उलझन हज़ार कोई डाले....कभी कभी जोश में गायक भी शब्द गलत बोल जाते हैं, कुछ ऐसा हुआ होगा इस गीत में भी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 516/2010/216 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के एक और नए सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं और इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले'। इस शृंखला का दूसरा हिस्सा आज से पेश हो रहा है। आज जिस गीत को हमने चुना है उसमे है शाब्दिक गड़बड़ी। यानी कि ग़लत शब्द का इस्तेमाल। इससे पहले हमने जिन अलग अलग प्रकारों की गड़बड़ियों पर नज़र डाला है, वो हैं गायक का ग़लत जगह पे गा देना, गायक का किसी शब्द का ग़लत उच्चारण करना, गीत के अंतरों में पंक्तियों का आपस में बदल जाना, तथा फ़िल्मांकन में गड़बड़ी। आज हम बात करेंगे ग़लत शब्द के इस्तेमाल के बारे में। सन् १९७७ में एक फ़िल्म आई थी 'चांदी सोना', जिसमें आशा भोसले, किशोर कुमार और मन्ना डे का गाया एक गाना था "उलझन हज़ार कोई डाले, रुकते कहाँ हैं दिलवाले, देखो ना आ गये, मस्ताने छा गए, बाहों में बाहें डाले"। इस गीत के आख़िरी अंतरे में किशोर कुमार गाते हैं - "जैसे बहार लिए खड़ी हाथों के हार , दीवानों देखो ना सदियों से तेरा मेरा था इंतज़ार।" दोस्तों, आपने कभी सुना है "हाथों के हार" के बार...