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जीना तो है उसी का जिसने ये राज़ जाना....कि गाते सुनते गुनगुनाते उम्र गुजरे तो है सफर ये सुहाना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 478/2010/178

'मजलिस-ए-क़व्वाली' की आज की कड़ी में हम क़दम रख रहे हैं ७० के दशक में। ७० के दशक का प्रतिनिधित्व करने वाले संगीतकारों में एक महत्वपूर्ण नाम है राहुल देव बर्मन का। और जहाँ तक उनके बनाए क़व्वालियों की बात है, तो उन्होंने कई फ़िल्मों में हिट क़व्वालियाँ दी हैं और दो ऐसी क़व्वालियाँ तो उनके फ़िल्मों के शीर्षक गीत भी थे। ये दो फ़िल्में हैं 'ज़माने को दिखाना है' और 'हम किसी से कम नहीं'। फ़िल्म 'दि बर्निंग् ट्रेन' में "पल दो पल का साथ हमारा" और 'आंधी' फ़िल्म में "सलाम कीजिए आली जनाब आए हैं" भी दो उत्कृष्ट क़व्वालियाँ हैं पंचम के बनाए हुए। लेकिन आज जो हम उनकी क़व्वाली लेकर आए हैं वह एक ऐसी क़व्वाली है जिसे बहुत ज़्यादा नहीं सुना गया। यह एक दार्शनिक क़व्वाली है; इस विषय पर बहुत सारे गीत लिखे गए हैं, लेकिन क़व्वाली की बात करें तो इस तरह की यह एकमात्र फ़िल्मी क़व्वाली ही मानी जाएगी। १९७१ की फ़िल्म 'अधिकार' की यह क़व्वाली है "जीना तो है उसी का जिसने यह राज़ जाना, है काम आदमी का औरों के काम आना"। एस. नूर निर्मित 'अधिकार' का निर्देशन किया था एस. एम. सागर ने। अशोक कुमार, नंदा और देब मुखर्जी अभिनीत इस लो बजट फ़िल्म के संवाद व गानें लिखे रमेश पंत ने। इस क़व्वाली के अलावा फ़िल्म का "रेखा ओ रेखा जब से तुम्हे देखा" गीत भी उस ज़माने में मशहूर हुआ था, लेकिन आज ना इस फ़िल्म का ज़िक्र कहीं आता है और ना ही फ़िल्म के गानें सुनाई देते हैं। कमचर्चित गीतकार रमेश पंत ने जिन फ़िल्मों में गीत लिखे हैं वो है 'अधिकार' (१९७१), 'सुरक्षा' (१९७९), 'वारदात' (१९८१), और 'इसी का नाम ज़िंदगी' (१९९२)। वैसे रमेश पंत एक सफल संवाद व पटकथा लेखक रहे हैं और उन्होंने कई कामयाब फ़िल्मों के संवाद और पटकथा लिखे हैं जिनमें शामिल है हाफ़ टिकट, कश्मीर की कली, ये रात फिर ना आएगी, दो दिलों की दास्तान (१९६६), ऐन ईवनिंग् इन पैरिस, दो भाई (१९६९), आराधना, पगला कहीं का, अमर प्रेम, अधिकार, राखी और हथकड़ी, मेरे जीवन साथी, राजा जानी, बनारसी बाबू, झील के उस पार, आपकी क़सम, आक्रमण, काला सोना, हरफ़न मौला, एक से बढ़कर एक, भँवर, भोला भाला, सुरक्षा, आशा, आसपास, अगर तुम ना होते, अफ़साना प्यार का, इसी का नाम ज़िंदगी।

मोहम्मद रफ़ी और साथियों की आवाज़ों में यह एक बहुत ही ख़ूबसूरत क़व्वाली है, जिसे असली क़व्वालों से गवाया गया है। रफ़ी साहब ने भी क्या पैशन और डूब कर गाया है इस क़व्वाली को कि इसमें जान फूँक दी है। फ़िल्म के सिचुएशन के मुताबिक़ यह क़व्वाली एक बच्चे के जन्म की ख़ुशी पर हो रहे जलसे में गाया जा रहा है, जैसे कि शुरुआती पंक्तियों में कहा गया है कि "ऐसी चीज़ सुनाए कि महफ़िल दे ताली पे ताली, वरना अपना नाम नहीं है बन्ने ख़ाँ भोपाली, मुन्ने मिया बधाई बनो ख़ूब होनहार, दोनों जहाँ की नेमतें हों आप पे निसार, बचपन हो ख़ुशगवार, जवानी सदा बहार, अल्लाह करे यह दिन आए हज़ार बार"। इस तरह से इसे हम 'हैप्पी बर्थडे क़व्वाली' भी कह सकते हैं और यह आम "हुस्न" और "इश्क़" जैसी विषयों से बिलकुल अलग हट कर है। फ़िल्म के पर्दे पर इसे अंजाम दिया है प्राण साहब ने जिन्होंने क़व्वाल बन्ने ख़ाँ भोपाली का किरदार निभाया था। फ़िल्म 'उपकार' से पहले उन पर गानें फ़िल्माए नहीं जाते थे, लेकिन 'उपकार' में "कस्मे वादे प्यार वफ़ा" गीत के बाद उन पर गीत फ़िल्माए जाने लगे, यहाँ पर फ़िल्म 'ज़ंजीर' की मशहूर क़व्वाली "यारी है इमान मेरा" का उल्लेख करना अनिवार्य हो जाता है। वैसे यह क़व्वाली भी इस शृंखला में शामिल होने का पूरा पूरा हक़ रखती है, लेकिन क्या करें, सब को इसमें समेटना तो संभव नहीं, फिर कभी किसी और बहाने हम इस क़व्वाली को भी ज़रूर सुनवाएँगे। फिलहाल "जीना तो है उसी का जिसने यह राज़ जाना"। वैसे आपको बता दें कि कल भी किसी और राज़ से हम पर्दा उठाएँगे...



क्या आप जानते हैं...
कि रमेश पंत को १९७१ की फ़िल्म 'अमर प्रेम' में संवाद लिखने के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया था।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. एक हिंट तो ऊपर ही दिया जा चुका है, फिल्म बताएं - १ अंक.
२. जिस गायिका की आवाज़ है इस कव्वाली में, कल उनका जन्मदिन है, नाम बताएं- २ अंक.
३. फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री कौन हैं - २ अंक.
४ गीतकार और संगीतकार बताएं - ३ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह इंदु जी सबसे पहले हाज़िर होकर ३ अंक बटोरे बधाई, पवन जी, अवध जी, और रोमेंद्र जी को भी बधईयाँ, अवध जी गलती सुधारने के लिए धन्येवाद. हमारी कनाडा टीम कहाँ गायब है इन दिनों....आप लोगों की कमी खल रही है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

indu puri said…
भई आशा भोंसले जी का जन्मदिन कल है. सब मिलके मनाएं?
indu puri said…
भई आशा भोंसले जी का जन्मदिन कल है. सब मिलके मनाएं?
वाह आनंद आ गया ...nice
गीतकार और संगीतकार बताएं -

गीतकार - Verma Malik
संगीतकार - Sonik Omi

Pratibha K-S.
Ottawa, Canada
ग्राहक हमारे लिए एक विशिष्ट अतिथि है. वह हम पर निर्भर नहीं है. हम ग्राहक पर निर्भर हैं. वह हमारे कार्य में व्यवधान नहीं है - बल्कि वह इसका उद्देश्य है. हम ग्राहक की सेवा कर कोई उपकार नहीं कर रहे. वह सेवा का मौका देकर हम पर उपकार कर रहा है.
-महात्मा गांधी
फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री कौन हैं - REKHA


Kishore "Kish" Sampat
CANADA
I discovered a long time ago that if I helped people get what they wanted, I would always get what I wanted and I would never have to worry.
-Anthony Robbins
AVADH said…
मेरा ख्याल है कि फिल्म है: सावन भादों
अवध लाल
Naveen Prasad said…
एक हिंट तो ऊपर ही दिया जा चुका है, फिल्म बताएं - DHARMA

Naveen Prasad
Uttranchal
(currently living & working in Canada)
" जीना तो है उसी का ..जिसने ये राज जाना ....."
बिंदास पसंदीदा प्रस्तुति...
कब्बाली सुनने का एक अलग ही आनंद होता है ...
आभार

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