ताज़ा सुर ताल 06/ 2010
सजीव - सुजॊय, यह बताओ तुम्हे कैरम खेलने का शौक है?
सुजॊय - अरे सजीव, यह अचानक 'ताज़ा सुर ताल' के मंच पर कैरम की बात कहाँ से आ गई। वैसे, हाँ, बचपन में काफ़ी खेला करता था गर्मियों की छुट्टियों में, लेकिन अब बिल्कुल ही बंद हो गया है।
सजीव - दरअसल, आज हम जिस फ़िल्म की बातें करेंगे और गानें सुनेंगे वो कैरम से जुड़ी हुई है।
सुजॊय - मैं समझ गया, जिस फ़िल्म के प्रोमोज़ ख़ूब आ रहे हैं इन दिनों, 'स्ट्राइकर' फ़िल्म की बात हम आज कर रहे हैं ना?
सजीव - हाँ, जिस तरह से कैरम बोर्ड में स्ट्राइकर ही खेल को शुरु से लेकर अंजाम तक लेके जाती है, यही भाव इस फ़िल्म की कहानी का अंडरकरण्ट है। 'स्ट्राइकर' कहानी है झोपड़पट्टी (स्लम) में रहने वाले एक नौजवान की जो कैरम खिलाड़ी है और जो घिरा हुआ है जुर्म और असामाजिक तत्वों से। इस फ़िल्म के शीर्षक से या इसकी कहानी को सुन कर या पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि इसके संगीत से हमें कुछ ज़्यादा उम्मीदें लगानी चाहिए, क्योंकि अंडरवर्ल्ड की कहानी में भला अच्छे संगीत की गुंजाइश कहाँ होती है! लेकिन नहीं, इस फ़िल्म के संगीत में कुछ ख़ास बातें तो ज़रूर हैं, जिन्हे आप आज सुनते हुए महसूस करेंगे।
सुजॊय - सजीव, पहली ख़ास बात तो शायद यही है कि इस फ़िल्म में ६ संगीतकारों ने संगीत दिया है और ६ गीतकारों ने गीत लिखे हैं। शायद यह पहली फ़िल्म है जिसमें इतने सारे गीतकार संगीतकार हैं। चलिए एक एक करके गीत सुनते हैं और हर गीतकार - संगीतकार जोड़ी का तुलनात्मक विश्लेषण करते हैं।
सजीव - अच्छा विचार है, शुरुआत करते हैं एक सुफ़ियाना अंदाज़ वाले गीत से जिसे सोनू निगम ने गाया है। गीतकार जीतेन्द्र जोशी और संगीतकार शैलेन्द्र बरवे। यह गीत है "छम छम जानी रातें, ये सितारों वाली रात"। एक लाइन में अगर कहा जाए तो सोनू निगम ने यह साबित किया है कि चाहे गायकों की कितनी भी बड़ी नई फ़ौज आ गया हो, लेकिन अब भी वर्सेटाइलिटी में वो अब भी नंबर-१ हैं। कुल ७ मिनट १२ सेकण्ड्स के इस गीत के शुरु के १ मिनट १० सेकण्ड्स में सोनू के बिल्कुल नए अंदाज़ के आलाप सुनने को मिलते हैं। बरवे साहब ने सोनू की आवाज़ का ऐसा नया अंदाज़ उभारा है कि अगर ना बताया जाए तो लगता ही नहीं कि सोनू गा रहे हैं। बहुत ही अच्छा व नवीन प्रयोग! और उस पर पार्श्व में धीमी लय में बजती हुई वोइलिन की तानें और तालियों की थापें। ऐसा सूफ़ियाना समां बंधा है इस गाने ने कि इसे सुनते हुए दिल मदहोश सा हो जाता है।
सुजॊय - और गीत के बोल भी उतने ही आकर्षक! कुछ कुछ 'ताल' फ़िल्म के "इश्क़ बिना क्या जीना यारों" (उसे भी सोनू ने ही गाया था), और 'सांवरिया' फ़िल्म के "युं शबनमी", या फिर 'अनवर' फ़िल्म की "मौला मेरे मौला" गीत से कुछ कुछ समानता मिलती है, लेकिन जीतेन्द्र जोशी रुमानीयत से भरे बोलों ने और रोमांटिसिज़्म के नए अंदाज़ ने गीत को एक अलग ही नज़रिया दिया है। प्रेम और एक दैवीय शक्ति की बातें हैं इस गीत में। सूफ़ी संगीत जो इस दौर की खासियत चल रही है, उसमें जीतेन्द्र और शैलेन्द्र ने प्रेम रस और आध्यात्म का ऐसा संमिश्रण तैयार किया है कि बार बार सुनने को दिल करता है। इस नए उभरते गीतकार-संगीतकार जोड़ी को हमारा तह-ए-दिल से शुभकामनाएँ। ऐसा लगता है जैसे इस साल 'बेस्ट न्युकमर' के पुरस्कार के लिए कांटे की टक्कर होने वाली है। आइए सुनते हैं इस गीत को!
गीत - छम छम जानी रातें...cham cham (striker)
सजीव - अब दूसरा गीत किसी गीतकार - संगीतकार जोड़ी का नहीं है, बल्कि गीतकार - संगीतकार - गायक की तिकड़ी का है। गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे, संगीतकार हैं स्वानंद किरकिरे, और गायक हैं स्वानंद किरकिरे। गायक और गीतकार तो पहले से ही थे, अब संगीतकार भी बन गए हैं स्वानंद इस गीत से। फ़िल्म संगीत के इतिहास में बहुत गिने चुने ऐसे कलाकार हैं जिन्होने ये तीनों भूमिकाएँ निभाए हैं। किशोर कुमार, रवीन्द्र जैन और आनंद राज आनंद तीन अलग अलग दौर को रिप्रेज़ेंट करते हैं, और इस श्रेणी में आज के दौर का यक़ीनन प्रतिनिधित्व करना शुरु कर दिया है स्वानंद ने। यह गीत है "मौला मौला" और यह भी सुफ़ी क़व्वाली रंग लिए हुए है।
सुजॊय - गीत का प्रिल्युड म्युज़िक भी अलग अलग साज़ों के इस्तेमाल से काफ़ी रंगीन बन पड़ा है, और कुल मिलाकर यह गीत भी पहले गीत की तरह सुकूनदायक है। स्वानंद ने गायकी में भी लोहा मनवाया है। गायन और संगीत तो वो कभी कभार ही करते होंगे, लेकिन जिस चीज़ के लिए वो जाने जाते हैं, यानी कि गीतकारिता, उसमें तो जैसे कमाल ही कर दिया है जब वो लिखते हैं कि "मन के चांद पे बदरी ख़यालों की, नंगे ज़हन पे बरखा सवालों की"। इन दोनों गीतों को सुनते हुए आप यह महसूस करेंगे कि इनमें साज़ों की अनर्थक भरमार नहीं है जैसा कि आज कल के गीतों में हुआ करता है। और कोई भी पीस, कोई भी साज़ अनावश्यक नहीं लगता। बहुत ही सही म्युज़िक अरेंजमेण्ट हुआ है इन दोनों गीतों में। आइए अब यह गीत सुनते हैं।
गीत - मौला मौला...maula (striker)
सुजॊय - और अब एक ऐसे गीतकार - संगीतकार की जोड़ी का नग़मा जिस जोड़ी ने हाल के कुछ सालों में कम ही सही लेकिन जब भी साथ साथ काम किया, कुछ अव्वल दर्जे के गानें हमें दिए। यह जोड़ी है गुलज़ार साहब और विशाल भारद्वाज की। 'कमीने' के शीर्षक गीत के बाद एक उसी तरह का गीत 'स्ट्राइकर' के लिए भी इस जोड़ी ने बनाया है, जिसे विशाल ने ही गाया है। "और फिर युं हुआ, रात एक ख़्वाब ने जगा दिया" एक बार फिर गुलज़ार साहब के ग़ैर पारम्परिक बोलों से सजी है।
सजीव - जहाँ तक संगीत की बात है, है तो यह एक इंडियन टाइप का नर्मोनाज़ुक गाना, लेकिन वेस्टर्ण क्लासिकल टच है इसकी धुन में भी और ऒकेस्ट्रेशन में भी। 'कमीने' का शीर्षक गीत गाने के बाद विशाल ने अपनी आवाज़ का फिर एक बार जलवा दिखाया है और अब तो ऐसा लगने लगा है कि आगे भी उनकी गायकी जारी रहेगी। एक पैशनेट रोमांटिक गीत है यह, जिसमें विशाल के कीज़ और परकुशन्स साज़ों का बहुत ही बढ़िया इस्तेमाल किया है। अच्छा सुजॊय, इससे पहले कि हम यह गीत सुनें, ज़रा इस फ़िल्म के मुख्य कलाकारों के बारे में थोड़ी सी जानकारी देना चाहोगे?
सुजॊय - बिल्कुल! चंदन अरोड़ा के निर्देशन में बनीं यह फ़िल्म है, जिसके मुख्य किरदारों में हैं आर. सिद्धार्थ, आदित्य पंचोली, अनुपम खेर, पद्मप्रिया, निकोलेट बर्ड, अंकुर विकल और सीमा बिस्वास।
सजीव - आप सभी को याद होगा कि सिद्धार्थ ने 'रंग दे बसंती' में यादगार भूमिका अदा की थी। उसके बाद उन्हे बहुत सारी हिंदी फ़िल्मों में अभिनय के ऒफ़र मिले लेकिन उन्होने किसी में भी उन्होने दिलचस्पी नहीं दिखाई, और दक्षिण के फ़िल्मों से ही जुड़े रहे। ऐसे में लगता है कि 'स्ट्राइकर' में वो नये और एक असरदार भूमिका में नज़र आएँगे। चलिए अब सुना जाए विशाल भारद्वाज की आवाज़ में यह गीत।
गीत - और फिर युं हुआ....yun hua (stiker)
सजीव - इन तीनों गीतों को सुनने के बाद एक बात तो तय है, कि इस फ़िल्म का सम्गीत लीग से हट के है, जो हो सकता है कि डिस्कोथेक्स पर न बजें लेकिन लोगों के दिलों में एक लम्बे समय तक गूंजती रहेगी। आज के दौर के अच्छे संगीत के जो रसिक लोग हैं, उनके लिए एक म्युज़िकल सौगात है इस फ़िल्म का संगीत।
सुजॊय - सहमत हूँ आप से। अब चौथे गीत के रूप में बारी है गीतकार नितिन रायकवाड़ और नवोदित संगीतकार युवन शंकर राजा की। शंकर राजा भले ही हिंदी फ़िल्म संगीत में नवोदित हो, लेकिन दक्षिण में वो लगभग ७५ फ़िल्मों में संगीत दे चुके हैं। इस गीत को युवन शंकर राजा और फ़िल्म के हीरो सिद्धार्थ ने मिल कर गाया है। यह गीत है "हक़ से, ले हक़ से, जो चाहे तू रब से", इस गीत की खासियत यह है कि दो ऐसी आवाज़ें सुनने को मिलती है जो आज तक किसी हिंदी फ़िल्मी गीत में सुनने को नहीं मिला है, और गीत है भी अलग अंदाज़ का। इन दोनों कारणों से इस गीत को सुन कर एक ताज़ेपन का अहसास होता है।
सजीव - सुजॊय, इस गीत को सुन कर क्या तुम्हे फ़िल्म 'गजनी' का वह गीत याद नहीं आता, "बहका मैं बहका"?
सुजॊय - सही कहा आपने, गायकी का अंदाज़ कुछ कुछ वैसा ही है। और सजीव, नितिन रायकवाड़ की अगर बात करें, तो उन्होने ज़्यादातर अंडरवर्ल्ड की फ़िल्मों के लिए उन्होने कई गानें लिखे हैं जिनमें उस जगत की बोली और भाषा का इस्तेमाल उन्होने किए हैं। बहुत अच्छा नाम तो उनका नहीं है क्योंकि उनके ज़्यादातर गानें उसी श्रेणी के चरित्रों के लिए लिखे गए हैं, और ऐसे गानें सामयिक तौर पर चर्चित होते हैं, फिर कहीं खो जाते हैं। लेकिन इस गीत में थोड़ी अलग हट के बात है और उनके लिखे पहले के तमाम गीतों से काफ़ी बेहतर है।
सजीव - और युवन का म्युज़िक भी तुरंत ग्रहण करने लायक तो है ही, ख़ास कर शुरूआती संगीत में एक अजीब सा आकर्षण महसूस किया जा सकता है। सच है कि युवन और सिद्धार्थ अच्छे गायक नहीं हैं, लेकिन इस गीत को जिस तरह का रफ़ फ़ील चाहिए था, वो ऐसे गायकों की गायकी से ही आ सकती थी। कहानी के नायक के चरित्र के सपनों और ख़्वाहिशों का ज़िक्र है इस गीत में। कुल मिलाकर बोल, संगीत और गायकी के लिहाज़ से इस गीत में नई बात है, और इस गीत को भी कामयाबी मिलने के अच्छी चांसेस हैं। आइए सुनते हैं।
गीत - हक़ से, ले हक़ से....haq se (striker)
सुजॊय - अब जो गीत हम आपको सुनवाने जा रहे हैं, उसे एक बार फिर से जीतेन्द्र जोशी ने लिखा है और शैलेन्द्र बरवे ने स्वरबद्ध किया है। सुनिधि चौहान की आवाज़ में यह है "पिया सांवरा तरसा रहा"। हम सुनिधि के आम तौर पर जिस तरह के जोशीले और दमदार आवाज़ को सुना करते हैं, यह गीत उस अंदाज़ के बिल्कुल विपरीत है। सुकून से भरा एक नर्म अंदाज़ का गाना है, कुछ कुछ सेमी-क्लासिकल रंग का। इस तरह के गानें वैसे सुनिधि ने पहले भी गाए हैं जैसे कि फ़िल्म 'सुर' में "आ भी जा आ भी जा ऐ सुबह", 'चमेली' में "भागे रे मन कहीं", वगेरह।
सजीव - फ़िल्म 'चलते चलते' का गीत "प्यार हमको भी है, प्यार तुमको भी है" की ट्युन को भी महसूस किया जा सकता है प्रील्युड व इंटर्ल्युड म्युज़िक में। ऒर्केस्ट्रेशन में हारमोनियम, ड्रम, बांसुरी और तबले का प्रयोग सुनाई देता है। यह फ़िल्म का एकमात्र गीत है किसी गायिका का गाया हुआ। इस गीत में एक नारी के जज़्बातों का वर्णन मिलता है कि किस तरह से वो अपने प्यार को फिर एक बार अपने पास चाहती है। शैलेन्द्र और जीतेन्द्र ने जिस तरह से पहले गीत में सोनू निगम के आवाज़ को एक नये तरीके से पेश किया था, वैसे ही इस गीत में भी सुनिधि की आवाज़ को एक अलग ही ट्रीटमेंट दिया है।
सुजॊय - हाँ, और सुनिधि ने जिस तरह से नीचे सुरों में गाते हुए एक ख़ास रोमांटिसिज़्म का परिचय दिया है, वह वाक़ई कर्णप्रिय है। और क्या मोडुलेशन है उनकी गले में। इन दोनों गीतों के लिए इस गीतकार-संगीतकार जोड़ी को सराहना ज़रूर मिलनी चाहिए और मिलेगी भी। लेकिन फ़िल्हाल हम इनकी प्रतिभा को सराहते हुए सुनते हैं यह गीत।
गीत - पिया सांवरा तरसा रहा...piya sanwara (striker)
सुजॊय - और अब आज का अंतिम गीत। अब की बार इस फ़िल्म की शीर्षक गीत की बारी। इस गीत को कॊम्पोज़ किया है और गाया भी है ब्लाज़ ने। और उनके साथ मिलकर गीत को लिखा है नितिन रायकवाड़ और अनुश्का ने। रैप शैली में बना हुआ यह गीत है "एइम लगा उंगली चला"। कुछ बहुत ख़ास गीत तो नहीं लगा इसे सुनकर, बस यही कह सकते हैं कि एक ऐटिट्युड वाला गाना है, जिसमें बोलों से ज़्यादा बीट्स पर ज़ोर डाला गया है।
सजीव - सुजॊय, अगर रैप शैली में गाना बन रहा है तो इसी तरह का अरेंजमेण्ट ज़रूरी हो जाता है। अब ऐसे गीत में तो हम दूसरे पारंपरिक साज़ों का इस्तेमाल नहीं कर सकते ना?
सुजॊय - बिल्कुल सहमत हूँ आपकी बात से। और इस गीत में 'स्ट्राइकर' शब्द का प्रयोग बार बार होता है। जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि कैरम बोर्ड में जिस तरह से एक स्ट्राइकर की मदद से एक के बाद एक मोहरों को अपने काबू में किया जाता है, वैसे ही शायद फ़िल्म का नायक ज़िंदगी के कैरम बोर्ड पर भी कुछ इसी तरह का रवैया अपनाया होगा, यह तो फ़िल्म देखने पर ही पता लगेगी!
सजीव - मेरा ख़याल इस गीत के बारे में तो यही है कि इसकी तरफ़ लोगों का बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं जाएगा, लेकिन पूरे फ़िल्म में पार्श्वसंगीत की तरह इसका इस्तेमाल बार बार होता रहेगा। इस तरह के थीम सॊंग् बनाई ही इसीलिए जाती है। तो अब यह गीत सुनते हैं, लेकिन उससे पहले हम अपने पाठकों से और अपने श्रोताओं से कुछ कहना चाहते हैं। अगर आपको इस शृंखला से किसी भी तरह की कोई शिकायत है, या इसके स्वरूप से कोई ऐतराज़ है, या फिर आप किसी तरह का बदलाव चाहते हैं, तो हमें अपने सुझाव बेझिझक बताएँ। हम कोशिश करेंगे अपने आलेखों में सुधार लाने की।
सुजॊय - अपने विचार टिप्पणी के अलावा हिंद युग्म के ई-मेल पते पर आप भेज सकते हैं। और आइए अब सुना जाए 'स्ट्राइकर' का शीर्षक गीत।
गीत - एइम लगा उंगली चला...aim laga (striker)
"स्ट्राईकर" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****
अलग अलग संगीतकारों का ये प्रयोग बहुत बढ़िया बन पड़ा है. इससे प्रेरित होकर अन्य निर्माता निर्देशकों को भी यह राह अपनानी चाहिए, इससे प्रतिभाओं से भरे इस देश में बहुत से उभरते हुए फनकारों को अपना हुनर दिखाने का एक बड़ा माध्यम मिल सकेगा. और जब पूरी फिल्म में आपके खाते में यदि एक गीत होगा तो जाहिर है आप उस एक गीत में अपना सब कुछ झोंक देना चाहेंगें, और वही काफी हद तक इस फिल्म के संगीत के साथ हुआ है, स्वानंद का गीत तो ऑल टाइम हिट गीत होने का दम रखता है. ये संगीत प्रयोगात्मक है मगर इसका निशाना एकदम सटीक है. संगीत प्रेमियों के लिए एक सुरीला तोहफा....जरूर खरीदें.
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # १६- 'स्ट्राइकर' फ़िल्म में जिन ६ गीतकारों और ६ संगीतकारों ने काम किया है, उनमें से किन किन को हमने आज शामिल नहीं किया है?
TST ट्रिविया # १७ "कोई लाख करे चतुराई", "कविराजा कविता के मत अब कान मरोड़ो", "के आजा तेरी याद आई" जैसे गीतों का ज़िक्र 'स्ट्राइकर' के किसी गीत के साथ कैसे की जा सकती है?
TST ट्रिविया # १८ सोनू निगम ने स्वानंद किरकिरे का लिखा और शांतनु मोइत्र का स्वरबद्ध किया एक गीत गाया था जिसमें कोई छंद नहीं था। बिना छंद का गाना था वह। बताइए वह कौन सा गाना था?
TST ट्रिविया में अब तक -
सभी जवाब आ गए, सीमा जी को बधाई, अनाम जी आप अपने सुझाव सकारात्मक रूप से भी हमें बता सकते हैं, वैसे इस शृंखला का उद्देश्य नए गीतों को सुनना और उन पर समीक्षात्मक चर्चा करना है.
सजीव - सुजॊय, यह बताओ तुम्हे कैरम खेलने का शौक है?
सुजॊय - अरे सजीव, यह अचानक 'ताज़ा सुर ताल' के मंच पर कैरम की बात कहाँ से आ गई। वैसे, हाँ, बचपन में काफ़ी खेला करता था गर्मियों की छुट्टियों में, लेकिन अब बिल्कुल ही बंद हो गया है।
सजीव - दरअसल, आज हम जिस फ़िल्म की बातें करेंगे और गानें सुनेंगे वो कैरम से जुड़ी हुई है।
सुजॊय - मैं समझ गया, जिस फ़िल्म के प्रोमोज़ ख़ूब आ रहे हैं इन दिनों, 'स्ट्राइकर' फ़िल्म की बात हम आज कर रहे हैं ना?
सजीव - हाँ, जिस तरह से कैरम बोर्ड में स्ट्राइकर ही खेल को शुरु से लेकर अंजाम तक लेके जाती है, यही भाव इस फ़िल्म की कहानी का अंडरकरण्ट है। 'स्ट्राइकर' कहानी है झोपड़पट्टी (स्लम) में रहने वाले एक नौजवान की जो कैरम खिलाड़ी है और जो घिरा हुआ है जुर्म और असामाजिक तत्वों से। इस फ़िल्म के शीर्षक से या इसकी कहानी को सुन कर या पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि इसके संगीत से हमें कुछ ज़्यादा उम्मीदें लगानी चाहिए, क्योंकि अंडरवर्ल्ड की कहानी में भला अच्छे संगीत की गुंजाइश कहाँ होती है! लेकिन नहीं, इस फ़िल्म के संगीत में कुछ ख़ास बातें तो ज़रूर हैं, जिन्हे आप आज सुनते हुए महसूस करेंगे।
सुजॊय - सजीव, पहली ख़ास बात तो शायद यही है कि इस फ़िल्म में ६ संगीतकारों ने संगीत दिया है और ६ गीतकारों ने गीत लिखे हैं। शायद यह पहली फ़िल्म है जिसमें इतने सारे गीतकार संगीतकार हैं। चलिए एक एक करके गीत सुनते हैं और हर गीतकार - संगीतकार जोड़ी का तुलनात्मक विश्लेषण करते हैं।
सजीव - अच्छा विचार है, शुरुआत करते हैं एक सुफ़ियाना अंदाज़ वाले गीत से जिसे सोनू निगम ने गाया है। गीतकार जीतेन्द्र जोशी और संगीतकार शैलेन्द्र बरवे। यह गीत है "छम छम जानी रातें, ये सितारों वाली रात"। एक लाइन में अगर कहा जाए तो सोनू निगम ने यह साबित किया है कि चाहे गायकों की कितनी भी बड़ी नई फ़ौज आ गया हो, लेकिन अब भी वर्सेटाइलिटी में वो अब भी नंबर-१ हैं। कुल ७ मिनट १२ सेकण्ड्स के इस गीत के शुरु के १ मिनट १० सेकण्ड्स में सोनू के बिल्कुल नए अंदाज़ के आलाप सुनने को मिलते हैं। बरवे साहब ने सोनू की आवाज़ का ऐसा नया अंदाज़ उभारा है कि अगर ना बताया जाए तो लगता ही नहीं कि सोनू गा रहे हैं। बहुत ही अच्छा व नवीन प्रयोग! और उस पर पार्श्व में धीमी लय में बजती हुई वोइलिन की तानें और तालियों की थापें। ऐसा सूफ़ियाना समां बंधा है इस गाने ने कि इसे सुनते हुए दिल मदहोश सा हो जाता है।
सुजॊय - और गीत के बोल भी उतने ही आकर्षक! कुछ कुछ 'ताल' फ़िल्म के "इश्क़ बिना क्या जीना यारों" (उसे भी सोनू ने ही गाया था), और 'सांवरिया' फ़िल्म के "युं शबनमी", या फिर 'अनवर' फ़िल्म की "मौला मेरे मौला" गीत से कुछ कुछ समानता मिलती है, लेकिन जीतेन्द्र जोशी रुमानीयत से भरे बोलों ने और रोमांटिसिज़्म के नए अंदाज़ ने गीत को एक अलग ही नज़रिया दिया है। प्रेम और एक दैवीय शक्ति की बातें हैं इस गीत में। सूफ़ी संगीत जो इस दौर की खासियत चल रही है, उसमें जीतेन्द्र और शैलेन्द्र ने प्रेम रस और आध्यात्म का ऐसा संमिश्रण तैयार किया है कि बार बार सुनने को दिल करता है। इस नए उभरते गीतकार-संगीतकार जोड़ी को हमारा तह-ए-दिल से शुभकामनाएँ। ऐसा लगता है जैसे इस साल 'बेस्ट न्युकमर' के पुरस्कार के लिए कांटे की टक्कर होने वाली है। आइए सुनते हैं इस गीत को!
गीत - छम छम जानी रातें...cham cham (striker)
सजीव - अब दूसरा गीत किसी गीतकार - संगीतकार जोड़ी का नहीं है, बल्कि गीतकार - संगीतकार - गायक की तिकड़ी का है। गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे, संगीतकार हैं स्वानंद किरकिरे, और गायक हैं स्वानंद किरकिरे। गायक और गीतकार तो पहले से ही थे, अब संगीतकार भी बन गए हैं स्वानंद इस गीत से। फ़िल्म संगीत के इतिहास में बहुत गिने चुने ऐसे कलाकार हैं जिन्होने ये तीनों भूमिकाएँ निभाए हैं। किशोर कुमार, रवीन्द्र जैन और आनंद राज आनंद तीन अलग अलग दौर को रिप्रेज़ेंट करते हैं, और इस श्रेणी में आज के दौर का यक़ीनन प्रतिनिधित्व करना शुरु कर दिया है स्वानंद ने। यह गीत है "मौला मौला" और यह भी सुफ़ी क़व्वाली रंग लिए हुए है।
सुजॊय - गीत का प्रिल्युड म्युज़िक भी अलग अलग साज़ों के इस्तेमाल से काफ़ी रंगीन बन पड़ा है, और कुल मिलाकर यह गीत भी पहले गीत की तरह सुकूनदायक है। स्वानंद ने गायकी में भी लोहा मनवाया है। गायन और संगीत तो वो कभी कभार ही करते होंगे, लेकिन जिस चीज़ के लिए वो जाने जाते हैं, यानी कि गीतकारिता, उसमें तो जैसे कमाल ही कर दिया है जब वो लिखते हैं कि "मन के चांद पे बदरी ख़यालों की, नंगे ज़हन पे बरखा सवालों की"। इन दोनों गीतों को सुनते हुए आप यह महसूस करेंगे कि इनमें साज़ों की अनर्थक भरमार नहीं है जैसा कि आज कल के गीतों में हुआ करता है। और कोई भी पीस, कोई भी साज़ अनावश्यक नहीं लगता। बहुत ही सही म्युज़िक अरेंजमेण्ट हुआ है इन दोनों गीतों में। आइए अब यह गीत सुनते हैं।
गीत - मौला मौला...maula (striker)
सुजॊय - और अब एक ऐसे गीतकार - संगीतकार की जोड़ी का नग़मा जिस जोड़ी ने हाल के कुछ सालों में कम ही सही लेकिन जब भी साथ साथ काम किया, कुछ अव्वल दर्जे के गानें हमें दिए। यह जोड़ी है गुलज़ार साहब और विशाल भारद्वाज की। 'कमीने' के शीर्षक गीत के बाद एक उसी तरह का गीत 'स्ट्राइकर' के लिए भी इस जोड़ी ने बनाया है, जिसे विशाल ने ही गाया है। "और फिर युं हुआ, रात एक ख़्वाब ने जगा दिया" एक बार फिर गुलज़ार साहब के ग़ैर पारम्परिक बोलों से सजी है।
सजीव - जहाँ तक संगीत की बात है, है तो यह एक इंडियन टाइप का नर्मोनाज़ुक गाना, लेकिन वेस्टर्ण क्लासिकल टच है इसकी धुन में भी और ऒकेस्ट्रेशन में भी। 'कमीने' का शीर्षक गीत गाने के बाद विशाल ने अपनी आवाज़ का फिर एक बार जलवा दिखाया है और अब तो ऐसा लगने लगा है कि आगे भी उनकी गायकी जारी रहेगी। एक पैशनेट रोमांटिक गीत है यह, जिसमें विशाल के कीज़ और परकुशन्स साज़ों का बहुत ही बढ़िया इस्तेमाल किया है। अच्छा सुजॊय, इससे पहले कि हम यह गीत सुनें, ज़रा इस फ़िल्म के मुख्य कलाकारों के बारे में थोड़ी सी जानकारी देना चाहोगे?
सुजॊय - बिल्कुल! चंदन अरोड़ा के निर्देशन में बनीं यह फ़िल्म है, जिसके मुख्य किरदारों में हैं आर. सिद्धार्थ, आदित्य पंचोली, अनुपम खेर, पद्मप्रिया, निकोलेट बर्ड, अंकुर विकल और सीमा बिस्वास।
सजीव - आप सभी को याद होगा कि सिद्धार्थ ने 'रंग दे बसंती' में यादगार भूमिका अदा की थी। उसके बाद उन्हे बहुत सारी हिंदी फ़िल्मों में अभिनय के ऒफ़र मिले लेकिन उन्होने किसी में भी उन्होने दिलचस्पी नहीं दिखाई, और दक्षिण के फ़िल्मों से ही जुड़े रहे। ऐसे में लगता है कि 'स्ट्राइकर' में वो नये और एक असरदार भूमिका में नज़र आएँगे। चलिए अब सुना जाए विशाल भारद्वाज की आवाज़ में यह गीत।
गीत - और फिर युं हुआ....yun hua (stiker)
सजीव - इन तीनों गीतों को सुनने के बाद एक बात तो तय है, कि इस फ़िल्म का सम्गीत लीग से हट के है, जो हो सकता है कि डिस्कोथेक्स पर न बजें लेकिन लोगों के दिलों में एक लम्बे समय तक गूंजती रहेगी। आज के दौर के अच्छे संगीत के जो रसिक लोग हैं, उनके लिए एक म्युज़िकल सौगात है इस फ़िल्म का संगीत।
सुजॊय - सहमत हूँ आप से। अब चौथे गीत के रूप में बारी है गीतकार नितिन रायकवाड़ और नवोदित संगीतकार युवन शंकर राजा की। शंकर राजा भले ही हिंदी फ़िल्म संगीत में नवोदित हो, लेकिन दक्षिण में वो लगभग ७५ फ़िल्मों में संगीत दे चुके हैं। इस गीत को युवन शंकर राजा और फ़िल्म के हीरो सिद्धार्थ ने मिल कर गाया है। यह गीत है "हक़ से, ले हक़ से, जो चाहे तू रब से", इस गीत की खासियत यह है कि दो ऐसी आवाज़ें सुनने को मिलती है जो आज तक किसी हिंदी फ़िल्मी गीत में सुनने को नहीं मिला है, और गीत है भी अलग अंदाज़ का। इन दोनों कारणों से इस गीत को सुन कर एक ताज़ेपन का अहसास होता है।
सजीव - सुजॊय, इस गीत को सुन कर क्या तुम्हे फ़िल्म 'गजनी' का वह गीत याद नहीं आता, "बहका मैं बहका"?
सुजॊय - सही कहा आपने, गायकी का अंदाज़ कुछ कुछ वैसा ही है। और सजीव, नितिन रायकवाड़ की अगर बात करें, तो उन्होने ज़्यादातर अंडरवर्ल्ड की फ़िल्मों के लिए उन्होने कई गानें लिखे हैं जिनमें उस जगत की बोली और भाषा का इस्तेमाल उन्होने किए हैं। बहुत अच्छा नाम तो उनका नहीं है क्योंकि उनके ज़्यादातर गानें उसी श्रेणी के चरित्रों के लिए लिखे गए हैं, और ऐसे गानें सामयिक तौर पर चर्चित होते हैं, फिर कहीं खो जाते हैं। लेकिन इस गीत में थोड़ी अलग हट के बात है और उनके लिखे पहले के तमाम गीतों से काफ़ी बेहतर है।
सजीव - और युवन का म्युज़िक भी तुरंत ग्रहण करने लायक तो है ही, ख़ास कर शुरूआती संगीत में एक अजीब सा आकर्षण महसूस किया जा सकता है। सच है कि युवन और सिद्धार्थ अच्छे गायक नहीं हैं, लेकिन इस गीत को जिस तरह का रफ़ फ़ील चाहिए था, वो ऐसे गायकों की गायकी से ही आ सकती थी। कहानी के नायक के चरित्र के सपनों और ख़्वाहिशों का ज़िक्र है इस गीत में। कुल मिलाकर बोल, संगीत और गायकी के लिहाज़ से इस गीत में नई बात है, और इस गीत को भी कामयाबी मिलने के अच्छी चांसेस हैं। आइए सुनते हैं।
गीत - हक़ से, ले हक़ से....haq se (striker)
सुजॊय - अब जो गीत हम आपको सुनवाने जा रहे हैं, उसे एक बार फिर से जीतेन्द्र जोशी ने लिखा है और शैलेन्द्र बरवे ने स्वरबद्ध किया है। सुनिधि चौहान की आवाज़ में यह है "पिया सांवरा तरसा रहा"। हम सुनिधि के आम तौर पर जिस तरह के जोशीले और दमदार आवाज़ को सुना करते हैं, यह गीत उस अंदाज़ के बिल्कुल विपरीत है। सुकून से भरा एक नर्म अंदाज़ का गाना है, कुछ कुछ सेमी-क्लासिकल रंग का। इस तरह के गानें वैसे सुनिधि ने पहले भी गाए हैं जैसे कि फ़िल्म 'सुर' में "आ भी जा आ भी जा ऐ सुबह", 'चमेली' में "भागे रे मन कहीं", वगेरह।
सजीव - फ़िल्म 'चलते चलते' का गीत "प्यार हमको भी है, प्यार तुमको भी है" की ट्युन को भी महसूस किया जा सकता है प्रील्युड व इंटर्ल्युड म्युज़िक में। ऒर्केस्ट्रेशन में हारमोनियम, ड्रम, बांसुरी और तबले का प्रयोग सुनाई देता है। यह फ़िल्म का एकमात्र गीत है किसी गायिका का गाया हुआ। इस गीत में एक नारी के जज़्बातों का वर्णन मिलता है कि किस तरह से वो अपने प्यार को फिर एक बार अपने पास चाहती है। शैलेन्द्र और जीतेन्द्र ने जिस तरह से पहले गीत में सोनू निगम के आवाज़ को एक नये तरीके से पेश किया था, वैसे ही इस गीत में भी सुनिधि की आवाज़ को एक अलग ही ट्रीटमेंट दिया है।
सुजॊय - हाँ, और सुनिधि ने जिस तरह से नीचे सुरों में गाते हुए एक ख़ास रोमांटिसिज़्म का परिचय दिया है, वह वाक़ई कर्णप्रिय है। और क्या मोडुलेशन है उनकी गले में। इन दोनों गीतों के लिए इस गीतकार-संगीतकार जोड़ी को सराहना ज़रूर मिलनी चाहिए और मिलेगी भी। लेकिन फ़िल्हाल हम इनकी प्रतिभा को सराहते हुए सुनते हैं यह गीत।
गीत - पिया सांवरा तरसा रहा...piya sanwara (striker)
सुजॊय - और अब आज का अंतिम गीत। अब की बार इस फ़िल्म की शीर्षक गीत की बारी। इस गीत को कॊम्पोज़ किया है और गाया भी है ब्लाज़ ने। और उनके साथ मिलकर गीत को लिखा है नितिन रायकवाड़ और अनुश्का ने। रैप शैली में बना हुआ यह गीत है "एइम लगा उंगली चला"। कुछ बहुत ख़ास गीत तो नहीं लगा इसे सुनकर, बस यही कह सकते हैं कि एक ऐटिट्युड वाला गाना है, जिसमें बोलों से ज़्यादा बीट्स पर ज़ोर डाला गया है।
सजीव - सुजॊय, अगर रैप शैली में गाना बन रहा है तो इसी तरह का अरेंजमेण्ट ज़रूरी हो जाता है। अब ऐसे गीत में तो हम दूसरे पारंपरिक साज़ों का इस्तेमाल नहीं कर सकते ना?
सुजॊय - बिल्कुल सहमत हूँ आपकी बात से। और इस गीत में 'स्ट्राइकर' शब्द का प्रयोग बार बार होता है। जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि कैरम बोर्ड में जिस तरह से एक स्ट्राइकर की मदद से एक के बाद एक मोहरों को अपने काबू में किया जाता है, वैसे ही शायद फ़िल्म का नायक ज़िंदगी के कैरम बोर्ड पर भी कुछ इसी तरह का रवैया अपनाया होगा, यह तो फ़िल्म देखने पर ही पता लगेगी!
सजीव - मेरा ख़याल इस गीत के बारे में तो यही है कि इसकी तरफ़ लोगों का बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं जाएगा, लेकिन पूरे फ़िल्म में पार्श्वसंगीत की तरह इसका इस्तेमाल बार बार होता रहेगा। इस तरह के थीम सॊंग् बनाई ही इसीलिए जाती है। तो अब यह गीत सुनते हैं, लेकिन उससे पहले हम अपने पाठकों से और अपने श्रोताओं से कुछ कहना चाहते हैं। अगर आपको इस शृंखला से किसी भी तरह की कोई शिकायत है, या इसके स्वरूप से कोई ऐतराज़ है, या फिर आप किसी तरह का बदलाव चाहते हैं, तो हमें अपने सुझाव बेझिझक बताएँ। हम कोशिश करेंगे अपने आलेखों में सुधार लाने की।
सुजॊय - अपने विचार टिप्पणी के अलावा हिंद युग्म के ई-मेल पते पर आप भेज सकते हैं। और आइए अब सुना जाए 'स्ट्राइकर' का शीर्षक गीत।
गीत - एइम लगा उंगली चला...aim laga (striker)
"स्ट्राईकर" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****
अलग अलग संगीतकारों का ये प्रयोग बहुत बढ़िया बन पड़ा है. इससे प्रेरित होकर अन्य निर्माता निर्देशकों को भी यह राह अपनानी चाहिए, इससे प्रतिभाओं से भरे इस देश में बहुत से उभरते हुए फनकारों को अपना हुनर दिखाने का एक बड़ा माध्यम मिल सकेगा. और जब पूरी फिल्म में आपके खाते में यदि एक गीत होगा तो जाहिर है आप उस एक गीत में अपना सब कुछ झोंक देना चाहेंगें, और वही काफी हद तक इस फिल्म के संगीत के साथ हुआ है, स्वानंद का गीत तो ऑल टाइम हिट गीत होने का दम रखता है. ये संगीत प्रयोगात्मक है मगर इसका निशाना एकदम सटीक है. संगीत प्रेमियों के लिए एक सुरीला तोहफा....जरूर खरीदें.
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # १६- 'स्ट्राइकर' फ़िल्म में जिन ६ गीतकारों और ६ संगीतकारों ने काम किया है, उनमें से किन किन को हमने आज शामिल नहीं किया है?
TST ट्रिविया # १७ "कोई लाख करे चतुराई", "कविराजा कविता के मत अब कान मरोड़ो", "के आजा तेरी याद आई" जैसे गीतों का ज़िक्र 'स्ट्राइकर' के किसी गीत के साथ कैसे की जा सकती है?
TST ट्रिविया # १८ सोनू निगम ने स्वानंद किरकिरे का लिखा और शांतनु मोइत्र का स्वरबद्ध किया एक गीत गाया था जिसमें कोई छंद नहीं था। बिना छंद का गाना था वह। बताइए वह कौन सा गाना था?
TST ट्रिविया में अब तक -
सभी जवाब आ गए, सीमा जी को बधाई, अनाम जी आप अपने सुझाव सकारात्मक रूप से भी हमें बता सकते हैं, वैसे इस शृंखला का उद्देश्य नए गीतों को सुनना और उन पर समीक्षात्मक चर्चा करना है.
Comments
3. in film 'khoya khoya chaand', sonu nigam sang "o paakhi re".
ROHIT RAJPUT
lyricist: prashant Ingole
singer: amit trivedi , Siddharth
Waise main yeh samajh nahi paa raha ki "bombay bombay" ko kyun nahi shaamil kiyaa gaya. Is film ke saare gaane ek se badhkar ek hain..isliye kisi gaane ko chhorna uske saath anyaay hai.... Aur wo bhi Amit trivedi jaise composer ke song ko nahi shaamil karna...... SAJEEV ji aisa kyun?
-Vishwa Deepak