ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 342/2010/42
'प्योर गोल्ड' की दूसरी कड़ी में आज बातें १९४१ की। इस साल की कुछ प्रमुख फ़िल्मी बातों से अवगत करवाएँ आपको? मुकेश ने इस साल क़दम रखा बतौर अभिनेता व गायक फ़िल्म 'निर्दोष' में, जिसमें अभिनय के साथ साथ संगीतकार अशोक घोष के निर्देशन में उन्होने अपना पहला गीत गाया। गायक तलत महमूद ने कमल दासगुप्ता के संगीत निर्देशन में फ़य्याज़ हाशमी का लिखा अपना पहला ग़ैर फ़िल्मी गीत गाया "सब दिन एक समान नहीं था"। सहगल साहब भी दूसरे कई कलाकारों की तरह कलकत्ता छोड़ बम्बई आ गए और रणजीत मूवीटोन से जुड़ गए। इससे न्यु थिएटर्स को एक ज़बरदस्त झटका लगा। वैसे इस साल न्यु थिएटर्स ने पंकज मल्लिक के संगीत और अभिनय से सजी फ़िल्म 'डॉक्टर' रिलीज़ की जो सुपरहिट रही। इस साल अंग्रेज़ फ़ौज ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को उनके घर में नज़रबन्द कर रखा था। लेकिन सब की आँखों में धूल झोंक कर पेशावर के रास्ते वो अफ़ग़ानिस्तान चले गए। मिनर्वा मूवीटोन के सोहराब मोदी ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर फ़िल्म बनाई 'सिकंदर', जिसमें सिकन्दर और पोरस की भूमिकाएँ निभाए पृथ्वीराज कपूर और सोहराब मोदी ने। १९४१ में गीतकार किदार शर्मा फ़िल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी क़दम रखते हुए अपना पहला फ़िल्म निर्देशित किया 'चित्रलेखा'। वी. शान्ताराम, जो पुणे के प्रभात फ़िल्म कंपनी के एक मज़बूत स्तंभ हुआ करते थे, इस साल इस कंपनी के लिए अंतिम फ़िल्म निर्देशित किया 'पड़ोसी'। इसके बाद वो प्रभात छोड़ कर अपनी निजी फ़िल्म कंपनी 'राजकमल कलामंदिर' का निर्माण किया। प्रभात की फ़िल्मों का टैग लाइन "Remember, its a Prabhat Film" धीरे धीरे अपना अर्थ खो बैठा। १९४१ में मास्टर ग़ुलाम हैदर के संगीत में फ़िल्म आयी 'ख़ज़ांची' जिसमें उनके पंजाबी लोक संगीत के इस्तेमाल ने जैसे पूरे देश भर में धूम मचा दी। और फ़िल्मी गीतों में जैसे एक नई क्रांति ला दी। तभी तो हैदर साहब फ़िल्म संगीत के ५ क्रांतिकारी संगीतकारों में से एक हैं। ऐसे में आज की कड़ी में इसी फ़िल्म 'ख़ज़ांची' का कोई गीत सुनवाना बड़ा ही आवश्यक हो जाता है। दोस्तों, इसी फ़िल्म से शमशाद बेग़म के फ़िल्मी गायन की शुरुआत हुई थी। तो क्यों ना मास्टर ग़ुलाम हैदर और शमशाद बेग़म की जोड़ी को सलाम करते हुए आज इसी फ़िल्म का वही गीत सुना जाए जो शमशाद जी का गाया पहला हिंदी फ़िल्मी गीत है। यह गीत है "एक कली नाज़ों की पली"।
दोस्तों, सन् २००५ में विविध भारती की टीम शमशाद बेग़म जी के घर जाकर उनसे मुलाक़ात रिकार्ड कर लाए थे। उस मुलाक़ात में शमशाद जी ने अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताया था, मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब का भी ज़िक्र आया था। आइए आज जब इस जोड़ी की बात चल ही रही है तो उस मुलाक़ात के उसी अंश को यहाँ पर प्रस्तुत किया जाए। विविध भारती के तरफ़ से शमशाद जी से बातचीत कर रहे हैं कमल शर्मा।
प्र: आप जिस स्कूल में पढ़ती थीं, वहाँ आप के म्युज़िक टीचर ने आपका हौसला बढ़ाया होगा?
उ: उन्होने कहा कि आवाज़ अच्छी है, पर घरवालों ने इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया। मै जिस स्कूल में पढ़ती थी वह ब्रिटिश ने बनाया था, उर्दू ज़बान में, मैंने ५-वीं स्टैण्डर्ड तक पढ़ाई की। हम चार बहन और तीन भाई थे। एक मेरा चाचा था, एक उनको गाने का शौक था। वो कहते थे कि हमारे घर में यह लड़की आगे चलकर अच्छा गाएगी। वो मेरे बाबा के सगे भाई थे। वो उर्दू इतना अच्छा बोलते थे कि तबीयत ख़ुश हो जाती, लगता ही नहीं कि वो पंजाब के रहने वाले थे। मेरे वालिद ग़ज़लों के शौकीन थे और वो मुशायरों में जाया करते थे। कभी कभी वे मुझसे ग़ज़लें गाने को भी कहते थे। लेकिन वो मेरे गाने से डरते थे। वो कहते कि चार चार लड़कियाँ हैं घर में, तू गाएगी तो इन सबकी शादी करवानी मुश्किल हो जाएगी।
प्र: शमशाद जी, आपकी गायकी की फिर शुरुआत कैसे और कब हुई?
उ: मेरे उस चाचा ने मुझे जेनोफ़ोन कंपनी में ले गए, वह एक नई ग्रामोफ़ोन कंपनी आई हुई थी। उस समय मैं १२ साल की थी। वहाँ पहुँचकर पता चला कि ऒडिशन होगा। उन लोगों ने तख़्तपोश बिछाया, हम चढ़ गए, उस पर बैठ गए। वहीं पर मौजूद थे संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब। इतने कमाल के आदमी मैंने देखा ही नहीं था। वो मेरे वालिद साहब को पहचानते थे। वो कमाल के पखावज बजाते थे। उन्होने मुझसे पूछा कि आपके साथ कौन बजाएगा? मैंने कहा मैं ख़ुद ही गाती हूँ, मेरे साथ कोई बजाने वाला नहीं है। फिर उन्होने कहा कि थोड़ा गा के सुनाओ। मैंने ज़फ़र की ग़ज़ल शुर की "मेरे यार मुझसे मिले तो...", एक अस्थाई, एक अंतरा, बस! उन्होने मुझे रोक दिया, मैंने सोचा गए काम से, ये तो गाने ही नहीं देते! यह मैंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि मैं प्लेबैक सिंगर बन जाउँगी, मेरा इतना नाम होगा। मैं सिर्फ़ चाहती थी कि मैं खुलकर गाऊँ। मैंने मास्टर जी से फिर कहा कि दूसरा गाना सुनाऊँ? उन्होने कहा की नहीं, इतना ठीक है। फिर १२ गानों का अग्रीमेण्ट हो गया, हर गाने के लिए १२ रुपय। मास्टर जी उन लोगों से कहा कि इस लड़की को वो सब फ़ैसिलिटीज़ दो जो सब बड़े आर्टिस्ट्स को देते हो। उस ज़माने में ६ महीनों का कॊन्ट्रैक्ट हुआ करता था, ६ महीने बाद फिर रिकार्डिंग् वाले आ जाते थे। १० से ५ बजे तक हम रिहर्सल किया करते म्युज़िशियन्स के साथ, मास्टर जी भी रहते थे। आप हैरान होंगे कि उन्ही के गानें गा गा कर मैं आर्टिस्ट बनी हूँ।
प्र: आप में भी लगन रही होगी?
उ: मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब कहा करते थे कि इस लड़की में गट्स है, आवाज़ भी प्यारी है। शुरु में हर गीत के लिए १२ रुपय देते थे। पूरा सेशन ख़तम होने पर मुझे ५००० रुपय मिले। जब रब महरबान तो सब महरबान। जब रेज़ल्ट निकलता है तो फिर क्या कहना!
दोस्तों, आगे की बातचीत हम फिर किसी दिन के लिए सुरक्षित रखते हुए अब जल्दी से आपको सुनवाते हैं १९४१ की साल को सलाम करता हुआ यह गाना।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. साथ ही जवाब देना है उन सवालों का जो नीचे दिए गए हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
ये रस्ता बेहद मुश्किल ही सही,
इस पथ में साथ दो पहिये हैं हम,
दुआ में सौपेंगें हर काम अपना,
ये खेल जीवन का यूं खेलेंगे हम...
1. बताईये इस गीत की पहली पंक्ति कौन सी है - सही जवाब को मिलेंगें ३ अंक.
2. इस गीत को गाकर इस गायिका ने पूरे देश में जैसे एक तूफ़ान सा मचा दिया था, कौन थी ये गायिका जो एक कामियाब अभिनेत्री भी थी- सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
3. इस गीत के संगीतकार को आज लगभग भुला ही दिया गया है, इनका नाम बताएं-सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
4. इस गीत के गीतकार कौन हैं - सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी जवाब सही नहीं है....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
'प्योर गोल्ड' की दूसरी कड़ी में आज बातें १९४१ की। इस साल की कुछ प्रमुख फ़िल्मी बातों से अवगत करवाएँ आपको? मुकेश ने इस साल क़दम रखा बतौर अभिनेता व गायक फ़िल्म 'निर्दोष' में, जिसमें अभिनय के साथ साथ संगीतकार अशोक घोष के निर्देशन में उन्होने अपना पहला गीत गाया। गायक तलत महमूद ने कमल दासगुप्ता के संगीत निर्देशन में फ़य्याज़ हाशमी का लिखा अपना पहला ग़ैर फ़िल्मी गीत गाया "सब दिन एक समान नहीं था"। सहगल साहब भी दूसरे कई कलाकारों की तरह कलकत्ता छोड़ बम्बई आ गए और रणजीत मूवीटोन से जुड़ गए। इससे न्यु थिएटर्स को एक ज़बरदस्त झटका लगा। वैसे इस साल न्यु थिएटर्स ने पंकज मल्लिक के संगीत और अभिनय से सजी फ़िल्म 'डॉक्टर' रिलीज़ की जो सुपरहिट रही। इस साल अंग्रेज़ फ़ौज ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को उनके घर में नज़रबन्द कर रखा था। लेकिन सब की आँखों में धूल झोंक कर पेशावर के रास्ते वो अफ़ग़ानिस्तान चले गए। मिनर्वा मूवीटोन के सोहराब मोदी ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर फ़िल्म बनाई 'सिकंदर', जिसमें सिकन्दर और पोरस की भूमिकाएँ निभाए पृथ्वीराज कपूर और सोहराब मोदी ने। १९४१ में गीतकार किदार शर्मा फ़िल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी क़दम रखते हुए अपना पहला फ़िल्म निर्देशित किया 'चित्रलेखा'। वी. शान्ताराम, जो पुणे के प्रभात फ़िल्म कंपनी के एक मज़बूत स्तंभ हुआ करते थे, इस साल इस कंपनी के लिए अंतिम फ़िल्म निर्देशित किया 'पड़ोसी'। इसके बाद वो प्रभात छोड़ कर अपनी निजी फ़िल्म कंपनी 'राजकमल कलामंदिर' का निर्माण किया। प्रभात की फ़िल्मों का टैग लाइन "Remember, its a Prabhat Film" धीरे धीरे अपना अर्थ खो बैठा। १९४१ में मास्टर ग़ुलाम हैदर के संगीत में फ़िल्म आयी 'ख़ज़ांची' जिसमें उनके पंजाबी लोक संगीत के इस्तेमाल ने जैसे पूरे देश भर में धूम मचा दी। और फ़िल्मी गीतों में जैसे एक नई क्रांति ला दी। तभी तो हैदर साहब फ़िल्म संगीत के ५ क्रांतिकारी संगीतकारों में से एक हैं। ऐसे में आज की कड़ी में इसी फ़िल्म 'ख़ज़ांची' का कोई गीत सुनवाना बड़ा ही आवश्यक हो जाता है। दोस्तों, इसी फ़िल्म से शमशाद बेग़म के फ़िल्मी गायन की शुरुआत हुई थी। तो क्यों ना मास्टर ग़ुलाम हैदर और शमशाद बेग़म की जोड़ी को सलाम करते हुए आज इसी फ़िल्म का वही गीत सुना जाए जो शमशाद जी का गाया पहला हिंदी फ़िल्मी गीत है। यह गीत है "एक कली नाज़ों की पली"।
दोस्तों, सन् २००५ में विविध भारती की टीम शमशाद बेग़म जी के घर जाकर उनसे मुलाक़ात रिकार्ड कर लाए थे। उस मुलाक़ात में शमशाद जी ने अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताया था, मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब का भी ज़िक्र आया था। आइए आज जब इस जोड़ी की बात चल ही रही है तो उस मुलाक़ात के उसी अंश को यहाँ पर प्रस्तुत किया जाए। विविध भारती के तरफ़ से शमशाद जी से बातचीत कर रहे हैं कमल शर्मा।
प्र: आप जिस स्कूल में पढ़ती थीं, वहाँ आप के म्युज़िक टीचर ने आपका हौसला बढ़ाया होगा?
उ: उन्होने कहा कि आवाज़ अच्छी है, पर घरवालों ने इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया। मै जिस स्कूल में पढ़ती थी वह ब्रिटिश ने बनाया था, उर्दू ज़बान में, मैंने ५-वीं स्टैण्डर्ड तक पढ़ाई की। हम चार बहन और तीन भाई थे। एक मेरा चाचा था, एक उनको गाने का शौक था। वो कहते थे कि हमारे घर में यह लड़की आगे चलकर अच्छा गाएगी। वो मेरे बाबा के सगे भाई थे। वो उर्दू इतना अच्छा बोलते थे कि तबीयत ख़ुश हो जाती, लगता ही नहीं कि वो पंजाब के रहने वाले थे। मेरे वालिद ग़ज़लों के शौकीन थे और वो मुशायरों में जाया करते थे। कभी कभी वे मुझसे ग़ज़लें गाने को भी कहते थे। लेकिन वो मेरे गाने से डरते थे। वो कहते कि चार चार लड़कियाँ हैं घर में, तू गाएगी तो इन सबकी शादी करवानी मुश्किल हो जाएगी।
प्र: शमशाद जी, आपकी गायकी की फिर शुरुआत कैसे और कब हुई?
उ: मेरे उस चाचा ने मुझे जेनोफ़ोन कंपनी में ले गए, वह एक नई ग्रामोफ़ोन कंपनी आई हुई थी। उस समय मैं १२ साल की थी। वहाँ पहुँचकर पता चला कि ऒडिशन होगा। उन लोगों ने तख़्तपोश बिछाया, हम चढ़ गए, उस पर बैठ गए। वहीं पर मौजूद थे संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब। इतने कमाल के आदमी मैंने देखा ही नहीं था। वो मेरे वालिद साहब को पहचानते थे। वो कमाल के पखावज बजाते थे। उन्होने मुझसे पूछा कि आपके साथ कौन बजाएगा? मैंने कहा मैं ख़ुद ही गाती हूँ, मेरे साथ कोई बजाने वाला नहीं है। फिर उन्होने कहा कि थोड़ा गा के सुनाओ। मैंने ज़फ़र की ग़ज़ल शुर की "मेरे यार मुझसे मिले तो...", एक अस्थाई, एक अंतरा, बस! उन्होने मुझे रोक दिया, मैंने सोचा गए काम से, ये तो गाने ही नहीं देते! यह मैंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि मैं प्लेबैक सिंगर बन जाउँगी, मेरा इतना नाम होगा। मैं सिर्फ़ चाहती थी कि मैं खुलकर गाऊँ। मैंने मास्टर जी से फिर कहा कि दूसरा गाना सुनाऊँ? उन्होने कहा की नहीं, इतना ठीक है। फिर १२ गानों का अग्रीमेण्ट हो गया, हर गाने के लिए १२ रुपय। मास्टर जी उन लोगों से कहा कि इस लड़की को वो सब फ़ैसिलिटीज़ दो जो सब बड़े आर्टिस्ट्स को देते हो। उस ज़माने में ६ महीनों का कॊन्ट्रैक्ट हुआ करता था, ६ महीने बाद फिर रिकार्डिंग् वाले आ जाते थे। १० से ५ बजे तक हम रिहर्सल किया करते म्युज़िशियन्स के साथ, मास्टर जी भी रहते थे। आप हैरान होंगे कि उन्ही के गानें गा गा कर मैं आर्टिस्ट बनी हूँ।
प्र: आप में भी लगन रही होगी?
उ: मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब कहा करते थे कि इस लड़की में गट्स है, आवाज़ भी प्यारी है। शुरु में हर गीत के लिए १२ रुपय देते थे। पूरा सेशन ख़तम होने पर मुझे ५००० रुपय मिले। जब रब महरबान तो सब महरबान। जब रेज़ल्ट निकलता है तो फिर क्या कहना!
दोस्तों, आगे की बातचीत हम फिर किसी दिन के लिए सुरक्षित रखते हुए अब जल्दी से आपको सुनवाते हैं १९४१ की साल को सलाम करता हुआ यह गाना।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. साथ ही जवाब देना है उन सवालों का जो नीचे दिए गए हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-
ये रस्ता बेहद मुश्किल ही सही,
इस पथ में साथ दो पहिये हैं हम,
दुआ में सौपेंगें हर काम अपना,
ये खेल जीवन का यूं खेलेंगे हम...
1. बताईये इस गीत की पहली पंक्ति कौन सी है - सही जवाब को मिलेंगें ३ अंक.
2. इस गीत को गाकर इस गायिका ने पूरे देश में जैसे एक तूफ़ान सा मचा दिया था, कौन थी ये गायिका जो एक कामियाब अभिनेत्री भी थी- सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
3. इस गीत के संगीतकार को आज लगभग भुला ही दिया गया है, इनका नाम बताएं-सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
4. इस गीत के गीतकार कौन हैं - सही जवाब के मिलेंगें २ अंक.
पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी जवाब सही नहीं है....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ROHIT RAJPUT
mere aane ki khushi nhi huii aapko ? arre bhai itna hi likh dete 'itne smay baad aapko dekh kr achchha lga.
ha ha ha