श्याम मुरली मनोहर बजाओ....लता के स्वरों में पंडित नरेंद्र शर्मा का लिखा ये भजन आज लगभग भुला सा दिया गया है
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 489/2010/189
लता मंगेशकर के गाए दुर्लभ गीतों की इस शृंखला में आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह है १९५१ की फ़िल्म 'नंदकिशोर' का। यह एक धार्मिक फ़िल्म थी और धार्मिक फ़िल्मों के गानें अगर भूले बिसरे बन जाएँ तो उसमें बहुत ज़्यादा हैरत की बात नहीं है। कुछ गिने चुने धार्मिक फ़िल्मों को अगर अलग रखें तो ज़्यादातर इस जौनर की फ़िल्में ही बॊक्स ऒफ़िस पर ठण्डी ही रही और इन फ़िल्मों के गानें भी ज़्यादा सुनाई नहीं दिए। 'नंद किशोर' भी एक ऐसी ही फ़िल्म है जिसमें युं तो बेहद सुरीली मीठे गानें थे, लेकिन अफ़सोस कि ये गानें सही तरीक़े से लोगों तक पहुँच ना सके। नलिनी जयवन्त, दुर्गा खोटे और सुमती गुप्ते अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत था स्नेहल भाटकर का तथा शुद्ध हिंदी में ये गानें लिखे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने। इस फ़िल्म से जो कृष्ण भजन आपको आज हम सुनवा रहे हैं, उसके बोल हैं "श्याम मुरली मनोहर बजाओ"। युं तो ४० के दशक में स्नेहल भाटकर को सामाजिक फ़िल्मों में संगीत देने का अवसर मिला था, लेकिन ५० के दशक के शुरुआत से ही माइथोलॊजिकल फ़िल्मों के लिए वो अनुबन्धित होते गए और सामाजिक कामयाब फ़िल्मों से वो दूर होते गए। 'नंदकिशोर' का सब से मशहूर गीत था लता का गाया हुआ "राधा के मन की मुरली का पुजारी"। "कल भोर भए हरि जाएँगे" और आज का प्रस्तुत गीत भी मधुर गीत रहे लेकिन इन्हें इतनी प्रसिद्धी नहीं मिली। लेकिन कभी कभी किसी कलाकार को याद रखने के लिए एक ही गीत काफ़ी होता है। और स्नेहल के करीयर में भी एक ऐसा गीत बना जिसने उन्हें अमर कर दिया। "कभी तन्हाइयों में युं हमारी याद आएगी" आज भी जब हम सुनते हैं तो इस विस्मृत संगीतकार की यादें ताज़ा हो जाती हैं, बल्कि इस गीत को सुनते हुए आज भी जैसे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
दोस्तो, आइए आज पंडित नरेन्द्र शर्मा की बातें की जाए। डॊ. रामविलास वर्मा ने अपना एक लेख प्रकाशित किया था 'पंडित नरेन्द्र शर्मा स्मृति ग्रंथ' में, जिसमें उन्होंने शर्मा जी से अपनी एक भेंट का संस्मरण पेश किया था। उनसे उनकी फ़िल्मी यात्रा की शुरुआत के बारे में पूछने पर उन्होंने जवाब दिया था - "१९४३ के फ़रवरी माह में भगवती बाबू अचानक घर आए और बोले, 'देखो, हम तुमको बम्बई ले चलते हैं, फ़िल्मवालों ने बुलाया है गीत लेखन के लिए'। मैंने कहा 'भगवती बाबू, फ़िल्म के लिए गीत लेखन का अभ्यास तो हमें हैं नहीं, बिल्कुल भी नहीं और फिर फ़िल्म वालों से परिचय भी तो नहीं है। भगवती बाबू ने उत्तर दिया - हम भी तो वहाँ हैं, चिन्ता क्यों करते हो, चलो। उनके साथ बम्बई रवाना हुआ। इलाहाबाद से बम्बई की यात्रा में मैंने पूर्वाभ्यास के रोप में एक गीत लिखने की कोशिश की। यह सुन रखा था यहाँ गीत उर्दू में भी लिखना होता है। उर्दू का अभ्यास तो मुझे था ही क्योंकि उ.प्र. में उन दिनों उर्दू दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती थी। जो गीत मैंने यात्रा के दौरान रचा, उसका मुखड़ा था - "ऐ बादे सबा, इठलाती न आ, मेरा गुंचा-ए-दिल तो सूख गया"। ख़ैर, बम्बई पहुँचे। बॊम्बे टाकीज़ संस्था की निर्देशिका थीं उस समय की विख्यात अभिनेत्री देविकारानी। मुझे याद है कि १७ फ़रवरी के अपरान्ह अर्थात् दोपहर बाद हम उनसे मिलने पहुँचे थे। भगवती बाबू साथ में थे। देविका जी से दो घण्टे चर्चा हुई। अन्त में उन्होंने पूछा - आप हमारे बुलावे पर इलाहाबाद से कब रवाना हुए? मैंने उत्तर दिया - १५ फ़रवरी को। इस पर उन्होंने यह कहकर मुझे आश्चर्यचकित कर दिया, 'तो १५ फ़रवरी से आपको बॊम्बे टाकीज़ में नियुक्ति पक्की'। तीन वर्ष हम वहाँ रहे।" तो दोस्तों, पंडित नरेन्द्र शर्मा के इन शब्दों के बाद आइए अब उन्ही का लिखा आज का गीत सुनते हैं फ़िल्म 'नंदकिशोर' से।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार स्नेहल भाटकर के संगीत से सजी जो अंतिम हिंदी की दो फ़िल्में आई थीं, उनमें एक था १९८९ की फ़िल्म 'प्यासे नैन' और १९९४ की फ़िल्म 'सहमे हुए सिताए'।
विशेष सूचना:
लता जी के जनमदिन के उपलक्ष्य पर इस शृंखला के अलावा २५ सितंबर शनिवार को 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' में होगा लता मंगेशकर विशेष। इस लता विशेषांक में आप लता जी को दे सकते हैं जनमदिन की शुभकामनाएँ बस एक ईमेल के बहाने। लता जी के प्रति अपने उदगार, या उनके गाए आपके पसंदीदा १० गीत, या फिर उनके गाए किसी गीत से जुड़ी आपकी कोई ख़ास याद, या उनके लिए आपकी शुभकामनाएँ, इनमें से जो भी आप चाहें एक ईमेल में लिख कर हमें २० सितंबर से पहले oig@hindyugm.com के पते पर भेज दें। हमें आपके ईमेल का इंतज़ार रहेगा।
अजय देशपांडे जी ने लता जी के दुर्लभ गीतों को संगृहीत करने के उद्देश्य से एक वेब साईट का निर्माण किया है, जरूर देखिये यहाँ.
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस फ़िल्म के नायक वो हैं जिनकी जोड़ी निरुपा रॊय के साथ बहुत सारी माइथोलोजिकल फ़िल्मों में ख़ूब जमी थी। नायक का नाम बताएँ। २ अंक।
२. जिस बैनर तले इस फ़िल्म का निर्माण हुआ था, वह इस फ़िल्म की नायिका के नाम से ही है। नायिका का नाम बताएँ। २ अंक।
३. फ़िल्मी के शीर्षक में "प्यार" शब्द का इस्तेमाल है। फ़िल्म के संगीतकार का नाम बताएँ। ३ अंक।
४. गीत के मुखड़े में वह शब्द मौजूद है जो शीर्षक था उस फ़िल्म का जिसमें मास्टर ग़ुलाम हैदर ने लता से कुछ बेहद लोकप्रिय गीत गवाए थे। गीत का मुखड़ा बताइए। ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी अब बेहद करीब हैं, शायद एक जवाब दूर बस....अन्य सभी को भी बधाई, बेहद मुश्किल सवालों के भी तुरंत जवाब देकर आप सब ने साबित किया है कि आप लोग सच्चे संगीत प्रेमी हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
लता मंगेशकर के गाए दुर्लभ गीतों की इस शृंखला में आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह है १९५१ की फ़िल्म 'नंदकिशोर' का। यह एक धार्मिक फ़िल्म थी और धार्मिक फ़िल्मों के गानें अगर भूले बिसरे बन जाएँ तो उसमें बहुत ज़्यादा हैरत की बात नहीं है। कुछ गिने चुने धार्मिक फ़िल्मों को अगर अलग रखें तो ज़्यादातर इस जौनर की फ़िल्में ही बॊक्स ऒफ़िस पर ठण्डी ही रही और इन फ़िल्मों के गानें भी ज़्यादा सुनाई नहीं दिए। 'नंद किशोर' भी एक ऐसी ही फ़िल्म है जिसमें युं तो बेहद सुरीली मीठे गानें थे, लेकिन अफ़सोस कि ये गानें सही तरीक़े से लोगों तक पहुँच ना सके। नलिनी जयवन्त, दुर्गा खोटे और सुमती गुप्ते अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत था स्नेहल भाटकर का तथा शुद्ध हिंदी में ये गानें लिखे पंडित नरेन्द्र शर्मा ने। इस फ़िल्म से जो कृष्ण भजन आपको आज हम सुनवा रहे हैं, उसके बोल हैं "श्याम मुरली मनोहर बजाओ"। युं तो ४० के दशक में स्नेहल भाटकर को सामाजिक फ़िल्मों में संगीत देने का अवसर मिला था, लेकिन ५० के दशक के शुरुआत से ही माइथोलॊजिकल फ़िल्मों के लिए वो अनुबन्धित होते गए और सामाजिक कामयाब फ़िल्मों से वो दूर होते गए। 'नंदकिशोर' का सब से मशहूर गीत था लता का गाया हुआ "राधा के मन की मुरली का पुजारी"। "कल भोर भए हरि जाएँगे" और आज का प्रस्तुत गीत भी मधुर गीत रहे लेकिन इन्हें इतनी प्रसिद्धी नहीं मिली। लेकिन कभी कभी किसी कलाकार को याद रखने के लिए एक ही गीत काफ़ी होता है। और स्नेहल के करीयर में भी एक ऐसा गीत बना जिसने उन्हें अमर कर दिया। "कभी तन्हाइयों में युं हमारी याद आएगी" आज भी जब हम सुनते हैं तो इस विस्मृत संगीतकार की यादें ताज़ा हो जाती हैं, बल्कि इस गीत को सुनते हुए आज भी जैसे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
दोस्तो, आइए आज पंडित नरेन्द्र शर्मा की बातें की जाए। डॊ. रामविलास वर्मा ने अपना एक लेख प्रकाशित किया था 'पंडित नरेन्द्र शर्मा स्मृति ग्रंथ' में, जिसमें उन्होंने शर्मा जी से अपनी एक भेंट का संस्मरण पेश किया था। उनसे उनकी फ़िल्मी यात्रा की शुरुआत के बारे में पूछने पर उन्होंने जवाब दिया था - "१९४३ के फ़रवरी माह में भगवती बाबू अचानक घर आए और बोले, 'देखो, हम तुमको बम्बई ले चलते हैं, फ़िल्मवालों ने बुलाया है गीत लेखन के लिए'। मैंने कहा 'भगवती बाबू, फ़िल्म के लिए गीत लेखन का अभ्यास तो हमें हैं नहीं, बिल्कुल भी नहीं और फिर फ़िल्म वालों से परिचय भी तो नहीं है। भगवती बाबू ने उत्तर दिया - हम भी तो वहाँ हैं, चिन्ता क्यों करते हो, चलो। उनके साथ बम्बई रवाना हुआ। इलाहाबाद से बम्बई की यात्रा में मैंने पूर्वाभ्यास के रोप में एक गीत लिखने की कोशिश की। यह सुन रखा था यहाँ गीत उर्दू में भी लिखना होता है। उर्दू का अभ्यास तो मुझे था ही क्योंकि उ.प्र. में उन दिनों उर्दू दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती थी। जो गीत मैंने यात्रा के दौरान रचा, उसका मुखड़ा था - "ऐ बादे सबा, इठलाती न आ, मेरा गुंचा-ए-दिल तो सूख गया"। ख़ैर, बम्बई पहुँचे। बॊम्बे टाकीज़ संस्था की निर्देशिका थीं उस समय की विख्यात अभिनेत्री देविकारानी। मुझे याद है कि १७ फ़रवरी के अपरान्ह अर्थात् दोपहर बाद हम उनसे मिलने पहुँचे थे। भगवती बाबू साथ में थे। देविका जी से दो घण्टे चर्चा हुई। अन्त में उन्होंने पूछा - आप हमारे बुलावे पर इलाहाबाद से कब रवाना हुए? मैंने उत्तर दिया - १५ फ़रवरी को। इस पर उन्होंने यह कहकर मुझे आश्चर्यचकित कर दिया, 'तो १५ फ़रवरी से आपको बॊम्बे टाकीज़ में नियुक्ति पक्की'। तीन वर्ष हम वहाँ रहे।" तो दोस्तों, पंडित नरेन्द्र शर्मा के इन शब्दों के बाद आइए अब उन्ही का लिखा आज का गीत सुनते हैं फ़िल्म 'नंदकिशोर' से।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार स्नेहल भाटकर के संगीत से सजी जो अंतिम हिंदी की दो फ़िल्में आई थीं, उनमें एक था १९८९ की फ़िल्म 'प्यासे नैन' और १९९४ की फ़िल्म 'सहमे हुए सिताए'।
विशेष सूचना:
लता जी के जनमदिन के उपलक्ष्य पर इस शृंखला के अलावा २५ सितंबर शनिवार को 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' में होगा लता मंगेशकर विशेष। इस लता विशेषांक में आप लता जी को दे सकते हैं जनमदिन की शुभकामनाएँ बस एक ईमेल के बहाने। लता जी के प्रति अपने उदगार, या उनके गाए आपके पसंदीदा १० गीत, या फिर उनके गाए किसी गीत से जुड़ी आपकी कोई ख़ास याद, या उनके लिए आपकी शुभकामनाएँ, इनमें से जो भी आप चाहें एक ईमेल में लिख कर हमें २० सितंबर से पहले oig@hindyugm.com के पते पर भेज दें। हमें आपके ईमेल का इंतज़ार रहेगा।
अजय देशपांडे जी ने लता जी के दुर्लभ गीतों को संगृहीत करने के उद्देश्य से एक वेब साईट का निर्माण किया है, जरूर देखिये यहाँ.
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस फ़िल्म के नायक वो हैं जिनकी जोड़ी निरुपा रॊय के साथ बहुत सारी माइथोलोजिकल फ़िल्मों में ख़ूब जमी थी। नायक का नाम बताएँ। २ अंक।
२. जिस बैनर तले इस फ़िल्म का निर्माण हुआ था, वह इस फ़िल्म की नायिका के नाम से ही है। नायिका का नाम बताएँ। २ अंक।
३. फ़िल्मी के शीर्षक में "प्यार" शब्द का इस्तेमाल है। फ़िल्म के संगीतकार का नाम बताएँ। ३ अंक।
४. गीत के मुखड़े में वह शब्द मौजूद है जो शीर्षक था उस फ़िल्म का जिसमें मास्टर ग़ुलाम हैदर ने लता से कुछ बेहद लोकप्रिय गीत गवाए थे। गीत का मुखड़ा बताइए। ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी अब बेहद करीब हैं, शायद एक जवाब दूर बस....अन्य सभी को भी बधाई, बेहद मुश्किल सवालों के भी तुरंत जवाब देकर आप सब ने साबित किया है कि आप लोग सच्चे संगीत प्रेमी हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Pratibha K-S.
Ottawa, Canada
गंभीर समस्याओं का आधी रात में समाधान करने की कोशिश न करें
- फिलिप डिक
-Bulo C. Rani
Kishore "Kish" Sampat
Canada
"Chef" Naveen Prasad
Uttranchal
(now working & living in Canada
अवध लाल