Skip to main content

सोलह बरस की बाली उमर को सलाम....और सलाम उन शब्दों के शिल्पकार को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 389/2010/89

'मैंशायर तो नहीं' शृंखला में आनंद बक्शी साहब के लिखे गीतों का सिलसिला जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज ३० मार्च है। आज ही के दिन सन् २००२ को आनंद बक्शी साहब इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ गए थे। और अपने पीछे छोड़ गए असंख्य लोकप्रिय गीत जो दुनिया की फ़िज़ाओं में हर रोज़ गूँज रहे है। ऐसा लगता ही नहीं कि बक्शी साहब हमारे बीच नहीं हैं। सच भी तो यही है कि कलाकार कभी नही मरता, अपनी कला के ज़रिए वो अमर हो जाता है। इस शृंखला में अब तक आपने कुल ८ गीत सुनें, जिनमें से तीन ६० के दशक के थे और पाँच गानें ७० के दशक के थे। सच भी यही है कि ७० के दशक में बक्शी साहब ने सब से ज़्यादा हिट गीत लिखे। ८० के दशक में भी उनके कलम की जादूगरी जारी रही। तो आज से अगले दो अंकों में हम आपको दो गीत ८० के दशक से चुन कर सुनवाएँगे। आज एक ऐसी फ़िल्म के गीत की बारी जिस फ़िल्म के गीतों ने ८० के दशक के शुरु शुरु में तहलका मचा दिया था। लता मंगेशकर और एस. पी. बालासुब्रह्मण्यम मुख्य रूप से इस फ़िल्म के गीतों का गाया, और संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। 'एक दूजे के लिए', जी हाँ, १९८१ की इस फ़िल्म के "तेरे मेरे बीच में" गीत के लिए बक्शी साहब को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। आज हम इसी फ़िल्म का गीत सुनेंगे, लेकिन यह गीत नहीं, बल्कि शायद इससे भी बेहतर एक गीत, जिसे मुख्य रूप से तो लता जी ने ही गाया है, लेकिन शुरुआती बोल अनुप जलोटा की आवाज़ में है। "सोलह बरस की बाली उमर को सलाम, मैं प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम"। यह गीत बक्शी साहब के पसंदीदा गीतों में से एक है, और कहने की ज़रूरत नहीं कि यह मेरा बक्शी साहब का लिखा सब से पसंदीदा गीत रहा है। इस गीत की खासियत ही यह है कि जैसे जैसे गीत को सुनते जाते हैं, इसके बोलों में बहते चले जाते हैं। एक शब्द से दूसरे शब्द, दूसरे से तीसरे में। एक धारा की तरह है यह गीत जिसमें एक बार बह निकले तो अंजाम तक पहुँच कर ही होश वापस आता है। एक जुनून है इस गीत में, और साथ ही साथ आध्यात्मिकता भी है। पैशन और स्पिरिचुयलिटी। प्यार का पक्ष लेकर ज़माने से एक तरह की बग़ावत करता है यह गीत। हर उस शख़्स, या चीज़, यहाँ तक कि वक़्त को भी सलाम करता है यह गीत जिसने भी प्यार की रवायत को आगे बढ़ाया। जुदाई करवाने वाले वक़्त का भी शुक्रिया अदा किया जा रहा है क्योंकि यह भी प्यार का ही एक पक्ष है। यह एक ऐसा गीत है कि जिसका एक एक शब्द हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। इसलिए आगे बढ़ने से पहले पेश है इस गीत के पूरे बोल:

कोशिश करके देख ले दरिया सारे नदियाँ सारी,
दिल की लगी नहीं बुझती, बुझती है हर चिंगारी।

सोलह बरस की बाली उमर को सलाम,
ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम।

दुनिया में सब से पहले जिसने यह दिल दिया,
दुनिया के सब से पहले दिलबर को सलाम,
दिल से निकलने वाले रस्ते का शुक्रिया,
दिल तक पहुँचने वाली डगर को सलाम,
ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम।
जिसमें जवान होकर बदनाम हम हुए,
उस शहर उस गली उस घर को सलाम,
जिसने हमें मिलाया जिसने जुदा किया,
उस वक़्त उस घड़ी उस गजर को सलाम,
ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम।
मिलते रहें यहाँ हम ये है यहाँ लिखा,
इस लिखावट की ज़ेर-ओ-ज़बर को सलाम,
साहिल की रेत पर युं लहरा उठा ये दिल,
सागर में उठने वाली हर लहर को सलाम,
इन मस्त गहरी गहरी आँखों की झील में,
जिसने हमें डुबोया उस भँवर को सलाम,
घुंघट को छोड़ कर जो सर से सरक गई,
ऐसी निगोड़ी धानी चुनर को सलाम,
उल्फ़त के दुश्मनों ने कोशिश हज़ार की,
फिर भी नहीं झुकी जो उस नज़र को सलाम,
ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम।

दोस्तों, इन शब्दों को पढ़ने के बाद आप भी मेरी यह बात ज़रूर मानेंगे कि आनंद बक्शी काव्य के किसी एक रंग के अधीन रह कर गीतों की रचना नहीं की। वो एक स्वतंत्र गीतकार थे। रुमानी गीत हो या ग़ज़ल, देश प्रेम का गीत हो या फिर कोई और रंग, आनंद बक्शी की कोई सीमा नहीं थी। और इस प्रस्तुत गीत में तो उन्होने कमाल ही कर दिया है। बक्शी साहब यह ज़रूर मानते थे कि एक गीतकार को दिल से एक शायर होना चाहिए और वो वही थे, विचारों से शायर और शब्दों से गीतकार। उन्होने सदा यह कामयाब संतुलन बनाकर गीत लिखने की नई मिसाल पैदा की। वो बड़ी से बड़ी बात को इस सहजता से अपने गीतों में कह जाते थे कि इन पंक्तियों को किसी अन्य शब्दों से बदलना असंभव हो जाता था। इस बात का आज के प्रस्तुत गीत से बढ़कर और क्या उदाहरण हो सकता है भला! तो आइए अब इस जुनूनी गीत को सुना जाए। लता जी के स्वर ने क्या ख़ूब न्याय किया है बक्शी साहब के बोलों का, और एल.पी की धुन और ऒर्केस्टेशन है जैसे सोने पे सुहागा। आँखें मूंद कर इस गीत को सुनिएगा, और गीत के ख़त्म होने के बाद जब आप अपनी आँखें खोलेंगे कि उन्हे नम पाएँगे। यक़ीन मानिए... चलते चलते आनंद बक्शी साहब को उनकी पुण्यतिथि पर 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम स्मृति सुमन अर्पित करते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि आनंद बक्शी के नाती आदित्य दत्त ने जब फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में क़दम रखा तो उन्होने अपनी फ़िल्म का शीर्षक रखा 'आशिक़ बनाया आपने', जो कि प्रेरीत था बक्शी साहब के लिखे फ़िल्म 'कर्ज़' के गीत एक गीत से-"दर्द-ए-दिल दर्द-ए-जिगर दिल में जगाया आपने, पहले तो मैं शायर था आशिक़ बनाया आपने"।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. एक अंतरे में शब्द आता है -"शमशान", गीत बताएं -३ अंक.
2. ये गीत इस गायक के जीवन का शायद सबसे हिट गीत रहा, गायक कौन हैं- २ अंक.
3. इस फिल्म के निर्देशक का नाम बताएं -२ अंक.
4. संगीतकार जोड़ी है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की, फिल्म में दो नायक हैं, नाम बताएं-२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
सब विजेताओं को बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

गीत मुझे पता है किन्तु एक अंक का घाटा उठाते हुए फ़िल्म के निर्देशक का नाम बता रहा हूँ : महेश भट्ट
indu puri said…
to chitti aahi jane do vtan se aur unko bhi kahne do
'chitthi aai hai vatan se chitthi aai hai .................soona ghr bna shamshan ka namuna ..........to bne hm bhi kya kr skte hain
anita singh said…
sanjay dutt ,kumar gaurav
padm singh said…
shayad anup jalota ji ne gaya tha ,filmaya to unhi pr tha .kuchh kuchh yaad hai
AVADH said…
gayak: pankaj udhas
avadh lal
purvi said…
aaj bahut dinon baad old is gold par aana hua, aur aate se hi mera manpasand geet baj raha tha... bahut bahut bahut dhanyvaad, sach kah rahe hain sujoy ji.... it is a blend of spirituality with passion. great song.

old is gold par paheli ka swaroop bahut badal gaya hai... achchha laga yeh badlaav, sabhi ke liye jeetane ke chances hain.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...