ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 365/2010/65
भारतीय शास्त्रीय संगीत के राग ना केवल दिन के अलग अलग प्रहरों से जुड़े हुए हैं, बल्कि कुछ रागों का ऋतुओं, मौसमों से भी निकट का वास्ता है। ऐसा ही एक राग है बहार। और फिर राग बहार से बना है राग बसन्त बहार भी। जब बसंत, फागुन और होली गीतों की यह शृंखला चल रही है, ऐसे में अगर इस राग का उल्लेख ना करें तो शायद रंगीले गीतों की यह शृंखला अधूरी ही रह जाएगी। इसलिए आज जो गीत हमने चुना है वह आधारित है राग बसन्त बहार पर, और फ़िल्म का नाम भी वही है, यानी कि 'बसन्त बहार'। शैलेन्द्र और शंकर जयकिशन की जोड़ी, और इस गीत को दो ऐसे गायकों ने गाए हैं जिनमें से एक तो शास्त्रीय संगीत के आकाश का एक चमकता सितारा हैं, और दूसरे वो जो हैं तो फ़िल्मी पार्श्व गायक, लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उतने ही पारदर्शी जितने कि कोई अन्य शास्त्रीय गायक। ये दो सुर गंधर्व हैं पंडित भीमसेन जोशी और हमारे मन्ना डे साहब। 'गीत रंगीले' में आज इन दो सुर साधकों की जुगलबंदी पेश है, "केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले"। ऋतुराज बसन्त को समर्पित इससे उत्कृष्ट फ़िल्मी गीत शायद ही किसी और गीतकार, संगीतकार या गायक ने दिए होंगे। दोस्तों, हमने इस फ़िल्म के दो गीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पहले सुनवाए हैं, रफ़ी साहब का गाया हुआ "दुनिया ना भाए मोहे" और लता जी का गाया हुआ "जा जा रे जा बालमवा"। अत: इस फ़िल्म से जुड़ी तमाम बातें भी ज़ाहिर है बता चुके होंगे, इसलिए आइए आज इस फ़िल्म के तीसरे गीत को सुनवाने से पहले आपको इसी गीत के बनने की कहानी बताएँ, और वह भी सीधे मन्ना दा के शब्दों में जो उन्होने विविध भारती पर कमल शर्मा द्वारा लिए गए एक मुलाक़ात में कहे थे सन् १९९८ में:
"'बसंत बहार' पिक्चर में शंकर जयकिशन म्युज़िक डिरेक्टर थे। वैसे तो मैंने सुना था कि जब यह पिक्चर बन रही थी, भारत भूषण के भाइसाहब इसे बना रहे थे और उन्होने चाहा कि गानें सब रफ़ी साहब गाएँ। सब कोई सोच रहे थे कि रफ़ी साहब ही गाएँगे, लेकिन शंकर ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि मन्ना डे गाएँगे ये गानें। पहला गाना रिकार्ड किया "सुर ना सजे क्या गाऊँ मैं"। वह बहुत अच्छा गाना था और बहुत अच्छी तरह से मैंने गाया था। फिर जयकिशन ने बनाया वह गाना "भय भंजना वंदना सुन हमारी"। वह मैने गाया। फिर एक डुएट, लता और मैंने गाया "नैन मिले चैन कहाँ"। फिर एक सिचुयशन कहाँ से निकाले उन लोगों ने, शंकर ने कहा कि मन्ना बाबू, तैयार हो जाइए, कमर कस के बाँध लीजिए, आप के लिए यह गाना है, बहुत ज़बरदस्त गाना है। मैंने कहा ठीक है, गाउँगा। बोले कि यह डुएट है। डुएट है, कौन गाएगा मेरे साथ? लता? आशा? कौन गाएगा? नहीं, यह कॊम्पिटिशन का गाना है। किसके साथ कॊम्पीट करना है? बोले, भीमसेन जोशी के साथ। मैंने कहा, शंकर जी, क्या आप पागल हो गए हैं? भीमसेन जोशी के साथ मैं कॊम्पिटिशन में गाऊं और उनको हरा दूँ? नहीं, यह नहीं हो सकता, मैं यह कर नहीं पाउँगा। कर नहीं पाएँगे? आप हीरो के लिए गाएँगे, उनको तो हारना ही है। आप हीरो के लिए गा रहे हैं, हीरो को तो जीतना पड़ेगा ना! आप चाहे कुछ भी कर लीजिए, मैं गाउँगा नहीं, आप रफ़ी साहब को बुला लीजिए। मैं घर आ गया, अपनी बीवी से कहा कि चलो, हम लोग भाग जाते हैं कुछ दिनों के लिए यहाँ से। हम लोग भाग जाएँगे, किसी को बताएँगे नहीं कि कहाँ जा रहे हैं। १५ दिन बाद वापस आएँगे, तब तक यह गाना रिकार्ड हो जाएगा। तो मेरी बीवी ने कहा कि कैसी बातें करते हैं आप, यही तो मौका है। मैंने कहा आप तो गाएँगी नहीं, गाना तो मुझे पड़ेगा। और फिर भीमसेन जोशी के साथ में बैथ के गाना, यह कोई मामूली बात नहीं है। वो बोलीं कि यही तो आप भूल कर रहे हैं, सिचुयशन इस ढंग से बनाया है कि आपको जीतना है, आप जीतेंगे, हीरो जीतेंगे, और आप जब गाएँगे तो भीमसेन जोशी थोड़ा कम गाएँगे, और आप थोड़ा और आउट गाइए, तो हो जाएगा। तो मैंने गाया वह गाना और भीमसेन जोशी जी ने कहा कि मन्ना साहब, आप क्लासिकल गाया कीजिए, आप अच्छा गाते हैं। वो आप लोगों ने सुने होंगे, "केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले"। बहुत अच्छा गाना है, बहुत अच्छा गाना है, क्या गाया था उन्होने! अब भीमसेन जोशी की बात क्या करें!" तो दोस्तों, इस गीत के बनने की दास्तान तो आप ने जान ली, आइए अब बसंत बहार के इस गीत को सुनते हैं और ज़रा सोचिए कि क्यों नहीं बनते हैं ऐसे मास्टरपीस आजकल!
क्या आप जानते हैं...
कि शंकर-जयकिशन को नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया है, और ये नौ फ़िल्में हैं 'चोरी चोरी', 'अनाड़ी', 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'प्रोफ़ेसर', 'सूरज', 'ब्रह्मचारी', 'पहचान', 'मेरा नाम जोकर', और 'बेइमान'।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. गीत का एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"महक"-३ अंक.
2. सुनील दत्त और आशा पारेख अभिनीत इस फिल्म के संगीतकार का नाम बताएं -२ अंक.
3. राग आधारित इस गीत को किसने लिखा है- २ अंक.
4. प्रकृति की सुंदरता को बयां करने वाले इस मुश्किल गीत को किस गायिका ने गाया है-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
अवध जी पहले आये पर ३ के बजाय २ अंक के सवाल का जवाब दिया, अरे सर एक्साम में अच्छे विद्यार्थी ऐसा नहीं करते हैं :), इंदु जी चूकी तो शरद जी बाज़ी मार गए. पर इंदु जी ने भी एक जवाब तो सही दिया ही. बधाई आप तीनों को
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
भारतीय शास्त्रीय संगीत के राग ना केवल दिन के अलग अलग प्रहरों से जुड़े हुए हैं, बल्कि कुछ रागों का ऋतुओं, मौसमों से भी निकट का वास्ता है। ऐसा ही एक राग है बहार। और फिर राग बहार से बना है राग बसन्त बहार भी। जब बसंत, फागुन और होली गीतों की यह शृंखला चल रही है, ऐसे में अगर इस राग का उल्लेख ना करें तो शायद रंगीले गीतों की यह शृंखला अधूरी ही रह जाएगी। इसलिए आज जो गीत हमने चुना है वह आधारित है राग बसन्त बहार पर, और फ़िल्म का नाम भी वही है, यानी कि 'बसन्त बहार'। शैलेन्द्र और शंकर जयकिशन की जोड़ी, और इस गीत को दो ऐसे गायकों ने गाए हैं जिनमें से एक तो शास्त्रीय संगीत के आकाश का एक चमकता सितारा हैं, और दूसरे वो जो हैं तो फ़िल्मी पार्श्व गायक, लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उतने ही पारदर्शी जितने कि कोई अन्य शास्त्रीय गायक। ये दो सुर गंधर्व हैं पंडित भीमसेन जोशी और हमारे मन्ना डे साहब। 'गीत रंगीले' में आज इन दो सुर साधकों की जुगलबंदी पेश है, "केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले"। ऋतुराज बसन्त को समर्पित इससे उत्कृष्ट फ़िल्मी गीत शायद ही किसी और गीतकार, संगीतकार या गायक ने दिए होंगे। दोस्तों, हमने इस फ़िल्म के दो गीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पहले सुनवाए हैं, रफ़ी साहब का गाया हुआ "दुनिया ना भाए मोहे" और लता जी का गाया हुआ "जा जा रे जा बालमवा"। अत: इस फ़िल्म से जुड़ी तमाम बातें भी ज़ाहिर है बता चुके होंगे, इसलिए आइए आज इस फ़िल्म के तीसरे गीत को सुनवाने से पहले आपको इसी गीत के बनने की कहानी बताएँ, और वह भी सीधे मन्ना दा के शब्दों में जो उन्होने विविध भारती पर कमल शर्मा द्वारा लिए गए एक मुलाक़ात में कहे थे सन् १९९८ में:
"'बसंत बहार' पिक्चर में शंकर जयकिशन म्युज़िक डिरेक्टर थे। वैसे तो मैंने सुना था कि जब यह पिक्चर बन रही थी, भारत भूषण के भाइसाहब इसे बना रहे थे और उन्होने चाहा कि गानें सब रफ़ी साहब गाएँ। सब कोई सोच रहे थे कि रफ़ी साहब ही गाएँगे, लेकिन शंकर ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि मन्ना डे गाएँगे ये गानें। पहला गाना रिकार्ड किया "सुर ना सजे क्या गाऊँ मैं"। वह बहुत अच्छा गाना था और बहुत अच्छी तरह से मैंने गाया था। फिर जयकिशन ने बनाया वह गाना "भय भंजना वंदना सुन हमारी"। वह मैने गाया। फिर एक डुएट, लता और मैंने गाया "नैन मिले चैन कहाँ"। फिर एक सिचुयशन कहाँ से निकाले उन लोगों ने, शंकर ने कहा कि मन्ना बाबू, तैयार हो जाइए, कमर कस के बाँध लीजिए, आप के लिए यह गाना है, बहुत ज़बरदस्त गाना है। मैंने कहा ठीक है, गाउँगा। बोले कि यह डुएट है। डुएट है, कौन गाएगा मेरे साथ? लता? आशा? कौन गाएगा? नहीं, यह कॊम्पिटिशन का गाना है। किसके साथ कॊम्पीट करना है? बोले, भीमसेन जोशी के साथ। मैंने कहा, शंकर जी, क्या आप पागल हो गए हैं? भीमसेन जोशी के साथ मैं कॊम्पिटिशन में गाऊं और उनको हरा दूँ? नहीं, यह नहीं हो सकता, मैं यह कर नहीं पाउँगा। कर नहीं पाएँगे? आप हीरो के लिए गाएँगे, उनको तो हारना ही है। आप हीरो के लिए गा रहे हैं, हीरो को तो जीतना पड़ेगा ना! आप चाहे कुछ भी कर लीजिए, मैं गाउँगा नहीं, आप रफ़ी साहब को बुला लीजिए। मैं घर आ गया, अपनी बीवी से कहा कि चलो, हम लोग भाग जाते हैं कुछ दिनों के लिए यहाँ से। हम लोग भाग जाएँगे, किसी को बताएँगे नहीं कि कहाँ जा रहे हैं। १५ दिन बाद वापस आएँगे, तब तक यह गाना रिकार्ड हो जाएगा। तो मेरी बीवी ने कहा कि कैसी बातें करते हैं आप, यही तो मौका है। मैंने कहा आप तो गाएँगी नहीं, गाना तो मुझे पड़ेगा। और फिर भीमसेन जोशी के साथ में बैथ के गाना, यह कोई मामूली बात नहीं है। वो बोलीं कि यही तो आप भूल कर रहे हैं, सिचुयशन इस ढंग से बनाया है कि आपको जीतना है, आप जीतेंगे, हीरो जीतेंगे, और आप जब गाएँगे तो भीमसेन जोशी थोड़ा कम गाएँगे, और आप थोड़ा और आउट गाइए, तो हो जाएगा। तो मैंने गाया वह गाना और भीमसेन जोशी जी ने कहा कि मन्ना साहब, आप क्लासिकल गाया कीजिए, आप अच्छा गाते हैं। वो आप लोगों ने सुने होंगे, "केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले"। बहुत अच्छा गाना है, बहुत अच्छा गाना है, क्या गाया था उन्होने! अब भीमसेन जोशी की बात क्या करें!" तो दोस्तों, इस गीत के बनने की दास्तान तो आप ने जान ली, आइए अब बसंत बहार के इस गीत को सुनते हैं और ज़रा सोचिए कि क्यों नहीं बनते हैं ऐसे मास्टरपीस आजकल!
क्या आप जानते हैं...
कि शंकर-जयकिशन को नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया है, और ये नौ फ़िल्में हैं 'चोरी चोरी', 'अनाड़ी', 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'प्रोफ़ेसर', 'सूरज', 'ब्रह्मचारी', 'पहचान', 'मेरा नाम जोकर', और 'बेइमान'।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. गीत का एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"महक"-३ अंक.
2. सुनील दत्त और आशा पारेख अभिनीत इस फिल्म के संगीतकार का नाम बताएं -२ अंक.
3. राग आधारित इस गीत को किसने लिखा है- २ अंक.
4. प्रकृति की सुंदरता को बयां करने वाले इस मुश्किल गीत को किस गायिका ने गाया है-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
अवध जी पहले आये पर ३ के बजाय २ अंक के सवाल का जवाब दिया, अरे सर एक्साम में अच्छे विद्यार्थी ऐसा नहीं करते हैं :), इंदु जी चूकी तो शरद जी बाज़ी मार गए. पर इंदु जी ने भी एक जवाब तो सही दिया ही. बधाई आप तीनों को
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Mahak rahi hai phulwari
nikhari kyari kyari
phool phool par joban aaya
Kali kali ne kiya singar
Avadh Lal
देखिये एक अच्छे विद्यार्थी की तरह मैंने आपके निर्देशों के अनुसार ही उत्तर दिया है.
अब तो आशा है आप प्रसन्न होंगे.
:-)) ;-)
अवध लाल
maine kaha bhi ye to saraasar ceating hai .
to unhone kaha aap kisi ko mt btana .
to maine bhi wada nibhaya aur kisi ko nhi btaya ki ye answer mujhe kisne btaya .kyon btaoon bhaii?
main to..........achchhi bchchi.
ha ha ha
ab aap dono sabit krte rhiye ki answer aaapne mujhe nhi btaya .
ha ha ha
film chhaya ka yh geet aaj bhi film shastriy sangit me apna sthan rkhta hai
aur mujhe,meri patni ko bahut psnd hai
Guru or Govind mai koyi bhi tulana nahi hoti
मैनें तो राजेन्द्र नाथ बताया था लेकिन आपने मेरा कहा कहाँ माना . वैसे आपका email क्या है ? आप जैसी female का email तो पास में होना ही चाहिए ।