ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 623/2010/323
'मधुकर श्याम हमारे चोर', हिंदी सिनेमा के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में आज भी हम कल ही की तरह बने रहेंगे साल १९३३ में। सहगल साहब को एक से एक लाजवाब गीत गवाने में अगर पहला नाम राय चंद बोराल का है, तो निस्संदेह दूसरा नाम है पंकज मल्लिक का। पंकज बाबू के संगीत निर्देशन में सहगल साहब के बहुत से गीत हैं जो बहुत बहुत मशहूर हुए हैं। दोस्तों, अभी कुछ दिनों पहले जब मेरी संगीतकार तुषार भाटिया जी से बातचीत हो रही थी, तो बातों ही बातों में न्यु थिएटर्स की चर्चा छिड़ गई थी, और तुषार जी ने बताया कि राय चंद बोराल निस्संदेह फ़िल्म संगीतकारों के भीष्म पितामह हैं, लेकिन फ़िल्मी गीत का जो अपना स्वरूप है, और जो स्वरूप आज तक चलता आया है, वह पंकज मल्लिक साहब की ही देन है। पंकज बाबू का बतौर फ़िल्म संगीतकार सफ़र शुरु हुआ था बोलती फ़िल्मों के पहले ही साल, यानी १९३१ में, जिस साल उन्होंने बंगला फ़िल्म 'देना पाओना' में बोराल साहब के साथ संगीत दिया था। हिंदी फ़िल्मों में उनका आगमन हुआ १९३३ की फ़िल्म 'यहूदी की लड़की' में। वैसे यह बात सच है कि इस फ़िल्म में मल्लिक साहब का वह ऒर्केस्ट्रेशन वाला हल्का फुल्का पर शास्त्रीयता से भरपूर अंदाज़ सुनने को नहीं मिला, लेकिन सहगल साहब के गाये गीतों व ग़ज़लों ने ऐसा असर किया कि इस फ़िल्म का नाम सिनेमा के इतिहास में अमर हो गया। दोस्तो, यह सत्य है कि पंकज साहब के संगीत में सहगल साहब नें इसके बाद के वर्षों में इससे भी बहुत ज़्यादा लोकप्रिय गीत गाये (जिनकी चर्चा हम आगे चलकर इसी शृंखला में करेंगे), लेकिन इस फ़िल्म के किसी गीत को सुनवाये बग़ैर आगे बढ़ने का दिल नहीं कर रहा। इसलिए आइए आज सुनें 'यहूदी की लड़की' फ़िल्म में शामिल मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल "नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल जिसको सुनाये न बनें"। सुरैया की आवाज़ में इसी ग़ज़ल का आनंद आप ने कुछ दिनों पहले 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लिया था, आज इसी का एक अन्य रूप, जिसे पंकज बाबू नें नौटंकी की लोकप्रिय शैली काफ़ी में स्वरबद्ध किया था।
और आइए अब कुछ उद्गार पढ़ें जिन्हें फ़िल्म जगत की कुछ जानीमानी हस्तियों ने व्यक्त किए हैं सहगल साहब की शान में। सबसे पहले ये हैं गायक मुकेश: "आज हमारे फ़िल्म इंडस्ट्री में कई गायक-कलाकार फ़िल्म संगीत की शोभा बढ़ा रहे हैं। मगर एक वक़्त ऐसा था जब इतने गायक नहीं थे। लेकिन उस वक़्त भी सिर्फ़ यही दीपक जल रहा था, जिसका नाम था कुंदन लाल सहगल। स्वरों के इस राजा नें, जिसनें फ़िल्म संगीत की शुरुआत की, कई फ़िल्मों में अभिनेता के रूप में भी काम किया, और फिर युं नज़रों से ओझल हो गया, मानो कहीं छुप गया हो, और देख रहा हो हमें, सुन रहा हो हमें, और मानो कह रहा हो कि कला की कोई सीमा नहीं है, तुम्हें अभी बहुत दूर जाना है, बहुत आगे बढ़ना है।" मुकेश के बाद ये हैं दादामुनि अशोक कुमार। दादामुनि नें भी उसी दौर में अभिनय शुरु किया था जब सहगल आसमान पर सूरज की तरह चमक रहे थे। "मैं तो मानता हूँ कि फ़िल्म संगीत की धारा बदल रही है, रूप भी बदल रहा है। कभी लगता है कि अपने अच्छे गायक और संगीतकार भी इसी जैज़ और लातिन अमरीकन संगीत की बाढ़ में बह जायेंगे। मेरा ख़याल है कि आज अगर सहगल ज़िंदा होते तो शायद इस बाढ़ को रोक सकते थे।" तो दोस्तों, आइए अब एक बार फिर भावविभोर होकर सुनें सहगल साहब की आवाज़ में ग़ालिब की यह ग़ज़ल फ़िल्म 'यहूदी की लड़की' से।
क्या आप जानते हैं...
कि 'पूरन भगत' और 'चण्डीदास' फ़िल्मों में सहगल के गाये अमर गीतों के पीछे पंकज मल्लिक का बहुत बड़ा योगदान था, लेकिन संगीतकार के रूप में आर.सी. बोराल का ही नाम पर्दे पर आया। पंकज बाबू बोराल साहब के सहायक थे इन फ़िल्मों में।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 3/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन हैं इस गीत के - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी बढ़त पर हैं पर अंजाना जी भी मौके की ताड़ में हैं, अवध जी सही जवाब आपका भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'मधुकर श्याम हमारे चोर', हिंदी सिनेमा के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में आज भी हम कल ही की तरह बने रहेंगे साल १९३३ में। सहगल साहब को एक से एक लाजवाब गीत गवाने में अगर पहला नाम राय चंद बोराल का है, तो निस्संदेह दूसरा नाम है पंकज मल्लिक का। पंकज बाबू के संगीत निर्देशन में सहगल साहब के बहुत से गीत हैं जो बहुत बहुत मशहूर हुए हैं। दोस्तों, अभी कुछ दिनों पहले जब मेरी संगीतकार तुषार भाटिया जी से बातचीत हो रही थी, तो बातों ही बातों में न्यु थिएटर्स की चर्चा छिड़ गई थी, और तुषार जी ने बताया कि राय चंद बोराल निस्संदेह फ़िल्म संगीतकारों के भीष्म पितामह हैं, लेकिन फ़िल्मी गीत का जो अपना स्वरूप है, और जो स्वरूप आज तक चलता आया है, वह पंकज मल्लिक साहब की ही देन है। पंकज बाबू का बतौर फ़िल्म संगीतकार सफ़र शुरु हुआ था बोलती फ़िल्मों के पहले ही साल, यानी १९३१ में, जिस साल उन्होंने बंगला फ़िल्म 'देना पाओना' में बोराल साहब के साथ संगीत दिया था। हिंदी फ़िल्मों में उनका आगमन हुआ १९३३ की फ़िल्म 'यहूदी की लड़की' में। वैसे यह बात सच है कि इस फ़िल्म में मल्लिक साहब का वह ऒर्केस्ट्रेशन वाला हल्का फुल्का पर शास्त्रीयता से भरपूर अंदाज़ सुनने को नहीं मिला, लेकिन सहगल साहब के गाये गीतों व ग़ज़लों ने ऐसा असर किया कि इस फ़िल्म का नाम सिनेमा के इतिहास में अमर हो गया। दोस्तो, यह सत्य है कि पंकज साहब के संगीत में सहगल साहब नें इसके बाद के वर्षों में इससे भी बहुत ज़्यादा लोकप्रिय गीत गाये (जिनकी चर्चा हम आगे चलकर इसी शृंखला में करेंगे), लेकिन इस फ़िल्म के किसी गीत को सुनवाये बग़ैर आगे बढ़ने का दिल नहीं कर रहा। इसलिए आइए आज सुनें 'यहूदी की लड़की' फ़िल्म में शामिल मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल "नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल जिसको सुनाये न बनें"। सुरैया की आवाज़ में इसी ग़ज़ल का आनंद आप ने कुछ दिनों पहले 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लिया था, आज इसी का एक अन्य रूप, जिसे पंकज बाबू नें नौटंकी की लोकप्रिय शैली काफ़ी में स्वरबद्ध किया था।
और आइए अब कुछ उद्गार पढ़ें जिन्हें फ़िल्म जगत की कुछ जानीमानी हस्तियों ने व्यक्त किए हैं सहगल साहब की शान में। सबसे पहले ये हैं गायक मुकेश: "आज हमारे फ़िल्म इंडस्ट्री में कई गायक-कलाकार फ़िल्म संगीत की शोभा बढ़ा रहे हैं। मगर एक वक़्त ऐसा था जब इतने गायक नहीं थे। लेकिन उस वक़्त भी सिर्फ़ यही दीपक जल रहा था, जिसका नाम था कुंदन लाल सहगल। स्वरों के इस राजा नें, जिसनें फ़िल्म संगीत की शुरुआत की, कई फ़िल्मों में अभिनेता के रूप में भी काम किया, और फिर युं नज़रों से ओझल हो गया, मानो कहीं छुप गया हो, और देख रहा हो हमें, सुन रहा हो हमें, और मानो कह रहा हो कि कला की कोई सीमा नहीं है, तुम्हें अभी बहुत दूर जाना है, बहुत आगे बढ़ना है।" मुकेश के बाद ये हैं दादामुनि अशोक कुमार। दादामुनि नें भी उसी दौर में अभिनय शुरु किया था जब सहगल आसमान पर सूरज की तरह चमक रहे थे। "मैं तो मानता हूँ कि फ़िल्म संगीत की धारा बदल रही है, रूप भी बदल रहा है। कभी लगता है कि अपने अच्छे गायक और संगीतकार भी इसी जैज़ और लातिन अमरीकन संगीत की बाढ़ में बह जायेंगे। मेरा ख़याल है कि आज अगर सहगल ज़िंदा होते तो शायद इस बाढ़ को रोक सकते थे।" तो दोस्तों, आइए अब एक बार फिर भावविभोर होकर सुनें सहगल साहब की आवाज़ में ग़ालिब की यह ग़ज़ल फ़िल्म 'यहूदी की लड़की' से।
क्या आप जानते हैं...
कि 'पूरन भगत' और 'चण्डीदास' फ़िल्मों में सहगल के गाये अमर गीतों के पीछे पंकज मल्लिक का बहुत बड़ा योगदान था, लेकिन संगीतकार के रूप में आर.सी. बोराल का ही नाम पर्दे पर आया। पंकज बाबू बोराल साहब के सहायक थे इन फ़िल्मों में।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 3/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन हैं इस गीत के - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी बढ़त पर हैं पर अंजाना जी भी मौके की ताड़ में हैं, अवध जी सही जवाब आपका भी
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
दीया है ना वो कलाकार रहे और ना ही वैसे निर्देशक,लेकख और गीत कार रहे
आज भी १९४१ की चलचित्र सोहराब मोदी जी केनिर्देशन में बनाए चित्रमय को मेरे बहुत से मित्र देख दांतों तले ऊंगली आज के गीत धुन स्वर सुन अश्रु धरा बहने लगती है कोई कोई गीत अच्छे हैं