कोमल है कमज़ोर नहीं तू.....जब खुद एक सशक्त महिला के गले से निकला हो ऐसा गीत तो निश्चित ही एक प्रेरणा स्रोत बन जाता है
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 619/2010/319
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की कल की कड़ी में हमनें यह कहा था कि पार्श्वगायन को छोड़ कर हिंदी फ़िल्म निर्माण के अन्य सभी क्षेत्रों में पुरुषों का ही शुरु से दबदबा रहा है। दोस्तों, भले ही पार्श्वगायन की तरफ़ महिलाओं ने बहुत पहले से ही क़दम बढ़ा लिया था, लेकिन इस राह पर चलने और सफलता प्राप्त करने के लिए भी गायिकाओं को कड़ी मेहनत करनी पड़ी है। १९३३ में एक बच्ची का जन्म हुआ था जिसने ९ वर्ष की आयु में ही अपने पिता को खो दिया। जब वो १६ वर्ष की हुईं तो एक ३१ वर्षीय आदमी से अपने परिवार के ख़िलाफ़ जाकर प्रेम-विवाह कर लिया। और इस वजह से उनके परिवार ने उनसे रिश्ता तोड़ लिया। और अफ़सोस की बात यह कि ससुराल वालों ने भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया। अपने बच्चों को पालने के लिए वो पार्श्वगायन के मैदान में उतरीं। गर्भवती अवस्था में भी उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आगे चलकर उन्होंने अपने बच्चों को लेकर हमेशा के लिए अपने पति का घर छोड़ दिया। पार्श्वगायन में शुरु शुरु में उन्हें कमचर्चित संगीतकारों के लिए ही गाने के मौके मिलते थे, जिस वजह से सफलता उनसे दूर दूर ही रहती, लेकिन १० वर्षों तक लगातार संघर्ष करने के बाद सफलता आख़िर उनके क़दमों पे आकर गिर ही पड़ीं, और आज 'आशा भोसले' का नाम बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर फिरता है। 'कोमल है कमज़ोर नहीं' की नौवीं कड़ी है आशा जी के नाम। आशा जी के बारे में और नया क्या बताऊँ, चलिए आज उनको मिले पुरस्कारों पर एक नज़र डालते हैं। उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से १९६७, १९६८, १९७१, १९७२, १९७३, १९७४, १९७७ और २००० में सम्मानित किया गया है। राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें मिले १९८१ और १९८६ में। अन्य पुरस्कारों में शामिल हैं नाइटिंगेल ऒफ़ एशिया अवार्ड (१९८७), मध्य प्रदेश शासन पदत्त लता मंगेशकर अवार्ड (१९८९), स्क्रीन विडिओकोन अवार्ड (१९९७, २००२), एम.टी.वी अवार्ड (१९९७, २००१), चैनल वी अवार्ड (१९९७), दयावती मोदी अवार्ड (१९९८), महाराष्ट्र शासन प्रदत्त लता मंगेशकर अवार्ड (१९९९), सिंगर ऒफ़ दि मिलेनियम अवार्ड (२०००), ज़ी गोल्ड बॊलीवूड अवार्ड (२०००), बी.बी.सी. लाइफ़टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड (२००२), ज़ी सिने अवार्ड (२००२), सैन्सुइ मूवी अवार्ड (२००२), स्वरालय येसुदास अवार्ड (२००२), इण्डियन चेम्बर ऒफ़ कॊमर्स प्रदत्त लिविंग् लिजेण्ड अवार्ड (२००४) आदि। लेकिन इन सब से भी बड़ा पुरस्कार है उनके असंख्य चाहनेवालों का प्यार जो उन्हें बराबर मिलता आया है और आगे भी मिलता रहेगा।
आशा भोसले को सलाम करने के लिए हमने जो गीत चुना है, वह वही गीत है जिसके मुखड़े की पंक्ति से प्रेरीत होकर हमनें इस शृंखला का शीर्षक रखा है "कोमल है कमज़ोर नहीं"। जी हाँ, यह फ़िल्म 'आख़िर क्यों?' का गीत है जो फ़िल्माया गया है स्मिता पाटिल पर। इस फ़िल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि निशा (स्मिता पाटिल) अपने पति कबीर (राकेश रोशन) के साथ ख़ुशी ख़ुशी जीवन बिता रही होती हैं। लेकिन जल्द ही निशा के जीवन में प्रलय आ जाती है जब उन्हें पता चलता है कि कबीर का उसकी की बहन इंदु (टिना मुनीम) के साथ संबंध है। निशा अपनी बेटी को लेकर घर छोड़ देती है और फिर शुरु होता है उसका संघर्ष। वो अपने पैरों पर खड़ी होती है, लड़कियों के एक स्कूल में म्युज़िक टीचर की नौकरी करती है और अपनी बेटी को पालती है। और इस सफ़र में उसका हमसफ़र बनने के लिए उसके जीवन में आता है लेखक आलोक (राजेश खन्ना)। जे. ओम प्रकाश निर्देशित १९८५ की फ़िल्म 'आख़िर क्यों?' की पटकथा व संवाद लिखीं डॊ. अचला नागर नें। राजेश रोशन का संगीत था तथा इंदीवर के लिखे इस फ़िल्म के गीतों को ख़ूब लोकप्रियता मिली थी। "दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है", "एक अंधेरा लाख सितारे", "सात रंग में खेल रही है दिलवालों की टोली रे" और "शाम हुई चढ़ आयी रे बदरिया" जैसे कामयाब गीतों के साथ साथ आज का प्रस्तुत गीत भी काफ़ी सुना गया। आज का यह गीत इस शृंखला के लिए बहुत ही सटीक है, इसके एक एक शब्द से नारी-शक्ति की ख़ुशबू आती है। कविता की शैली में लिखा यह गीत सुनने से पहले पढ़िए इसके बोल...
कोमल है कमज़ोर नहीं तू,
शक्ति का नाम ही नारी है,
जग को जीवन देनेवाली,
मौत भी तुझसे हारी है।
सतियों के नाम पे तुझे जलाया,
मीरा के नाम पे ज़हर पिलाया,
सीता जैसी अग्नि-परीक्षा
जग में अब तक जारी है।
इल्म हुनर में दिल दिमाग में
किसी बात में कम तू नहीं,
पुरुषों वाले सारे ही
अधिकारों की अधिकारी है।
बहुत हो चुका अब मत सहना,
तुझे इतिहास बदलना है,
नारी को कोई कह ना पाये
अबला है बेचारी है।
'कोमल है कमज़ोर नहीं' का यह अंक समर्पित है आशा भोसले स्मिता पाटिल और डॊ. अचला नागर के नाम!
क्या आप जानते हैं...
कि आशा भोसले नें भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी और मलय भाषाओं में भी गीत गाये हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - महान लता को समर्पित है ये अंक, तो चंद सवाल उन्हीं के बारे में आज.
सवाल १ - लता ने अपना पहला पार्श्वगायन किस संगीतकार के लिए किया था - २ अंक
सवाल २ - उनके सबसे पहले गाये गीत "मैं खिली खिली" में किसने उनका साथ दिया था यानी आवाज़ मिलाई थी - ३ अंक
सवाल ३ - प्रस्तुत गीत के संगीतकार ने एक मराठी फिल्म में चारों मंगेशकर बहनों को एक साथ गवाया था, क्या है उस मराठी फिल्म का नाम - ४ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजाना जी आज आखिरी मौका है, कुछ कर गुजरिये....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की कल की कड़ी में हमनें यह कहा था कि पार्श्वगायन को छोड़ कर हिंदी फ़िल्म निर्माण के अन्य सभी क्षेत्रों में पुरुषों का ही शुरु से दबदबा रहा है। दोस्तों, भले ही पार्श्वगायन की तरफ़ महिलाओं ने बहुत पहले से ही क़दम बढ़ा लिया था, लेकिन इस राह पर चलने और सफलता प्राप्त करने के लिए भी गायिकाओं को कड़ी मेहनत करनी पड़ी है। १९३३ में एक बच्ची का जन्म हुआ था जिसने ९ वर्ष की आयु में ही अपने पिता को खो दिया। जब वो १६ वर्ष की हुईं तो एक ३१ वर्षीय आदमी से अपने परिवार के ख़िलाफ़ जाकर प्रेम-विवाह कर लिया। और इस वजह से उनके परिवार ने उनसे रिश्ता तोड़ लिया। और अफ़सोस की बात यह कि ससुराल वालों ने भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया। अपने बच्चों को पालने के लिए वो पार्श्वगायन के मैदान में उतरीं। गर्भवती अवस्था में भी उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आगे चलकर उन्होंने अपने बच्चों को लेकर हमेशा के लिए अपने पति का घर छोड़ दिया। पार्श्वगायन में शुरु शुरु में उन्हें कमचर्चित संगीतकारों के लिए ही गाने के मौके मिलते थे, जिस वजह से सफलता उनसे दूर दूर ही रहती, लेकिन १० वर्षों तक लगातार संघर्ष करने के बाद सफलता आख़िर उनके क़दमों पे आकर गिर ही पड़ीं, और आज 'आशा भोसले' का नाम बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर फिरता है। 'कोमल है कमज़ोर नहीं' की नौवीं कड़ी है आशा जी के नाम। आशा जी के बारे में और नया क्या बताऊँ, चलिए आज उनको मिले पुरस्कारों पर एक नज़र डालते हैं। उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से १९६७, १९६८, १९७१, १९७२, १९७३, १९७४, १९७७ और २००० में सम्मानित किया गया है। राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें मिले १९८१ और १९८६ में। अन्य पुरस्कारों में शामिल हैं नाइटिंगेल ऒफ़ एशिया अवार्ड (१९८७), मध्य प्रदेश शासन पदत्त लता मंगेशकर अवार्ड (१९८९), स्क्रीन विडिओकोन अवार्ड (१९९७, २००२), एम.टी.वी अवार्ड (१९९७, २००१), चैनल वी अवार्ड (१९९७), दयावती मोदी अवार्ड (१९९८), महाराष्ट्र शासन प्रदत्त लता मंगेशकर अवार्ड (१९९९), सिंगर ऒफ़ दि मिलेनियम अवार्ड (२०००), ज़ी गोल्ड बॊलीवूड अवार्ड (२०००), बी.बी.सी. लाइफ़टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड (२००२), ज़ी सिने अवार्ड (२००२), सैन्सुइ मूवी अवार्ड (२००२), स्वरालय येसुदास अवार्ड (२००२), इण्डियन चेम्बर ऒफ़ कॊमर्स प्रदत्त लिविंग् लिजेण्ड अवार्ड (२००४) आदि। लेकिन इन सब से भी बड़ा पुरस्कार है उनके असंख्य चाहनेवालों का प्यार जो उन्हें बराबर मिलता आया है और आगे भी मिलता रहेगा।
आशा भोसले को सलाम करने के लिए हमने जो गीत चुना है, वह वही गीत है जिसके मुखड़े की पंक्ति से प्रेरीत होकर हमनें इस शृंखला का शीर्षक रखा है "कोमल है कमज़ोर नहीं"। जी हाँ, यह फ़िल्म 'आख़िर क्यों?' का गीत है जो फ़िल्माया गया है स्मिता पाटिल पर। इस फ़िल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि निशा (स्मिता पाटिल) अपने पति कबीर (राकेश रोशन) के साथ ख़ुशी ख़ुशी जीवन बिता रही होती हैं। लेकिन जल्द ही निशा के जीवन में प्रलय आ जाती है जब उन्हें पता चलता है कि कबीर का उसकी की बहन इंदु (टिना मुनीम) के साथ संबंध है। निशा अपनी बेटी को लेकर घर छोड़ देती है और फिर शुरु होता है उसका संघर्ष। वो अपने पैरों पर खड़ी होती है, लड़कियों के एक स्कूल में म्युज़िक टीचर की नौकरी करती है और अपनी बेटी को पालती है। और इस सफ़र में उसका हमसफ़र बनने के लिए उसके जीवन में आता है लेखक आलोक (राजेश खन्ना)। जे. ओम प्रकाश निर्देशित १९८५ की फ़िल्म 'आख़िर क्यों?' की पटकथा व संवाद लिखीं डॊ. अचला नागर नें। राजेश रोशन का संगीत था तथा इंदीवर के लिखे इस फ़िल्म के गीतों को ख़ूब लोकप्रियता मिली थी। "दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है", "एक अंधेरा लाख सितारे", "सात रंग में खेल रही है दिलवालों की टोली रे" और "शाम हुई चढ़ आयी रे बदरिया" जैसे कामयाब गीतों के साथ साथ आज का प्रस्तुत गीत भी काफ़ी सुना गया। आज का यह गीत इस शृंखला के लिए बहुत ही सटीक है, इसके एक एक शब्द से नारी-शक्ति की ख़ुशबू आती है। कविता की शैली में लिखा यह गीत सुनने से पहले पढ़िए इसके बोल...
कोमल है कमज़ोर नहीं तू,
शक्ति का नाम ही नारी है,
जग को जीवन देनेवाली,
मौत भी तुझसे हारी है।
सतियों के नाम पे तुझे जलाया,
मीरा के नाम पे ज़हर पिलाया,
सीता जैसी अग्नि-परीक्षा
जग में अब तक जारी है।
इल्म हुनर में दिल दिमाग में
किसी बात में कम तू नहीं,
पुरुषों वाले सारे ही
अधिकारों की अधिकारी है।
बहुत हो चुका अब मत सहना,
तुझे इतिहास बदलना है,
नारी को कोई कह ना पाये
अबला है बेचारी है।
'कोमल है कमज़ोर नहीं' का यह अंक समर्पित है आशा भोसले स्मिता पाटिल और डॊ. अचला नागर के नाम!
क्या आप जानते हैं...
कि आशा भोसले नें भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी और मलय भाषाओं में भी गीत गाये हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 10/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - महान लता को समर्पित है ये अंक, तो चंद सवाल उन्हीं के बारे में आज.
सवाल १ - लता ने अपना पहला पार्श्वगायन किस संगीतकार के लिए किया था - २ अंक
सवाल २ - उनके सबसे पहले गाये गीत "मैं खिली खिली" में किसने उनका साथ दिया था यानी आवाज़ मिलाई थी - ३ अंक
सवाल ३ - प्रस्तुत गीत के संगीतकार ने एक मराठी फिल्म में चारों मंगेशकर बहनों को एक साथ गवाया था, क्या है उस मराठी फिल्म का नाम - ४ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अंजाना जी आज आखिरी मौका है, कुछ कर गुजरिये....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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