Skip to main content

बागों में बहार आई, होंठों पे पुकार आई...जब बख्शी साहब ने आवाज़ मिलाई लता के साथ इस युगल गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 385/2010/85

'मैंशायर तो नहीं', आनंद बक्शी के लिखे गीतों पर आधारित इस शृंखला में आज हम सुनेंगे ख़ुद बक्शी साहब की ही आवाज़ में एक गीत, लेकिन उस गीत के ज़िक्र से पहले हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम तारीख़ों से रु-ब-रु करवाना चाहेंगे। ये हैं वो तारीख़ें -
माँ का निधन - १९४०
कैम्ब्रिज कॊलेज, रावलपिण्डी से निवृत्ति - ६ मार्च १९४३
'रॊयल इण्डियन नेवी' में भर्ती - १२ जुलाई १९४४
'रॊयल इण्डियन नेवी' से मुक्ति - ५ अप्रैल १९४६
देश विभाजन के बाद रावलपिण्डी से पलायन - २ अक्तुबर १९४७
'कॊर्प्स ऒफ़ सिग्नल्स' में भर्ती - १५ अक्तुबर १९४७
'कॊर्प्स ऒफ़ सिग्नल्स' से मुक्ति - १२ अप्रैल १९५०
बम्बई में पहली बार काम की तलाश में आगमन - १९५१
ई.एम.ई (The Corps of Electrical and Mechanical Engineers) में भर्ती - १६ फ़रवरी १९५१
कमला मोहन से विवाह - २ अक्तुबर १९५४
ई.एम.ई से मुक्ति - २७ अगस्त १९५६
बम्बई में दूसरी बार आगमन - अक्तुबर १९५६


आनंद बक्शी के दादाजी सुघरमल वैद बक्शी रावलपिण्डी में ब्रिटिश राज के दौरान सुपरिंटेंडेण्ट ऒफ़ पुलिस थे। उनके पिता मोहन लाल वैद बक्शी रावलपिण्डी में एक बैंक मैनेजर थे, और जिन्होने देश विभाजन के बाद इण्डियन आर्मी को सेवा प्रदान की। आनंद बक्शी साहब को घर में प्यार से 'नंद' और 'नंदो' कहकर परिवार वाले पुकारा करते थे। उनका पूरा नाम था आनंद प्रकाश। नेवी में बतौर सोलजर उनका कोड नाम था 'आज़ाद'। आनंद बक्शी ने केवल १० वर्ष की आयु में अपनी माँ सुमित्रा को खो दिया और अपनी पूरी ज़िंदगी मातृ प्रेम के पिपासु रह गए। उनकी सौतेली माँ ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। इस तरह से आनंद अपनी दादीमाँ के और करीब हो गए। आनंद बक्शी साहब ने अपनी माँ के प्यार को सलाम करते हुए कई गानें भी लिखे जैसे कि "माँ तुझे सलाम" (खलनायक), "माँ मुझे अपने आंचल में छुपा ले" (छोटा भाई), "तू कितनी भोली है" (राजा और रंक) और "मैंने माँ को देखा है" (मस्ताना)। दोस्तों, ये तो थी कुछ जानकारी आनंद बक्शी साहब के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी हुई। और आइए अब बात करते हैं आज के गाने की। जैसा कि शुरु में ही हमने बताया था कि आज गूंजने वाली है बक्शी साहब की ही आवाज़, तो आप ने अंदाज़ा लगा लिया होगा कि हम कौन सा गीत बजा रहे हैं। जी हाँ, फ़िल्म 'मोम की गुड़िया' से लता जी के साथ उनका गाया हुआ "बाग़ों में बहार आई, होठों पे पुकार आई, आजा आजा आजा आजा मेरी रानी"।

'मोम की गुड़िया' सन् १९७२ की फ़िल्म थी। यह मोहन कुमार की फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे रतन चोपड़ा और तनुजा। यह कम बजट की फ़िल्म थी, जिसमें संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। यही वह फ़िल्म थी जिसमें पहली बार आनंद बक्शी को गीत गाने का मौका मिला था। हुआ युं कि एक बार मोहन कुमार ने बक्शी साहब को एक चैरिटी फ़ंक्शन में गाते हुए सुन लिया था। उसके बाद उन्होने एल.पी को राज़ी करवाया कि वो कम से कम एक गीत बक्शी साहब से गवाए 'मोम की गुड़िया' में। और इस तरह से बक्शी साहब ने एक एकल गीत गाया "मैं ढूंढ रहा था सपनों में"। यह गीत सब को इतनी पसंद आई कि मोहन कुमार ने सब को आश्चर्य चकित करते हुए घोषणा कर दी कि आनंद बक्शी एक डुएट भी गाएँगे लता मंगेशकर के साथ। और इस तरह से बनी "बाग़ों में बहार आई"। इस गीत के रिकार्डिंग् के बाद बक्शी साहब ने लता जी को फूलों का एक गुलदस्ता उपहार में दिया उनके साथ युगल गीत गाने के लिए। फ़िल्म के ना चलने से ये गानें भी ज़्यादा सुनाई नहीं दिए, लेकिन इस युगल गीत को आनंद बक्शी पर केन्द्रित हर कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। तो आइए आनंद बक्शी के लिखे इस गीत में हम उनके शब्दों के साथ साथ उनकी अनोखी आवाज़ का भी मज़ा लें।



क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी ने १९६६ की फ़िल्म 'पिकनिक' में एक भिखारी की भूमिका अदा की थी।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. फिल्म में नायिका ने नाम पर फिल्म का नाम था, और ये फिल्म का शीर्षक गीत है जिसमें नायिका का नाम बहुत बार आता है, गीत बताएं-३ अंक.
2. इस युगल गीत में लता के साथ किस गायक की आवाज़ है - २ अंक.
3. फिल्म "देवर" में बख्शी साहब ने गीत लिखे थे, उस फिल्म को इस फिल्म के साथ आप कैसे जोड़ सकते हैं-२ अंक.
4. अपने ज़माने की इस चर्चित प्रेम कहानी में किस अभिनेत्री ने प्रमुख भूमिका निभाई थी -२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी लगातार सही जवाबों के छक्के लगाकर ६१ अंकों पर आ चुकी हैं, शरद जी हैं ७८ अंकों पर, अवध जी ४४ तो पदम सिंह जी छंलाग लगा कर ३४ अंकों पर आ गए हैं, पाबला जी पिछले कुछ दिनों से हजारी लगा कर ८ अंकों पर तो आ गए हैं पर अभी अनुपम जी (१०) से पीछे हैं, हाँ, रोहित जी (७) और संगीता जी (४) से जरूर आगे हैं अब.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

indu puri said…
bhul gaya sb kuchh
yaad nhi ab kuchh
unhu unhu ho ho
bs yhi baat n bhooli
julie julie loves u
kripya pabla bhaiya ko kuchh na kahen, main shayd chook rhi hun.
pr...............apun ne to thok diya uttr
बी एस पाबला said…
फिल्म "देवर" में बख्शी साहब ने गीत लिखे थे, उस फिल्म को इस फिल्म के साथ आप कैसे जोड़ सकते हैं:
फिल्म जूली और फिल्म देवर, दोनों के गीतकार आनंद बक्षी हैं
AVADH said…
इन्दु बहिन जी ने तो उत्तर दे दिया है.
वैसे देखिये तो एक और गीत भी सभी शर्तों को पूरा करता है.
आशाओं के सावन में उमंगों की बहार में
तुम मुझको ढूंढो मैं खो जाऊं प्यार में
फिल्म आशा. लता - रफ़ी.
ड्रीम् गर्ल, ड्रीम् गर्ल गाना केवल एकल गीत था.
इसलिए लगता है कि इंदु बहिन का उत्तर हमेशा की तरह ठीक है.
फिल्म 'जूली' के संगीतकार राजेश रोशन जी'देवर' के संगीतकार रोशन के सुपुत्र.
अवध लाल
padm singh said…
he bhgawan main to fir late ho gaya
he 'laxmi' ji mujhe bchao
mana ki south ki thi aap ,pr gajab kaam kiya tha is film me

laxmi ne
anita singh said…
kishor kumar
indu puri said…
Julie is a 1975 Hindi film that starred Laxmi in the title role.
It had one of the first English language songs in an Indian film - My Heart is Beating, sung by Preeti Sagar.
It is a rare Hindi film based around an Anglo-Indian family. It is a remake of a Malayalam hit film titled Chattakari (1974), which also starred Laxmi
Bengal Film Journalists' Association Awards for "most outstanding work of the year"--Laxmi-
Filmfare Best Actress Award --Laxmi

Filmfare Best Supporting Actress Award --Nadira (actress)


Filmfare Best Music Director Award --Rajesh Roshan

Filmfare Nomination for Best Female Playback Singer -- Preeti Sagar for the song "My Heart is Beating'
Do you want to know something more about this film?
THEN PLEASE CALL SHARAD JI AND AVADH BHAIYA
Iam leaving the field now.
anupam goel said…
मैं हमेशा देर से ही आ पता हूँ,
इंदु जी / अवध जी / पाबला जी / पदम् जी को बधाई !
अपनी हाजरी लगाने के लिए बस यह ही बता दूं की जूली फिल्म में
माय हार्ट इस बीटिंग, केवल गाना ही बक्षी जी ने नहीं लिखा था,
यह देन थी हरेन्द्र नाथ चटोपाध्याय जी की कलम की.
जूली के वारे में इतनी जानकारी सबने दे दी पर बेचारे हीरो विक्रम को सब लोग भूल ही गए और हाँ श्री देवी भी तो थीं बाल कलाकर के रूप में ।
indu puri said…
ji haan vikram ko bhool hi gaye hm sbhi yun the bhi......bhula dene wale abhineta.
shridevi baal klakar ke roop me thi saanwli si chipti naak wali jise dekh kr kisi ne klpna bhi nhi ki hogi ki ye ek samvedansheek aur pyari si abhintri ke roop me ek arse tk hindi film industry pr raaj kregi .
jalaal aagha aur unki cycle,unki khamoshi,khamosh premi ka abhinay lajwab tha

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट