ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 355/2010/55
आज २४ फ़रवरी है, फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक तलत महमूद साहब का जनमदिवस। उन्ही को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास पेशकर इन दिनों आप सुन रहे हैं 'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़'। दोस्तों, इस शृंखला में हमने दस ऐसे लाजवाब ग़ज़लों को चुना है जिन्हे दस अलग अलग शायर-संगीतकार जोड़ियों ने रचे हैं। अब तक हमने साहिर - सचिन, मजरूह - जमाल सेन, नक्श ल्यायलपुरी - स्नेहल, और शेवन रिज़्वी - धनीराम/ख़य्याम की रचनाएँ सुनवाए हैं। आज एक और नायाब जोड़ी की ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है। यह जोड़ी है प्रेम धवन और पंडित गोबिन्दराम की। लेकिन आज की ग़ज़ल का ज़िक्र अभी थोड़ी देर में हम करेंगे, उससे पहले आपको हम बताना चाहेंगे कि किस तरह से तलत महमूद साहब ने अपना पहला फ़िल्मी गीत रिकार्ड करवाया था। तलत महमूद जब बम्बई में जमने लगे थे तब एक अफ़वाह फैल गई कि वो गाते वक़्त नर्वस हो जाते हैं। उनके गले की लरजिश को नर्वसनेस का नाम दिया गया। इससे उनके करीयर पर विपरीत असर हुआ। तब संगीतकार अनिल बिस्वास ने यह बताया कि उनके गले की यह कम्पन ही उनकी आवाज़ की खासियत है। जब तलत महमूद ने कोशिश कर के बिना कम्पन के गीत गाना शुरु किया तो अनिल दा उनसे बेहद नाराज़ हो गए, और कहा कि मुझे तुम्हारे गले की वह लरजिश ही चाहिए और उसी लरजिश की वजह से मैंने तुम्हे अपना गाना दिया है। इससे तलत साहब का हौसला बढ़ा और अनिल दा के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'आरज़ू' के लिए उनका पहला फ़िल्मी गीत "अए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल" रिकार्ड हुआ। उसके बाद तलत साहब ने पीछे मुड़कर दुबारा नहीं देखा और एक के बाद एक बेहतरीन गीत और ग़ज़लें गाते चले गए, और उनके गाए इन बेमिसाल मोतियों की फ़ेहरैस्त लम्बी, और लम्बी होती चली गई।
अब आते हैं हम आज की ग़ज़ल पर। जैसा कि हमने बताया, आज की ग़ज़ल के शायर हैं प्रेम धवन और मौसीक़ार हैं पंडित गोबिन्दराम। फ़िल्म 'नक़ाब' की यह ग़ज़ल है "तेरा ख़याल दिल को सताए तो क्या करें"। पंडित गोबिन्दराम फ़िल्म संगीत के दूसरी पीढ़ी के संगीतकार थे, जिन्होने बहुत सारी फ़िल्मों में संगीत दिया है। सन् १९३७ में फ़िल्म 'जीवन ज्योति' से अपनी पारी की आग़ाज़ करने वाले गोबिन्दराम ने आरम्भिक फ़िल्मों (ख़ूनी जादूगर, हिम्मत, आबरू, पगली, सहारा, सलमा) से ही अपना सिक्का जमा लिय था। संगीत और लोकप्रियता की दृष्टि से फ़िल्म 'दो दिल' ('४७) गोबिन्दराम की सफल फ़िल्मों में अन्यतम है। रीदम और लयकारी पंडित जी के संगीत के ख़ास पहलू हैं। कोरल एफ़ेक्ट्स का उन्होने बड़े सृजनात्मक अंदाज़ में इस्तेमाल दिखाया है। यह जो आज की हमारी फ़िल्म है 'नक़ाब', यही गोबिन्दराम की अंतिम महत्वपूर्ण फ़िल्म थी। मधुबाला और शम्मी कपूर अभिनीत लेखराज भाकरी की १९५५ की इस फ़िल्म में गोबिन्दराम ने लता से कई सुंदर गीत गवाए जैसे कि "ऐ दिल की लगी कुछ तू ही बता", "मेरे सनम तुझे मेरी क़सम", "हम तेरी सितम का कभी शिकवा ना करेंगे" आदि। लता-रफ़ी का गाया "कब तक उठाएँ और ये ग़म इंतज़ार का" भी एक लोकप्रिय रचना है। पर इस फ़िल्म का सब से मक़बूल गीत है तलत साहब का गाया हुआ आज की प्रस्तुत ग़ज़ल। आइए दोस्तों, पंडित गोबिन्दराम, प्रेम धवव और तलत महमूद को अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए यह ग़ज़ल सुनें, जिसके तीन शेर कुछ इस तरह से हैं -
तेरा ख़याल दिल को सताए तो क्या करें,
दम भर हमें क़रार ना आए तो क्या करें।
जब चांद आए तारों की महफ़िल झूम के,
दिल बार बार तुझको बुलाए तो क्या करें।
कटती नहीं है रात अब तेरे फ़िराक़ में,
हम दिलजलॊं को नींद ना आए तो क्या करें।
क्या आप जानते हैं...
कि जब के. आसिफ़ ने 'मुग़ल-ए-आज़' फ़िल्म की योजना बनाई थी तो संगीतकार के रूप में पहले पंडित गोबिन्दराम को ही चुना था। लेकिन उस समय यह फ़िल्म नहीं बन सकी। बाद में जब इस फ़िल्म को नए सिरे से शुरु किया गया तब तक गोबिन्दराम फ़िल्म जगत को छोड़ चुके थे।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
1. मतले में ये दो शब्द हैं - "जिदगी" और "अँधेरी", बताईये ग़ज़ल के बोल.-३ अंक.
2. खान मस्ताना के नाम से गाने वाले गायक हैं इस गीत के संगीतकार, किस नाम से उन्हें क्रेडिट दिया गया है- ३ अंक.
3. फिल्म के नायक थे भारत भूषण, नायिका का नाम बताएं- २ अंक.
4. इस गज़ल के शायर कौन हैं - सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
पिछली पहेली का परिणाम-
वाह वाह मज़ा आया, शरद जी आपके हैं २७ अंक अब तक, इंदु जी पीछे हैं १२ अंकों पर और अवध जी उनके ठीक पीछे, देखें पहले कौन शतक बनाता है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
आज २४ फ़रवरी है, फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक तलत महमूद साहब का जनमदिवस। उन्ही को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास पेशकर इन दिनों आप सुन रहे हैं 'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़'। दोस्तों, इस शृंखला में हमने दस ऐसे लाजवाब ग़ज़लों को चुना है जिन्हे दस अलग अलग शायर-संगीतकार जोड़ियों ने रचे हैं। अब तक हमने साहिर - सचिन, मजरूह - जमाल सेन, नक्श ल्यायलपुरी - स्नेहल, और शेवन रिज़्वी - धनीराम/ख़य्याम की रचनाएँ सुनवाए हैं। आज एक और नायाब जोड़ी की ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है। यह जोड़ी है प्रेम धवन और पंडित गोबिन्दराम की। लेकिन आज की ग़ज़ल का ज़िक्र अभी थोड़ी देर में हम करेंगे, उससे पहले आपको हम बताना चाहेंगे कि किस तरह से तलत महमूद साहब ने अपना पहला फ़िल्मी गीत रिकार्ड करवाया था। तलत महमूद जब बम्बई में जमने लगे थे तब एक अफ़वाह फैल गई कि वो गाते वक़्त नर्वस हो जाते हैं। उनके गले की लरजिश को नर्वसनेस का नाम दिया गया। इससे उनके करीयर पर विपरीत असर हुआ। तब संगीतकार अनिल बिस्वास ने यह बताया कि उनके गले की यह कम्पन ही उनकी आवाज़ की खासियत है। जब तलत महमूद ने कोशिश कर के बिना कम्पन के गीत गाना शुरु किया तो अनिल दा उनसे बेहद नाराज़ हो गए, और कहा कि मुझे तुम्हारे गले की वह लरजिश ही चाहिए और उसी लरजिश की वजह से मैंने तुम्हे अपना गाना दिया है। इससे तलत साहब का हौसला बढ़ा और अनिल दा के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'आरज़ू' के लिए उनका पहला फ़िल्मी गीत "अए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल" रिकार्ड हुआ। उसके बाद तलत साहब ने पीछे मुड़कर दुबारा नहीं देखा और एक के बाद एक बेहतरीन गीत और ग़ज़लें गाते चले गए, और उनके गाए इन बेमिसाल मोतियों की फ़ेहरैस्त लम्बी, और लम्बी होती चली गई।
अब आते हैं हम आज की ग़ज़ल पर। जैसा कि हमने बताया, आज की ग़ज़ल के शायर हैं प्रेम धवन और मौसीक़ार हैं पंडित गोबिन्दराम। फ़िल्म 'नक़ाब' की यह ग़ज़ल है "तेरा ख़याल दिल को सताए तो क्या करें"। पंडित गोबिन्दराम फ़िल्म संगीत के दूसरी पीढ़ी के संगीतकार थे, जिन्होने बहुत सारी फ़िल्मों में संगीत दिया है। सन् १९३७ में फ़िल्म 'जीवन ज्योति' से अपनी पारी की आग़ाज़ करने वाले गोबिन्दराम ने आरम्भिक फ़िल्मों (ख़ूनी जादूगर, हिम्मत, आबरू, पगली, सहारा, सलमा) से ही अपना सिक्का जमा लिय था। संगीत और लोकप्रियता की दृष्टि से फ़िल्म 'दो दिल' ('४७) गोबिन्दराम की सफल फ़िल्मों में अन्यतम है। रीदम और लयकारी पंडित जी के संगीत के ख़ास पहलू हैं। कोरल एफ़ेक्ट्स का उन्होने बड़े सृजनात्मक अंदाज़ में इस्तेमाल दिखाया है। यह जो आज की हमारी फ़िल्म है 'नक़ाब', यही गोबिन्दराम की अंतिम महत्वपूर्ण फ़िल्म थी। मधुबाला और शम्मी कपूर अभिनीत लेखराज भाकरी की १९५५ की इस फ़िल्म में गोबिन्दराम ने लता से कई सुंदर गीत गवाए जैसे कि "ऐ दिल की लगी कुछ तू ही बता", "मेरे सनम तुझे मेरी क़सम", "हम तेरी सितम का कभी शिकवा ना करेंगे" आदि। लता-रफ़ी का गाया "कब तक उठाएँ और ये ग़म इंतज़ार का" भी एक लोकप्रिय रचना है। पर इस फ़िल्म का सब से मक़बूल गीत है तलत साहब का गाया हुआ आज की प्रस्तुत ग़ज़ल। आइए दोस्तों, पंडित गोबिन्दराम, प्रेम धवव और तलत महमूद को अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए यह ग़ज़ल सुनें, जिसके तीन शेर कुछ इस तरह से हैं -
तेरा ख़याल दिल को सताए तो क्या करें,
दम भर हमें क़रार ना आए तो क्या करें।
जब चांद आए तारों की महफ़िल झूम के,
दिल बार बार तुझको बुलाए तो क्या करें।
कटती नहीं है रात अब तेरे फ़िराक़ में,
हम दिलजलॊं को नींद ना आए तो क्या करें।
क्या आप जानते हैं...
कि जब के. आसिफ़ ने 'मुग़ल-ए-आज़' फ़िल्म की योजना बनाई थी तो संगीतकार के रूप में पहले पंडित गोबिन्दराम को ही चुना था। लेकिन उस समय यह फ़िल्म नहीं बन सकी। बाद में जब इस फ़िल्म को नए सिरे से शुरु किया गया तब तक गोबिन्दराम फ़िल्म जगत को छोड़ चुके थे।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
1. मतले में ये दो शब्द हैं - "जिदगी" और "अँधेरी", बताईये ग़ज़ल के बोल.-३ अंक.
2. खान मस्ताना के नाम से गाने वाले गायक हैं इस गीत के संगीतकार, किस नाम से उन्हें क्रेडिट दिया गया है- ३ अंक.
3. फिल्म के नायक थे भारत भूषण, नायिका का नाम बताएं- २ अंक.
4. इस गज़ल के शायर कौन हैं - सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
पिछली पहेली का परिणाम-
वाह वाह मज़ा आया, शरद जी आपके हैं २७ अंक अब तक, इंदु जी पीछे हैं १२ अंकों पर और अवध जी उनके ठीक पीछे, देखें पहले कौन शतक बनाता है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अपना नहीं है कोई , क्या ज़िन्दगी है मेरी.
फिल्म : मेरा सलाम
अवध लाल
कब से तमन्ना थी की इस फिल्म का कोई गीत 'आवाज़' पर सुन सकूं.
खास तौर से मेरा पसंदीदा दोगाना -
" नायिका: ... कौन सी चीज़ है ज़माने में हम से बढ़ कर, सर शहंशाहों के झुकते हैं मेरे क़दमों पर.
नायक: सर झुकाने ही को आशिक की अदा कहते हैं, तुझको महबूब मेरा आशिक-ए-खुदा कहते हैं."
and acress ?????????
chhodiye ji anarkali naraz ho gai to taj mahal tudwa degi aur kaheg-''main sasuraal nhi jaungi chahe mere pti,mere 'naath' kitana hi 'prem' lutaaye'
aapki 'ray' ke 'bina' apun to kuchh nhi krne wale.
kisiiiiiii bhi prashn ka uttr hm kyo den?
sajiv aur sujoy number nhi kaat lenge hmare?
haa haa haa
Pabla bhaiyaaaaaaaaaaaa
sharadjiiiiiiiiiiiiiiiiii
sun rhen hain?
mera to kanth sookh gaya aawaj lagaate lagaate.
haa haa haa
इन्दु जी ने नायिका के वारे में इतने हिन्ट दे दिए कि अब तो कोई भी बता सकता है इसलिए मैं उस प्रश्न का जवाब नहीं दे रहा हूँ । इन्दु जी आपने मुझे आवाज़ लगाई पर मुझे तो सिर्फ़ Jiiiiiiiiiiiii ही सुनाई दिया ।
मज़ा आ गया.
अवध लाल