ताज़ा सुर ताल ३५/२०१०
सुजॊय - सभी दोस्तों को हमारा नमस्कार! दोस्तों, आज हम एक ऐसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा करने जा रहे हैं जो पैरलेल सिनेमा की श्रेणी में आता है। कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो व्यावसायिक लाभों से परे होती हैं, जिनका उद्देश्य होता है क्रीएटिव सैटिस्फ़ैक्शन। ये फ़िल्में भले ही सिनेमाघरों में ज़्यादा देखने को ना मिले, लेकिन अच्छे फ़िल्मों के दर्शक इन्हें अपने दिलों में जगह देते हैं और एक लम्बे समय तक इन्हें याद रखते हैं।
विश्व दीपक - लेकिन यह अफ़सोस की भी बात है कि आज फ़िल्मों का हिट होना उसकी मारकेटिंग पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो गया है। पैसे वाले प्रोड्युसर हर टीवी चैनल पर अपनी नई फ़िल्म का प्रोमो बार बार लगातार दिखा दिखा कर लोगों के दिमाग़ पर उसे बिठा देते हैं और एक समय के बाद लोगों को भी लगने लगता है कि वह हिट है। गीतों को भी इसी तरह से आजकल हिट करार दिया जाता है। लेकिन जिन प्रोड्युसरों के पास पैसे कम है, वो इस तरह के प्रोमोशन नहीं कर पाते, जिस वजह से उनकी फ़िल्म सही तरीक़े से लोगों तक नहीं पहुँच पाती। जब लोगों को मालूम ही नहीं चल पाता कि ऐसी भी कोई फ़िल्म बनी है, तो उन्हें उस फ़िल्म के ना देखने पर दोष तो नहीं दिया जा सकता।
सुजॊय - बिलकुल सही बात है। अब पिछले दिनों हमारे सजीव सारथी जी से ही मुझे पता चला कि 'माधोलाल कीप वाकिंग्' नाम से भी कोई फ़िल्म आई है। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों के बाद किसी फ़िल्म ने उन्हें रुलाया है। झूठ नहीं बोलूँगा, लेकिन मैंने इस फ़िल्म का नाम सुन ही नहीं था। अब इसमें ग़लती मेरी है या इस व्यवस्था की, इस तर्क में नहीं जाउँगा, लेकिन इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि अगर सजीव जी इस फ़िल्म की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित नहीं करते तो शायद आज हम किसी और फ़िल्म के गानें लेकर उपस्थित हुए होते।
विश्व दीपक - तो दोस्तों, जैसा कि आपने पढ़ा, आज हम आपको सुनवा रहे हैं 'माधोलाल कीप वाकिंग' फ़िल्म के गानें। इस फ़िल्म की चर्चा हम आगे जारी रखेंगे, पहले इस फ़िल्म का पहला गाना सुन लेते हैं।
गीत - नैना लागे तोसे (भुपेन्द्र)
सुजॊय - हमारी यह ख़ुशक़िस्मती है कि 'ताज़ा सुर ताल' में भुपेन्द्र जैसे गायक की आवाज़ हम शामिल कर सके हैं। हम बात कर रहे थे पैरलेल सिनेमा की, इस संदर्भ में यह बताना ज़रूरी है कि 'टाइम्स म्युज़िक' समय समय पर इस तरह की फ़िल्मों के संगीत को बढ़ावा देने के लिए सामने आता रहा है, और 'माधोलाल कीप वाकिंग्' के गीतों को जारी करने का ज़िम्मा भी इसी कंपनी ने लिया है। इस फ़िल्म का निर्माण ड्रीमकट्स के बैनर तले हुआ है और निर्देशक हैं जय टैंक। संगीत का पक्ष सम्भाला है नवोदित संगीतकार जोड़ी नायब और राजा ने। इस पहले गीत को सुनकर ही आप ने अंदाज़ा लगा लिया होगा कि इस ऐल्बम से हम अच्छी उम्मीद रख सकते हैं। और जब भुपेन्द्र, मिताली, अल्ताफ़ राजा, और राजा हसन जैसे गायकों ने गीत गाए हों तो निश्चित रूप से आशाएँ बढ़ जाती हैं।
विश्व दीपक - बहुत दिनों के बाद भुपेन्द्र जी की आवाज़ किसी फ़िल्मी गीत में सुन कर बहुत ही अच्छा लगा, और बड़ी बात तो यह है कि ७१ वर्ष की आयु में भी कितना अच्छा उन्होंने इस गीत को निभाया है। वही मख़मली आवाज़, वही सुरीलापन, गीत को सुनते हुए जैसे वही 'किनारा' और 'परिचय' के गानें एक दम से याद आ गए। बहरर्हाल यह बता दें कि इस गीत को लिखा था सानी अस्लम ने। नवोदित संगीतकार नायब-राजा ने अच्छा कैची ट्युन सोचा है इस गीत के लिए और यक़ीनन यह गीत उन्हें बहुत आगे ले जाएगी।
सुजॊय - इस गीत के कुल तीन वर्ज़न हैं। पहला वर्ज़न भुपेन्द्र की आवाज़ में जिसका शीर्षक रखा गया है 'माधोलाल्स थीम'; दूसरा वर्ज़न है 'वाइफ़्स थीम', जिसे परवीना ने गाया है। आइए यह वर्ज़न यहाँ पर अब सुन लिया जाए।
गीत - नैना लागे तोसे (परवीना)
विश्व दीपक - और अब लगे हाथ 'डॉटर्स थीम' भी सुन लें, जिसे मिताली सिंह ने गाया है। धुन तो वही है, लेकिन इन तीनों के शब्दों में फेर बदल है। और मज़े की बात है कि भुपेन्द्र ने 'माधोलाल्स वर्ज़न' गाया था, इस हिसाब से 'वाइफ़्स थीम' मिताली से गवाया जाना था :-), लेकिन मिताली से बेटी वाला वर्ज़न गवाया गया। आइए सुन लेते हैं मिताली की आवाज़ में यह वर्ज़न।
गीत - नैना लागे तोसे (मिताली)
सुजॊय - शास्त्रीय रंग में रंगे इन तीनों गीतों को सुन कर एक अच्छी फ़ीलिंग सी आ रही है। फ़िल्म तो नहीं देखी मैंने, लेकिन इस गीत को सुन कर फ़िल्म के बारे में एक अच्छा फ़ील सा आ रहा है। मौका मिला तो ज़रूर देखूँगा। और आइए अब बढ़ते हैं आगे। भुपेन्द्र, मिताली और परवीना के बाद अब अल्ताफ़ राजा की आवाज़ की बारी। बिलकुल अल्ताफ़ साहब के अंदाज़ का गाना है "फ़लसफ़ा ये ज़िंदगी का कोई भी ना अब तक समझा"। उनके पहले के ग़ैर फ़िल्मी गीतों में वो जिस तरह से बीच बीच में शेर कहते थे, ठीक वैसे ही इस गीत के शुरु में उसी अंदाज़ में वो कहते हैं "ये मसअला ही ऐसा था कि हल ना कर सका, ऐ ज़िंदगी मैं तुझको मुकम्मल ना कर सका"।
विश्व दीपक - इस गीत को भी सानी अस्लम ने लिखा है। वैसे आपको बता दें कि इस फ़िल्म में दो गीतकार हैं, दूसरे गीतकार हैं साहिल फ़तेहपुरी। और फ़िल्म के मुख्य किरदारों में हैं सुब्रत दत्त, नीला गोखले, प्रणय नारायण, स्वर भास्कर और वर्णिता अगवाले। बहुत दिनों के बाद अल्ताफ़ राजा की आवाज़ में इस गीत को सुन कर भी उतना ही अच्छा लगेगा जितना भुपेन्द्र के गीत को सुन कर लगा है, ऐसा हमारा ख़याल है, आइए सुनते हैं।
गीत - फ़लसफ़ा ये ज़िंदगी का
सुजॊय - वाह! स्वीट ऐण्ड सिम्पल जिसे कहते हैं। साज़ों की ज़्यादा तामझाम नहीं है, हारमोनियम की विशुद्ध धुन एक अरसे के बाद सुनने को मिली है। इस दार्शनिक गीत के बोल भी विचारोत्तेजक हैं, और एक निराशावादी होते हुए भी जैसे एक संदेश दे जाते हैं जीवन के प्रति। एक आम आदमी के जीवन की कहानी को कितने सीधे सरल तरीके से कहा है गीतकार सानी अस्लम ने कि "लम्बे सफ़र की ख़ातिर युं तो सब के सब आते हैं, कई मुसाफ़िर रस्ते में ही चुप से उतर जाते हैं, उड़ जाता है रूह का पंछी मिल जाए मौका जो ज़रा सा"।
विश्व दीपक - वाक़ई एक छाप छोड़ने वाला गीत है और एक बार सुनने के बार एक और बार सुनने का दिल करता है। नायब और राजा ने भी इस गीत के लिए ऐसी धुन चुनी है जो सुनने वाले को उस पर टिकाए रखती है। बेशक़ यह गीत अल्ताफ़ राजा के असंख्य चाहनेवालों को ही नहीं, बल्कि अच्छे गीत-संगीत के क़द्रदानों को भी ख़ूब भाएगा। इस गीत की खासियत ही है अल्ताफ़ राजा का अंदाज़-ए-बयाँ। यह पूरी तरह से उन्हीं का गीत है जिसे कोई दूसरा नहीं गा सकता। आइए अब अगले गीत पर आते हैं जो कि एक क़व्वाली है अस्लम साबरी और साथियों की अवाज़ों में।
सुजॊय - इस क़व्वाली की शुरुआत अल्ताफ़ राजा के स्टाइल में एक शेर से होती है, लेकिन अल्ताफ़ राजा की आवाज़ में नहीं। ख़ुद ही सुनिए और इस क़व्वाली का मज़ा लें।
गीत - ख़ुदा के वास्ते
विश्व दीपक - "दर्द सीने में तो आँखों में समुंदर देखा, ज़िंदगी हमने तेरा कैसा मुक़द्दर देखा", इस शेर से क़व्वाली की शुरुआत होती है। अस्लम साबरी, जो एक मशहूर क़व्वाल हैं, उनके बारे में और क्या कहें, वो तो इसे ख़ूबसूरत अंजाम देंगे ही, लेकिन तारीफ़ नायब और राजा की करनी ही पड़ेगी जिन्होंने इस फ़िल्म में एक से एक उम्दा गीत रचा है।
सुजॊय - इस क़व्वाली की ख़ासियत यह है कि यह ना तो सूफ़ी या धार्मिक अंदाज़ का है और ना ही यह हुस्न-ओ-इश्क़ की कव्वाली है, बल्कि यह इंसानियत की क़व्वाली है, और यह प्रेरणा देती है कि जो पिछड़े वर्ग हैं उनके लिए हमें कुछ करना चाहिए, हर इंसान समान है, "ख़ुदा के वास्ते मिटा दे फ़ासले"। बहुत दिनों के बाद ऐसी क़व्वाली सुनने को मिली है, बल्कि ऐसा भी कह सकते हैं कि इस तरह की क़व्वाली कभी फ़िल्मों में आई ही नहीं है।
विश्व दीपक - फ़िल्म 'सरफ़रोश' में जो क़व्वाली थी "ज़िंदगी मौत ना बन जाए", उसमें भी कुछ कुछ ऐसी बात थी, लेकिन उसमें मुल्क की बात थी, इसमें इंसानियत की बात है। हैट्स ऒफ़ टू सानी अस्लम फिर से एक नायाब रचना के लिए।
सुजॊय - कुल मिलाकर अब तक जितने भी गीत हमने सुनें हैं हर के गीत के लिए मेरा "थम्प्स अप"! आइए अब अगले गीत की ओर बढ़ा जाए। यक़ीनन यह गीत भी हमें निराश नहीं करेगा।
गीत - ये धरती
विश्व दीपक - राजा की आवाज़ में यह गीत था, लेकिन इसकी धुन तो बिलकुल "सूरज की गरमी से तपते हुए तन को" गीत जैसी ही लगी। लेकिन अंतरे की धुन बिलकुल अलग है। पता नहीं उस धुन का इस्तेमाल क्यों किया गया जब कि नायब-राजा बहुत अच्छा ही काम कर रहे थे, एक और ऒरिजिनल धुन बनाना क्या बहुत ज़्यादा मुश्किल काम था?
सुजॊय - ख़ैर, राजा की आवाज़ में इस गीत को सुन कर अच्छा लगा, ३ मिनट ४५ सेकण्ड्स का यह गाना था और एक बार फिर से संदेशात्मक बोल, "ज़रा सी तुझपे मुसीबत जो आए, तो मेरी तरफ़ तुमने आँखें दिखाए, कभी ग़ौर से देखो सूरज को मेरे, जो ख़ुद को जला कर अंधेरे मिटाये"। पार्श्व में बजने वाले सीन्थेसाइज़र के बीट्स ने भी गीत को अच्छा सहारा दिया है।
विश्व दीपक - और अब इस ऐल्बम का अंतिम गीत। गीत, ग़ज़ल, क़व्वाली के बाद अब हार्ड रॊक की बारी गायक राजा हसन की आवाज़ में। जी हाँ, वही राजा हसन जो हाल में रियल्टी शो से उभरे हैं। राजा हसन ज़्यादातर दूसरे क़िस्म के गानें गाते रहे हैं, उनसे इस तरह का रॊक नंबर गवाना भी अपने आप में एक प्रयोग है। यह फ़िल्म का शीर्षक गीत है और इस बार गीतकार साहिल फ़तेहपुरी हैं। बस यही कह सकते हैं कि इस ऐल्बम का जिस तरह से एक सुरीली शुरुआत हुई थी, वैसा ही एक रॊकिंग समापन हो रहा है। लीजिए इस आख़िरी गीत को भी सुन लीजिए।
सुजॊय - इस ऐल्बम में "राजा" शब्द बार बार आया है, एक बार सिर्फ़ राजा, एक बार अल्ताफ़ राजा, और एक बार राजा हसन। अल्ताफ़ राजा की तो बात अलग है, लेकिन क्या राजा और राजा हसन भी दो अलग अलग नाम हैं? पहले पहले मुझे लगा कि संगीतकार नायब-राजा के राजा हीं राजा हसन हैं। लेकिन जब एक ही ऐल्बम पर एक बार राजा और एक बार राजा हसन के नाम से दो अलग अलग गीत आए हैं तो निश्चित ही ये अलग अलग शख्सियत होंगे। आइए यह गीत सुना जाए।
गीत - माधोलाल कीप वाकिंग
सुजॊय - अब और ज़्यादा कुछ कहने को नहीं बचा है मेरे लिए, मुझे जो गानें अच्छे लगे हैं वो हैं "नैना लागे (भूपेन्द्र), "फ़लसफ़ा ये ज़िंदगी का" तथा "ख़ुदा के वास्ते"। और मेरी तरफ़ से इस ऐल्बम को ३.५ की रेटिंग्ग।
विश्व दीपक - सुजॉय जी, गानों में जिस रूह की जरूरत होती है, मेरे हिसाब से गीतकार, संगीतकार और गायक-गायिकाओं ने अपनी तरफ़ से उसमें थोड़ी भी कमी नहीं होने दी है। आपको तो पता हीं होगा कि किसी भी गीत में मेरा सबसे ज्यादा ध्यान उसके बोलों पर होता है, और जिस गीत के बोल मुझे प्रभावित कर जाते हैं, वह गीत खुद-ब-खुद मेरा पसंदीदा हो जाता है। अमूमन हर समीक्षा में मैं शब्दों के पैमानों पर हीं गीत या एलबम को तौलता हूँ.. इसलिए तो बोल न पसंद आने पर या फिर यह महसूस होने पर कि गीतकार ने मेहनत नहीं की है, बल्कि महज़ "कन्नी काटा" है या "खानापूर्ति" की है, मैं आपके दिए हुए रेटिंग से कुछ अंक हटा भी देता हूँ। मुझे खुशी है कि इस एलबम में वैसा कुछ करने की नौबत नहीं आएगी.. इसलिए आपके दिए हुए रेटिंगे को बरकरार रखते हुए मैं एक बार फिर से सजीव जी का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, जिनकी बदौलत हम इस नायाब एलबम को सुन सकें। तो चलिए इन्हीं सब बातों और गानों के साथ हम आज की समीक्षा समाप्त करते हैं। अगली बार कौन-सी एलबम होगी , यह तो मुझे भी नहीं पता... लेकिन इतना यकीन दिलाता हूँ कि आप सबों के लिए हम कुछ अच्छा हीं चुन कर लाएँगे... तब तक लिए इज़ाज़त दीजिए..
आवाज़ रेटिंग्स: माधोलाल कीप वाकिंग: ***१/२
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # १०३- भूपेन्द्र ने एक फ़िल्म में एक युगल गीत गाया था जिसके बोल थे "मुझे प्यार से आवाज़ देना मेरा नाम लेकर"। आपको बताना है फ़िल्म का नाम और किस गायिका के साथ यह युगल गीत उन्होंने गाया था।
TST ट्रिविया # १०४- "दरसल मेरी पैदाइश नागपुर की है, मेरे पिताजी रत्नागिरि से ताल्लुख़ रखते हैं, जो कोंकण कोस्ट में हैं, जहाँ के अल्फ़ोन्सो आम बहुत मशहूर है। और हमारी माताजी फ़र्रुख़ाबाद से ताल्लुख़ रखती हैं। मम्मी का नाम है रबी रूपलता और पिताजी का नाम है इब्राहिम इक़बाल।" तो दोस्तों, बताइए कि ये कौन से फ़नकार अपने माता पिता के बारे में बता रहे हैं?
TST ट्रिविया # १०५- क़व्वाली की बात चली है आज और आवाज़ अस्लम साबरी की है, तो बताइए कि वह कौन सी क़व्वाली थी जिसे लता मंगेशकर ने फ़रीद साबरी और सईद साबरी के साथ मिल कर गाया था?
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. "फ़लक तक चल साथ मेरे" (टशन)
२. 'इश्क़ क़यामत'।
३. "क्यों आगे पीछे डोलते हो भँवरों की तरह" (गोलमाल)
सुजॊय - सभी दोस्तों को हमारा नमस्कार! दोस्तों, आज हम एक ऐसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा करने जा रहे हैं जो पैरलेल सिनेमा की श्रेणी में आता है। कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो व्यावसायिक लाभों से परे होती हैं, जिनका उद्देश्य होता है क्रीएटिव सैटिस्फ़ैक्शन। ये फ़िल्में भले ही सिनेमाघरों में ज़्यादा देखने को ना मिले, लेकिन अच्छे फ़िल्मों के दर्शक इन्हें अपने दिलों में जगह देते हैं और एक लम्बे समय तक इन्हें याद रखते हैं।
विश्व दीपक - लेकिन यह अफ़सोस की भी बात है कि आज फ़िल्मों का हिट होना उसकी मारकेटिंग पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो गया है। पैसे वाले प्रोड्युसर हर टीवी चैनल पर अपनी नई फ़िल्म का प्रोमो बार बार लगातार दिखा दिखा कर लोगों के दिमाग़ पर उसे बिठा देते हैं और एक समय के बाद लोगों को भी लगने लगता है कि वह हिट है। गीतों को भी इसी तरह से आजकल हिट करार दिया जाता है। लेकिन जिन प्रोड्युसरों के पास पैसे कम है, वो इस तरह के प्रोमोशन नहीं कर पाते, जिस वजह से उनकी फ़िल्म सही तरीक़े से लोगों तक नहीं पहुँच पाती। जब लोगों को मालूम ही नहीं चल पाता कि ऐसी भी कोई फ़िल्म बनी है, तो उन्हें उस फ़िल्म के ना देखने पर दोष तो नहीं दिया जा सकता।
सुजॊय - बिलकुल सही बात है। अब पिछले दिनों हमारे सजीव सारथी जी से ही मुझे पता चला कि 'माधोलाल कीप वाकिंग्' नाम से भी कोई फ़िल्म आई है। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों के बाद किसी फ़िल्म ने उन्हें रुलाया है। झूठ नहीं बोलूँगा, लेकिन मैंने इस फ़िल्म का नाम सुन ही नहीं था। अब इसमें ग़लती मेरी है या इस व्यवस्था की, इस तर्क में नहीं जाउँगा, लेकिन इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि अगर सजीव जी इस फ़िल्म की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित नहीं करते तो शायद आज हम किसी और फ़िल्म के गानें लेकर उपस्थित हुए होते।
विश्व दीपक - तो दोस्तों, जैसा कि आपने पढ़ा, आज हम आपको सुनवा रहे हैं 'माधोलाल कीप वाकिंग' फ़िल्म के गानें। इस फ़िल्म की चर्चा हम आगे जारी रखेंगे, पहले इस फ़िल्म का पहला गाना सुन लेते हैं।
गीत - नैना लागे तोसे (भुपेन्द्र)
सुजॊय - हमारी यह ख़ुशक़िस्मती है कि 'ताज़ा सुर ताल' में भुपेन्द्र जैसे गायक की आवाज़ हम शामिल कर सके हैं। हम बात कर रहे थे पैरलेल सिनेमा की, इस संदर्भ में यह बताना ज़रूरी है कि 'टाइम्स म्युज़िक' समय समय पर इस तरह की फ़िल्मों के संगीत को बढ़ावा देने के लिए सामने आता रहा है, और 'माधोलाल कीप वाकिंग्' के गीतों को जारी करने का ज़िम्मा भी इसी कंपनी ने लिया है। इस फ़िल्म का निर्माण ड्रीमकट्स के बैनर तले हुआ है और निर्देशक हैं जय टैंक। संगीत का पक्ष सम्भाला है नवोदित संगीतकार जोड़ी नायब और राजा ने। इस पहले गीत को सुनकर ही आप ने अंदाज़ा लगा लिया होगा कि इस ऐल्बम से हम अच्छी उम्मीद रख सकते हैं। और जब भुपेन्द्र, मिताली, अल्ताफ़ राजा, और राजा हसन जैसे गायकों ने गीत गाए हों तो निश्चित रूप से आशाएँ बढ़ जाती हैं।
विश्व दीपक - बहुत दिनों के बाद भुपेन्द्र जी की आवाज़ किसी फ़िल्मी गीत में सुन कर बहुत ही अच्छा लगा, और बड़ी बात तो यह है कि ७१ वर्ष की आयु में भी कितना अच्छा उन्होंने इस गीत को निभाया है। वही मख़मली आवाज़, वही सुरीलापन, गीत को सुनते हुए जैसे वही 'किनारा' और 'परिचय' के गानें एक दम से याद आ गए। बहरर्हाल यह बता दें कि इस गीत को लिखा था सानी अस्लम ने। नवोदित संगीतकार नायब-राजा ने अच्छा कैची ट्युन सोचा है इस गीत के लिए और यक़ीनन यह गीत उन्हें बहुत आगे ले जाएगी।
सुजॊय - इस गीत के कुल तीन वर्ज़न हैं। पहला वर्ज़न भुपेन्द्र की आवाज़ में जिसका शीर्षक रखा गया है 'माधोलाल्स थीम'; दूसरा वर्ज़न है 'वाइफ़्स थीम', जिसे परवीना ने गाया है। आइए यह वर्ज़न यहाँ पर अब सुन लिया जाए।
गीत - नैना लागे तोसे (परवीना)
विश्व दीपक - और अब लगे हाथ 'डॉटर्स थीम' भी सुन लें, जिसे मिताली सिंह ने गाया है। धुन तो वही है, लेकिन इन तीनों के शब्दों में फेर बदल है। और मज़े की बात है कि भुपेन्द्र ने 'माधोलाल्स वर्ज़न' गाया था, इस हिसाब से 'वाइफ़्स थीम' मिताली से गवाया जाना था :-), लेकिन मिताली से बेटी वाला वर्ज़न गवाया गया। आइए सुन लेते हैं मिताली की आवाज़ में यह वर्ज़न।
गीत - नैना लागे तोसे (मिताली)
सुजॊय - शास्त्रीय रंग में रंगे इन तीनों गीतों को सुन कर एक अच्छी फ़ीलिंग सी आ रही है। फ़िल्म तो नहीं देखी मैंने, लेकिन इस गीत को सुन कर फ़िल्म के बारे में एक अच्छा फ़ील सा आ रहा है। मौका मिला तो ज़रूर देखूँगा। और आइए अब बढ़ते हैं आगे। भुपेन्द्र, मिताली और परवीना के बाद अब अल्ताफ़ राजा की आवाज़ की बारी। बिलकुल अल्ताफ़ साहब के अंदाज़ का गाना है "फ़लसफ़ा ये ज़िंदगी का कोई भी ना अब तक समझा"। उनके पहले के ग़ैर फ़िल्मी गीतों में वो जिस तरह से बीच बीच में शेर कहते थे, ठीक वैसे ही इस गीत के शुरु में उसी अंदाज़ में वो कहते हैं "ये मसअला ही ऐसा था कि हल ना कर सका, ऐ ज़िंदगी मैं तुझको मुकम्मल ना कर सका"।
विश्व दीपक - इस गीत को भी सानी अस्लम ने लिखा है। वैसे आपको बता दें कि इस फ़िल्म में दो गीतकार हैं, दूसरे गीतकार हैं साहिल फ़तेहपुरी। और फ़िल्म के मुख्य किरदारों में हैं सुब्रत दत्त, नीला गोखले, प्रणय नारायण, स्वर भास्कर और वर्णिता अगवाले। बहुत दिनों के बाद अल्ताफ़ राजा की आवाज़ में इस गीत को सुन कर भी उतना ही अच्छा लगेगा जितना भुपेन्द्र के गीत को सुन कर लगा है, ऐसा हमारा ख़याल है, आइए सुनते हैं।
गीत - फ़लसफ़ा ये ज़िंदगी का
सुजॊय - वाह! स्वीट ऐण्ड सिम्पल जिसे कहते हैं। साज़ों की ज़्यादा तामझाम नहीं है, हारमोनियम की विशुद्ध धुन एक अरसे के बाद सुनने को मिली है। इस दार्शनिक गीत के बोल भी विचारोत्तेजक हैं, और एक निराशावादी होते हुए भी जैसे एक संदेश दे जाते हैं जीवन के प्रति। एक आम आदमी के जीवन की कहानी को कितने सीधे सरल तरीके से कहा है गीतकार सानी अस्लम ने कि "लम्बे सफ़र की ख़ातिर युं तो सब के सब आते हैं, कई मुसाफ़िर रस्ते में ही चुप से उतर जाते हैं, उड़ जाता है रूह का पंछी मिल जाए मौका जो ज़रा सा"।
विश्व दीपक - वाक़ई एक छाप छोड़ने वाला गीत है और एक बार सुनने के बार एक और बार सुनने का दिल करता है। नायब और राजा ने भी इस गीत के लिए ऐसी धुन चुनी है जो सुनने वाले को उस पर टिकाए रखती है। बेशक़ यह गीत अल्ताफ़ राजा के असंख्य चाहनेवालों को ही नहीं, बल्कि अच्छे गीत-संगीत के क़द्रदानों को भी ख़ूब भाएगा। इस गीत की खासियत ही है अल्ताफ़ राजा का अंदाज़-ए-बयाँ। यह पूरी तरह से उन्हीं का गीत है जिसे कोई दूसरा नहीं गा सकता। आइए अब अगले गीत पर आते हैं जो कि एक क़व्वाली है अस्लम साबरी और साथियों की अवाज़ों में।
सुजॊय - इस क़व्वाली की शुरुआत अल्ताफ़ राजा के स्टाइल में एक शेर से होती है, लेकिन अल्ताफ़ राजा की आवाज़ में नहीं। ख़ुद ही सुनिए और इस क़व्वाली का मज़ा लें।
गीत - ख़ुदा के वास्ते
विश्व दीपक - "दर्द सीने में तो आँखों में समुंदर देखा, ज़िंदगी हमने तेरा कैसा मुक़द्दर देखा", इस शेर से क़व्वाली की शुरुआत होती है। अस्लम साबरी, जो एक मशहूर क़व्वाल हैं, उनके बारे में और क्या कहें, वो तो इसे ख़ूबसूरत अंजाम देंगे ही, लेकिन तारीफ़ नायब और राजा की करनी ही पड़ेगी जिन्होंने इस फ़िल्म में एक से एक उम्दा गीत रचा है।
सुजॊय - इस क़व्वाली की ख़ासियत यह है कि यह ना तो सूफ़ी या धार्मिक अंदाज़ का है और ना ही यह हुस्न-ओ-इश्क़ की कव्वाली है, बल्कि यह इंसानियत की क़व्वाली है, और यह प्रेरणा देती है कि जो पिछड़े वर्ग हैं उनके लिए हमें कुछ करना चाहिए, हर इंसान समान है, "ख़ुदा के वास्ते मिटा दे फ़ासले"। बहुत दिनों के बाद ऐसी क़व्वाली सुनने को मिली है, बल्कि ऐसा भी कह सकते हैं कि इस तरह की क़व्वाली कभी फ़िल्मों में आई ही नहीं है।
विश्व दीपक - फ़िल्म 'सरफ़रोश' में जो क़व्वाली थी "ज़िंदगी मौत ना बन जाए", उसमें भी कुछ कुछ ऐसी बात थी, लेकिन उसमें मुल्क की बात थी, इसमें इंसानियत की बात है। हैट्स ऒफ़ टू सानी अस्लम फिर से एक नायाब रचना के लिए।
सुजॊय - कुल मिलाकर अब तक जितने भी गीत हमने सुनें हैं हर के गीत के लिए मेरा "थम्प्स अप"! आइए अब अगले गीत की ओर बढ़ा जाए। यक़ीनन यह गीत भी हमें निराश नहीं करेगा।
गीत - ये धरती
विश्व दीपक - राजा की आवाज़ में यह गीत था, लेकिन इसकी धुन तो बिलकुल "सूरज की गरमी से तपते हुए तन को" गीत जैसी ही लगी। लेकिन अंतरे की धुन बिलकुल अलग है। पता नहीं उस धुन का इस्तेमाल क्यों किया गया जब कि नायब-राजा बहुत अच्छा ही काम कर रहे थे, एक और ऒरिजिनल धुन बनाना क्या बहुत ज़्यादा मुश्किल काम था?
सुजॊय - ख़ैर, राजा की आवाज़ में इस गीत को सुन कर अच्छा लगा, ३ मिनट ४५ सेकण्ड्स का यह गाना था और एक बार फिर से संदेशात्मक बोल, "ज़रा सी तुझपे मुसीबत जो आए, तो मेरी तरफ़ तुमने आँखें दिखाए, कभी ग़ौर से देखो सूरज को मेरे, जो ख़ुद को जला कर अंधेरे मिटाये"। पार्श्व में बजने वाले सीन्थेसाइज़र के बीट्स ने भी गीत को अच्छा सहारा दिया है।
विश्व दीपक - और अब इस ऐल्बम का अंतिम गीत। गीत, ग़ज़ल, क़व्वाली के बाद अब हार्ड रॊक की बारी गायक राजा हसन की आवाज़ में। जी हाँ, वही राजा हसन जो हाल में रियल्टी शो से उभरे हैं। राजा हसन ज़्यादातर दूसरे क़िस्म के गानें गाते रहे हैं, उनसे इस तरह का रॊक नंबर गवाना भी अपने आप में एक प्रयोग है। यह फ़िल्म का शीर्षक गीत है और इस बार गीतकार साहिल फ़तेहपुरी हैं। बस यही कह सकते हैं कि इस ऐल्बम का जिस तरह से एक सुरीली शुरुआत हुई थी, वैसा ही एक रॊकिंग समापन हो रहा है। लीजिए इस आख़िरी गीत को भी सुन लीजिए।
सुजॊय - इस ऐल्बम में "राजा" शब्द बार बार आया है, एक बार सिर्फ़ राजा, एक बार अल्ताफ़ राजा, और एक बार राजा हसन। अल्ताफ़ राजा की तो बात अलग है, लेकिन क्या राजा और राजा हसन भी दो अलग अलग नाम हैं? पहले पहले मुझे लगा कि संगीतकार नायब-राजा के राजा हीं राजा हसन हैं। लेकिन जब एक ही ऐल्बम पर एक बार राजा और एक बार राजा हसन के नाम से दो अलग अलग गीत आए हैं तो निश्चित ही ये अलग अलग शख्सियत होंगे। आइए यह गीत सुना जाए।
गीत - माधोलाल कीप वाकिंग
सुजॊय - अब और ज़्यादा कुछ कहने को नहीं बचा है मेरे लिए, मुझे जो गानें अच्छे लगे हैं वो हैं "नैना लागे (भूपेन्द्र), "फ़लसफ़ा ये ज़िंदगी का" तथा "ख़ुदा के वास्ते"। और मेरी तरफ़ से इस ऐल्बम को ३.५ की रेटिंग्ग।
विश्व दीपक - सुजॉय जी, गानों में जिस रूह की जरूरत होती है, मेरे हिसाब से गीतकार, संगीतकार और गायक-गायिकाओं ने अपनी तरफ़ से उसमें थोड़ी भी कमी नहीं होने दी है। आपको तो पता हीं होगा कि किसी भी गीत में मेरा सबसे ज्यादा ध्यान उसके बोलों पर होता है, और जिस गीत के बोल मुझे प्रभावित कर जाते हैं, वह गीत खुद-ब-खुद मेरा पसंदीदा हो जाता है। अमूमन हर समीक्षा में मैं शब्दों के पैमानों पर हीं गीत या एलबम को तौलता हूँ.. इसलिए तो बोल न पसंद आने पर या फिर यह महसूस होने पर कि गीतकार ने मेहनत नहीं की है, बल्कि महज़ "कन्नी काटा" है या "खानापूर्ति" की है, मैं आपके दिए हुए रेटिंग से कुछ अंक हटा भी देता हूँ। मुझे खुशी है कि इस एलबम में वैसा कुछ करने की नौबत नहीं आएगी.. इसलिए आपके दिए हुए रेटिंगे को बरकरार रखते हुए मैं एक बार फिर से सजीव जी का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, जिनकी बदौलत हम इस नायाब एलबम को सुन सकें। तो चलिए इन्हीं सब बातों और गानों के साथ हम आज की समीक्षा समाप्त करते हैं। अगली बार कौन-सी एलबम होगी , यह तो मुझे भी नहीं पता... लेकिन इतना यकीन दिलाता हूँ कि आप सबों के लिए हम कुछ अच्छा हीं चुन कर लाएँगे... तब तक लिए इज़ाज़त दीजिए..
आवाज़ रेटिंग्स: माधोलाल कीप वाकिंग: ***१/२
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # १०३- भूपेन्द्र ने एक फ़िल्म में एक युगल गीत गाया था जिसके बोल थे "मुझे प्यार से आवाज़ देना मेरा नाम लेकर"। आपको बताना है फ़िल्म का नाम और किस गायिका के साथ यह युगल गीत उन्होंने गाया था।
TST ट्रिविया # १०४- "दरसल मेरी पैदाइश नागपुर की है, मेरे पिताजी रत्नागिरि से ताल्लुख़ रखते हैं, जो कोंकण कोस्ट में हैं, जहाँ के अल्फ़ोन्सो आम बहुत मशहूर है। और हमारी माताजी फ़र्रुख़ाबाद से ताल्लुख़ रखती हैं। मम्मी का नाम है रबी रूपलता और पिताजी का नाम है इब्राहिम इक़बाल।" तो दोस्तों, बताइए कि ये कौन से फ़नकार अपने माता पिता के बारे में बता रहे हैं?
TST ट्रिविया # १०५- क़व्वाली की बात चली है आज और आवाज़ अस्लम साबरी की है, तो बताइए कि वह कौन सी क़व्वाली थी जिसे लता मंगेशकर ने फ़रीद साबरी और सईद साबरी के साथ मिल कर गाया था?
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. "फ़लक तक चल साथ मेरे" (टशन)
२. 'इश्क़ क़यामत'।
३. "क्यों आगे पीछे डोलते हो भँवरों की तरह" (गोलमाल)
Comments
धन्यवाद सहित
अवध लाल
मैंने प्लेयर की दिक्कत ठीक कर दी है। अब आप सारे गाने सुन सकते हैं। आपको हमारी गलती के कारण परेशानी हुई, इसके लिए हम आपसे क्षमा चाह्ते हैं।
धन्यवाद,
विश्व दीपक