ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 340/2010/40
फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को सलाम करते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास शृंखला की अंतिम कड़ी पर। अब तक हमने इस शृंखला में क्रम से सुलोचना कदम, उमा देवी, मीना कपूर, सुधा मल्होत्रा, जगजीत कौर, कमल बारोट, मधुबाला ज़वेरी, मुनू पुरुषोत्तम और शारदा का ज़िक्र कर चुके हैं। आज बारी है उस गयिका की जिनके गाए सब से मशहूर गीत के मुखड़े को ही हमने इस शृंखला का नाम दिया है। जी हाँ, "कभी तन्हाइयों में युं हमारी याद आएगी" गीत की गयिका मुबारक़ बेग़म आज 'ओल्ड इस गोल्ड' की केन्द्रबिंदु हैं। मुबारक़ बेग़म के गाए फ़िल्म 'हमारी याद आएगी' के इस शीर्षक गीत को सुनते हुए जैसे महसूस होने लगता है इस गीत में छुपा हुआ दर्द। जिस अंदाज़ में मुबारक़ जी ने "याद आएगी" वाले हिस्से को गाया है, इसे सुनते हुए सचमुच ही किसी ख़ास बिछड़े हुए की याद आ ही जाती है और कलेजा जैसे कांप उठता है। इस गीत में, इसकी धुन में, इसकी गायकी में कुछ ऐसी शक्ति है कि सीधे आत्मा को कुछ देर के लिए जैसे अपनी ओर सम्मोहित कर लेती है और गीत ख़त्म होने के बाद ही हमारा होश वापस आता है। किदार शर्मा का लिखा हुआ यह गीत है जिसकी तर्ज़ बनाई है स्नेहल भाटकर ने। किदार शर्मा ने कई नए कलाकारों को समय समय पर मौका दिया है जिनमें शामिल हैं कई अभिनेता अभिनेत्री, संगीतकार, गायक और गायिकाएँ। 'हमारी याद आएगी' फ़िल्म जितना मुबारक़ बेग़म के लिए यादगार फ़िल्म है, उतनी ही यादगार साबित हुई संगीतकार स्नेहल भाटकर के लिए भी। स्नेहल भी एक कमचर्चित फ़नकार हैं। भविष्य में जब हम कमचर्चित संगीतकारों पर किसी शृंखला का आयोजन करेंगे तो स्नेहल भाटकर से सबंधित जानकारी आपको ज़रूर देंगे। आज करते हैं मुबारक़ बेग़म की बातें। लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि आज हम इसी कालजयी गीत को सुनेंगे।
कई साल पहले मुबारक़ बेग़म विविध भारती पर तशरीफ़ लाई थीं और वरिष्ठ उद्घोषक कमल शर्मा ने उनसे मुलाक़ात की थी। उसी मुलाक़ात में मुबारक़ जी ने इस गीत के पीछे की कहानी का ज़िक्र किया था। पेश है उसी बातचीत का वह अंश। दोस्तों, आप सोचते होंगे कि मैं लगभग सभी आलेख में विविध भारती के कार्यक्रमों का ही ज़िक्र करता रहता हूँ। दरअसल बात ही ऐसी है कि उस गुज़रे ज़माने के कलाकारों से संबंधित सब सर्वाधिक सटीक जानकारी केवल विविध भारती के पास ही उपलब्ध है। फ़िल्म संगीत के इतिहास को आने वाली पीढ़ियों के लिए सहज कर रखने में विविध भारती के योगदान को अगर हम सिर्फ़ उल्लेखनीय कहें तो कम होगा। ख़ैर, आइए मुबारक़ बेग़म के उस इंटरव्यू को पढ़ा जाए।
प्र: यह गीत (कभी तन्हाइयों में युं) किदार शर्मा की फ़िल्म 'हमारी याद आएगी' का है, संगीतकार स्नेहल भाटकर।
उ: पहले पहले यह गीत रिकार्ड पर नहीं था। इस गीत के बस कुछ लाइनें बैकग्राउंड के लिए लिया गया था।
प्र: किदर शर्मा की और कौन कौन सी फ़िल्मों में आपने गीत गाए?
उ: 'शोख़ियाँ', 'फ़रीयाद'।
प्र: किदार शर्मा के लिए आप की पहली फ़िल्म कौन सी थी?
उ: 'शोख़ियाँ'। संगीत जमाल सेन का था। मैं जो बात बता रही थी कि "हमारी याद आएगी" गाना रिकार्ड पर नहीं था। इसे पार्ट्स मे बैकग्राउंड म्युज़िक के तौर पर फ़िल्म में इस्तेमाल किया जाना था। मुझे याद है बी. एन. शर्मा गीतकार थे, स्नेहल और किदार शर्मा बैठे हुए थे। रिकार्डिंग् के बाद किदार शर्मा ने मुझे ४ आने दिए। मैंने किदार शर्मा की तरफ़ देखा। उन्होने मुझसे उसे रखने को कहा और कहा कि यह 'गुड-लक' के लिए है। सच में वह मेरे लिए लकी साबित हुई।
प्र: आप बता रहीं थीं कि शुरु शुरु में यह गीत रिकार्ड पर नहीं था?
उ: हाँ, लेकिन बाद में उन लोगों को गीत इतना पसंद आया कि उन्होने सारे पार्ट्स जोड़कर गीत की शक्ल में रिकार्ड पर डालने का फ़ैसला किया। मैं अभी आपको बता नहीं सकती, लेकिन अगर आप गाना बजाओ तो मैं ज़रूर बता सकती हूँ कि कहाँ कहाँ गीत को जोड़ा गया है।
प्र: आपको यह पता था कि ऐसा हो रहा है?
उ: पहले मुझे मालूम नहीं था, लेकिन रिकार्ड रिलीज़ होने के बाद पता चला।
प्र: आपने अपना शेयर नहीं माँगा?
उ: दरअसल मैं तब बहुत नई थी, इसलिए मैंने अपना मुंह बंद ही रखा, वरना मुझे जो कुछ भी मिल रहा था वो भी बंद हो जाता। आगे भी कई बार ऐसे मौके हुए कि जब मुझसे कुछ कुछ लाइनें गवा ली गई और बाद में उन लोगों ने उसे एक गीत के शक्ल में रिकार्ड पर उतार दिया।
दोस्तों, इस अंश को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि मुबारक़ बेग़म जैसी कमचर्चित गायिकाओं को किस किस तरह का संघर्ष करना पड़ता होगा! ये सब जानकर दिल उदास हो जाता है कि इतनी सुरीले कलाकारों को उन्हे अपना हिस्सा नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे। 'आवाज़' की तरफ़ से हमारी ये छोटी सी कोशिश थी इन कमचर्चित गायिकाओं को याद करने की, आशा है आपको पसंद आई होगी। अपनी राय आप टिपण्णी के अलावा hindyugm@gmail.com के पते पर भी लिख भेज सकते हैं। आप से हमारा बस यही गुज़ारिश है कि इन कमचर्चित कलाकारों को कभी भुला ना दीजिएगा, अपनी दिल की वादियों में इन सुरीली आवाज़ों को हमेशा गूंजते रहने दीजिए, क्योंकि ये आवाज़ें आज भी बार बार हमसे यही कहती है कि कभी तन्हाइयों में युं हमारी याद आएगी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
नैनों में छुपे,
कुछ ख्वाब मिले,
मन झूम उठा,
कुछ कहा होगा, भूले ख्वाबों ने...
अतिरिक्त सूत्र- शुद्ध सोने से सजे गीतों की शृंखला में कल फिर गूंजेगी कुंदन लाल सहगल की आवाज़
पिछली पहेली का परिणाम-
बिलकुल सही शरद जी, एक अंक और आपके खाते में, एक गुजारिश है आपसे, आप अपने ऐसे शोस् जिनमे आपको ऐसे गजब के फनकारों की संगती मिली हो, उनके अनुभव अन्य श्रोताओं के साथ भी अवश्य बाँटें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को सलाम करते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास शृंखला की अंतिम कड़ी पर। अब तक हमने इस शृंखला में क्रम से सुलोचना कदम, उमा देवी, मीना कपूर, सुधा मल्होत्रा, जगजीत कौर, कमल बारोट, मधुबाला ज़वेरी, मुनू पुरुषोत्तम और शारदा का ज़िक्र कर चुके हैं। आज बारी है उस गयिका की जिनके गाए सब से मशहूर गीत के मुखड़े को ही हमने इस शृंखला का नाम दिया है। जी हाँ, "कभी तन्हाइयों में युं हमारी याद आएगी" गीत की गयिका मुबारक़ बेग़म आज 'ओल्ड इस गोल्ड' की केन्द्रबिंदु हैं। मुबारक़ बेग़म के गाए फ़िल्म 'हमारी याद आएगी' के इस शीर्षक गीत को सुनते हुए जैसे महसूस होने लगता है इस गीत में छुपा हुआ दर्द। जिस अंदाज़ में मुबारक़ जी ने "याद आएगी" वाले हिस्से को गाया है, इसे सुनते हुए सचमुच ही किसी ख़ास बिछड़े हुए की याद आ ही जाती है और कलेजा जैसे कांप उठता है। इस गीत में, इसकी धुन में, इसकी गायकी में कुछ ऐसी शक्ति है कि सीधे आत्मा को कुछ देर के लिए जैसे अपनी ओर सम्मोहित कर लेती है और गीत ख़त्म होने के बाद ही हमारा होश वापस आता है। किदार शर्मा का लिखा हुआ यह गीत है जिसकी तर्ज़ बनाई है स्नेहल भाटकर ने। किदार शर्मा ने कई नए कलाकारों को समय समय पर मौका दिया है जिनमें शामिल हैं कई अभिनेता अभिनेत्री, संगीतकार, गायक और गायिकाएँ। 'हमारी याद आएगी' फ़िल्म जितना मुबारक़ बेग़म के लिए यादगार फ़िल्म है, उतनी ही यादगार साबित हुई संगीतकार स्नेहल भाटकर के लिए भी। स्नेहल भी एक कमचर्चित फ़नकार हैं। भविष्य में जब हम कमचर्चित संगीतकारों पर किसी शृंखला का आयोजन करेंगे तो स्नेहल भाटकर से सबंधित जानकारी आपको ज़रूर देंगे। आज करते हैं मुबारक़ बेग़म की बातें। लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि आज हम इसी कालजयी गीत को सुनेंगे।
कई साल पहले मुबारक़ बेग़म विविध भारती पर तशरीफ़ लाई थीं और वरिष्ठ उद्घोषक कमल शर्मा ने उनसे मुलाक़ात की थी। उसी मुलाक़ात में मुबारक़ जी ने इस गीत के पीछे की कहानी का ज़िक्र किया था। पेश है उसी बातचीत का वह अंश। दोस्तों, आप सोचते होंगे कि मैं लगभग सभी आलेख में विविध भारती के कार्यक्रमों का ही ज़िक्र करता रहता हूँ। दरअसल बात ही ऐसी है कि उस गुज़रे ज़माने के कलाकारों से संबंधित सब सर्वाधिक सटीक जानकारी केवल विविध भारती के पास ही उपलब्ध है। फ़िल्म संगीत के इतिहास को आने वाली पीढ़ियों के लिए सहज कर रखने में विविध भारती के योगदान को अगर हम सिर्फ़ उल्लेखनीय कहें तो कम होगा। ख़ैर, आइए मुबारक़ बेग़म के उस इंटरव्यू को पढ़ा जाए।
प्र: यह गीत (कभी तन्हाइयों में युं) किदार शर्मा की फ़िल्म 'हमारी याद आएगी' का है, संगीतकार स्नेहल भाटकर।
उ: पहले पहले यह गीत रिकार्ड पर नहीं था। इस गीत के बस कुछ लाइनें बैकग्राउंड के लिए लिया गया था।
प्र: किदर शर्मा की और कौन कौन सी फ़िल्मों में आपने गीत गाए?
उ: 'शोख़ियाँ', 'फ़रीयाद'।
प्र: किदार शर्मा के लिए आप की पहली फ़िल्म कौन सी थी?
उ: 'शोख़ियाँ'। संगीत जमाल सेन का था। मैं जो बात बता रही थी कि "हमारी याद आएगी" गाना रिकार्ड पर नहीं था। इसे पार्ट्स मे बैकग्राउंड म्युज़िक के तौर पर फ़िल्म में इस्तेमाल किया जाना था। मुझे याद है बी. एन. शर्मा गीतकार थे, स्नेहल और किदार शर्मा बैठे हुए थे। रिकार्डिंग् के बाद किदार शर्मा ने मुझे ४ आने दिए। मैंने किदार शर्मा की तरफ़ देखा। उन्होने मुझसे उसे रखने को कहा और कहा कि यह 'गुड-लक' के लिए है। सच में वह मेरे लिए लकी साबित हुई।
प्र: आप बता रहीं थीं कि शुरु शुरु में यह गीत रिकार्ड पर नहीं था?
उ: हाँ, लेकिन बाद में उन लोगों को गीत इतना पसंद आया कि उन्होने सारे पार्ट्स जोड़कर गीत की शक्ल में रिकार्ड पर डालने का फ़ैसला किया। मैं अभी आपको बता नहीं सकती, लेकिन अगर आप गाना बजाओ तो मैं ज़रूर बता सकती हूँ कि कहाँ कहाँ गीत को जोड़ा गया है।
प्र: आपको यह पता था कि ऐसा हो रहा है?
उ: पहले मुझे मालूम नहीं था, लेकिन रिकार्ड रिलीज़ होने के बाद पता चला।
प्र: आपने अपना शेयर नहीं माँगा?
उ: दरअसल मैं तब बहुत नई थी, इसलिए मैंने अपना मुंह बंद ही रखा, वरना मुझे जो कुछ भी मिल रहा था वो भी बंद हो जाता। आगे भी कई बार ऐसे मौके हुए कि जब मुझसे कुछ कुछ लाइनें गवा ली गई और बाद में उन लोगों ने उसे एक गीत के शक्ल में रिकार्ड पर उतार दिया।
दोस्तों, इस अंश को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि मुबारक़ बेग़म जैसी कमचर्चित गायिकाओं को किस किस तरह का संघर्ष करना पड़ता होगा! ये सब जानकर दिल उदास हो जाता है कि इतनी सुरीले कलाकारों को उन्हे अपना हिस्सा नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे। 'आवाज़' की तरफ़ से हमारी ये छोटी सी कोशिश थी इन कमचर्चित गायिकाओं को याद करने की, आशा है आपको पसंद आई होगी। अपनी राय आप टिपण्णी के अलावा hindyugm@gmail.com के पते पर भी लिख भेज सकते हैं। आप से हमारा बस यही गुज़ारिश है कि इन कमचर्चित कलाकारों को कभी भुला ना दीजिएगा, अपनी दिल की वादियों में इन सुरीली आवाज़ों को हमेशा गूंजते रहने दीजिए, क्योंकि ये आवाज़ें आज भी बार बार हमसे यही कहती है कि कभी तन्हाइयों में युं हमारी याद आएगी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
नैनों में छुपे,
कुछ ख्वाब मिले,
मन झूम उठा,
कुछ कहा होगा, भूले ख्वाबों ने...
अतिरिक्त सूत्र- शुद्ध सोने से सजे गीतों की शृंखला में कल फिर गूंजेगी कुंदन लाल सहगल की आवाज़
पिछली पहेली का परिणाम-
बिलकुल सही शरद जी, एक अंक और आपके खाते में, एक गुजारिश है आपसे, आप अपने ऐसे शोस् जिनमे आपको ऐसे गजब के फनकारों की संगती मिली हो, उनके अनुभव अन्य श्रोताओं के साथ भी अवश्य बाँटें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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ROHIT RAJPUT