चील चील चिल्लाके कजरी सुनाए.....हास्य रस में सराबोर होकर सुनिए ये गीत, हंसिये, हंसायिये और खुश रहिये
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 494/2010/194
'रस माधुरी' शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला में इन दिनों हम रसों की बात कर रहे हैं और नौ कड़ियों की इस शृंखला की हर कड़ी में एक रस की चर्चा कर रहे हैं और उस रस पर आधारित कोई लोकप्रिय फ़िल्मी गीत बजा रहे हैं। शृंगार, अद्भुत और शांत रस के बाद आज बारी हास्य रस की। हास्य रस, यानी कि ख़ुशी के भाव जो अंदर से हम महसूस करते हैं। बनावटी हँसी को हास्य रस नहीं कहा जा सकता। हास्य रस इतना संक्रामक होता है कि आप इस रस को अपने आसपास के लोगों में भी पल में आग की तरह फैला सकते हैं। सीधे सरल शब्दों में हास्य का अर्थ तो यही होता है कि ख़ुश होना, जो चेहरे पर हँसी या मुस्कुराहट के ज़रिए खिलती है, लेकिन जो शुद्ध हास्य होता है वह हम अपने अंदर बिना किसी कारण के ही महसूस करते हैं। और यह भाव तब उत्पन्न होती है जब हम यह समझ या अनुभूति कर लेते हैं कि ईश्वर या जीवन हम पर महरबान है। इस तरह का हास्य एक दैवीय रस होता है, जिसे एक दैवीय तृप्ति भी कह सकते हैं। हास्य रस के जो सब से विपरीत रस हैं वो हैं करुण, भयानक और रौद्र। इन्हें हास्य रस के शत्रु भी आप कह सकते हैं। ख़ुशी या ह्युमर हम हमेशा ही अपने अंदर रख सकते हैं, लेकिन हँसी या हास्य लगातार नहीं उत्पन्न किया जा सकता। हास्य की मात्रा या परिमाण किसी परिस्थिति से भी ज़्यादा निर्भर करती है शरीर में ख़ुशी की उर्जा की मात्रा पर। जिस तरह से कल हमने बात की थी कि शांत रस को अपने अंदर महसूस करने के लिए मेडिटेशन या ध्यान करने की आवश्यकता है, उसी तरह से आजकल हास्य पर भी काफ़ी ध्यान दिया जा रहा है। जगह जगह लाफ़टर क्लब खुल रहे हैं। हास्य द्वारा तनाव से मुक्ति मिल सकती है और एक स्वस्थ वातावरण पैदा होती है मन मस्तिष्क में। यकीन मानिए, हँसी एक बहुत ही संक्रामक चीज़ है, और इसे अपने अंदर उत्पन्न करने का सब से अच्छा तरीका है कि हम इसे दूसरों के अंदर उत्पन्न करने की कोशिश करें।
हिंदी फ़िल्मों में शुरु से ही हास्य का बहुत बड़ा स्थान रहा है। पुराने ज़माने में प्रमुख नायक नायिका की जोड़ी के साथ साथ एक पैरलेल कॊमेडियन नायक - नायिका की जोड़ी भी फ़िल्म में चलती थी। लेकिन कुछ गिने चुने नायक ऐसे भी हुए जो ख़ुद एक हीरो होने के साथ साथ ज़बरदस्त कॊमेडियन आरटिस्ट भी रहे। दोस्तों, हिंदी फ़िल्म इतिहास में अगर हास्य रस की बात करें, तो हरफ़नमौला कलाकार किशोर कुमार से बेहतर नाम और क्या हो सकता है! एक ज़बरदस्त गायक तो वो थे ही, साथ ही अभिनय में भी माशाल्लाह! उन्होंने अपने अभिनय और गायन शैली से फ़िल्मों में और फ़िल्मी गीतों में जिस तरह से हास्य रस को बढ़ावा दिया है, शायद ही किसी और ने इस पैमाने पर दिया होगा। जब भी किशोर दा को इस तरह के किसी हास्य गीत को गाने का अवसर मिलता, तो उस गीत को वो अपने अंदाज़ से कुछ इस तरह से पेश करते कि वो गीत फिर उस गीतकार या संगीतकार का नहीं रह जाता, वह पूरी तरह से किशोर दा का बन कर रह जाता था। उनके बहुत से ऐसे गानें हैं जिन्हें सुनते हुए आज इतने बरस बाद भी हम हँस हँस कर लोट पोट हो जाते हैं, पेट में दर्द होने लगता है हँसते हँसते। उनके गाए इन तमाम गीतों में से आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह है सन् १९६२ की फ़िल्म 'हाफ़ टिकट' का, और गीत के बोल हैं "चील चील चिल्लाके कजरी सुनाए, झूम झूम कौवा भी ढोलक बजाए", जो फ़िल्म में भी उन्होंने ही गाया है और साथ में प्राण साहब भी हैं। गीतकार शैलेन्द्र और संगीत सलिल चौधरी का। लेकिन जैसा कि हमने कहा कि किशोर दा ऐसे हास्य गीतों को जिस अदा व अंदाज़ से गाते हैं कि ऐसा लगता है कि गीत को उन्होंने ही लिखा व स्वरबद्ध किया है। अजीब-ओ-गरीब हरकतों से भरपूर और बिलकुल बच्चों वाले अंदाज़ में गाया यह गीत किशोर दा के सदाबहार हास्य गीतों में शामिल है, जिसकी चमक आज भी वैसी की वैसी बरक़रार है। इस गीत के बारे में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, बस सुनिए और खिलखिलाइए।
क्या आप जानते हैं...
कि १९ नवंबर १९२५ को सोनारपुर, बंगाल में जन्मे सलिल चौधरी के पिता आसाम के चाय बागानों में डॊक्टर थे। पिता के पास पाश्चात्य संगीत का बड़ा संग्रह था, और इस तरह से सलिल दा का बचपन असम, बंगाल और बिहार के मज़दूरों के लोकगीतों के साथ साथ इस विशाल ख़ज़ाने को आत्मसात करते हुए बीता
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. करुण रस पर आधारित यह गीत १९७१ की एक सुपर डुपर हिट फ़िल्म का गीत है और इस गीत के गायक ने इस फ़िल्म में केवल यही गीत गाया है, बाक़ी के गीत लता और किशोर ने गाए हैं। गायक पहचानिए। २ अंक।
२. फ़िल्म के मुख्य किरदार इंसान नहीं बल्कि जानवर हैं। फ़िल्म का नाम बताइए। १ अंक।
३. इस गीत के गीतकार - संगीतकार जोड़ी ने एक साथ सब से ज़्यादा काम किया है। बताइए गीतकार और संगीतकार के नाम। याद रहे दोनों नाम सही बताने पर ही अंक दिए जाएँगे। ४ अंक।
४. फ़िल्म की नायिका कौन हैं? ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
सभी जवाब सही आये, सभी को बधाई...अब गीत का आनंद लीजिए, यही तोहफा है आपका
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'रस माधुरी' शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला में इन दिनों हम रसों की बात कर रहे हैं और नौ कड़ियों की इस शृंखला की हर कड़ी में एक रस की चर्चा कर रहे हैं और उस रस पर आधारित कोई लोकप्रिय फ़िल्मी गीत बजा रहे हैं। शृंगार, अद्भुत और शांत रस के बाद आज बारी हास्य रस की। हास्य रस, यानी कि ख़ुशी के भाव जो अंदर से हम महसूस करते हैं। बनावटी हँसी को हास्य रस नहीं कहा जा सकता। हास्य रस इतना संक्रामक होता है कि आप इस रस को अपने आसपास के लोगों में भी पल में आग की तरह फैला सकते हैं। सीधे सरल शब्दों में हास्य का अर्थ तो यही होता है कि ख़ुश होना, जो चेहरे पर हँसी या मुस्कुराहट के ज़रिए खिलती है, लेकिन जो शुद्ध हास्य होता है वह हम अपने अंदर बिना किसी कारण के ही महसूस करते हैं। और यह भाव तब उत्पन्न होती है जब हम यह समझ या अनुभूति कर लेते हैं कि ईश्वर या जीवन हम पर महरबान है। इस तरह का हास्य एक दैवीय रस होता है, जिसे एक दैवीय तृप्ति भी कह सकते हैं। हास्य रस के जो सब से विपरीत रस हैं वो हैं करुण, भयानक और रौद्र। इन्हें हास्य रस के शत्रु भी आप कह सकते हैं। ख़ुशी या ह्युमर हम हमेशा ही अपने अंदर रख सकते हैं, लेकिन हँसी या हास्य लगातार नहीं उत्पन्न किया जा सकता। हास्य की मात्रा या परिमाण किसी परिस्थिति से भी ज़्यादा निर्भर करती है शरीर में ख़ुशी की उर्जा की मात्रा पर। जिस तरह से कल हमने बात की थी कि शांत रस को अपने अंदर महसूस करने के लिए मेडिटेशन या ध्यान करने की आवश्यकता है, उसी तरह से आजकल हास्य पर भी काफ़ी ध्यान दिया जा रहा है। जगह जगह लाफ़टर क्लब खुल रहे हैं। हास्य द्वारा तनाव से मुक्ति मिल सकती है और एक स्वस्थ वातावरण पैदा होती है मन मस्तिष्क में। यकीन मानिए, हँसी एक बहुत ही संक्रामक चीज़ है, और इसे अपने अंदर उत्पन्न करने का सब से अच्छा तरीका है कि हम इसे दूसरों के अंदर उत्पन्न करने की कोशिश करें।
हिंदी फ़िल्मों में शुरु से ही हास्य का बहुत बड़ा स्थान रहा है। पुराने ज़माने में प्रमुख नायक नायिका की जोड़ी के साथ साथ एक पैरलेल कॊमेडियन नायक - नायिका की जोड़ी भी फ़िल्म में चलती थी। लेकिन कुछ गिने चुने नायक ऐसे भी हुए जो ख़ुद एक हीरो होने के साथ साथ ज़बरदस्त कॊमेडियन आरटिस्ट भी रहे। दोस्तों, हिंदी फ़िल्म इतिहास में अगर हास्य रस की बात करें, तो हरफ़नमौला कलाकार किशोर कुमार से बेहतर नाम और क्या हो सकता है! एक ज़बरदस्त गायक तो वो थे ही, साथ ही अभिनय में भी माशाल्लाह! उन्होंने अपने अभिनय और गायन शैली से फ़िल्मों में और फ़िल्मी गीतों में जिस तरह से हास्य रस को बढ़ावा दिया है, शायद ही किसी और ने इस पैमाने पर दिया होगा। जब भी किशोर दा को इस तरह के किसी हास्य गीत को गाने का अवसर मिलता, तो उस गीत को वो अपने अंदाज़ से कुछ इस तरह से पेश करते कि वो गीत फिर उस गीतकार या संगीतकार का नहीं रह जाता, वह पूरी तरह से किशोर दा का बन कर रह जाता था। उनके बहुत से ऐसे गानें हैं जिन्हें सुनते हुए आज इतने बरस बाद भी हम हँस हँस कर लोट पोट हो जाते हैं, पेट में दर्द होने लगता है हँसते हँसते। उनके गाए इन तमाम गीतों में से आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह है सन् १९६२ की फ़िल्म 'हाफ़ टिकट' का, और गीत के बोल हैं "चील चील चिल्लाके कजरी सुनाए, झूम झूम कौवा भी ढोलक बजाए", जो फ़िल्म में भी उन्होंने ही गाया है और साथ में प्राण साहब भी हैं। गीतकार शैलेन्द्र और संगीत सलिल चौधरी का। लेकिन जैसा कि हमने कहा कि किशोर दा ऐसे हास्य गीतों को जिस अदा व अंदाज़ से गाते हैं कि ऐसा लगता है कि गीत को उन्होंने ही लिखा व स्वरबद्ध किया है। अजीब-ओ-गरीब हरकतों से भरपूर और बिलकुल बच्चों वाले अंदाज़ में गाया यह गीत किशोर दा के सदाबहार हास्य गीतों में शामिल है, जिसकी चमक आज भी वैसी की वैसी बरक़रार है। इस गीत के बारे में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, बस सुनिए और खिलखिलाइए।
क्या आप जानते हैं...
कि १९ नवंबर १९२५ को सोनारपुर, बंगाल में जन्मे सलिल चौधरी के पिता आसाम के चाय बागानों में डॊक्टर थे। पिता के पास पाश्चात्य संगीत का बड़ा संग्रह था, और इस तरह से सलिल दा का बचपन असम, बंगाल और बिहार के मज़दूरों के लोकगीतों के साथ साथ इस विशाल ख़ज़ाने को आत्मसात करते हुए बीता
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. करुण रस पर आधारित यह गीत १९७१ की एक सुपर डुपर हिट फ़िल्म का गीत है और इस गीत के गायक ने इस फ़िल्म में केवल यही गीत गाया है, बाक़ी के गीत लता और किशोर ने गाए हैं। गायक पहचानिए। २ अंक।
२. फ़िल्म के मुख्य किरदार इंसान नहीं बल्कि जानवर हैं। फ़िल्म का नाम बताइए। १ अंक।
३. इस गीत के गीतकार - संगीतकार जोड़ी ने एक साथ सब से ज़्यादा काम किया है। बताइए गीतकार और संगीतकार के नाम। याद रहे दोनों नाम सही बताने पर ही अंक दिए जाएँगे। ४ अंक।
४. फ़िल्म की नायिका कौन हैं? ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
सभी जवाब सही आये, सभी को बधाई...अब गीत का आनंद लीजिए, यही तोहफा है आपका
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
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PAWAN KUMAR
Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
उस व्यक्ति के लिए सभी परिस्थितियां अच्छी हैं जो अपने भीतर खुशी संजो कर रखता है.
-होरेस फ्रिस्स
Kishore "Kish" Sampat
Ottawa, Canada
"Chef" Naveen Prasad
Uttranchal, India
(now working & living in Canada)