुनी हुई लोरी को याद करते हुए गाता है? 'सतरंगी पैराशूट' में भी इसी तरह का एक गीत है राहत फ़तेह अली ख़ान का गाया हुआ। "तेरी लोरी याद है आती, तेरे बिना मैं सो न पाऊँ, कैसा है न जाने अंधेरा, देखो मैं डर डर जाऊँ"। मेरे ख़याल से यही गीत इस ऐल्बम का अब तक का सब से अच्छा गीत है, जो दिल को छू जाता है। राहत साहब की आवाज़ वह माध्यम है जो शब्दों को दिल की गहराइयों तक पहुँचाने का काम करती है। जैसा कि हमनें कहा लोरी को याद करते हुए गाया जा रहा है यह गीत, लेकिन इसकी शक्ल भी लोरी जैसी ही है। एक और 'थम्प्स-अप'!

जिस तरह से शमीर टंडन इस फ़िल्म एक अतिथि संगीतकार है वैसे ही पिंकी पूनावाला अतिथि गीतकार के रूप में इस फ़िल्म का एक गीत लिखा है - "कभी लगी हाथों को छू कर ख़ुशी उड गई, कभी लगी कभी न आयेगी हाथ ये मनचली, कभी छू लूँ कभी पा लूँ, कभी आँखें मूंद कोई सपना देख लूँ, कभी चलूँ कभी दौड़ूँ, कभी उड़ने की ख़्वाहिशें दिल में रख लूँ, उड़ जा उड़ जा ऊँचे आसमाँ को छू जा, जी जा जी जा अपने सपनों को जी जा"। और इसे आवाज़ें दी हैं 'ज़ी सा रे गा मा' प्रतियोगिता के प्रतिभागी अभिलाषा, अली शेर और ख़ुर्रम नें। गायकी अच्छी है इन सब की, और इन नई आवाज़ों में इस गीत का भाव भी सटीक बैठता है कि अपनें सपनों को जी जा, ऊँचे आसमाँ पे उड़ जा। एक और आशावादी गीत!
एक और सरप्राइज़ 'सतरंगी पैराशूट' ऐल्बम में आप पा सकते हैं उषा उथुप की आवाज़ में एक गीत, बल्कि एक रीमिक्स गीत। 'मिस्टर नटवरलाल' फ़िल्म का वह मशहूर गीत "मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक क़िस्सा सुनो" अमिताभ बच्चन का गाया हुआ, उसे उषा जी नें अपनी ख़ास शैली में गाया है। इन दोनों की हम तुलना नहीं करना चाहेंगे। उसमें बिग-बी का स्टाइल था, इसमें उषा उथुप की ख़ास अंदाज़-ए-बयाँ है जिसके लिए वो जानी जाती हैं। हम तो बस विनीत खेत्रपाल जी का शुक्रिया ही अदा करेंगे जिन्होंने चार अलग अलग दौर के गायकों को एक साथ इस फ़िल्म में लेकर आये हैं, यानी कि पहले दौर से लता मंगेशकर, उसके बाद उषा उथुप, आज की दौर से श्रेया, शान, राहत, और आनेवाले कल से अभिलाषा, अली शेर और ख़ुर्रम को। 'सतरंगी पैराशूट' ऐल्बम का समापन 'सतरंगी थीम' से होता है जो एक कर्णप्रिय पीस है, जिसका बेस पाश्चात्य है और एक अंतर्राष्ट्रीय अपील है।

हमारी तरफ़ से 'सतरंगी पैराशूट' ऐल्बम को १० में ७.५ की रेटिंग् दी जाती है। और आपके लिए यही सुझाव है कि इस फ़िल्म का संगीत अच्छा है, लेकिन कामयाब होगा कि नहीं यह फ़िल्म पर निर्भर करती है। अगर सही तरीक़े से प्रोमोट किया जाये तो यह संगीत भी कमाल कर सकता है। इस ऐल्बम से हमारा पिक है राहत फ़तेह अली ख़ान क गाया "तेरी लोरी याद है आती"। अब 'ताज़ा सुर ताल' स्तंभ से मुझे इजाज़त दीजिये, शाम को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर दुबारा मुलाक़ात होगी, नमस्कार!



अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।

Comments

WAKAI EK SURILA SURPRISE THA, TUMHARI SAMEEKSHA KE BAAD HI SUNE GEET, BADHIYA LAGE :)
Anita said…
समीक्षा पूरी पढ़ती गयी कल्पना में गीत भी सुने कि आखिर में असल में सुनूंगी पर यहाँ तो कोई गीत नहीं हैं, खैर समीक्षा के लिये आभार!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट