ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 354/2010/54
'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़' शृंखला की यह है चौथी कड़ी। १९५४ में तलत महमूद के अभिनय व गायन से सजी दो फ़िल्में आईं थी - 'डाक बाबू' और 'वारिस'। इनके अलावा बहुत सारी फ़िल्मों में इस साल उनकी आवाज़ छाई रही जैसे कि 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'टैक्सी ड्राइवर', 'अंगारे', 'सुबह का तारा', 'कवि', 'मीनार', 'सुहागन', 'औरत तेरी यही कहानी', और 'गुल बहार'। आज की कड़ी के लिए हमने चुना है फ़िल्म 'गुल बहार' की एक ग़ज़ल "गर तेरी नवाज़िश हो जाए"। संगीतकार हैं धनीराम और ख़य्याम। इस फ़िल्म में तीन गीतकारों ने गीत लिखे हैं - असद भोपाली, जाँ निसार अख़्तर और शेवन रिज़्वी। प्रस्तुत ग़ज़ल के शायर हैं शेवन रिज़्वी। नानुभाई वकील निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शक़ीला, हेमन्त और कुलदीप कौर। दोस्तों, जमाल सेन और स्नेहल भाटकर की तरह धनीराम भी एक बेहद कमचर्चित संगीतकार रहे। यहाँ तक कि उन्हे बी और सी-ग्रेड की फ़िल्में भी बहुत ज़्यादा नहीं मिली। फिर भी जितना भी काम उन्होने किया है, जितने भी धुनें उन्होने बनायी हैं, वे सब फ़िल्म संगीत धरोहर के कुछ ऐसे अनमोल रतन हैं कि उनके योगदान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। धनीराम फ़िल्म जगत में दाख़िल हुए थे १९४५ में जब पंडित अमरनाथ ने उनसे फ़िल्म 'झुमके' का "तेरे बग़ैर भी दिलशाद कर तो सकता हूँ" और 'धमकी' का "अपने कोठे मैं खड़ी" जैसे गीत गवाया था। गायक के रूप में धनीराम को निराशा ही हाथ लगी। बतौर संगीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी १९४८ की 'पपीहा रे'। उसके बाद १९५३ में उनकी अगली फ़िल्म आई 'धुआँ', जिसका संगीत धनीराम ने वसंत देसाई के साथ शेयर किया, ठीक वैसे ही जैसे कि आज के गीत का संगीत उन्होने शेयर किया ख़य्याम साहब के साथ। धनीराम के सब से चर्चित फ़िल्म रही 'डाक बाबू' ('५४), लेकिन इस फ़िल्म के संगीत की भी उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी कि होनी चाहिए थी। धनीराम के करीयर की कुछ और महत्वपूर्ण फ़िल्मों के नाम हैं - 'गुल बहार', 'रूप बसंत', 'शाही चोर', 'आँख का नशा', 'शाही बाज़ार', 'तक़दीर', 'बाजे घुँघरू', 'मेरी बहन', और 'आवारा लड़की'। (सौजन्य: धुनो की यात्रा - पंकज राग)।
दोस्तों, हमने इस शृंखला की पिछली कड़ियों में आपको बताया कि किस तरह से तलत महमूद संगीत की दुनिया से जुड़े और कैसे उनके अभिनय की भी पारी शुरु हुई थी कलकत्ता के न्यु थिएटर्स में। फ़िल्मी प्लेबैक में उनकी एंट्री किस तरह से हुई यह हम आपको कल की कड़ी में बताएँगे। आज बात करते हैं उनके ग़ज़ल गायकी की। तलत साहब की आवाज़ में संगीतकारों को ग़ज़ल गायकी के सभी गुण दिखाई देते थे। उनका उच्चारण और अदायगी बिल्कुल पर्फ़ेक्ट हुआ करती थी, ना कम ना ज़्यादा। उनका एक्स्प्रेशन, उनके जज़्बात, उनका स्टाइल कुछ ऐसा था कि जो किसी भी दूसरे गायक में नहीं मिलता था। उनकी आवाज़ में जो मिठास, जो कोमलता, और जो दर्द था, वही उनको दूसरे गायकों की भीड़ से अलग करती थी। जब वो फ़िल्म जगत में आए तब उनके जैसे आवाज़-ओ-अंदाज़ वाला कोई भी गायक नहीं था। इसलिए एक ताज़े हवा के झोंके की तरह उनकी एंट्री हुई और आज तक उनके जैसी आवाज़ वाला कोई भी नहीं जन्मा। 'ग़ज़लों के बादशाह' के रूप में तलत साहब जाने गए, और जल्द ही वो एक 'लिविंग् लीजेण्ड' के रूप में माने गए। आज भले वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ के जलवे आज भी बरक़रार है। ६० के दशक के अंत में फ़िल्म संगीत ने जब करवट बदली, ग़ज़लों और सॊफ़्ट रोमांटिक गीतों का चलन कम होने लगा, तब तलत साहब को यह बदलाव रास नहीं आया और उन्होने अपना पूरा ध्यान ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों में लगा दिया। ८० के दशक में भी उनकी गाई हुई ग़ज़लों के रिकार्ड्स जारी हुए हैं। इस शृंखला में भी हम उन्ही में से एक ग़ज़ल आपको सुनवाएँगे, लेकिन आज प्रस्तुत है फ़िल्म 'गुल बहार' की यह ग़ज़ल, जिसके चार शेर इस तरह से हैं -
गर तेरी नवाज़िश हो जाए गर तेरा इशारा हो जाए,
हर मौज सहारा दे जाए तूफ़ान किनारा हो जाए।
तुम हम से जफ़ाएँ करते हो, और हम ये दुआएं देते हैं,
जो हाल हमारा है इस दम वह हाल तुम्हारा हो जाए।
हम इश्क़ के मारे दुनिया में इतनी सी तमन्ना रखते हैं,
दामन जो तुम्हारा हाथ आए जीने का सहारा हो जाए।
परदा तो हटा दो चेहरे से वीरानें गुलिस्ताँ बन जाएँ,
जलवा जो दिखा दो तो रोशन क़िस्मत का सितारा हो जाए।
क्या आप जानते हैं...
धनीराम और दक्षिण के संगीतकार आर सुदर्शन ने मिलकर ए वी एम् की फिल्म "लड़की" में संगीत दिया था, इस फिल्म में गीता दत्त की आवाज़ एक खूबसूरत गीत था "बाट चलत नयी चुनरी रंग डाली". इन्हीं शब्दों को "रानी रूपमती" (१९५९) में रफ़ी और कृष्णराव चोनकर ने भैरवी में भी खूब गाया था
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
1. मतले में ये दो शब्द हैं - "ख्याल" और "करार", बताईये ग़ज़ल के बोल.-३ अंक.
2. इस शायर का नाम वही है जो "मैंने प्यार किया" में सलमान खान का स्क्रीन नाम था, इस गीतकार का पूरा नाम बताएं- २ अंक.
3. इस गीत के संगीतकार ने १९३७ में फिल्म जीवन ज्योति से शुरूआत की थी इनका नाम बताएं- २ अंक.
4. इस गज़ल की फिल्म का नाम क्या है, अभी कुछ सालों पहले फिर इसी नाम की एक फिल्म बनी थी जिसमें "एक दिन तेरी राहों में..." जैसा सुपर हिट गाना था- सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
पिछली पहेली का परिणाम-
इस बार निशाना एक दम सटीक है इंदु जी, अरे आप तो जवानों को मात दे रही हैं, आपको बू... कहने की जुर्रत भला हम कैसे कर सकते हैं, अवध जी की तस्वीर कल पहली बार देखी, आप भी खासे जवाँ हैं जनाब. आप दोनों को बधाई...शरद जी स्वागत है आपके २ अंक भी सुरक्षित...बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़' शृंखला की यह है चौथी कड़ी। १९५४ में तलत महमूद के अभिनय व गायन से सजी दो फ़िल्में आईं थी - 'डाक बाबू' और 'वारिस'। इनके अलावा बहुत सारी फ़िल्मों में इस साल उनकी आवाज़ छाई रही जैसे कि 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'टैक्सी ड्राइवर', 'अंगारे', 'सुबह का तारा', 'कवि', 'मीनार', 'सुहागन', 'औरत तेरी यही कहानी', और 'गुल बहार'। आज की कड़ी के लिए हमने चुना है फ़िल्म 'गुल बहार' की एक ग़ज़ल "गर तेरी नवाज़िश हो जाए"। संगीतकार हैं धनीराम और ख़य्याम। इस फ़िल्म में तीन गीतकारों ने गीत लिखे हैं - असद भोपाली, जाँ निसार अख़्तर और शेवन रिज़्वी। प्रस्तुत ग़ज़ल के शायर हैं शेवन रिज़्वी। नानुभाई वकील निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शक़ीला, हेमन्त और कुलदीप कौर। दोस्तों, जमाल सेन और स्नेहल भाटकर की तरह धनीराम भी एक बेहद कमचर्चित संगीतकार रहे। यहाँ तक कि उन्हे बी और सी-ग्रेड की फ़िल्में भी बहुत ज़्यादा नहीं मिली। फिर भी जितना भी काम उन्होने किया है, जितने भी धुनें उन्होने बनायी हैं, वे सब फ़िल्म संगीत धरोहर के कुछ ऐसे अनमोल रतन हैं कि उनके योगदान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। धनीराम फ़िल्म जगत में दाख़िल हुए थे १९४५ में जब पंडित अमरनाथ ने उनसे फ़िल्म 'झुमके' का "तेरे बग़ैर भी दिलशाद कर तो सकता हूँ" और 'धमकी' का "अपने कोठे मैं खड़ी" जैसे गीत गवाया था। गायक के रूप में धनीराम को निराशा ही हाथ लगी। बतौर संगीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी १९४८ की 'पपीहा रे'। उसके बाद १९५३ में उनकी अगली फ़िल्म आई 'धुआँ', जिसका संगीत धनीराम ने वसंत देसाई के साथ शेयर किया, ठीक वैसे ही जैसे कि आज के गीत का संगीत उन्होने शेयर किया ख़य्याम साहब के साथ। धनीराम के सब से चर्चित फ़िल्म रही 'डाक बाबू' ('५४), लेकिन इस फ़िल्म के संगीत की भी उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी कि होनी चाहिए थी। धनीराम के करीयर की कुछ और महत्वपूर्ण फ़िल्मों के नाम हैं - 'गुल बहार', 'रूप बसंत', 'शाही चोर', 'आँख का नशा', 'शाही बाज़ार', 'तक़दीर', 'बाजे घुँघरू', 'मेरी बहन', और 'आवारा लड़की'। (सौजन्य: धुनो की यात्रा - पंकज राग)।
दोस्तों, हमने इस शृंखला की पिछली कड़ियों में आपको बताया कि किस तरह से तलत महमूद संगीत की दुनिया से जुड़े और कैसे उनके अभिनय की भी पारी शुरु हुई थी कलकत्ता के न्यु थिएटर्स में। फ़िल्मी प्लेबैक में उनकी एंट्री किस तरह से हुई यह हम आपको कल की कड़ी में बताएँगे। आज बात करते हैं उनके ग़ज़ल गायकी की। तलत साहब की आवाज़ में संगीतकारों को ग़ज़ल गायकी के सभी गुण दिखाई देते थे। उनका उच्चारण और अदायगी बिल्कुल पर्फ़ेक्ट हुआ करती थी, ना कम ना ज़्यादा। उनका एक्स्प्रेशन, उनके जज़्बात, उनका स्टाइल कुछ ऐसा था कि जो किसी भी दूसरे गायक में नहीं मिलता था। उनकी आवाज़ में जो मिठास, जो कोमलता, और जो दर्द था, वही उनको दूसरे गायकों की भीड़ से अलग करती थी। जब वो फ़िल्म जगत में आए तब उनके जैसे आवाज़-ओ-अंदाज़ वाला कोई भी गायक नहीं था। इसलिए एक ताज़े हवा के झोंके की तरह उनकी एंट्री हुई और आज तक उनके जैसी आवाज़ वाला कोई भी नहीं जन्मा। 'ग़ज़लों के बादशाह' के रूप में तलत साहब जाने गए, और जल्द ही वो एक 'लिविंग् लीजेण्ड' के रूप में माने गए। आज भले वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ के जलवे आज भी बरक़रार है। ६० के दशक के अंत में फ़िल्म संगीत ने जब करवट बदली, ग़ज़लों और सॊफ़्ट रोमांटिक गीतों का चलन कम होने लगा, तब तलत साहब को यह बदलाव रास नहीं आया और उन्होने अपना पूरा ध्यान ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों में लगा दिया। ८० के दशक में भी उनकी गाई हुई ग़ज़लों के रिकार्ड्स जारी हुए हैं। इस शृंखला में भी हम उन्ही में से एक ग़ज़ल आपको सुनवाएँगे, लेकिन आज प्रस्तुत है फ़िल्म 'गुल बहार' की यह ग़ज़ल, जिसके चार शेर इस तरह से हैं -
गर तेरी नवाज़िश हो जाए गर तेरा इशारा हो जाए,
हर मौज सहारा दे जाए तूफ़ान किनारा हो जाए।
तुम हम से जफ़ाएँ करते हो, और हम ये दुआएं देते हैं,
जो हाल हमारा है इस दम वह हाल तुम्हारा हो जाए।
हम इश्क़ के मारे दुनिया में इतनी सी तमन्ना रखते हैं,
दामन जो तुम्हारा हाथ आए जीने का सहारा हो जाए।
परदा तो हटा दो चेहरे से वीरानें गुलिस्ताँ बन जाएँ,
जलवा जो दिखा दो तो रोशन क़िस्मत का सितारा हो जाए।
क्या आप जानते हैं...
धनीराम और दक्षिण के संगीतकार आर सुदर्शन ने मिलकर ए वी एम् की फिल्म "लड़की" में संगीत दिया था, इस फिल्म में गीता दत्त की आवाज़ एक खूबसूरत गीत था "बाट चलत नयी चुनरी रंग डाली". इन्हीं शब्दों को "रानी रूपमती" (१९५९) में रफ़ी और कृष्णराव चोनकर ने भैरवी में भी खूब गाया था
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
1. मतले में ये दो शब्द हैं - "ख्याल" और "करार", बताईये ग़ज़ल के बोल.-३ अंक.
2. इस शायर का नाम वही है जो "मैंने प्यार किया" में सलमान खान का स्क्रीन नाम था, इस गीतकार का पूरा नाम बताएं- २ अंक.
3. इस गीत के संगीतकार ने १९३७ में फिल्म जीवन ज्योति से शुरूआत की थी इनका नाम बताएं- २ अंक.
4. इस गज़ल की फिल्म का नाम क्या है, अभी कुछ सालों पहले फिर इसी नाम की एक फिल्म बनी थी जिसमें "एक दिन तेरी राहों में..." जैसा सुपर हिट गाना था- सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
पिछली पहेली का परिणाम-
इस बार निशाना एक दम सटीक है इंदु जी, अरे आप तो जवानों को मात दे रही हैं, आपको बू... कहने की जुर्रत भला हम कैसे कर सकते हैं, अवध जी की तस्वीर कल पहली बार देखी, आप भी खासे जवाँ हैं जनाब. आप दोनों को बधाई...शरद जी स्वागत है आपके २ अंक भी सुरक्षित...बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
तेरा खयाल दिल को सताए तो क्या करें ।
दम भर हमें करार न आए तो क्या करें ।
अवध लाल
कनेक्ट ही नही हो रहा था सो इव-वोक पर चली गई .
सोचा एक बार और ट्राई कर लिया जाए
तो अपन ने तो बोला 'जय श्री सुजोय और सजीवजी की ' और
अपना नेट स्टार्ट ,बेचारा डर गया कि वड्डे वड्डे दुश्मन अभी हमें भी नजर लगा देंगे
और 'बुड्ढा' 'करार' देंगे बस ये 'ख्याल' आते ही नेट चालू हो गया
pr........यहाँ देखा तो शरद जी जवाब दे चुके थे
मैंने नेट को धमकाया -'आयन्दा ऐन मौके पर धोखा दिया ना तुमने तो सुजोय और सजीव जी को बुला लूंगी
फिर न कहना मुझे कि -'माँ !दोनों ने हमे भी बु....... बोला '
वैसे फिल्म ' नकाब' में शम्मी कपूर के साथ मधुबाला बड़ी प्यारी लगी थी .