अजीब दास्ताँ है ये.....अद्भुत रस में छुपी जीवन की गुथ्थियां जिन्हें सुलझाने में बीत जाती है उम्र सारी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 492/2010/192
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है लघु शृंखला 'रस माधुरी' जिसके अंतर्गत हम चर्चा कर रहे हैं नौ रसों की। कुल नौ कड़ियों की इस शृंखला की हर कड़ी में एक रस की चर्चा होगी और साथ ही उस रस पर आधारित कोई मशहूर फ़िल्मी गीत आपको सुनवाया जाएगा। कल की कड़ी मे शृंगार रस का एक बड़ा ही प्यारा सा मीठा सा गीत आपने सुना था लता जी की आवाज़ में। जैसा कि हमने कल बताया था कि इस शृंखला की पहली तीन कड़ियों में आप लता जी के ही गाए गीत सुनेंगे। तो आज उनका गाया जो गीत हमने चुना है उसमें है अद्भुत रस की झलक। गीत पर हम बाद में आते हैं, पहले आइए चर्चा करें अद्भुत रस की। अद्भुत रस का अर्थ है वह भाव जिसमें समाया हुआ है आश्चर्य, कौतुहल, राज़। सभ्यता जब से शुरु हुई है, तभी से मानव जाति नए नए चीज़ों के बारे में जानने की कोशिश करती आई है और आज भी यह परम्परा जारी है। जब हम यह समझते हैं कि दुनिया में ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिनके बारे में हमें नहीं मालूम, यही भाव हमारे जीवन को और भी ज़्यादा सुंदर और आकर्षक और रोमांचकर बनाता है। और हमारी यही खोज, अज्ञान को ज्ञान में बदलने का प्रयास ही हमारे विकास में सहायक बनती है। इस आध्यात्मिक सफ़र में पहला क़दम ही है 'अद्भुत रस'। यह वह सफ़र है जिसमे हम चल पड़ते हैं सत्य को खोजने के लिए, जीवन की गुत्थी या राज़ को सुलझाने के लिए। 'अद्भुत रस' कोई ऐसा रस नहीं है जिसे आप अपनी मर्ज़ी से अपने अंदर पैदा करें, बल्कि यह तो अपने आप ही पनपता है। अगर आप 'अद्भुत रस' का आनंद लेना चाहते हैं तो बस अपनी आँखें खोले रखिए ताकि ज़िंदगी के हर अनुभव से कुछ ना कुछ सीख मिले। किसी ने इस रस के बारे में ठीक ही कहा है कि "The feeling of Wonder comes when one recognizes one's own ignorance. By cultivating the right attitude towards the miracle of life, the Adbhuta Rasa can be a permanent companion."
दोस्तों, अभी उपर हम 'अद्भुत रस' की जिस तरह की परिभाषा से अवगत हुए हैं, उससे तो हमें यकायक जो गीत ज़हन में आया है, वह है फ़िल्म 'दिल अपना और प्रीत पराई' का, "अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरु कहाँ ख़तम, ये मंज़िले हैं कौन सी, ना वो समझ सके ना हम"। शैलेन्द्र के जीवन दर्शन पर लिखे तमाम गीत, जिनके लिए वो जाने जाते रहे हैं, उनमें यह गीत भी एक ख़ास मुकाम रखता है। शंकर जयकिशन का सुपरहिट संगीत १९६० के इस फ़िल्म में गूँजा था। जितने फ़िलोसोफ़िकल इस गीत के बोल हैं, उतना ही दिलकश कॊम्पोज़िशन। और संगीत संयोजन के तो क्या कहने। पश्चिमी रंग में रंगे इस संयोजन में सैक्सोफ़ोन और कॊयर (choir) शैली के कोरल सिंगिंग् का अद्भुत संगम सुनने को मिलता है। इसमें ताज्जुब की बात नहीं कि उस साल फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार शंकर जयकिशन को इसी फ़िल्म के गीतों के लिए मिला था। इस गीत की एक सब से बड़ी जो खासियत है, वह है इसका वाल्ट्ज़ शैली का रीदम, जिसे एस. जे ने एक अद्भुत तरीक़े से अंजाम दिया ठीक वैसे ही जैसे इस गीत के बोलों में अद्भुत रस का संचार हो रहा है। तो लीजिए दोस्तों, अब आप भी इस गीत का आनंद लीजिए और नीचे टिप्पणी में अदभुत रस पर आधारित गीतों की एक फ़हरिस्त बनाने की कोशिश कीजिए, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि साल १९६० के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में 'दिल अपना और प्रीत पराई' फ़िल्म के दो गीत शामिल हुए थे जिनमें एक था फ़िल्म का शीर्षक गीत (छठे पायदान पर) और दूसरा गीत था "मेरा दिल अब तेरा ओ साजना" (१२-वीं पायदान पर)। यह वाक़ई "अद्भुत" बात है कि "अजीब दास्ताँ है ये" को कोई जगह नहीं मिली।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. कल का रस है 'शांत रस' और इस रस पर आधारित जिस गीत को हमने चुना है उसमें एक भक्ति का पक्ष भी है। फ़िल्म के संगीतकार वो हैं जो किसी ज़माने में सचिन देव बर्मन के सहायक हुआ करते थे। संगीतकार बताएँ। ३ अंक।
२. एक मशहूर शायर व गीतकार की कलम से निकला है यह भजन। उनका नाम बताएँ। ३ अंक।
३. गीत का भाव वही है जो भाव "इतनी शक्ति हमें देना दाता" गीत का है। बताइए यह गीत किस अभिनेत्री पर फ़िल्माया गया है। २ अंक।
४. इस फ़िल्म के शीर्षक से बाद में भी एक फ़िल्म बनीं थी और डबल रोल वाले किरदार की कहानी पर बनने वाले किसी भी फ़िल्म के लिए यह शीर्षक सटीक है। फ़िल्म का नाम बताएँ। २ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी एकदम सही जवाब और इंदु जी के क्या कहने...वैसे अब ये पहेली शृंखला ५०० वीं कड़ी तक ही लागू है, ऐसे में अब हमें कोई नया विजेता मिल पायेगा इस बारे शंका है. इसलिए अगर अवध जी भी शरद जी के साथ पहेली सुलझाने में भागीदार बनें तो कोई ऐतराज़ नहीं है....५०१ वीं कड़ी से प्रतियोगिता नए सिरे से आरंभ होगी....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है लघु शृंखला 'रस माधुरी' जिसके अंतर्गत हम चर्चा कर रहे हैं नौ रसों की। कुल नौ कड़ियों की इस शृंखला की हर कड़ी में एक रस की चर्चा होगी और साथ ही उस रस पर आधारित कोई मशहूर फ़िल्मी गीत आपको सुनवाया जाएगा। कल की कड़ी मे शृंगार रस का एक बड़ा ही प्यारा सा मीठा सा गीत आपने सुना था लता जी की आवाज़ में। जैसा कि हमने कल बताया था कि इस शृंखला की पहली तीन कड़ियों में आप लता जी के ही गाए गीत सुनेंगे। तो आज उनका गाया जो गीत हमने चुना है उसमें है अद्भुत रस की झलक। गीत पर हम बाद में आते हैं, पहले आइए चर्चा करें अद्भुत रस की। अद्भुत रस का अर्थ है वह भाव जिसमें समाया हुआ है आश्चर्य, कौतुहल, राज़। सभ्यता जब से शुरु हुई है, तभी से मानव जाति नए नए चीज़ों के बारे में जानने की कोशिश करती आई है और आज भी यह परम्परा जारी है। जब हम यह समझते हैं कि दुनिया में ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिनके बारे में हमें नहीं मालूम, यही भाव हमारे जीवन को और भी ज़्यादा सुंदर और आकर्षक और रोमांचकर बनाता है। और हमारी यही खोज, अज्ञान को ज्ञान में बदलने का प्रयास ही हमारे विकास में सहायक बनती है। इस आध्यात्मिक सफ़र में पहला क़दम ही है 'अद्भुत रस'। यह वह सफ़र है जिसमे हम चल पड़ते हैं सत्य को खोजने के लिए, जीवन की गुत्थी या राज़ को सुलझाने के लिए। 'अद्भुत रस' कोई ऐसा रस नहीं है जिसे आप अपनी मर्ज़ी से अपने अंदर पैदा करें, बल्कि यह तो अपने आप ही पनपता है। अगर आप 'अद्भुत रस' का आनंद लेना चाहते हैं तो बस अपनी आँखें खोले रखिए ताकि ज़िंदगी के हर अनुभव से कुछ ना कुछ सीख मिले। किसी ने इस रस के बारे में ठीक ही कहा है कि "The feeling of Wonder comes when one recognizes one's own ignorance. By cultivating the right attitude towards the miracle of life, the Adbhuta Rasa can be a permanent companion."
दोस्तों, अभी उपर हम 'अद्भुत रस' की जिस तरह की परिभाषा से अवगत हुए हैं, उससे तो हमें यकायक जो गीत ज़हन में आया है, वह है फ़िल्म 'दिल अपना और प्रीत पराई' का, "अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरु कहाँ ख़तम, ये मंज़िले हैं कौन सी, ना वो समझ सके ना हम"। शैलेन्द्र के जीवन दर्शन पर लिखे तमाम गीत, जिनके लिए वो जाने जाते रहे हैं, उनमें यह गीत भी एक ख़ास मुकाम रखता है। शंकर जयकिशन का सुपरहिट संगीत १९६० के इस फ़िल्म में गूँजा था। जितने फ़िलोसोफ़िकल इस गीत के बोल हैं, उतना ही दिलकश कॊम्पोज़िशन। और संगीत संयोजन के तो क्या कहने। पश्चिमी रंग में रंगे इस संयोजन में सैक्सोफ़ोन और कॊयर (choir) शैली के कोरल सिंगिंग् का अद्भुत संगम सुनने को मिलता है। इसमें ताज्जुब की बात नहीं कि उस साल फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार शंकर जयकिशन को इसी फ़िल्म के गीतों के लिए मिला था। इस गीत की एक सब से बड़ी जो खासियत है, वह है इसका वाल्ट्ज़ शैली का रीदम, जिसे एस. जे ने एक अद्भुत तरीक़े से अंजाम दिया ठीक वैसे ही जैसे इस गीत के बोलों में अद्भुत रस का संचार हो रहा है। तो लीजिए दोस्तों, अब आप भी इस गीत का आनंद लीजिए और नीचे टिप्पणी में अदभुत रस पर आधारित गीतों की एक फ़हरिस्त बनाने की कोशिश कीजिए, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि साल १९६० के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में 'दिल अपना और प्रीत पराई' फ़िल्म के दो गीत शामिल हुए थे जिनमें एक था फ़िल्म का शीर्षक गीत (छठे पायदान पर) और दूसरा गीत था "मेरा दिल अब तेरा ओ साजना" (१२-वीं पायदान पर)। यह वाक़ई "अद्भुत" बात है कि "अजीब दास्ताँ है ये" को कोई जगह नहीं मिली।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. कल का रस है 'शांत रस' और इस रस पर आधारित जिस गीत को हमने चुना है उसमें एक भक्ति का पक्ष भी है। फ़िल्म के संगीतकार वो हैं जो किसी ज़माने में सचिन देव बर्मन के सहायक हुआ करते थे। संगीतकार बताएँ। ३ अंक।
२. एक मशहूर शायर व गीतकार की कलम से निकला है यह भजन। उनका नाम बताएँ। ३ अंक।
३. गीत का भाव वही है जो भाव "इतनी शक्ति हमें देना दाता" गीत का है। बताइए यह गीत किस अभिनेत्री पर फ़िल्माया गया है। २ अंक।
४. इस फ़िल्म के शीर्षक से बाद में भी एक फ़िल्म बनीं थी और डबल रोल वाले किरदार की कहानी पर बनने वाले किसी भी फ़िल्म के लिए यह शीर्षक सटीक है। फ़िल्म का नाम बताएँ। २ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
पवन जी एकदम सही जवाब और इंदु जी के क्या कहने...वैसे अब ये पहेली शृंखला ५०० वीं कड़ी तक ही लागू है, ऐसे में अब हमें कोई नया विजेता मिल पायेगा इस बारे शंका है. इसलिए अगर अवध जी भी शरद जी के साथ पहेली सुलझाने में भागीदार बनें तो कोई ऐतराज़ नहीं है....५०१ वीं कड़ी से प्रतियोगिता नए सिरे से आरंभ होगी....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
इसका भक्ति गीत आपकी सब शर्तों/प्रश्नों पर खरा उतरता है .
अपुन तो ठोक मारते.
क्या करें? ऐसिच हूँ मैं तो
Pratibha K-S.
Ottawa,Canada
Kishore "Kish" Sampat
Canada
Kishore "Kish" Sampat
Canada
एक जानकारी मेरे पास भी है .. 1960 के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में कुल 32 गीत ,दो भागों में बजाए गए थे, जिनमें ‘अजीब दास्तां है‘ को 24 वां स्थान मिला था।
"Chef" Naveen Prasad
Uttranchal
(now working/living in Canada)
कितना प्यारा भजन. पर जब 'हम दोनों' की बात होती है तो इस भजन का ध्यान बाद में आता है. बस पहले पहल मन में 'अल्लाह तेरो नाम,ईश्वर तेरो नाम' ही याद आता है.
अवध लाल