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पीपरा के पतवा सरीके डोले मनवा...मिटटी की सौंधी सौंधी महक लिए "गोदान" का ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 376/2010/76



'१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला की छठी कड़ी में हमने आज एक ऐसी फ़िल्म के गीत को चुना है जिसकी कहानी एक ऐसे साहित्यकार ने लिखी थी जिनका नाम हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। मुंशी प्रेमचंद, जिनकी बहुचर्चित उपन्यास 'गोदान' हिंदी साहित्य के धरोहर का एक अनमोल नगीना है। 'गोदान' की कहानी गाँव में बसे एक किसान होरी और उसके परिवार की मर्मस्पर्शी कहानी है कि किस तरह से समाज उन पर एक के बाद एक ज़ुल्म ढाते हैं और किस तरह से वो हर मुसीबत का सामना करते हैं। सेल्युलॊयड के पर्दे पर 'गोदान' को जीवंत किया था निर्देशक त्रिलोक जेटली के साथ साथ अभिनेता राज कुमार, शशिकला, महमूद, शुभा खोटे, मदन पुरी, टुनटुन और कामिनी कौशल ने। फ़िल्म में संगीत था पंडित रविशंकर का और गीत लिखे शैलेन्द्र और अंजान ने। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि युं तो अंजान ने फ़िल्म जगत में १९५३ में ही क़दम रख दिया था 'प्रिज़नर्स ऒफ़ गोलकोण्डा' नामक फ़िल्म से, लेकिन उसके बाद कई सालों तक उनकी झोली में कम बजट की फ़िल्में ही आती रहीं जिसकी वजह से लोगों ने उनकी तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। जिस फ़िल्म के गीतों के अंजान और अंजान नहीं रहे, वह फ़िल्म थी 'गोदान'। 'गोदान' के वह राह खोल दिया कि जिसके बाद बड़े बड़े संगीतकारों ने उनसे गानें लिखवाने शुरु कर दिये। फ़िल्म 'गोदान' के गानें फ़िल्म के स्थान, काल, पात्र के मुताबिक लोक शैली के ही थे, जिनमें से उल्लेखनीय हैं गीता दत्त व महेन्द्र कपूर का गाया "ओ बेदर्दी क्यों तड़पाए जियरा मोरा रिझाय के", लता मंगेशकर का गाया "चली आज गोरी पिया की नगरिया" व "जाने काहे जिया मोरा डोले रे", मुकेश का गाया "हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा", आशा भोसले का गाया "जनम लियो ललना कि चांद मोरे अंगना उतरी आयो हो", तथा मोहम्मद रफ़ी का गाया "बिरज में होली खेलत नंदलाल" और "पीपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा"। आज हम सुनने जा रहे हैं "पीपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा के हियरा में उठत हिलोल, पूर्वा के झोंकवा में आयो रे संदेसवा के चल आज देसवा की ओर"। क्या ख़ूब तुलना की है अंजान साहब ने कि दिल ऐसे डोल रहा है जैसे कि हवा के झोंकों से पीपल के पत्त्ते सरसराते हैं। दोस्तों, यह गीत हम ख़ास बजा रहे हैं व्व्व्व के अनुरोध पर।



विविध भारती पर सन्‍ २००७ में एक शृंखला प्रस्तुत की गई थी जिसका शीर्षक था 'अंजान की कहानी समीर की ज़बानी'। तो उसमें अंजान साहब के सुपुत्र समीर साहब से जब यूनुस ख़ान ने आज के इस प्रस्तुत गीत का ज़िक्र किया था, तब समीर साहब ने कुछ इस तरह से अपने विचार व्यक्त किए थे इस गीत के बारे में - "मुझे भी यह गाना बहुत याद आता है और क्यों याद आता है क्योंकि मुझे मेरा गाँव याद आता है। मेरा गाँव जो है वह बाबसपुर, बनारस में है। बाबसपुर एयरपोर्ट, जहाँ पे प्लेन आती हैं, जाती हैं, वहाँ से जितना दूर गाँव का घर है, उतना ही दूर शहर का घर है। तो मेरा गाँव जो है, और उसमें मेरा मकान जो है, उसके चारों तरफ़ बांस के बहुत ज़्यादा पेड़ हुआ करते थे। तो जब मैं बड़ा हुआ और जब मैंने उनका (अंजान का) गाना सुना "बतवारी में मधुर सुर बाजे", तो पहले तो मुझे बतवारी का मतलब मालूम नहीं था। तो मैंने कहा कि "बतवारी" का मतलब क्या है? बाद में जब मैं लिखने लगा, समझने लगा और रेडियो से जुड़ा तब मुझे याद आया कि वो बांस से, बचपन में मम्मी बोला करती थीं कि बतवारी में मत जाना, वहाँ सांप हैं, वहाँ कीड़ें बहुत होते हैं। मुझे बतवारी याद आई और पता चला कि उन्होने बतवारी वहाँ से ली थी, और कितना ख़ूबसूरत गाना था, तो ऐसी सिमिलीज़, ऐसी सारी उपमाएँ केवल वही दे सकता है जो इस मिट्टी से जुड़ा हुआ हो!" बस्‍ दोस्तों, मेरा ख़याल है कि गाँव की मिट्टी से जुड़े इस गीत को लिखने वाले की तारीफ़ में ये शब्द काफ़ी हैं। इससे आगे आप ख़ुद सुन कर महसूस कीजिए।







क्या आप जानते हैं...





चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-



1. मुखड़े में शब्द है -"धूप", गीत पहचानें-३ अंक.

2. बासु चटर्जी निर्मित और निर्देशित इस फिल्म का नाम बताएं- २ अंक.

3. अमोल पालेकर और फिल्म की नायिका पर फिल्माए इस गीत के गीतकार कौन हैं-२ अंक.

4. पुराने दौर के एक अमर संगीत से सुपुत्र हैं इस गीत के संगीतकार, नाम बताएं-२ अंक.



विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।



पिछली पहेली का परिणाम-

अनुपम जी बधाई, बहुत दिनों में पधारे आप, शरद जी और अवध जी आये सही जवाब लेकर. पारुल और उज्जवल आपके सन्देश पाकर खुशी हुई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी

पहेली रचना -सजीव सारथी




ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

न बोले तुम न मैनें कुछ कहा
मगर न जाने ऐसा क्यूं लगा
कि धूप में खिला है चाँद, दिन में रात हो गई
कि प्यार के बिना कहे सुने ही बात हो गई ।
anupam goel said…
बातों बातों में
indu puri said…
गीतकार योगेश
padm singhp said…
संगीतकार रोशन जी के बेटे
राकेश रोशन जी के भाई
हृतिक रोशन के चाचा
संजय खान जी के समधी
म्युज़िक डायरेक्टर राजेश रोशन ने इस फिल्म का म्युज़िक दिया था और इस गाने का भी
शरद जी भूल चूक आप सुधारिये ,हम तो आपके चेले हैं
बेहद रोमाचक गीत
बहुत ख़ूब,

ये मेरा निहायत पसंदीदा गाना है. और क्या गाया है रफ़ी साहब ने! इस तोहफ़े का शुक्रिया.

रविकान्त

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